हममें से ज्यादातर लोग दूसरों का दर्द तब तक नहीं समझते, जब तक हम खुद जीवन में विषम परिस्थितियों से नहीं गुजरते। इंसान तो फिर भी अपनी जरूरतों के लिए बोलकर मदद मांग सकता है, लेकिन बेजुबान जानवरों के लिए कम ही लोग आगे आते हैं। आज हम आपको जम्मू के एक ऐसे परिवार के बारे में बताने जा रहे हैं, जो इन बेजुबान घायल जानवरों के दर्द को अपना दर्द समझकर पिछले 28 सालों से उनकी सेवा कर रहा है।
जम्मू के हक्कल गांव में रहनेवाले हखू परिवार को विपरित परिस्थतियों के कारण कश्मीर में अपने घर को छोड़कर जम्मू आकर बसना पड़ा था। जानवरों से खास लगाव रखने वाला यह परिवार आज अपने घर पर ही जानवरों के लिए शेल्टर होम चला रहा है।
हखू परिवार, 1993 से 2018 तक यह काम खुद के खर्च पर ही करता था, लेकिन कुछ समय पहले उन्होंने अपना ट्रस्ट बनाया है, जिसके माध्यम से अब उन्हें अन्य लोगों की मदद मिल जाती है। फिलहाल, उनके शेल्टर होम में 300 से ज्यादा बीमार और घायल जानवरों की सेवा होती है।
जानवरों की सेवा करने का काम 40 वर्षीया नम्रता हखू अपने पिता राजेंद्र और माता उर्मिला हखू के साथ मिलकर कर रही हैं। नम्रता ने द बेटर इंडिया को बताया, “इन जानवरों का दर्द मुझे अपना दर्द लगता है। मैंने अपनी माँ से ही जानवरों को प्यार करना सीखा है।”
घर छोड़कर जाना पड़ा जम्मू
नम्रता के दादा पेशे से डॉक्टर थे और उनके पिता दवाई की दुकान चलाया करते थे। सितम्बर 1989 में राजेंद्र हखू की दवाई की दुकान के पास स्थित बीएसएफ कैंप पर आतंकी हमला हुआ था। हमले में घायल सैनिकों का प्रारंभिक उपचार राजेंद्र ने किया था। नम्रता ने बताया कि उस हादसे के बाद, उनके पिता को आतंकियों के धमकी भरे कॉल्स आने लगे, जिसमें उन्हें कश्मीर छोड़कर जाने को कहा जाता था। आगे चलकर आतंकियों ने उनके पिता को अगवा कर लिया। उन दिनों को याद करते हुए नम्रता बताती हैं, “जब वे मेरे पिता को लेकर गए, हमें लगा हमने उन्हें खो दिया लेकिन हमारी ख़ुशकिस्मती थी कि कुछ लोगों का इलाज करवाने के बाद, आतंकियों ने मेरे पिता को छोड़ दिया। इस घटना के बाद हमने दिसंबर 1989 में कश्मीर छोड़ दिया।”
जम्मू में हखू परिवार की खुद की 1600 स्क्वायर फ़ीट जमीन थी। उस समय नम्रता की उम्र महज 10 साल थी और उनका भाई उनसे भी छोटा था।
बेंज और ब्रैवो से शुरू हुआ सफर
जम्मू में राजेंद्र हखू कमिशन बेसिस पर छोटे-मोटे काम करने लगे और दोनों बच्चों का दाखिला जम्मू के एक स्कूल में करवा दिया। लेकिन यहां आकर उन्होंने महसूस हुआ कि जानवरों, खासकर कुत्तों के प्रति लोगों का रवैया अच्छा नहीं है। जबकि हखू परिवार हमेशा से जानवर प्रेमी रहा है। नम्रता कहती हैं, “1993 में मेरी माँ ने एक घायल कुत्ते को घर में आसरा दिया था। मेरा भाई भी कहीं से एक कुत्ता घर लाया था। हमने इन दोनों का नाम बेंज और ब्रैवो रखा था। यह दोनों हमारे पास 15 साल से ज्यादा समय तक रहे।”
नम्रता बताती हैं कि उनके माता-पिता सड़क पर घायल जानवरों को देखते थे, तो उनकी सेवा में जुट जाते थे। कुछ जानवरों को उन्होंने अपने घर पर आसरा दिया। चूँकि उनके घर में बाउंड्री वॉल नहीं थी, इसलिए कई जानवर भाग भी जाया करते थे। इसके बाद उन्होंने 1997 में बाउंड्री वॉल बनवाई और इन जानवरों को आसरा मिल गया।
घर में बाउंड्री वॉल बनाने का सबसे बड़ा कारण यह था कि घायल और कमजोर जानवरों को भोजन के लिए इधर-उधर भटकना ना पड़े। इसके अलावा, वे सड़क के किनारे रहने वाले जानवरों को भी खाना खिलाते रहते हैं।
जानवरों की सेवा करने के लिए नहीं की शादी
नम्रता बताती हैं, “अभी हमारे पास 20 कुत्ते हैं, बाकि कुछ जानवरों को लोग हमारे दरवाजे के बाहर रख जाया करते हैं। वहीं कुछ लोग तीन चार दिन का कहकर अपने कुत्ते हमारे पास छोड़ जाते हैं और कभी लेने नहीं आते।” फ़िलहाल उनके पास मुर्गे, बिल्ली, सूअर, बैल, चील, बंदर और 340 कुत्ते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास 50 कुत्ते ऐसे हैं, जो चल भी नहीं पाते हैं।
साल 2018 में नम्रता और उनके परिवार को लगा कि यह हमारे अकेले के बस का काम नहीं है। लोगों से कुछ मदद की उम्मीद में उन्होंने साल 2018 में Hakhoo Street Animals Foundation Trust के नाम से एक संस्था रजिस्टर करवाई।
अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद नम्रता एक कंप्यूटर सेंटर चलाया करती थीं। लेकिन जैसे-जैसे जानवरों की संख्या बढ़ने लगी, उनके माता-पिता के लिए इन्हें संभालना मुश्किल होने लगा। आखिरकार साल 2016 में उन्हें कंप्यूटर सेंटर का काम छोड़ना पड़ा। नम्रता इन जानवरों की बच्चों की तरह सेवा करती हैं। अपने माता-पिता के साथ मिलकर इन जानवरों की सेवा के लिए उन्होंने शादी भी नहीं की है।
जानवरों की सेवा के लिए बेच दिए गहने
नम्रता ने कंप्यूटर सेंटर से जमा की गई पूंजी और उनकी माँ ने अपने सारे गहने इस काम के लिए बेच दिए। नम्रता ने कहा, “इन जानवरों के मेडिकल और भोजन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमने अलग-अलग जगह से कर्ज भी लिया, जो तकरीबन 10 लाख रुपये का है।”
इस शेल्टर होम में जानवरों को दिन में तीन टाइम खाना, समय-समय पर वैक्सीन और दवाई आदि दी जाती है। फिलहाल, हखू परिवार की आय का एक मात्र जरिया, सरकार की ओर से मिलने वाला माइग्रेंट रिलीफ फंड है। इसके तहत, उन्हें हर महीने 9,750 रुपये मिलते हैं। नम्रता भविष्य में इन जानवरों के लिए एक अच्छा शेल्टर होम बनाना चाहती हैं, जिसके लिए उन्हें आपकी मदद की जरूरत है।
अगर आप Hakhoo Street Animals Foundation Trust के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं, तो उन्हें सोशल मीडिया पर संपर्क कर सकते हैं। आप उन तक अपनी सीधी मदद भी पहुंचा सकते हैं।
Hakhoo Street Animals Foundation (Regd.) Trust. Ac/No.: 0559010100000477
IFSC: JAKA0KARNBG,Sol Id : 0559
J&K Bank,Branch Karan Bagh,Jammu,J&K
For PayTm: +919419199777
GooglePay: +919906345777
For PhonePe: +919906345777
संपादन- जी एन झा
यह भी पढ़ेंः 20 सालों से डॉक्टर दंपति कर रहे नेक काम, सड़कों पर भटक रहीं 500 कमजोर महिलाओं की बचाई जान
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: