गायों की तो सब सेवा करते हैं, पर ये युवक 2000 बैलों तक रोज़ पहुंचाते हैं खाना

chara car

गाज़ियाबाद के यूथ नेटवर्क के युवाओ की पहल से आज, 10 हजार घरों से रोटियां और फल-सब्जियों के छिलके आदि कचरे में नहीं, बल्कि तीन चारा कार के माध्यम से सीधे नंदीगृह में जा रहे हैं।

अक्सर हम गाय, बैल या कुत्तों को सड़क के किनारे पड़े कचरे के ढेर से खाना खाते हुए देखते हैं। हालांकि उस ढेर में ग्रीन वेस्ट के अलावा प्लास्टिक और दूसरा कचरा भी होता है। लेकिन भूख से मजबूर इन जानवरों को उसी से खाना चुनकर खाना पड़ता है। कई लोग तो खाना और सब्जियों के छिलकों को प्लास्टिक के बैग में पैक करके कचरे में डालते हैं। ऐसे में कुछ मासूम जानवर प्लास्टिक बैग सहित ही कचरा खाने लगते हैं। 

इसके अलावा, कई भारतीय घरों में हर दिन पहली रोटी गाय और कुत्ते के लिए बनाई जाती है। जिसे हम आमतौर पर सड़क के किनारे डाल देते हैं, जो कभी-कभी कचरे में चली जाती है। कितना अच्छा हो, अगर कोई हर दिन आपके घर से निकले इस ग्रीन वेस्ट और रोटियों को सीधा भूखे जानवरों तक पहुंचा दे। 

गाज़ियाबाद के कुछ युवाओं ने इस काम को करने का जिम्मा उठाया है। मयंक चौधरी और उनके यूथ नेटवर्क से जुड़े लोगों ने, इस समस्या को देखते हुए, जनवरी 2020 में एक नई पहल की शुरुआत की, जिसका नाम है-‘चारा कार’। 

Mayank chaudhary with chara car
मयंक चौधरी

द बेटर इंडिया से बात करते हुए मयंक कहते हैं, “ग्रीन वेस्ट को सड़कों पर पड़ा देख, मेरे मन में यह ख्याल आया कि अगर इसे भूखे जानवरों तक पहुंचाया जाए, तो  इसका सही उपयोग हो पाएगा। इसके बाद, दिसंबर 2019 में हमने सोशल मीडिया के जरिए पब्लिक फंडिंग से चारा कार की शुरुआत की। हमारा यह आइडिया लोगों को इतना पसंद आया कि सिर्फ पांच दिनों में ही हमने तक़रीबन एक लाख 20 हजार रुपये इकठ्ठा करके, एक इलेक्ट्रिक वाहन खरीद लिया।”

इस तरह जनवरी 2020 में, गाज़ियाबाद में पहली चारा कार काम करने लगी। घर से इकट्ठा किया गया चारा, गाज़ियाबाद के ही एक नंदी गृह (जहाँ बेसहारा बैलों को रखा जाता है) में भेजा जाता है। यहाँ लगभग 2000 नंदी रहते हैं। 

राह में आईं कई चुनौतियाँ

पब्लिक फंडिंग के साथ चारा कार आ तो गई। लेकिन यूथ नेटवर्क के सामने, लोगों को इसके बारे में समझाने और इसे नियमित रूप से चलाने का खर्च, जैसी कई और चुनौतियां भी थीं।  मयंक कहते हैं, “गाड़ी को चार्ज करना, ड्राइवर को सैलरी देना आदि के लिए हमने चारा कार के दोनों तरफ 6*6 के बोर्ड लगवाए और उस पर विज्ञापन करना शुरू कर दिया। चूँकि हमारी कार घर-घर तक पहुँचती थी, इसलिए कई लोग हमसे जुड़ने लगे। अब इससे चारा कार का खर्च आराम से निकल जाता है।”

चारा कार एक सन्देश के साथ गाज़ियाबाद के कवि नगर, शास्त्री नगर, नेहरू नगर, राज नगर जैसे इलाकों में जाती है। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, इसके लिए उनका नियमित होना बेहद जरूरी था। जिसका मयंक और उनकी टीम ने खास ध्यान रखा। शुरुआत में तो लोगों को लगा यह नई पहल पता नहीं कितने दिन चल पाएगी। लेकिन जब लोगों ने देखा की यह चारा कार नियमित रूप से आ रही है, तो फिर वे अपना सारा ग्रीन वेस्ट कार में ही डालने लगे। 

green waste in chara car

कवि नगर की एक गृहिणी प्रेम लता गर्ग बताती हैं, “पहले हम फल-सब्जियों के छिलके और गाय के लिए बनी रोटियों को सड़क के किनारे ही डाल देते थे। नहीं तो फिर हमें इंतजार करना पड़ता था कि कोई गाय या कुत्ता दिखे, तब हम रोटियां डालते। लेकिन बारिश में ये कचरा गीला हो जाता और गंदगी भी फैलती थी। वहीं, अब हम नियमित रूप से चारा कार का इंतजार करते हैं। लॉकडाउन में थोड़े समय यह बंद थी, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि चारा कार फिर से शुरू हो गई।”

पब्लिक फंडिंग से खरीदी तीन चारा कार 

जनवरी से मार्च तक मात्र तीन महीनों में यूथ नेटवर्क की इस पहल को लोगों का इतना साथ मिला कि इन्होंने पब्लिक फंडिंग से दो और कारें भी खरीद लीं। आज तीन चारा कार पूर्णरूप से काम कर रही हैं। इसके माध्यम से तक़रीबन 10 हजार घरों से रोज का सैकड़ों किलो चारा इकट्ठा किया जा रहा है। घरों के अलावा चारा कार कुछ रेस्टॉरेंट्स, बाजार में सब्जी और जूस की दुकानों से भी ग्रीन वेस्ट कलेक्ट करती है। 

मयंक कहते हैं, “शुरुआत के तीन महीनों में ही लोगों का इतना अच्छा रिस्पांस देखकर हमें काफी प्रोत्साहन मिला। लेकिन लॉकडाउन में कुछ महीने हमें चारा कार को बंद करना पड़ा था। उस दौरान हमने इन वाहनों को गाज़ियाबाद में ऑक्सीजन सप्लाई और कोविड मरीजों तक खाना पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया था।”

chara car collecting green waste to feed nandi

कैसे हुई यूथ नेटवर्क की शुरुआत 

यूथ नेटवर्क की बात की जाए, तो मयंक ने साल 2016 में अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर, इसकी शुरुआत की थी। उस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान से प्रेरित होकर गाज़ियाबाद में कुछ बदलाव लाने के मकसद से इसे शुरू किया था। मयंक अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी अलग-अलग विषयों पर बात करते रहते हैं। 

महज कुछ दोस्तों की इस पहल से बने यूथ नेटवर्क से आज एक हजार लोग जुड़ चुके हैं। चारा कार भी यूथ नेटवर्क के किए गए कई सामाजिक प्रयासों में से एक है। मयंक कहते हैं कि मुझे ख़ुशी है कि आज हमारी चारा कार नंदियों का पेट भरने का काम कर रही हैं। वहीं, ये नंदी भी हरदिन चारा कार का इंतजार करती हैं। 

आने वाले समय में मयंक और उनकी टीम दिल्ली के अन्य इलाकों में भी इस तरह की चारा कार को शुरू करना चाहते हैं।

मयंक से संपर्क करने के लिए आप उन्हें 9350025025 पर कॉल कर सकते हैं।

संपादन-अर्चना दुबे

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