Placeholder canvas

पुरानी बेडशीट से 1 लाख बैग बनाकर मुफ्त में बाँट रहे हैं ये दो भाई!

"ये बेडशीट सिर्फ नाम के लिए पुरानी थी क्योंकि सभी होटलों ने भेजने से पहले इन्हें अच्छे से धुलवाया और फिर इस्त्री करवाया था। सिर्फ एक महीने के अंदर-अंदर हमने इन बेडशीट से 1 लाख बैग बनाए और बाँटे!"

1 जनवरी 2019 से तमिलनाडु सरकार ने राज्य में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पाबंदी लगायी। पर इस फैसले के आने से एक साल पहले से ही, दो भाईयों ने पॉलिथीन के खिलाफ अपना अभियान शुरू कर दिया था। ये दोनों भाई दुकानदारों को पॉलिथीन के विकल्प के लिए मुफ्त में कपड़े के बैग बाँट रहे हैं और इन बैग्स को सिलवाने के लिए उन्होंने मानसिक रूप से दिव्यांग महिलाओं को रोज़गार दिया है।

चेन्नई के रहने वाले 17 वर्षीय जय और उनके छोटे भाई 13 वर्षीय प्रीत अश्वनी ने अब तक 1 लाख से भी ज्यादा कपड़े के बैग बांटे हैं और 2020 में भी उनका यह अभियान इसी तरह चलेगा।

वृद्धाश्रम से मिला आईडिया:

With the team

जय और प्रीत जब शहर के एक वृद्धाश्रम में गये, तो वहां उन्हें कई मानसिक तौर से दिव्यांग महिलाएं मिलीं। उन्हें यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि एक संगठन इन महिलाओं को अलग-अलग स्किल्स सिखा रहा है। दोनों भाईयों ने देखा कि ये सभी महिलाएं कपड़े के बैग आदि सिलने में काफी माहिर हैं।

यह भी पढ़ें: हर रविवार जरूरतमंदों की मदद करते हैं ‘यंग गार्डियन्स ऑफ़ मणिपुर’!

“हम इन महिलाओं की मदद करना चाहते थे ताकि ये लोग अपनी स्किल का अच्छा उपयोग कर सकें। इस बारे में हमने विचार-विमर्श किया और सोचा कि क्यों न उनकी स्किल्स को पर्यावरण-संरक्षण से जोड़ दिया जाए, खासकर कि सिंगल यूज प्लास्टिक को रोकने में। इस तरह से हमें यह आईडिया आया और हमने उनसे कपड़े के बैग बनाने के लिए कहा जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले पॉलीबैग्स का विकल्प हो सकते हैं।”

“हमने अपने आस-पास कपड़ा खरीदने का साधन ढूंढा, लेकिन यह बहुत ही महंगा था। ऐसे में, दोनों लड़कों ने होटलों से पुरानी बैड-शीट इकट्ठी कर, उनसे बैग बनवाने का फैसला किया,” जय और प्रीत की माँ, वर्षा अश्वनी ने बताया।

बैडशीट से बैग:

Preet Aswani

अपनी इस पहल को लोगों तक पहुँचाने के लिए जय और प्रीत ने न सिर्फ सोशल मीडिया का सहारा लिया बल्कि खुद अपने दोस्तों और पड़ोसियों से इस बारे में बात की। यहाँ तक कि उनके अभियान के बारे में जानकर खुद शहर के बहुत से होटलों ने उनसे सम्पर्क करना शुरू किया।

“ये बेडशीट सिर्फ नाम के लिए पुरानी थीं, क्योंकि सभी होटलों ने भेजने से पहले इन्हें अच्छे से धुलवाया और फिर इस्त्री करवाया था। सिर्फ एक महीने के अंदर-अंदर हमने इन बैडशीट से 1 लाख बैग बनाये और बांटे,” जय ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया।

इन बैग्स की सिलाई पर आए खर्च के बारे में वर्षा ने बताया, “इसके लिए दोस्तों और परिवार के सदस्यों ने मदद की। कपड़े के बाद सिलने की कीमत उनके साइज़ के आधार पर 3 रुपये से लेकर 5 रुपये तक थी। जो भी पैसा इकट्ठा हुआ, वह इन महिलाओं को दे दिया गया, जिसने जितने बैग बनाये उस हिसाब से।”

यह भी पढ़ें: लद्दाखी खाने को विश्वभर में पहचान दिला रहीं हैं यह महिला!

जय बताते हैं कि उन्हें कुल 3.5 लाख रुपये डोनेशन में मिले थे, जिसे उन्होंने नेत्रहीन लोगों के लिए काम कर रहे संगठनों और कुछ सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स में बाँट दिया।

“हर जगह से हमें बेडशीट मिल रही हैं और हमारे घर में अब बेडशीट का एक बड़ा-सा ढेर लग गया है। हमारे अभियान को इतनी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है कि एक वक़्त पर तो घर में कहीं चलने की जगह ही नहीं थी,” प्रीत ने कहा।

अभियान को आगे ले जाने का है संकल्प:

The set-up

जय और प्रीत, दोनों इस अभियान को 2020 में भी जारी रखना चाहते हैं। “हम और डोनर या फिर कॉर्पोरेटस के साथ मिलकर शहर में अलग-अलग जगह से बेडशीट और तकिये के कवर इकट्ठा करने के लिए ट्रक या फिर कोई और वाहन अरेंज करना चाहते हैं। हम और होटल, यूनिवर्सिटी, अपार्टमेंट और हॉस्टल से जुड़ना चाहते हैं,” उन्होंने कहा।

प्रीत ने बताया कि वे शहर के एक किसी इलाके को अडॉप्ट कर उसे पूरी तरह से प्लास्टिक फ्री बनाने की योजना पर भी काम कर रहे हैं। दोनों भाईयों को कई अवॉर्ड्स और खूब सराहना मिल रही है। जय, ‘परम अवॉर्ड’ पाने वाले सबसे युवा प्रतिभागी हैं। भारत निरमा, दिल्ली से उन्हें ‘यंगेस्ट अचीवर अवॉर्ड’ भी मिला है।

यह भी पढ़ें: महिलाओं को बिज़नेस करने के लिए आर्थिक मदद देती हैं ये 8 सरकारी योजनाएं!

वर्षा कहती हैं कि उनके घर में अक्सर प्रदुषण के बारे में और इसे कैसे रोका जाए, इन सबसे संबंधित बाते होती हैं। बेशक, इस तरह की पेरेंटिंग से बच्चों को छोटी उम्र से ही जागरूक और सजग बनाया जा सकता है। जय और प्रीत अभी किशोरावस्था में हैं और अभी वे इस तरह की सोच रखते हैं।

हमें पूरी उम्मीद है कि आगे चलकर भी वे समाज के भले के लिए काम करेंगे। यदि आप किसी भी तरह इन बच्चों की मदद कर सकते हैं तो +91-9884361161 पर कॉल करें।

मूल लेख: विद्या राजा 

संपादन – मानबी कटोच 

 


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X