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बेस्ट ऑफ़ 2019: इस साल बहुत खास रहीं इन प्रशासनिक अधिकारीयों की पहल!

यही अधिकारी हमें आशा की किरण देते हैं, कि कुछ अच्छे अफ़सरों के सच्चे प्रयास एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं!

पिछले कुछ समय से जिस तरह से हमारे प्रशासनिक अधिकारी हर समस्या और चुनौती से उपर उठकर देश में एक सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं, वह काबिल-ए-तारीफ़ है। देश के कुछ कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार अफ़सरों के चलते न सिर्फ प्रशासन व्यवस्था बल्कि आम नागरिकों में भी जागरूकता बढ़ रही है।

पिछले साल की तरह इस बार भी हम आपको उन प्रशासनिक अधिकारीयों के बारे में बता रहे हैं, जिनकी अनोखी पहलों की वजह से कई जिलों ने एक बेहतर भारत की तरफ कदम बढ़ाया है। यही अधिकारी हमें आशा की किरण देते हैं, कि कुछ अच्छे अफ़सरों के सच्चे प्रयास एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं!

1. IAS ए. देवसेना, तेलंगाना 

तेलंगाना का पेद्दापल्ली जिला राष्ट्रीय स्वच्छ सर्वेक्षण सर्वे 2019 के अनुसार देश का सबसे ज़्यादा साफ़-सुथरा जिला है। और इस उपलब्धि का पूरा श्रेय जाता है यहाँ की डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ए. देवसेना को, जिन्होंने साल 2018 की शुरुआत में यहाँ का चार्ज सम्भाला था।

सिर्फ़ डेढ़ साल में ही उन्होंने अपने प्रयासों और मेहनत से इस जिले का पूरा कायाकल्प ही कर दिया। सस्टेनेबिलिटी, पर्यावरण संरक्षण, कचरा-प्रबंधन और तो और स्वच्छ माहवारी जैसे विषयों पर यहाँ के लोग न सिर्फ़ चर्चा करते हैं, बल्कि बदलाव लाने की मुहिम पर भी काम कर रहे हैं।

“एक वक़्त था जब यहाँ के गाँव बहुत ही दयनीय स्थिति में होते थे। ड्रेनेज सिस्टम पूरा भर जाता था और ओवरफ्लो करने लगता और इस वजह से हर मानसून में यहाँ डेंगू फ़ैल जाता। पेड़ कम हो रहे थे, भूजल का स्तर हर दिन गिरता ही जा रहा था। और कचरा-प्रबंधन न होने की समस्या तो सबके सामने ही थी, ” जिला आयुक्त के कंसलटेंट प्रेम कुमार ने बताया।

लेकिन अब की स्थिति बिल्कुल ही अलग है। यहाँ के 1.32 लाख घरों में से हर एक घर अब अपने आप में एक सस्टेनेबिलिटी यूनिट है। और यह सब सम्भव हो पाया है आईएएस देवसेना के प्रयासों की वजह से। जैसे ही उन्होंने यहाँ का कार्यभार संभाला, पेदापल्ली को खुले में शौच मुक्त जिले का सर्टिफिकेट मिल गया। लेकिन जब वह अपनी टीम के साथ ग्राउंड सर्वे पर निकली तो हक़ीकत कुछ और ही नज़र आई।

ऐसे में, देवसेना ने ‘स्वच्छाग्रही प्रोग्राम’ भी लॉन्च किया और जिले के स्वयं-सहायता समूहों में से लगभग 1000 महिलाओं को अपने-अपने क्षेत्र में स्वच्छता का मुआयना करने के लिए लीडर बनाया गया है।

गाँव के साइज़ के हिसाब से 50 से 100 घरों पर एक स्वच्छाग्रही को नियुक्त किया गया है। ये घर-घर जाती हैं और लोगों को खुले में शौच के चलते होने वाली गंभीर बिमारियों और अन्य परेशानियों के बारे में जागरूक करती हैं। साथ ही, इस अभियान के चलते लोगों को कुछ अन्य ज़रूरी बातें जैसे कि खाने से पहले हाथ धोना, सब्ज़ी पकाने से पहले उन्हें धोना आदि के बारे में भी जागरूक किया गया है।

इसके अलावा भी उन्होंने बहुत सी पहलों पर सख्ती से काम करते हुए जिले की तस्वीर बिल्कुल ही बदल दी है .देवसेना कहती हैं कि पेद्दापल्ली का बदलाव सिर्फ़ उनकी नहीं बल्कि प्रशासन से लेकर आम नागरिक तक, सभी की मेहनत का नतीजा है। लेकिन इस सब में यदि उनका सक्रिय योगदान और दूरदर्शी सोच नहीं होती, तो यह हो पाना सम्भव नहीं था।

पेद्दापल्ली जिले के विकास और आईएएस देवसेना की पहलों के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करें!

2. IAS अपनीत रियात और IAS अभिजीत कपलिश, पंजाब

IAS Abhijit Kaplish and IAS Apneet

जिला अधिकारी अपनीत रियात और आईएएस अभिजीत की देख-रेख में शुरू हुए ‘प्रोजेक्ट 3D मानसा’ ने पंजाब के मानसा जिले की जैसे तस्वीर ही बदल दी है। जनवरी 2019 में जिले में स्वच्छता की दिशा में एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुआ ‘प्रोजेक्ट 3D मानसा’ प्रशासन की एक सफल पहल साबित हो रहा है।

इस प्रोजेक्ट को जिला प्रशासन ने सबसे पहले शहर के वार्ड नंबर 20 में शुरू किया था। पर आज यह पहल मानसा से 27 में से 15 वार्ड्स में सफलता पूर्वक चल रही है और उम्मीद है कि जल्द ही यह पूरे शहर में लागू होगी।

इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य शहर में जगह-जगह लगे डंपयार्ड को हटाना और लोगों को जागरुक करना है ताकि वे अपने घरों से निकलने वाले कचरे के प्रति ज़िम्मेदार बनें। 3D से यहाँ तात्पर्य 3 डस्टबिन से है- एक डस्टबिन सूखे कचरे के लिए, दूसरा गीले कचरे और तीसरा डस्टबिन, घरों से फेंके जाने वाले बचे-कुचे खाने को इकट्ठा करने के लिए है।

सूखे कचरे को रीसायकल के लिए भेजा जाता है तो गीले कचरे को खाद बनाने के लिए कम्पोस्टिंग यार्ड भेजा जाता है। आईएएस अभिजीत कपलिश बताते हैं कि इस तीसरे डस्टबिन का ख्याल प्रशासन को शहर में बेसहारा घुमने वाले जानवरों को देखकर आया। इसलिए प्रशासन ने लोगों से अपील की कि वे घरों में बचने वाला खाना, जो कि सही खाने लायक स्थति में हो, उसे वे तीसरे डस्टबिन में डालें ताकि इसे इकट्ठा करके इन जानवरों के लिए पहुँचाया जा सके।

इन वार्ड्स में से यह कचरा इकट्ठा करने के लिए हर सुबह और शाम प्रशासन द्वारा नियुक्त किए गए कर्मचारी वार्ड में जाते हैं। इन सभी लोगों को ख़ास तरह की ट्राय-साइकिल दी गई है, जिसमें तीन अलग-अलग डस्टबिन लगे हुए हैं। लोगों को सिर्फ़ अपना कचरा, अलग-अलग करके डस्टबिन में डालना होता है।

ये सभी कर्मचारी घर-घर से कचरा इकट्ठा करके एमआरएफ शेड्स (मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी शेड) पर पहुंचाते हैं। यहाँ पर दूसरी टीम, एक बार फिर कचरे को अलग-अलग करती है और फिर प्रशासन के निर्देशों के मुताबिक, अलग-अलग कचरे को अलग-अलग यूनिट्स में भेज दिया जाता है।

मानसा की जिला अधिकारी अपनीत रियात ने बताती हैं कि फ़िलहाल शहर में 30 ट्राय-साइकिल चलाई जा रही हैं और 15 वार्ड्स के लिए 4 एमआरएफ सेंटर बनाये गए हैं। हर दिन मानसा में लगभग 30 क्विंटल टन कचरा होता है, जिसमें से अभी 16 क्विंटल टन कचरे का प्रबंधन हो रहा है और बाकी के लिए भी योजना पर काम चल रहा है!

इन दो प्रशासनिक अधिकारीयों के एक सकारात्मक कदम से मानसा जिला जल्द ही कचरा-प्रबंधन के क्षेत्र में अपना नाम बना लेगा। यदि आप ‘प्रोजेक्ट 3D मानसा’ के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो यहाँ पर विस्तार से पढ़ें! 

3. IAS आशीष ठाकरे, उड़ीसा 

‘प्लास्टिक-मुक्त’ समाज की दिशा में उड़ीसा के केंदुझर जिला प्रशासन ने बहुत ही अहम कदम उठाया है। कुछ समय पहले ही, प्रशासन ने फ़ैसला किया है कि अब से किसी भी प्रशासनिक मीटिंग्स, सेमिनार और वर्कशॉप आदि के दौरान खाने-पीने के लिए प्लास्टिक के कप, गिलास या फिर प्लेट्स आदि का इस्तेमाल नहीं होगा।

बल्कि प्रशासन ने इसकी जगह ‘साल’ के पत्तों से बनने वाले इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने का निर्णय किया है। किसी भी मीटिंग या अन्य किसी आयोजन के दौरान चाय और स्नैक्स पेपर कप और साल के पत्तों से बनी प्लेट और दोने/कटोरी में सर्व किये जायेंगें।

यह पहल यहाँ के जिला अधिकारी, आशीष ठाकरे ने अपनी टीम के साथ मिलकर शुरू की है। उन्होंने बताया, “हमारा उद्देश्य प्लास्टिक-फ्री पर्यावरण है। हमने पहल की है कि प्रशासन के कामों में से सिंगल-यूज प्लास्टिक का प्रयोग बिल्कुल बंद हो जाये। इसलिए साल के पत्तों से बनी प्लेट्स, जिन्हें यहाँ ‘खली पत्र’ कहते हैं, प्लास्टिक का एक बेहतर विकल्प हैं।”

जिला प्रशासन की यह पहल न सिर्फ़ प्लास्टिक-फ्री पर्यावरण की दिशा में है, बल्कि यह इस इलाके की संस्कृति को सहेजने का भी एक ज़रिया है। इसके अलावा, आईएएस ठाकरे बताते हैं कि इस योजना से उनका एक और उद्देश्य पूरा होगा और वह है यहाँ के आदिवासी लोगों के लिए रोज़गार के साधन बनाना।

“जब हमने खली पत्र पर अपनी योजना बनायीं तो हमें यह भी पता चला कि गांवों के बहुत से स्वयं-सहायता समूह साल के पत्तों के प्रोडक्ट्स बनाते हैं। हमने कार्यालय के लिए भी प्रोडक्ट्स बनाने का ऑर्डर उन्हें ही देने का निर्णय किया।”

आईएएस ठाकरे की सकारात्मक पहलों के बारे में पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें!

4. IRS रोहित मेहरा, पंजाब 

लुधियाना के आईआरएस अफ़सर रोहित मेहरा ने पिछले दो सालों में शहर में 25 छोटे जंगल उगाये हैं। 500 स्क्वायर फीट से लेकर 4 एकड़ तक की ज़मीन पर उगे इन जंगलों ने ग्रीन कवर को बहुत हद तक बढ़ाया है और साथ ही, हवा की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।

अपने काम की शुरुआत उन्होंने लुधियाना रेलवे स्टेशन पर सफलता पूर्वक वर्टीकल गार्डन लगाने से की। इसके बाद उन्हें, ‘लुधियाना का ग्रीन मैन’ नाम दिया गया और अब तक उन्होंने शहर में 75 वर्टीकल गार्डन लगाए हैं।

साल 2011 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब का लुधियाना शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में चौथे नंबर पर था। पर अब आठ साल बाद, ये आकंडे बड़े बदलाव की कहानी कह रहे हैं क्योंकि इस साल के सर्वेक्षण के मुताबिक, अब लुधियाना का नंबर 95वां है। और यह संभव हो पा रहा है रोहित मेहरा जैसे अधिकारीयों के चलते।

लुधियाना के इस आईआरएस अफ़सर की पहल यकीनन काबिल-ए-तारीफ़ है। विस्तार से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें!

5. IAS आकांक्षा भास्कर, पश्चिम बंगाल 

पश्चिम बंगाल के रघुनाथपुर की एसडीओ (SDO) आकांक्षा भास्कर जब अपने जिला पुरुलिया के संतुरी गाँव के अस्पताल का जायज़ा लेने गयीं, तो स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं थी। “वहां न तो पर्याप्त मेडिकल स्टाफ था और न ही इतने सारे मरीज़ों के लिए ज़रूरी सुविधाएँ। अस्पताल के कमरों का जायज़ा लेते हुए मुझे लगा कि इन मरीज़ों का इलाज करने से अच्छा, लोगों से जुड़ने का और क्या जरिया हो सकता है?”

बस फिर क्या था एसडीओ साहिबा ने उठाया स्ट्रेटेस्कोप और उसी दिन करीब 40 मरीज़ों का इलाज किया, उनकी परेशानियां सुनी, उनके लिए ज़रूरी दवाईयों का इंतज़ाम किया और जो कुछ भी वे अपने दायरे में कर सकती थीं, वो सब कुछ किया।

यह सिलसिला आज भी जारी है। छुट्टी वाले दिन आकांक्षा इस इलाके की एसडीओ नहीं बल्कि यहाँ के दूरदराज़ के गाँवों में रह रहे आदिवासियों की डॉक्टर बन जाती हैं।

पर आप सोच रहे होंगे कि एक आईएइस अधिकारी आखिर मरीज़ों का इलाज कैसे कर सकती हैं?

दरअसल यह इसलिए संभव हो पाया क्यूंकि यूपीएससी की परीक्षा पास करने से पहले आकांक्षा एक डॉक्टर ही थीं।

उन्होंने कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज से MBBS की डिग्री हासिल की है और कुछ वक़्त तक एक डॉक्टर के रूप में काम भी किया है। सरकारी डॉक्टर के तौर पर उनकी पहली पोस्टिंग एक गाँव में हुई थी, जहाँ के हालात देखकर ही उन्होंने प्रशासनिक सेवाओं में जाने का निर्णय लिया था।

आज वे एक आईएएस अफसर के दायित्व को पूरा करने के लिए अपनी पढ़ाई और प्रैक्टिस का बाखूबी इस्तेमाल कर रही हैं। उनके बारे में अधिक पढ़ने के लिए आप यहां पर क्लिक करे सकते हैं!

विवरण – निशा डागर 

संपादन – मानबी कटोच 


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