हम देश के नौकरशाहों (Best Civil Servants) की आलोचना करने और उनमें दोष निकालने में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि अक्सर उनके अच्छे कामों की प्रशंसा करना भूल जाते हैं। पिछले दो साल हम सबके लिए काफी मुश्किलों भरे रहे। पूरे देश में कोविड-19 के मामले तेजी से बढ़े और देश कहीं एक जगह ठहरा सा नज़र आने लगा।
लेकिन कोरोना की दूसरी लहर से निपटना हो, बाल विवाह जैसी सामाजिक समस्या से लड़ना हो या फिर दूर-दराज के इलाकों में रहनेवाले आदिवासी समुदाय तक चिकित्सा सुविधा पहुंचाना, देशभर के प्रशासनिक अधिकारियों ने मुश्किल वक्त में भी पूरी ईमानदारी और जवाबदेही के साथ काम किया है।
चाहे चिकित्सा सहायता हो या ऑक्सीजन की आपूर्ति। अस्पताल में बिस्तर उपलब्ध कराने हों, जल निकायों को फिर से जीवित करना हो या फिर कोविड-19 के दौरान रोजगार के अवसर पैदा करना, हमारे प्रशासनिक अधिकारियों ने हर मोर्चे को पूरी ईमानदारी से संभाला है। आज हम अलग-अलग जिलों के ऐसे ही 12 अधिकारियों की कहानियां लेकर आए हैं, जिन्होंने इस मुश्किल समय में भी परेशानियों का डटकर मुकाबला किया।
1. डॉ. राजेंद्र भरूद, आईएएस

डॉ राजेंद्र भरूद (One of the best civil servants) के प्रयासों की वजह से महाराष्ट्र में नंदुरबार जिला कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में कामयाब हो पाया था। उन्होंने एक दिन में कोविड-19 स्पाइक में 75 प्रतिशत की कमी लाने और जिले को ऑक्सीजन की जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनाने का काम किया। कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान, जब पूरा देश अस्पतालों में बिस्तरों, दवाओं और यहां तक कि ऑक्सीजन की आपूर्ति की भारी कमी से जूझ रहा था, तब डॉ राजेंद्र ने अपने इस जिले में न तो ऑक्सीजन की कमी होने दी और न ही बेड की।
16 लाख से अधिक लोगों की आबादी वाले महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले में, 150 खाली बेड और दो ऑक्सीजन प्लांट थे। डॉ राजेंद्र नहीं चाहते थे कि डॉक्टर्स किसी भी तरह के दबाव में काम करें। उन्हें उनकी जरूरत की हर चीज़ दी गई। भले ही इसके लिए डॉ राजेन्द्र को हर ऑक्सीजन प्लांट के लिए 85 लाख रुपये खर्च करने पड़े।
ऑक्सीजन सिलेंडर केवल कुछ राज्यों में ही बनते हैं। ऐसे में जब तक वे नंदुरबार पहुंच पाते, तब तक कई लोगों की जान जोखिम में पड़ सकती थी। इसलिए उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि जैसे ही ऑक्सीजन का स्तर गिरना शुरू हो, मरीज को तुरंत ऑक्सीजन पाइप दी जाए।
2. राजेंद्र भट्ट, आईएएस

कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिए भीलवाड़ा मॉडल की चर्चा की जाती रही है। यह एक ऐसी बहु-स्तरीय योजना थी, जिसने इस हॉटस्पॉट जिले में कोविड-19 के सामुदायिक प्रसार पर सफलतापूर्वक अंकुश लगाया। इस मॉडल को लागू कराने के लिए राजेंद्र भट्ट की काफी तारीफ की जाती है। राजेंद्र भट्ट और उनकी टीम एक कार्य योजना के साथ पहले ही तैयार थी। 19 मार्च 2020 को जिले में सबसे पहला पॉजिटिव केस आते ही उन्होंने तेजी से उस योजना को लागू कर दिया।
जिले के कई होटल व रिसॉर्ट में मेडिकल इमरजेंसी सेंटर बनाना, कर्फ्यू के सख्त नियम लागू करना, होम आइसोलेशन में मरीजों की निगरानी के लिए टीमें गठित करना, दूध की डोर टू डोर सप्लाई और स्क्रीनिंग, आइसोलेशन में रह रहे लोगों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए अक्षय पात्र के साथ गठजोड़ करना, यह जिला प्रशासन द्वारा उठाए गए कुछ अहम कदम थे।
3. डॉ टी अरुण, आईएएस

पुडुचेरी जिला कलेक्टर डॉ टी अरुण (One of the best civil servants) ने एक ऐसा ऐप बनाया है, जिसका इस्तेमाल पुडुचेरी में 198 जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए किया गया है। इसमें तालाब, झीलें और नहर का 206 किमी तक क्षेत्र शामिल है। ‘नीर पाधिवु’ नाम का यह ऐप जियोटैगिंग, यूनिक आईडी नंबर, तालाबों पर जीआईएस, अक्षांश और देशांतर निर्देशांक वाले टैंकों के साथ जल निकायों को डिजिटल बनाने में मदद करता है। रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट के जरिए सभी जल निकायों को उसके भूजल स्तर, मिट्टी की नमी और आकार की स्थिति के साथ अपडेट किया जाता है।
डॉ अरुण के अनुसार, CSIR (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद) – राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित इस ऐप ने न केवल जल धाराओं को फिर से जीवंत करने में मदद की है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि लोग पानी को गंदा या जल निकायों का अतिक्रमण न करें। इस पहल की सफलता सुनिश्चित करने के लिए, डॉ अरुण ने स्थानीय लोगों को भी इसमें जोड़ा।
इस पहल के लिए कॉरपोरेट, गैर सरकारी संगठन, स्कूल और स्थानीय समुदाय के सदस्य एक साथ आगे आए। डॉ अरुण का मानना है कि अगर लोग जल निकायों की सफाई प्रक्रिया में भाग लेते हैं, तो वे इनके फायदे के बारे में भी जानेंगे और भविष्य में उन्हें गंदा न करने के बारे में सोचेंगे।
4. टी भूबलन, आईएएस

जब देश कोविड-19 की चपेट में था और बहुत तेज़ी से फैल रहा था, तब कर्नाटक में बागलकोट जिले के जिला परिषद के सीईओ टी भूबलन के सामने बाल विवाह का मुद्दा, एक बड़ी समस्या बनकर सामने खड़ा था। अप्रैल और जुलाई 2020 के बीच, कर्नाटक में बाल विवाह के 107 मामले दर्ज किए गए। महामारी के बीच बागलकोट में बाल विवाह के तेजी से बढ़ते मामलों से निपटने के लिए भूबलन ने एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया और एक साल में 176 बच्चों को कम उम्र में शादी करने से बचाया।
मुद्दे की गंभीरता को समझने के लिए भूबलन ने सरकारी अधिकारियों और स्कूल शिक्षकों को मिलाकर एक टास्क फोर्स बनाई। स्थानीय लोगों से बात करते हुए, उन्होंने महसूस किया कि लॉकडाउन ने लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से भी प्रभावित किया है। परिवार के बुजुर्गों का मानना है कि वे कोरोना वायरस से मरेंगे और उन्हें शादी देखने को नहीं मिलेगी। इसलिए, कम उम्र के कई बच्चों को तो अपने परिवार की अंतिम इच्छाओं को पूरा करने के लिए, जल्दी शादी के बंधन में बांध दिया जा रहा था।
साथ ही एर परेशानी यह भी थी कि काम न मिल पाने की वजह से युवा वापस गांवों की ओर पलायन कर रहे थे और उन्हें शादी के लिए मजबूर किया जा रहा था। इसलिए, भूबलन ने उन्हें मनरेगा के माध्यम से रोजगार दिया। उनके प्रयासों के चलते बाल विवाह की शिकायतों की संख्या में कमी आई। कम उम्र में शादी कर चुकीं दस लड़कियों को 18 साल की उम्र के बाद ही ससुराल जाने का निर्देश दिया गया। बच्चों की भलाई के लिए बाल कल्याण समिति के सदस्यों ने बाल विवाह रोक दिए जाने के बाद उनकी काउंसलिंग की।
5. एस सीराम संबाशिव राव, आईएएस

जिला कलेक्टर एस सीराम संबाशिव राव (One of the best civil servants) ने ईस्ट हिल, मनकावु, वेल्लीमदुकुन्नू और चेवयूर में चार शेल्टर होम स्थापित करने और चलाने के लिए एक चैरिटेबल सोसाइटी की स्थापना की। दो साल पहले जिले में तैनात होने के बाद, उनका एक लक्ष्य राज्य के ‘नम्मुदे कोझीकोड’ परियोजना के तहत सड़क पर रहनेवालों को शेल्टर होम उपलब्ध कराना था। उनकी इस पहल से, पिछले 18 महीनों में करीब 15,00 बेघर लोगों को रहने की जगह मिल पाई। इसके अलावा, जिला प्रशासन ने बेघरों को उनके परिवारों से मिलाने, उन्हें कौशल प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर मुहैया कराने की जिम्मेदारी भी ली।
भारत में कोविड-19 के आने से पहले, संबाशिव राव ने सड़क पर रहनेवाले लोगों की स्थिति जानने के लिए रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, सार्वजनिक पार्क और अन्य जगहों पर कई दौरे किए। उनमें से ज्यादातर उत्तर भारत के प्रवासी श्रमिक थे, जो दिहाड़ी मजदूर और घरेलू सहायिका के रूप में काम कर रहे थे।
ये लोग पहले से ही किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे थे। इनको वायरस तेजी से अपनी चपेट में ले सकता था। जरुरी था कि उन्हें रहने की उचित जगह दी जाए। जिनके पास आईडी कार्ड नहीं थे, उन्हें नए कार्ड दिए गए और उनके लिए एक साक्षरता कार्यक्रम, ‘ज्ञानोदय’ और सर्टिफिकेशन परीक्षा भी आयोजित की गई थी। ताकि एक स्थिर आय अर्जित करने में उनकी मदद की जा सके।
6. शालिनी अग्रवाल, आईएएस

वडोदरा में गंभीर पानी की कमी के मुद्दे से निपटने के लिए, जिला कलेक्टर शालिनी अग्रवाल (One of the best civil servants) ने राज्य के 963 स्कूलों में वर्षा जल संचयन करने का एक सरल समाधान निकाला, जिससे हर साल 10 करोड़ लीटर पानी बचाया जा सका और 1.8 लाख छात्रों की मदद हो पाई। शालिनी ने साल 2020 में वर्षा काल निधि का शुभारंभ किया था। इस पहल में, छत से बारिश के पानी को इक्ट्ठा करके, पाइप के जरिए जमीन में बने एक चैंबर तक लाया जाता है। चैम्बर से पानी रिसते हुए फिल्टर होकर बोरवेल में जाता है और ये सीधे ग्राउंडवॉटर को रिचार्ज कर देता है।
शालिनी ने इस काम में स्थानीय लोगों की भागीदारी पर जोर दिया। उनकी इस पहल में बच्चे सबसे बड़े दूत बने। उन्होंने वडोदरा में कई कार्यशालाएं, प्रतियोगिताएं और कार्यक्रम आयोजित किए। जहां बच्चों को ब्रांड एंबेसडर बनाया गया और लोगों को संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक किया गया।
इस तरह की पहल, पानी के महत्व को समझने और दूसरों को प्रेरित करने में मदद करती है। हर कोई पानी का इस्तेमाल करता है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिलती आ रही एक अमूल्य चीज़ है। इसका संरक्षण करना और इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाकर रखना सभी का फर्ज़ है।
7. डॉ आदर्श सिंह, आईएएस

बाराबंकी के जिला मजिस्ट्रेट, आदर्श सिंह (One of the best civil servants) ने लॉकडाउन के समय, जिले में एक मरती हुई नदी को पुनर्जीवित किया और 800 लोगों को रोजगार दिया। यह वह समय था, जब अधिकांश लोग या तो अपनी नौकरी खो रहे थे या फिर गंभीर वेतन कटौती का सामना कर रहे थे। लेकिन डॉ आदर्श ने इस समय को यूं ही जाया नहीं जाने दिया। उन्होंने इस समय का इस्तेमाल रोजगार पैदा करने और पर्यावरण संकट से निपटने के लिए किया।
डॉ आदर्श ने कहा, “लॉकडाउन एक तरह से हमारे लिए एक वरदान था। कहीं आने-जाने पर लगे प्रतिबंधों के कारण हमें फरवरी में वहीं रुकना पड़ा। जब हमें दिहाड़ी मजदूरों की दुर्दशा और उनकी आजीविका के खतरे के बारे में पता चला, तो हमने दो समस्याओं को हल करने के लिए उन्हें एक साथ मिलाने के बारे में सोचा।” आईएएस अधिकारी, उपायुक्त, मनरेगा-बाराबंकी, एन डी द्विवेदी और खंड विकास अधिकारी हेमंत कुमार यादव औऱ दो अन्य अधिकारियों ने इस पहल के लिए हर तरीके का समर्थन दिया था।
जिला अधिकारियों ने लोगों को खुले में शौच और नदी में कचरा डंप करने के बारे में भी जागरूक किया। डॉ आदर्श ने कहा, “लोगों को यह बताने के बाद कि वे खेती के लिए नदी के पानी का इस्तेमाल कर सकते हैं, उनका सहयोग पाना मुश्किल नहीं था।”
8. अनुपम शर्मा, आईएफएस

मध्य प्रदेश के मैहर जिले में चलाए जा रहे एक वार्षिक वृक्षारोपण अभियान को देखकर सब-डिवीजनल अधिकारी अनुपम शर्मा (One of the best civil servants) काफी चकित रह गए थे। इस अभियान में 4.7 लाख पौधों को लगाया जाना था। उन्होंने कहा, “वन विभाग ने लगभग पांच लाख पौधे लगाए थे, और उनमें से हर एक पौधा प्लास्टिक की थैली में लिपटा हुआ आया था। एक तरफ हम पर्यावरण के लिए काम कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ, हमारे कारण लगभग 5,000 किलो प्लास्टिक कचरा जमा हो गया था, जिसके प्रबंधन का कोई वैध तरीका नहीं था।”
अनुपम शर्मा की पत्नी भावना एक ठोस कचरा प्रबंधन विशेषज्ञ हैं। उनकी मदद से एक वृद्धाश्रम में बायोगैस प्लांट स्थापित किया गया। इस प्लांट में एक तेल प्रेशर मशीन और एक मसाला ग्राइंडर युनिट लगाई गई थी। इसका उद्देश्य ग्रामिणों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद करना और कुशलतापूर्वक प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन करना था।
बायोगैस प्लांट, मां शारदा देवी मंदिर प्रबंधन समिति के वृद्धाश्रम की कुछ जरूरतों को पूरा करने में मदद करता है। इस बायोगैस संयंत्र से यहां रहनेवालों की सुबह और शाम की चाय तैयार हो जाती है और साथ ही परिसर में होने वाले गीले कचरे को कम करने में भी यह प्लांट मदद करता है। देशभर में हर साल लाखों पेड़ लगाए जाते हैं और वृक्षारोपण अभियान के बाद पौधों में लिपटी प्लास्टिक, पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाती है। इस तरह के वेस्ट मैनेजमेंट मॉडल, वृक्षारोपण को सही मायने में पर्यावरण के अनुकूल बना सकते हैं।
9. धर्म सिंह मीणा, आईएफएस

उत्तराखंड और हिमालय उपमहाद्वीप में प्राकृतिक झरनों का गायब होना चिंता का विषय है। इन कीमती जल स्रोतों के गायब होने के पीछे अनियमित वर्षा और मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन एक बड़ा कारण हो सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में धड़ल्ले से हो रहे निर्माण कार्य की वजह से भी पानी की कमी होती जा रही है। डिवीजनल वन अधिकारी धरम सिंह मीणा (One of the best civil servants) ने इस पर गौर किया और समस्या को ठीक करने का फैसला किया।
धरम सिंह और उनकी टीम ने टिहरी गढ़वाल में 66 हिमालयी झरनों को पुनर्जीवित करने में कामयाबी हासिल की। इससे 23 गांवों के एक लाख से अधिक लोगों की मदद हुई है। सभी झरनों की निगरानी के लिए उन्हे जीआईएस मैप किया गया है। हर एक जल धारा को संरक्षित करना एक चुनौती है और आने वाले दशकों के लिए तो यह और भी जरूरी हो जाता है।
अधिकारियों के समय पर हस्तक्षेप से न केवल झरनों को पुनर्जीवित करने में मदद मिली है, बल्कि रोज़गार और आजीविका के अवसर भी पैदा हुए हैं।
10. विकास उज्जवल, आईएफएस

विकास उज्जवल (One of the best civil servants), झारखंड के एक डिवीजनल वन अधिकारी हैं, जिन्होंने न केवल पेड़ों की अवैध कटाई को रोका, बल्कि जंगल में लगने वाली आग को भी नियंत्रण में किया। केवल चार सालों में उन्होंने 5,000 हेक्टेयर के जंगल को बदलने की दिशा में काफी काम किया। उन्होंने झारखंड के लोहरधगा में सूखे पत्तों को ब्रिकेट में बदलने में मदद की, जिससे ग्रामीणों की आमदनी भी बढ़ गई।
इस अधिकारी और उनकी टीम के ठोस प्रयास से जंगल की समृद्ध जैव विविधता को बहाल करने में मदद मिली है। जिसके बाद से जंगल में भालू , लोमड़ी, लकड़बग्घा, हिरण और साही जैसे वन्यजीवों और प्राकृतिक जल धाराओं की वापसी हुई है। कुछ ग्रामीणों को वन विभाग ने फायर वॉचर्स के रूप में भी नियुक्त किया है।
विकास ने बताया, “झारखंड की जल सुरक्षा के लिए यह फॉरेस्ट लैंडस्केप बेहद ज़रूरी है, क्योंकि तीन महत्वपूर्ण नदियां-दामोदर, शंख और औरंगा यहीं से निकलती हैं। वनों की बेहतर सुरक्षा के साथ, हमने वन की जल धारण क्षमता में सुधार किया है। इसके अलावा, संयुक्त वन प्रबंधन समितियों (JFMC) की बेहतर सतर्कता के कारण, हमने जंगल में हो रही अवैध कटाई की घटनाओं को भी कम किया है। पिछले चार सालों में जंगल में कोई बड़ी आग लगने की घटना नहीं हुई है।”
11. दामोदर गौतम सवांग, आईपीएस

भारत के सर्वश्रेष्ठ पुलिस महानिदेशक (DGP) के रूप में चुने गए, दामोदर गौतम सवांग (One of the best civil servants) ने आंध्र पुलिस में कई तकनीकी सुधार किए हैं। जिसके बाद से FIRs, शिकायत को दर्ज करना और SOS अनुरोधों पर काम करना आसान और तेज़ हो गया है।
तकनीक और गवर्नेंस को एक साथ जोड़ने पर जोर देते हुए, दामोदर ने कहा, “तकनीक, परिवर्तन लाने का एक उपकरण है। कोविड-19 महामारी की वजह से पहले ही हमारी दुनिया वर्चुअल हो चुकी है। लोग आज अपने मोबाइल फोन और अन्य गैजेट्स से जुड़े हुए हैं। एक बटन के क्लिक के साथ रोजमर्रा के काम करना उनकी पसंद बन गया है। तब मुझे लगा कि यह कानूनी सेवाओं के लिए भी सही हो सकता है।”
इन तकनीकी परिवर्तनों की वजह से विभागों के बीच पारदर्शिता और जवाबदेही लाने में मदद मिली है। दामोदर के इस नए फाइल मैनेजमेंट सिस्टम से मामलों की जांच तेजी से करने और 85 प्रतिशत मामलों को सुलझाने में भी मदद मिली है।
उन्होंने ए पी पुलिस सेवा नाम का एक मोबाइल एप्लिकेशन भी लॉन्च किया और पांच महीनों के अंदर, इससे 2,64,000 एफआईआर डाउनलोड की गईं। असके अलावा, महिलाओं के लिए दिशा मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया गया, जिसे पांच महीनों में 12.57 लाख बार डाउनलोड किया गया।
12. डॉ संग्राम सिंह पाटिल, आईपीएस

पुलिस अधीक्षक, डॉ संग्राम सिंह पाटिल (One of the best civil servants) द्वारा शुरू की गई एक पहल के कारण, गोटी कोया आदिवासी समुदाय के 5000 से ज्यादा लोगों तक बेहतर स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने में मदद मिली। डॉ संग्राम ने 2015 में सिविल सेवा में शामिल होने के लिए अपना मेडिकल करियर छोड़ दिया था।
साल 2019 से, डॉ संग्राम जिले की 100 से ज्यादा बस्तियों के 5,000 से ज्यादा आदिवासियों की मदद कर चुके हैं। ये सभी पोषण की कमी, हीमोग्लोबिन, त्वचा और अन्य संबंधित बीमारियों समेत कई समस्याओं से जूझ रहे थे। इस अधिकारी की मदद से आदिवासी समुदाय के लोगों को अब तक 7 लाख रुपये की चिकित्सा सहायता मिल चुकी है।
डॉ संग्राम ने बताया, “पुलिस अधिकारियों को नियमित गश्त करते हुए, इस जिले के दूर-दराज के इलाकों में भी घूमने की जरूरत होती है। ये कमजोर समुदाय ऐसी जगहों पर रहते हैं, जहां गाड़ियां नहीं जा सकतीं और कभी-कभी तो मीलों पैदल चलना पड़ता है।” इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, वारंगल के डॉक्टरों और सरकारी जिला अस्पताल व स्वास्थ्य केंद्र के स्वास्थ्य अधिकारियों की मदद से 20 से अधिक डॉक्टरों ने इस समुदाय तक व्यवस्थित रूप से पहुंचने के लिए हाथ मिलाया।
इस पहल से पुलिस विभाग और आदिवासी समुदाय के लोगों के बीच विश्वास की भावना पैदा करने में भी मदद मिली है।
मूल लेखः विद्या राजा
संपादनः अर्चना दुबे
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