चंद लकड़ियों और ईंटों को जोड़ कर, उसे छत से ढक देने से एक इमारत तो बन जाती है, पर घर नहीं बनता। घर वो है जो अपनी चारदीवारों में यादों को सँजो के रख पाए। बंगलुरु का राघवन परिवार भी अपने घर से जुड़ी यादों को संभालना चाहता था। इसलिए जब दीवारों पर दरारें दिखनी शुरू हुई, तो यह परिवार चिंता में पड़ गया। यह परिवार इस घर को पूरी तरह बदलना नहीं चाहता था, क्योंकि इसके पुराने स्वरूप के साथ उनकी कई यादें जुड़ी हुई थी। ये बदलाव तो चाहते थे, पर पुराने घर को पूरी तरह नष्ट किए बिना!
और यहीं से इनका सफर शुरू हुआ शरत आर नायक के साथ। शरत बंगलुरु स्थित बायोमी एनवायरनमेंटल सोल्यूशन नाम के डिज़ाइन फर्म में एक आर्किटेक्ट है। यह फर्म परिस्थितिक रूप से संवेदनशील और टिकाऊ घर बनाने के लिए जाना जाता है।
शरत ने राघवन परिवार के साथ मिलकर एक नया घर डिज़ाइन किया जिसका निर्माण अधिकतर पुराने घर की चीजों का प्रयोग करके करना था।
दूसरे शब्दों में इस प्रोजेक्ट का मकसद पुराने ढांचे नष्ट करने की बजाय उसके हिस्सों को इस तरह से दुबारा व्यवस्थित करना था जिससे नए घर में उसका प्रयोग हो पाए।
रिटायर्ड विंग कमांडर केवीपी राघवन व मैथिली राघवन की बेटी शोभा का मानना है कि अगर पुराना ढांचा खराब नहीं हुआ होता, तो ये उसे कभी नहीं तोड़ते। पर जब ऐसा करने का समय आया, तो इन्होंने सुनिश्चित किया कि इसमें कार्बन फूटप्रिंट कम हो।
बंगलुरु के बीचोबीच स्थित यह घर परिवार की ज़रुरत के हिसाब से विस्तृत होते-होते 3500 वर्गफीट के क्षेत्र में फैल गया था। इस प्रक्रिया में यह घर कमजोर होता चला गया और इसमें दरारें, नमी, रिसाव आदि जैसे लक्षण आए दिन देखे जाने लगे। इसी के साथ घर में प्रकाश व हवा की आवाजाही में रुकावटें आने लगी थी।
आर्किटेक्ट शरत के लिए चुनौती थी कि इस घर को उन्हें ध्वस्त नहीं करना था, बल्कि एक नया स्वरूप देना था। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए, शरत ने एक डिज़ाइन टीम, इंजीनियर्स और ठेकेदारों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया।
शरत कहते हैं, “ऐसी परियोजनाओं में लचीली योजना की ज़रुरत पड़ती है क्योंकि आपको लगातार सोचते रहना पड़ता है और साथ-साथ सुधार करते रहना होता है। इसलिए, दीवारों को हमने दो तरीके से बनाने का निर्णय लिया। एक हिस्सा हमने पुरानी नींव से पत्थरों का उपयोग करके बनाया और दूसरा हिस्सा पुरानी ईंटों को प्लास्टर करके बनाया। पुराने ढांचे में दीवारों को चूने से बनाया गया था, जिस कारण यह आसानी से टूट गया और पुनः प्रयोग भी हो गया। इसके अलावा हमने पुराने घर में मिले ग्रेनाइट स्लैब का प्रयोग सीढ़ियां बनाने में किया।”
पुरानी दीवारों की ईंट, कंक्रीट से लेकर घर के खिड़की दरवाजों तक को नए घर में प्रयोग कर इसे नया रूप दिया गया। पर, इस कार्य का पहला चरण था एक मजबूत नींव तैयार करना। जब इस घर को तोड़ा गया तब पाया कि मिट्टी कमजोर और कम क्षमता वाली थी।
तब एक गड्ढा खोदने का निर्णय लिया गया, जिसमें नष्ट किए गए कंक्रीट को भरा जाने लगा और बाद में उसे मलबे से निकाल कर उपयोग किया गया। अब नींव के बाद, अगला कदम दीवारों को खड़ा करना था।
पुराने घर के खिड़की और दरवाजे जो उच्च कोटी के सागवान की लकड़ियों के बने थे, उन्हे भी पुनः प्रयोग किया गया। शरत व उनकी टीम ने यह सुनिश्चित किया कि सभी चीजों की गुणवत्ता व मजबूती की जांच शुरुआत में ही कर ली जाए। इसके बाद छोटे दरवाजों और खिड़कियों को बदलने का काम आरंभ किया गया। दरवाजों के लिए बची हुई लकड़ियों को नई लकड़ियों के साथ जोड़कर प्रयोग में लाया गया। यह पूरा डिजाईन पहले से बेहतर और हवादार था।

शोभा कहती हैं, “घर में जहां एक ओर परिवार के सदस्य एक-दूसरे के साथ समय बिताना पसंद करते हैं, वहीं दूसरी ओर हम सबका अपना स्वतंत्र जीवन है। इस घर की बनावट इस बात को दर्शाती है। निचला व प्रथम तल दो हिस्सों मे बना है जिसे ज़रुरत के हिसाब से खुला भी छोड़ सकते है या एक दूसरे से अलग भी कर सकते हैं।”
घर के चारों ओर हरियाली होने के साथ ही, इसके भीतर एक प्रांगण भी है, जिससे परिवार को अंदर बैठे-बैठे बाहर की हरियाली का अनुभव होता है। शरत के अनुसार घर के बीचो-बीच खुले प्रांगण (मुत्रम) के डिज़ाइन का विचार उन्हें छत्तीसगढ़, केरल व तमिलनाडु के गाँव के खुले हवादार घरों को देख कर आया। यह बनावट परिवार के सार्वजनिक व निजी स्थान के बीच एक समन्वय बैठाने के विचारों का प्रतिबिंब है।
बीच का प्रांगण हर इकाई का केंद्र है, जिससे लिविंग रूम में उचित रोशनी व हवा का बहाव होता है।
नए डिज़ाइन में दो मंज़िले हैं व चार घर है, जिसमें हर घर के अपने अलग किचन, लिविंग व डाईनिंग रूम है। पारंपरिक ‘तिननई’ (घर के प्रवेश पर उभरा चबूतरा) और ‘मुत्रम’ को घर वालों की इच्छानुसार इस नए घर में जगह दी गई है।
शोभा बताती है कि तिन्नई की प्रेरणा उन्हें अपने पुश्तैनी घर जो कि श्रीरंगम, तिरुचिरापल्ली में स्थित है, वहाँ से मिली, जहां इनके दादाजी कई लोगों से मिला करते थे।
‘एक आदर्श घर वही है जहां से गुजरने वाला व्यक्ति वहाँ बात करने को रुक पाए’ – इसी विचार से उन्होंने नए घर में भी ऐसी ही एक जगह बनाने की सोची। पुराने घर की नींव से निकला ग्रेनाइट, तिन्नई के लिए बिलकुल सही था, लेकिन कई अनोखी परियोजनाओं के जैसे, यह भी चुनौतियों से परे नहीं था।
महीनों की कड़ी मेहनत के बाद, आखिरकार 2014 में यह प्रोजेक्ट पूरा हुआ और यह अतीत, वर्तमान और भविष्य का एक सुखद मिश्रण बन कर सामने आया।
शरत मानते हैं कि अब वह समय आ गया है कि ऐसे अनोखी परियोजना को आम बनाया जाए। शरत को इसे बनाने में अधिक मेहनत करनी पड़ी, पर अंततः वह सफल हुए। इस परियोजना ने उन्हें यह सीख दी कि यदि हम चाहे तो पुराने ढांचे हमारे नए संसाधन बन सकते हैं। इनका मानना है कि अधिक से अधिक आर्किटेक्ट व आर्किटेक्चर इंस्टिट्यूट को इन संसाधनों के प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए ।
अंत में शोभा कहती है, “हमारा घर नया और चमकदार नहीं दिखता है। हमने नया फ़र्निचर नहीं खरीदा और न ही घर को सजाने में पैसे खर्च किए। फिर भी यह ऐसी जगह है जो आरामदायक, अनुकूल है। ऊपरी मंजिल का एक हिस्सा रचनात्मक गतिविधियों के लिए छोड़ा गया है जैसे मानवाधिकार व सामाजिक मुद्दों पर बात करने के लिए थिएटर के जैसे प्रयोग करना। यह मेरा कार्यक्षेत्र होने के साथ ही एक ऐसी जगह भी है जहां मेरे दोस्त आ कर रह सकते हैं या हम छोटे आयोजन या उत्सव मना सकते हैं।”
मूल लेख – अनन्या बरुआ
संपादन – भगवती लाल तेली
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