कामनवेल्थ गेम्स-2022 में भारत की अन्नू रानी ने इतिहास रच दिया। 60 मीटर दूर भाला फेंककर, वह कॉमनवेल्थ गेम्स में देश के लिए जैवलिन थ्रो में पदक हासिल करने वाली पहली महिला बनीं। दरअसल, चोटिल होने की वजह से ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता नीरज चोपड़ा ने कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा नहीं लिया था।
ऐसे में पदक का पूरा दारोमदार देश की बेटी अन्नू रानी पर था। हर कोई उनकी जीत की कामना कर रहा था। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सरधना क्षेत्र के एक छोटे से गांव की रहनेवाली अन्नू रानी, मेडल जीतकर करोड़ों देशवासियों की उम्मीदों पर बिल्कुल खरी उतरींं। उनकी इस सफलता में उनके बड़े भाई उपेंद्र का अतुलनीय योगदान रहा।
उपेंद्र ही वह शख्स थे, जिन्होंने क्रिकेट खेलते हुए अन्नू रानी की थ्रो देखकर उन्हें जैवलिन थ्रो में आगे बढ़ने लिए प्रेरित किया। अन्नू की ऐतिहासिक कामयाबी के बाद, उपेंद्र ने ‘द बेटर इंडिया’ से बात करते हुआ बताया कि वे 5 भाई-बहन हैं, जिनमें अन्नू सबसे छोटी हैं।
पिता के पास खेती की बहुत अधिक ज़मीन नहीं थी। ऐसे में आर्थिक हालात कोई बहुत बेहतर नहीं थे। लेकिन जब अन्नू को पता चला कि वह भाला फेंक में बहुत अच्छा कर सकती हैं, तो उन्होंने गन्ने को ही भाले की तरह फेंक प्रैक्टिस शुरू कर दी। बाद में बांस को भाले की शक्ल देकर प्रैक्टिस जारी रखी। यह लगभग 2008 की बात है, जब स्कूल स्पोर्ट्स में अन्नू ने गोल्ड जीता। इसके बाद स्टेट लेवल पर मेडल लिया और फिर तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अन्नू रानी को आगे बढ़ाने के लिए भाई ने छोड़ा अपना करियर

अन्नू रानी को आगे बढ़ाने के लिए उपेंद्र कुमार ने अपने करियर पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया। उपेंद्र, मेरठ कॉलेज से ग्रेजुएट हैं। वह भी 1500 मीटर के धावक रहे हैं और विश्वविद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं। लेकिन परिवार के हालात ऐसे नहीं थे कि दो खिलाड़ियों के सप्लीमेंट, डाइट और दूसरे खर्च पूरे हो पाते। किसी एक का ही खर्च पूरा किया जा सकता था।
ऐसे में उपेंद्र ने बहन के लिए एथलेटिक्स छोड़ने का फैसला किया। इसके बाद, उपेंद्र भी पिता की तरह खेती करने लगे। वह आज भी खेती ही करते हैं।
अन्नू के पिता अमरपाल सिंह एक किसान हैं। लेकिन बेटी का खेल में हिस्सा लेना उन्हें कतई पसंद नहीं था। ऐसे में वह पिता से छिपकर सुबह चार बजे उठकर अभ्यास के लिए खेतों में पहुंच जाती थीं। उनकी मेहनत को सही राह दिखाने के लिए उपेंद्र कुमार ने उन्हें गुरुकुल प्रभात आश्रम का रास्ता दिखाया।
उनके घर से यह आश्रम करीब 20 किलोमीटर दूर था। ऐसे में अन्नू जैवलिन थ्रो का अभ्यास करने के लिए सप्ताह में तीन दिन गुरुकुल प्रभात आश्रम के मैदान में जाती थीं। उपेंद्र बताते हैं कि अन्नू के पास एक समय प्रैक्टिस के लिए जूते भी नहीं थे। ऐसे में चंदे से इकट्ठा की गई रकम से उनके लिए जूते खरीदे गए।
टोक्यो ओलंपिक से तीन चार महीने पहले लग गई थी घुटने में चोट
उपेंद्र ने बताया, “अन्नू रानी को टोक्यो ओलंपिक से तीन चार महीने पहले नी इंजरी (घुटने में चोट) हो गई थी। उनका चेन्नई में इलाज चला। यह ईश्वर की कृपा है कि सब ठीक ठाक रहा। कॉमनवेल्थ के लिए बर्मिंघम जाने से पहले उनका आत्मविश्वास काफी अच्छा था।”
उपेंद्र का कहना है कि अन्नू से स्पर्धा से पहले उनकी बात हुई थी। वह पूरी तरह आश्वस्त थीं कि मेडल आएगा, बस यह नहीं जानती थीं कि उसका रंग क्या होगा? अब अन्नू के कांस्य जीतने के बाद, उपेंद्र पूरी तरह से संतुष्ट नज़र आए। उनका मानना है कि संसाधनों के अभाव के बाद भी जैवलिन में यह प्रदर्शन कम नहीं आंका जा सकता।
अन्नू रानी ने अपने चौथे प्रयास में कॉमनवेल्थ में ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की। इस स्पर्धा में आस्ट्रेलिया ने स्वर्ण और रजत दोनों पदक हासिल किए। टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकीं अन्नू रानी ने इससे पहले, 2014 के इंचियोन एशियन गेम्स में भी कांस्य पदक जीता था।
कैंप जाते हुए अन्नू रानी को दी थी मुंह न खोलने की सलाह
उपेंद्र बताते हैं कि उन्होंने पटियाला कैंप में जाते हुए अन्नू को मुंह न खोलने की सलाह दी थी। इसकी वजह यह थी कि वह नहीं चाहते थे कि इधर-उधर की बातों में पड़कर अन्नू अपना फोकस खो दें। उपेंद्र ने बताया कि अन्नू ने इस सलाह को गांठ बांध ली थी और उस फोकस का ही नतीजा है कि अन्नू ने देश के लिए मेडल जीतकर अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों पर दर्ज़ करा दिया है।
अन्नू रानी के ब्रॉन्ज मेडल जीतते ही गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। गांव के हर घर में तिरंगा लहरा गया। लोग बधाई देने अन्नू के घर पहुंच गए। अन्नू के पदक जीतने के बाद, उनकी माँ के खुशी का ठिकाना नहीं था।
उपेंद्र कुमार भी अपनी बहन की कामयाबी से बेहद प्रफुल्लित हैं। वह बहुत मजबूती के साथ यह मानते हैं कि अन्नू की यह कामयाबी गांव की दूसरी लड़कियों को भी प्रेरित करेगी। वह कहते हैं कि अगर सभी माँ-बाप अपनी बेटियों को खेलों में आगे आने के लिए प्रेरित करें, तो देश खेलों की दुनिया में नए आयाम स्थापित कर सकता है।
संपादनः अर्चना दुबे
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