लोगों से, समाज से, सरकार से और सिस्टम से….इन सबसे शिकायतें करना कि रोज़गार नहीं है, काम नहीं है, सुविधाएं नहीं हैं, संसथान नहीं हैं, ये सब फिजूल है। किसी भी समस्या का समाधान शिकायतों से नहीं प्रयासों से मिलता है और ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं देशभर में कुछ कमाल के इनोवेटर्स (Top 10 Innovators)।
आज जब धैर्य और संवेदना जैसी भावनाओं की जगह अशांति और नकारात्मकता ने ले ली है। ऐसे में हमारी कोशिश है कि हम अपनी कहानियों के ज़रिये लोगों के मन में एक उम्मीद की लौ जलाएं। पूरे साल हमारी कोशिश रही कि हम आपके लिए देश के हर एक कोने से ऐसी कहानियाँ लेकर आएं, जिन्हें पढ़कर इंसानियत, हौसले और अच्छाई पर आपका भरोसा और बढ़े।
हमारी कहानियों के नायक-नायिकाएं कोई काल्पनिक पात्र नहीं, बल्कि असल ज़िन्दगी के आपके और हमारे जैसे लोग हैं। बस उनमें एक जज्बा है कुछ खास करने का। अब जब हम साल 2021 के अंतिम पड़ाव पर हैं, तो हम एक बार फिर आपके सामने उन इनोवेटर्स (Top 10 Innovators) की कहानियां लेकर आए हैं, जिन्हें आपने सबसे ज्यादा पढ़ा और सराहा। हमें उम्मीद है कि आने वाले सालों में भी आप हमसे यूँ ही जुड़े रहेंगे।
1. कनुभाई करकर, गुजरात

जूनागढ़ (गुजरात) के रहनेवाले वन विभाग में ग्रेड वन ऑफिसर कनुभाई करकर (Top 10 Innovators) अब तक 300 से अधिक इनोवेशन कर चुके हैं। ये सारे ही आविष्कार एक मध्यम वर्गीय आदमी की समस्याओं और जरूरतों को ध्यान में रखकर किए गए हैं। इन्हीं इनोवेशन्स में से एक है ‘थ्री इन वन बेड’। फ्लैट में रहने वाले लोगों, पेइंग गेस्ट या हॉस्टल चलाने वाले लोगों के लिए यह इनोवेशन बहुत उपयोगी साबित हो सकता है।
अपनी प्रतिभा और कुछ अलग करने के जुनून के साथ, कनुभाई ने सभी बारीकियों को ध्यान में रखकर इसे डिज़ाइन किया है। इस बेड की कीमत 3,500 रुपये है।
इसके अलावा, उन्होंने तीस हजार रुपये में एक ऐसी एक्सरसाइज मशीन बनाई है, जिसमें 25 से 30 लोग एक साथ व्यायाम कर सकते हैं। इस मशीन को देखने के लिए गुजरात के राज्यपाल खुद जूनागढ़ आए थे। कनुभाई के अधिकांश आविष्कार जुगाड़ पर आधारित होते हैं। वह अब तक लगभग 40 रिसर्च पेपर भी लिख चुके हैं। साथ ही उनका खुद का यूट्यूब चैनल भी है, जहां वह अपने इनोवेशन्स के बारे में बात करते हैं।
कनुभाई करकर की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
2. के.सी. सिजॉय, केरल

केरल के त्रिशूर में कंजनी (Kanjani) गाँव के रहनेवाले के.सी. सिजॉय (Top 10 Innovators) ने ‘नेत्तूर टेक्निकल ट्रेनिंग फाउंडेशन‘ (NTTF) से ‘टूल ऐंड डाई मेकिंग’ कोर्स किया था और इसके बाद, कई सालों तक सऊदी अरब में एक बड़ी इंडस्ट्री में सांचे बनाने का काम किया। साल 2005 में वह भारत वापस लौटे। उन्होंने अपने आस-पास देखा कि बहुत से लोग, नारियल के सहारे आजीविका चला रहे हैं। कोई नारियल उगाता है, तो कोई नारियल की बिक्री करता है।
उन्होंने इस बारे में शोध किया और देखा कि नारियल को काटने या छीलने के लिए कुछ मशीनें तो हैं, लेकिन ये सिर्फ कच्चे नारियल के लिए ही सही हैं। लगभग 10 सालों के शोध और मेहनत के बाद, सिजॉय ने नारियल छीलने वाली एक खास मशीन बनाई, जो सिर्फ 40 सेकेंड में एक नारियल को छीलकर, इसके हल्के कठोर छिल्कों को एक मिलीमीटर के आकार में काट देती है। ताकि इसे चारे के रूप में जानवरों को खिलाया जा सकता है।
सिजोय ने मशीन में 100 मिलीमीटर की ब्लेड लगाई गई है, जो नारियल की बाहरी परत को सिर्फ 40 सेकेंड में छील देती है। वह आज ‘कुक्कोस इंडस्ट्रीज’ के नाम से बिजनेस चला रहे हैं। उनके बिजनेस को केरल कृषि विश्वविद्यालय के ‘एग्री-प्रेन्योरशिप ओरिएंटेशन प्रोग्राम’ के अंतर्गत इन्क्यूबेशन की सहायता मिली है और फरवरी 2021 की शुरुआत में, उनके स्टार्टअप को टॉप तीन स्टार्टअप में चुना गया है। उन्हें केंद्र सरकार से आगे और काम करने के लिए 25 लाख रूपये का अनुदान भी मिला है।
के.सी. सिजॉय की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
3. नवश्री ठाकुर, मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के डोकरीखेड़ा गांव में रहनेवाली 14 वर्षीया नवश्री ठाकुर (Top 10 Innovators) ने रसोई का काम आसान करने के लिए एक बहुपयोगी मशीन बनाई है। इस अनोखी मशीन को बनाकर 10वीं कक्षा की छात्रा नवश्री ने ‘युवा आविष्कारक’ की पहचान हासिल की है। उन्होंने स्कूल में पढ़े विज्ञान के सिद्धांतों को अपनी माँ के कामों को आसान बनाने के लिए लगाया है और उनकी मेहनत का नतीजा यह है कि उसके बनाए मॉडल को देशभर में प्रथम स्थान मिला है।
इस मशीन पर उन्होंने आठवीं कक्षा से काम करना शुरू किया था। सबसे पहले उनकी मशीन को उनके स्कूल, फिर जिला स्तर की प्रतियोगिता और फिर भोपाल में आयोजित एक प्रतियोगिता के लिए चुना गया। साल 2021 में उनकी इस मशीन ने राष्ट्रीय स्तर का सम्मान ‘इंस्पायर अवॉर्ड’ भी हासिल किया।
इस मशीन को बनाने के लिए उन्हें एनआईएफ की तरफ से फंडिंग मिली थी। लेकिन अगर इस मशीन को कारखानों में बड़े स्तर पर बनाया जाए तो इसकी कीमत दो हजार रुपये से भी कम हो जाएगी।
नवश्री ठाकुर की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
4. देबश्री पाढ़ी, भुवनेश्वर

भुवनेश्वर की 24 वर्षीया इंजीनियर, देबश्री पाढ़ी (Top 10 Innovators) ने खाना पकाने के लिए ‘अग्निस’ नाम का स्टोव तैयार किया है, जिससे कोई प्रदूषक तत्व नहीं निकलते और यह 0.15 पीपीएम से कम कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। सबसे अच्छी बात है कि इस एन्ड टू एन्ड कुकिंग तकनीक से खाना पकाने में सामान्य से आधा समय लगता है।
देबश्री, गर्मियों की छुट्टियां अक्सर ओडिशा के भद्रक स्थित अपने पुश्तैनी गाँव नामी में बिताती थीं। वहाँ उन्होंने खाना बनाने की परेशानियों को करीब से देखा था। उन्हें पता था कि इन पारम्परिक चूल्हों पर खाना बनाना किसी संघर्ष से कम नहीं। इंजीनियरिंग करने के बाद, देबश्री ने ‘डीडी बायोसॉल्यूशन टेक्नोलॉजी’ के नाम से अपनी कंपनी रजिस्टर कर एग्रो-वेस्ट क्लीन कुकिंग फ्यूल तकनीक विकसित की।
उनके द्वारा बनाए गए इस अग्निस स्टोव पर चावल तैयार करने में केवल 5 मिनट लगते हैं और दाल के लिए 10 मिनट। यह स्टोव सामुदायिक रसोई, सड़क विक्रेताओं, स्कूलों और छोटे पैमाने पर रेस्तरां के लिए अच्छा विकल्प है। देबश्री पहले ही भुवनेश्वर में कई ढाबों को यह स्टोव बेच चुकी हैं।
देबश्री पाढ़ी की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
5. कार्तिक पाल, पंजाब

पंजाब के 31 वर्षीय कार्तिक पाल (Top 10 Innovators) ने साल 2017 में गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन बनाई थी। जो फेसबुक और सोशल मीडिया के जरिए देशभर में इतनी हिट हुई कि अब तक वह 9000 मशीनें बेच चुके हैं। इसके बाद, इसी साल उन्होंने गोबर सुखाने की मशीन (Cow Dung Dryer Machine) बनाई है, जो कुछ ही मिनटों में गीले गोबर से पानी अलग करके उसका पाउडर बना देती है।
कार्तिक ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। पटियाला में उनकी ‘गुरुदेव शक्ति’ नाम की कंपनी है, जहां वह चारा काटने का चाफ कटर और खेतों में इस्तेमाल होने वाले जनरेटर बनाते हैं। कार्तिक हमेशा अपनी मशीनों की डिलीवरी के लिए गौशाला और किसानों के पास जाते रहते थे। इसी दौरान, एक दिन उन्हें गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन (Cow Dung Dryer Machine) का ख्याल आया।
वह इस मशीन को 65 हजार रुपये में बेच रहे हैं। कार्तिक अब तक 500 गोबर ड्रायर मशीन बेच चुके हैं। यह मशीन गौशाला के साथ, बायोगैस प्लांट्स में भी इस्तेमाल की जा रही है। कार्तिक के इन आविष्कारों के कारण पिछले साल, उनकी कंपनी ने 10 करोड़ का मुनाफा कमाया। कार्तिक अब गोबर उठाने के लिए भी एक बैटरी ऑपरेटेड मशीन बना रहे हैं। यह मशीन गोबर उठाकर डिब्बे में भरने का काम आसान बना देगी।
कार्तिक पाल की पूरी कहानी पढ़ने व उनसे संपर्क करने के लिए यहां क्लिक करें।
6. पी एम मुरुगेसन, तमिलनाडु

तमिलनाडु के मदुरई में मेलाक्कल गाँव में रहनेवाले 57 वर्षीय पीएम मुरुगेसन (Top 10 Innovators), केले के फाइबर (Banana Fiber) से रस्सी बनाकर, इसके कई तरह के उत्पाद बनाते हैं। उनके ये इको-फ्रेंडली उत्पाद न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशी ग्राहकों तक भी पहुँच रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके मुरुगेसन, न सिर्फ एक सफल उद्यमी हैं, बल्कि एक आविष्कारक भी हैं। केले के फाइबर से रस्सी बनाने के काम को आसान और प्रभावी बनाने के लिए उन्होंने एक मशीन का आविष्कार किया।
साल 2008 में मुरुगेसन ने केले के फाइबर से रस्सी बनाने का काम शुरू किया और साल 2017 में रस्सी बनाने के लिए एक ऑटोमैटिक मशीन बनाई। इस मशीन की खासियत है कि यह रस्सी बनाने के साथ ही दो रस्सियों को साथ में जोड़ती भी है, जिससे रस्सी को मजबूती मिलती है और फिर इससे अलग-अलग तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं।
मात्र पांच लोगों के साथ शुरू हुआ मुरुगेसन का बिजनेस, आज 350 कारीगरों तक पहुँच चुका है। वह हर साल लगभग 500 टन केले के ‘फाइबर वेस्ट’ की प्रोसेसिंग करते हैं। इससे उनका सालाना टर्नओवर लगभग डेढ़ करोड़ रूपये है।
अपने आविष्कार और उद्यम के लिए मुरुगेसन को अब तक सात राष्ट्रीय और राज्य स्तर के सम्मानों से नवाजा जा चुका है। उन्हें सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of Micro Small and Medium Enterprises Department) के अंतर्गत खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा ‘पीएमईजीपी‘ (प्राइम मिनिस्टर एम्प्लॉयमेंट जनरेशन प्रोग्राम) अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा उन्हें केंद्रीय कृषि मंत्रालय से ‘राष्ट्रीय किसान वैज्ञानिक पुरस्कार’ और जबलपुर में कृषि विज्ञान केंद्र से ‘सर्वश्रेष्ठ उद्यमी पुरस्कार’ भी मिला है।
पी एम मुरुगेसन की पूरी कहानी पढ़ने व उनसे संपर्क करने के लिए यहां क्लिक करें।
7. विशाख ससीकुमार

आईआईटी मद्रास द्वारा इनक्यूबेटेड (उद्भवित) स्टार्टअप ‘पाई बीम’ (Pi Beam) के संस्थापक और सीईओ विशाख ससीकुमार (Top 10 Innovators) व उनकी टीम ने ऐसी ई-बाइक बनाई है, जो एक बार चार्ज करने के बाद, 50 किमी चलती है और इसकी बैटरी को चार्ज करना, एक मोबाइल फोन को चार्ज करने जितना ही आसान है। साथ ही, इसे चलाने के लिए आपको लाइसेंस लेने या रजिस्ट्रेशन करने की भी कोई जरूरत नहीं है।
इसमें इलेक्ट्रिक हॉर्न, एलईडी लाइट, ड्यूल सस्पेंशन, डिस्क ब्रेक, लम्बी सीट और मेटल मडगार्ड जैसी कई ख़ास विशेषताएं हैं। इसकी अधिकतम गति 25 किमी प्रति घंटा है और इसे किसी भी उम्र के लोग आसानी से चला सकते हैं। इस ई-बाइक में उसी पावर सॉकेट का इस्तेमाल किया जाता है, जिसका इस्तेमाल एक स्मार्टफोन में होता है और इसकी बैटरी को चार्ज होने में उतना ही समय भी लगता है।
पाई बीम कंपनी अभी तक, पूरे देश में करीब 100 ग्राहकों को यह वाहन बेच चुकी है। इसकी कीमत, ईंधन से चलने वाले दोपहिया वाहनों की कीमत से भी आधी, यानी 30 हजार है। साथ ही, इसमें ईंधन के लिए बार-बार पैसे खर्च करने की भी जरूरत नहीं है। इस वाहन को बनाने के लिए, 90 फीसदी संसाधनों को भारत से ही जुटाया गया।
विशाख ससीकुमार की पूरी कहानी पढ़ने व उनसे संपर्क करने के लिए यहां क्लिक करें।
8. बसंत कुमार, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के गठुला में मुंगोड़ी और भजिया की दुकान चलाने वाले बसंत कुमार (Top 10 Innovators) ने ‘मुंगोड़ी/भजिया मेकिंग मशीन’ बनाई, जिसे वह न सिर्फ अपनी दुकान पर इस्तेमाल करते हैं, बल्कि और भी कई पकौड़े का काम करने वाले लोगों को बनाकर दे चुके हैं।
पहले तो बसंत कुमार ने आसपास के बाजार में बहुत ढूंढा, लेकिन उन्हें अपनी दुकान के लिए मुंगोड़ी बनाने वाली मशीन नहीं मिली। तब उन्होंने खुद ही मशीन बनाने का फैसला किया। वह हर सुबह जल्दी उठकर इस मशीन पर काम करते थे। कई महीने तक मेहनत करने के बाद, उन्होंने लगभग पांच साल पहले एक मुंगोड़ी मेकिंग मशीन तैयार की, जिसे वह इतने सालों तक मॉडिफाई करते रहे और पिछले साल 2020 में उन्होंने आखिरकार अपना बेस्ट मॉडल तैयार कर ही लिया।
इस मशीन से अब 10 मिनट में आराम से एक किलो भजिया तैयार किया सकता है। हालांकि, उनकी इस मशीन को खास पहचान नहीं मिली है। लेकिन उनकी मुंगोड़ी मेकिंग मशीन अब तक लगभग 100 दूसरे छोटे-बड़े शॉप या स्टॉल चलाने वालों तक पहुंच चुकी है। उन्होंने पहला जो मॉडल बनाया था, उसकी उन्होंने लगभग 80 मशीनें बेचीं और अब नए मॉडल की लगभग 20 मशीनें बेच चुके हैं।
बसंत कुमार की पूरी कहानी पढ़ने व उनसे संपर्क करने के लिए यहां क्लिक करें।
9. गंगाराम चौहान, उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रहनेवाले गंगाराम चौहान, वैसे तो साइकिल-रिक्शा मैकेनिक हैं, लेकिन इसके साथ ही, वह एक जाने-माने, सफल इनोवेटर भी हैं। वह अब तक करीब 30 इनोवेशन्स कर चुके हैं, जिसमें से एक है साइकिल से चलनेवाली आटा चक्की (Cycle Atta Chakki)। इसमें आप कोई भी अनाज पीस सकते हैं।
कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान लोगों को आटा पिसवाने में हुई दिक्कतों को देख, उन्होंने साइकिल से ही चक्की बनाने का फैसला किया। इसके लिए ज़रूरी सामान इकट्ठा करने के बाद, आटा चक्की तैयार करने में उन्हें करीब दो महीने का वक्त लगा। उन्होंने इसे साल 2020 में बनाया था। यह चक्की मानव श्रम पर आधारित है। इससे आटा पीसने के कारण, एक तो शारीरिक व्यायाम भी होता है और आप जो भी अनाज पीसना चाहें, उसे पीस भी सकते हैं।
गंगाराम की इस इको-फ्रेंडली, साइकिल से चलनेवाली चक्की को लोगों ने बहुत पसंद किया। उनके इस एक आटा चक्की की कीमत 15 हजार रुपये है। वह अब तक ऐसी पांच चक्कियां बेच चुके हैं।
गंगाराम की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
10. राकेश कृष्ण के., कर्नाटक

कर्नाटक के दक्षिण कन्नडा के पुत्तुर में रहनेवाले 12वीं कक्षा के छात्र राकेश कृष्ण के. ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ किसानों के लिए ‘सीडोग्राफर’ नाम की एक खास तरह की मशीन बनाई, जिससे किसान बहुत ही आसानी से कई तरह की फसलों के बीजों की रोपाई कर सकते हैं। उन्होंने इसके कई मॉडल तैयार किए हैं, जिनकी कीमत इनकी तकनीक के आधार पर पांच हजार रुपये से लेकर 12 हजार रुपये तक हो सकती है।
राकेश ने जब देखा कि फसल की रोपाई के समय उनके पिता व अन्य किसानों को बहुत ज्यादा परेशानी होती है। तब साल 2015 में राकेश उन्होंने अपने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया। ‘सीडोग्रॉफर’ मशीन को मुख्य रूप से रोपाई के लिए तैयार किया गया था। लेकिन पिछले चार-पांच वर्षों में राकेश ने इसमें कई तरह के बदलाव किए हैं और अब यह मल्टीपर्पज मशीन कई तरह से इस्तेमाल हो सकती है।
इस नवाचार के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैं, जिनमें साल 2021 का ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बालशक्ति पुरस्कार’ भी शामिल है। उन्होंने केंद्र सरकार के विज्ञान और तकनीक विभाग द्वारा आयोजित ‘नेशनल इंस्पायर अवॉर्ड’ भी जीता। इसके अलावा, उन्हें 2017 में ‘नेशनल इनोवेशन फेस्टिवल’ के दौरान राष्ट्रपति भवन में भी तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने इस अविष्कार को दिखाने का मौका मिला था। सीडोग्राफर के अलावा, राकेश कई और प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रहे हैं।
राकेश की पूरी कहानी पढ़ने व उनसे संपर्क करने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ेंः Best of 2021: ये 10 किसान रहे टॉप पर, जिनकी तकनीक व खेती की गई सबसे ज्यादा पसंद
यदि आपको The Better India – Hindi की कहानियां पसंद आती हैं या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हैं तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें या Facebook, Twitter या Instagram पर संपर्क करें।
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: