Placeholder canvas

झांसी की रानी से भी पहले थी एक स्वतंत्रता सेनानी; जानिए उस वीरांगना की अनसुनी कहानी!

कर्नाटक के बेलगावी जिले के कित्तूर तालुका में हर साल अक्टूबर के महीने में 'कित्तूर उत्सव' मनाया जाता है। इस साल भी यह उत्सव 23 अक्टूबर, 2018 से 25 अक्टूबर, 2018 तक मनाया जायेगा। इसकी शुरुआत रानी चेन्नम्मा ने की थी। वे भारत की पहली स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने अंग्रेजों को हराया।

र्नाटक के बेलगावी जिले के कित्तूर तालुका में हर साल अक्टूबर के महीने में ‘कित्तूर उत्सव’ मनाया जाता है। इस साल भी यह उत्सव 23 अक्टूबर, 2018 से 25 अक्टूबर, 2018 तक मनाया जायेगा। यहाँ के लोगो के लिए यह उत्सव बहुत मायने रखता है। इनके लिए यह उनकी संस्कृति और विरासत का हिस्सा है।

हालांकि, इस उत्सव की शुरुआत साल 1824 में यहां की रानी चेन्नम्मा ने की थी। रानी चेन्नम्मा- वह भारतीय स्वतंत्रता सेनानी जिसका नाम वक़्त के साथ इतिहास से जैसे मिट ही गया हो। लेकिन कित्तूर निवासियों ने इस नाम को न तो अपने जहन से मिटने दिया और ना ही अपनी आने वाली पीढ़ियों को इससे अपरिचित रखा।

आज भी कित्तूर उत्सव में रानी चेन्नम्मा की गौरव-गाथा अलग-अलग कलाओं के माध्यम से लोगों को सुनाई जाती है, ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी विरासत को सहेजा जा सके।

तो आखिर कौन थी रानी चेन्नम्मा, जो अगर नहीं होती तो शायद अंग्रेजों के खिलाफ भारत का स्वतंत्रता अभियान कभी शुरू नहीं होता! आज द बेटर इंडिया के साथ जानिए, भारत की पहली स्वतंत्रता सेनानी की अमर गाथा, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा।

रानी चेन्नम्मा की मूर्ति (स्त्रोत: विकिपीडिया)

साल 1778 में 23 अक्टूबर को वर्तमान कर्नाटक के बेलगाम जिले के पास एक छोटे से गाँव काकती में लिंगयात परिवार में चेन्नम्मा का जन्म हुआ। बचपन से ही तलवारबाजी, तीरंदाजी और घुड़सवारी की शौक़ीन रही चेन्नम्मा की बहादुरी से पूरा गाँव परिचित था।

काकती के पास ही कित्तूर का भरा-पूरा साम्राज्य था। उस समय कित्तूर में देसाई राजवंश का राज था और राजा मल्लसर्ज सिंहासन पर आसीन थे। राजा मल्लसर्ज को शिकार करना पसंद था। उन्हें एक बार सुचना मिली कि पास के काकती गाँव में एक नरभक्षी बाघ का आतंक फैला है। ऐसे में राजा ने लोगों को इस बाघ से छुटकारा दिलाने की ठानी।

वे काकती गाँव गये और बाघ को ढूंढने लगे। जैसे ही उन्हें बाघ की आहट मिली उन्होंने तुरंत तीर चला दिया। बाघ घायल होकर गिर पड़ा और राजा बाघ के पास गये। लेकिन जब वे वहाँ पहुंचे तो उन्होंने देखा कि बाघ को दो तीर लगे हैं। इससे वे सोच में पड़ गये कि दूसरा तीर किसने चलाया।

कित्तूर म्यूजियम की एक पेंटिंग

तभी उनकी नजर सैनिक वेशभूषा में सजी एक लड़की पर पड़ी। उन्हें पता चला कि दूसरा तीर उस लड़की ने चलाया है। वह लड़की और कोई नहीं चेन्नम्मा ही थी। चेन्नम्मा की हिम्मत और हौंसले ने मल्लसर्ज को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने चेन्नम्मा के पिता से उनका हाथ मांग लिया।

15 साल की चेन्नम्मा कित्तूर रानी चेन्नम्मा बन गयीं। मल्लसर्ज रानी चेन्नम्मा की राजनैतिक कुशलता से भी भलीभांति परिचित थे। राज्य के शासन प्रबंध में वे रानी की सलाह लिया करते थे। उनका एक बेटा भी हुआ, जिसका नाम रुद्रसर्ज रखा गया।

पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। एक अनहोनी में साल 1816 में राजा मल्लसर्ज की मौत हो गयी। रानी चेन्नम्मा पर तो जैसे दुःख के बादल घिर आये, पर उन्होंने अपना मनोबल नहीं टूटने दिया। उन्होंने कित्तूर की स्वाधीनता की रक्षा को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। यही वह समय था जब अंग्रेजों की नजर कित्तूर पर पड़ी। वे कित्तूर को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाना चाहते थे।

जब राजा की मौत के कुछ समय पश्चात् उनके बेटे की भी मौत हो गयी तो जैसे कित्तूर का भविष्य ही खत्म हो गया हो। ब्रिटिश राज की गतिविधियाँ तेज हो गयीं और उन्हें लगने लगा कि अब बिना किसी देरी कित्तूर उन्हें मिल जायेगा।

युद्ध की तैयारी करती रानी चेन्नम्मा की पेंटिंग

पर अपना सबकुछ खोने के बाद भी अपनी प्रजा और अपने विश्वासपात्र मंत्रियों के साथ रानी चेन्नम्मा ने कसम खायी कि वे अपने जीते जी तो कित्तूर को अंग्रेजों को नहीं देंगी। उन्होंने अपने गोद लिए पुत्र शिवलिंगप्पा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। अंग्रेजों ने रानी के इस कदम को स्वीकार नहीं किया। और यहीं से उनका अंग्रेजों से टकराव शुरू हुआ।

अंग्रेजों की नीति ‘डाक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ के तहत दत्तक पुत्रों को राज करने का अधिकार नहीं था। ऐसी स्थिति आने पर अंग्रेज उस राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लेते थे। हालांकि, यह नीति अंग्रेजों की केवल एक चाल थी ताकि वे ज्यादा से ज्यादा राज्यों और रियासतों का विलय ईस्ट इंडिया कंपनी में कर सकें।

उनकी इस नीति को रानी चेन्नम्मा ने चुनौती दी। उन्होंने बॉम्बे के गवर्नर लार्ड एल्फिंस्टोन को इस सम्बन्ध में पत्र भी लिखा। पर उन्होंने भी रानी की प्रार्थना की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और इसे ख़ारिज कर दिया।

अंग्रेजों को लगा कि आज नहीं तो कल रानी चेन्नम्मा कित्तूर उन्हें दे देगी। पर उन्हें नहीं पता था कि यही रानी चेन्नम्मा भारत में उनके पतन की शुरुआत बनेंगी।

ब्रिटिश सेना को रानी चेन्नम्मा ने मुंहतोड़ जवाब दिया

ब्रिटिश सेना ने अक्टूबर 1824 को कित्तूर पर घेरा डाल दिया। यह कित्तूर और अंग्रेजों के बीच पहला युद्ध था। अंग्रेजों ने लगभग 20, 000 सैनिकों और 400 बंदूकों के साथ हमला किया। पर रानी चेन्नम्मा इस तरह के हमले के लिए बिल्कुल तैयार थीं। उन्होंने अपने सेनापति और सेना के साथ मिलकर पुरे जोश से युद्ध किया।

युद्ध के ऐसे परिणाम की ब्रिटिश सरकार ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। ब्रिटिश सेना को युद्ध के मैदान से भागना पड़ा। यह शायद अंग्रेजों की इतनी बुरी पहली हार हो। इस युद्ध में दो अंग्रेज अधिकारी मारे गये और बाकी दो अधिकारियों को बंदी बनाया गया।

इन दोनों अधिकारियों को इस शर्त पर रिहा किया गया कि ब्रिटिश सरकार कित्तूर के खिलाफ युद्ध बंद कर देगी और कित्तूर को शांतिपूर्वक रहने दिया जायेगा। अंग्रेजों ने इस समझौते को माना भी। लेकिन उन्होंने कित्तूर की पीठ में छुरा भौंका और अपने वादे से मुकर गये।

युद्ध का एक दृश्य

फिर से अंग्रेजों ने कित्तूर पर हमला बोल दिया। इस बार भी रानी चेन्नम्मा और उनकी सेना ने अपनी जी जान लगा दी अंग्रेजों को रोकने के लिए। पर अंग्रेजों की तोप और गोले-बारूद के सामने रानी चेन्नम्मा की ताकत कम पड़ गयी और उन्हें बंदी बना लिया गया।

लगभग 5 वर्ष तक बेलहोंगल के किले में उन्हें बंदी बनाकर रखा गया। 21 फरवरी 1829 को रानी की मृत्यु हो गई। आज भी उनकी समाधि बेलहोंगल में है और सरकार उसका रख-रखाव करवाती है। अक्टूबर 1824 में रानी चेन्नम्मा की पहली विजय के बाद ही कित्तूर वासियों ने ‘कित्तूर उत्सव’ मनाना शुरू किया।

रानी चेन्नम्मा पर एक पोस्टल स्टैम्प

रानी चेन्नम्मा भारतीय स्वतंत्रता की पहली स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने अंग्रेजों को हरा कर पुरे भारत को उदहारण दिया कि यदि एक जुट रहा जाये तो हम भारतीय अंग्रेजों को हमारे देश से बाहर निकाल सकते हैं।

रानी चेन्नम्मा के जीवन पर आधारित एक फिल्म ‘कित्तुरू चेन्नम्मा’ का निर्देशन बी. आर. पंठुलू ने किया। बंगलुरु से कोल्हापुर जाने वाली एक ट्रेन का नाम भी उनके नाम पर रानी चेन्नम्मा एक्सप्रेस रखा गया है। 11 सितंबर, 2007 को, भारत की पहली महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने भारतीय संसद परिसर में रानी चेन्नम्मा की मूर्ति का अनावरण किया था।

रानी चेन्नम्मा की मूर्ति का अनावरण

बंगलुरु और कित्तूर में भी उनकी मूर्तियाँ स्थापित हैं। पुणे-बंगलूरु राष्ट्रीय राजमार्ग पर बेलगाम के पास कित्तूर का राजमहल तथा अन्य इमारतें गौरवशाली अतीत की याद दिलाने के लिए मौजूद हैं। लेकिन आज इतिहास की किताबों में शायद ही रानी चेन्नम्मा का जिक्र मिले।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की इस स्वाभिमानी रानी चेन्नम्मा को द बेटर इंडिया का सलाम!


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X