जानकी देवी बजाज संस्था (फाउंडेशन ) IMC की महिला विंग – जानकीदेवी बजाज पुरस्कार उन सभी महिला उद्यमियों द्वारा किये गए कामों को प्रोत्साहित और सम्मानित करता है, जो उनके द्वारा ग्रामीण भारत में किये जा रहे हैं।
श्रीमती जानकी देवी बजाज गाँधीवादी जीवनशैली की कट्टर समर्थक थीं, उन्होंने कुटीर उद्योग के माध्यम से ग्रामीण विकास में काफी सहयोग किया। वह एक स्वावलंबी महिला थीं, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उनके व्यक्तित्व में एक विरोधाभास सा था, वह दानी भी थीं और मित्तव्ययी भी. वह कठोर भी थीं लेकिन दयालु भी।
जानकी देवी का जन्म 7 जनवरी 1893 को मध्य प्रदेश के जरौरा में एक संपन्न वैष्णव-मारवाड़ी परिवार में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा के कुछ सालों बाद ही उनके छोटे से कंधो पर घर गृहस्थी की जिम्मेदारी डाल दी गयी। मात्र आठ साल की कच्ची उम्र में ही उनका विवाह, संपन्न बजाज घराने में कर दिया गया। विवाह के बाद उन्हें 1902 में जरौरा छोड़ अपने पति जमनालाल बजाज के साथ महाराष्ट्र वर्धा आना पड़ा।
जमनालाल, गाँधी से प्रभावित थें और उन्होंने उनकी सादगी को अपने जीवन में उतार लिया था। जानकी देवी भी स्वेच्छा से अपने पति के नक़्श -ए-कदम पर चलीं और त्याग के रास्ते को अपना लिया।
इसकी शुरुवात स्वर्णाभूषणों के दान के साथ हुई। गाँधी जी के आम जनमानस के लिए दिए गए जनसंदेश का जिक्र जमनालाल ने एक पत्र में जानकीदेवी से किया, उस वक़्त वह 24 साल की थीं। वह यह मानते थे कि सोना “कलि“ का प्रतीक है और यह ईर्ष्या और खोने के डर को जन्म देता है।
जानकी देवी ने स्वेच्छा से अपने सारे आभूषण त्याग दिए और मृत्युपर्यंत कोई भी स्वर्णाभूषण नहीं पहना।
जानकी देवी ने जमनालाल के कहने पर सामजिक वैभव और कुलीनता के प्रतीक बन चुके पर्दा प्रथा का भी त्याग कर दिया। उन्होंने सभी महिलाओं को भी इसे त्यागने के लिए प्रोत्साहित किया। साल 1919 में उनके इस कदम से प्रेरित हो कर हज़ारों महिलाएं आज़ाद महसूस कर रही थी, जो कभी घर से बाहर भी नहीं निकलीं थीं।
28 साल की उम्र में उन्होंने अपने सिल्क के वस्त्रों को त्याग कर खादी को अपनाया। वो अपने हाथों से सूत कातती और सैकड़ों लोगों को भी सूत कातना सिखातीं। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
जब महाराष्ट्र के वर्धा में विदेशी सामानों की होली जलायी जा रही थी, तब उन्होंने विदेशी कपड़ों के थान जलाने से पहले एक बार भी नहीं सोचा।
भारत में पहली बार 17 जुलाई 1928 के ऐतिहासिक दिन को जानकी देवी अपने पति और हरिजनों के साथ वर्धा के लक्ष्मीनारायण मंदिर पहुँचीं और मंदिर के दरवाजे हर किसी के लिए खोल दिए।
अस्पृश्यता के ख़िलाफ उनकी ये जंग लोगों के लिए एक नया सबक थी। उन्होंने अपने घर में खाना बनाने के लिए एक दलित महाराजिन को रखा और उसे खाना बनाना सिखाया।
उनके कदम जो बढ़े तो फिर रुके नहीं। जानकी देवी अपने छोटे-छोटे पर मजबूत क़दमों से ग्रामीण भारत के इलाकों में भी उन तमाम लोगों को जागरूक करने में लगीं हुयी थीं जो स्वतंत्र भारत के ख़्वाब देखते थे।
जानकीदेवी ने वर्धा में अपने घर की चार दीवारी से निकल कर गाँधी जी के जनसंदेश को हजारों लोगों के दिलों तक पहुँचाया। जब वह जन सैलाब के बीच स्वराज का भाषण दिया करतीं, तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो उन्हें सुनते रह जाते। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में वह कई बार जेल भी गयीं। उस वक़्त उनके अंदर एक सच्ची नायिका जन्म ले चुकी थी।
गाँधी जी ने उनके जीवन को काफी प्रभावित किया, उन्होंने पहले गाँधी जी के दर्शन को समझा और फ़िर उनकी विचारधारा को अपने जीवन में उतारा।
जानकी देवी के पाँचों बच्चे भी अपनी माँ की देख-रेख में सादगीपूर्ण जीवन जीने की कला सीख रहे थे।
जानकीदेवी की प्रसिद्धि बहुत दूर तक थी। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया। संत विनोबा भावे के साथ वो कूपदान, ग्रामसेवा, गौसेवा और भूदान जैसे आंदोलनों से जुड़ी रहीं।
गौसेवा के प्रति उनके जूनून के चलते वो 1942 से कई सालों तक अखिल भारतीय गौसेवा संघ की अध्यक्ष रहीं।
संत विनोबा भावे बजाज परिवार के आत्मिक गुरु थे। जानकी देवी की बच्चों सी निश्चलता से आचार्य विनोबा भावे इतने प्रभावित हुए कि उनके छोटे भाई ही बन गए।
उनके आजीवन किये गए कार्यों को सम्मानित करने के लिए भारत सरकार ने सन् 1956 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

भारतीय व्यापारियों की महिला विंग ने ग्रामीण उद्यमियों के लिए सन् 1992- 93 में IMC महिला विंग जानकीदेवी पुरस्कार की स्थापना की।
ये सब श्रीमती जानकीदेवी बजाज की जन्म शताब्दि मानाने के लिए श्रीमती किरण बजाज की अध्यक्षता में किया गया। यह वास्तव में महिला विंग के लिए एक स्वागत भाव था जब बजाज इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड ने स्वेच्छा से पुरस्कार देने की पेशकश की।
IMC महिला विंग जानकीदेवी बजाज पुरूस्कार की स्थापना का उद्देश्य ग्रामीण भारत से मजबूत सम्बन्ध बनाये रखना है ताकि उनके कामों को बढ़ावा और सम्मान दिया जा सके।
मूल लेख – Changemakers
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें contact@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter (@thebetterindia) पर संपर्क करे।
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: