पहली नजर में यह आपको एक आम विज्ञापन जैसा लगेगा। लेक्चरर (अभिनेता अविजीत ) को परेशान करते हुए कुछ छात्र, कभी डेस्क बजा रहे हैं, तो कभी कैलकुलेटर से टिकटिक कर रहे हैं और फिर इन्हीं आवाजों के बीच से निकलती एक धुन जो काफी जानी-पहचानी है।
फिर एक छात्र खड़ा होता है और उन्हें किताब पकड़ाता है, जिसपर लिखा है फेयरवेल। प्रोफेसर के चेहरे पर कश्मकश है। लेकिन जैसे ही वह किताब खोलते हैं फोटो कोलाज देख उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और अगले ही पल किताब में रखे काले चमड़े के पट्टे वाली टाइटन घड़ी को देख उनकी आंखें भर आती हैं।
जब महीनों पहले देना पड़ता था ऑर्डर
पूरे विज्ञापन में कहीं कोई संवाद नहीं है। फिर भी यह इस प्रतिष्ठित ब्रांड टाइटन की विरासत और इसके पीछे छिपे जॉय ऑफ गिफ्ट की भावना को बड़ी सहजता से दिखा जाता है। घड़ी के आमने-सामने के शॉट या नाटकीय वॉयस ओवर बता देते हैं कि आपको इस घड़ी को क्यों खरीदना चाहिए।
इस विज्ञापन को ओगिल्वी एंड माथुर (O&M) ने साल 2013 में तैयार किया था। इसका सार घड़ियों को फिर से एक परफेक्ट गिफ्ट के साथ जोड़ना था। जिसे टाइटन 1980 के दशक में वापस लेकर आया था। यह वह समय था, जब कलाई पर बांधे जाने वाली घड़ियों पर एचएमटी का एकाधिकार था। आपको महीने पहले अपना ऑर्डर देना पड़ता या फिर अपने किसी एनआईआर रिश्तेदार से इसे लाने की रिक्वेस्ट करनी पड़ती थी।
टाइटन ने फिर सबकुछ बदल दिया
टाटा इंडस्ट्रीज और TIDCO (तमिलनाडु इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन) की संयुक्त साझेदारी के साथ साल 1984 में टाइटन कंपनी की स्थापना गई थी। टाइटन 1987 में कई तरह की क्वार्ट्ज घड़ियों के साथ मार्केट में उतरी थी और फिर सब कुछ बदल गया। अब रिस्ट वॉच के लिए लंबे इंतजार की जरुरत नहीं थी। इस ब्रांड ने भी एचएमटी की तरह घड़ियों को मूल्यवान करार दिया था। बस फर्क इतना था कि ये आम आदमी के लिए आसानी से उपलब्ध थीं और गिफ्ट देने के लिए किफायती भी।
हिमाचल प्रदेश के संचारी पाल कहते हैं, “बचपन से मैंने बहुत सी घड़ियां पहनी हैं। लेकिन आज भी जब कोई मुझसे मेरी पहली घड़ी के बारे में पूछता है, तो मेरी यादें टाइटन से ही जुड़ी मिलती हैं। एक भूरे रंग की लेदर स्ट्रिप की सिल्वर डायल वाली घड़ी, जो मेरे हाथ पर पॉलिश किए गए चांदी के सिक्के की तरह चमकती थी। मेरे पिता ने मुझे यह घड़ी दी थी। दरअसल, हमारे परिवार में 16वें जन्मदिन पर टाइटन घड़ी गिफ्ट करने की परंपरा थी। मेरी बहन को भी टाइटन घड़ी मिली थी और मैं अपनी बारी आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। अपनी हर परीक्षा से पहले मैं गुड लक के लिए इसे चमकाता था और आज भी मैं जब टाइटन की सिग्नेचर ट्यून को सुनता हूं तो मेरी याद ताजा हो जाती है।”
दिसंबर 1987 को टाइटन ने बेंगलुरु के सफीना प्लाज़ा में अपना पहला शोरूम खोला था। तब टाइटन कैटलॉग की अखबार की कटिंग को हाथ में लिए सैंकड़ों लोग शोरूम पहुंचे थे। साल 2018 तक टाइटन के पूरे भारत में 1000 स्टोर थे।
टाइटन है भारत का सबसे बड़ा ब्रांड

यकीनन आज टाइटन भारत का सबसे बड़ा ब्रांड है। जो शुरुआत से ही ग्राहकों का दिल जीतने में कामयाब रहा, जिसने सालों से क्वालिटी को बरकरार रखा है। टाइटन, हर वर्ग और उम्र के लोगों का ख्याल रखते हुए, समय के साथ हमेशा नए डिजाइन लेकर मार्किट में आती है।
टाइटन कम्पनी लिमिटेड के वॉचेस एंड वियरेबल्स डिविजन की सीईओ सुपर्णा मित्रा ने द बेटर इंडिया को बताया, “टाइटन के विश्वसनीयता और भरोसे का पर्याय बनने के पीछे कई कारण रहे हैं।”
वह कहती हैं, “ज़ेरक्सेस देसाई (टाइटन के पहले सीईओ) को पता था कि आने वाला समय मकैनिकल नहीं बल्कि क्वार्टज घड़ियों का है। उन्होंने फैशनेबल घड़ियों को डिजाइन किया। ऐसी घड़ियां उस समय भारत में नहीं मिलती थीं।”
एक कहानी जिसके बारे में लोगों ने कम ही सुना है
मित्रा ने बताया, “हमारे एक्सक्लुज़िव ब्रांड आउटलेट ने उपभोक्ताओं को आश्वासन दिया कि वह सिर्फ घड़ी बेचने तक उनके साथ नहीं हैं, बल्कि बाद में कभी भी कोई दिक्कत आएगी, तो वह उनकी सेवा में हमेशा मौजूद रहेंगे। कंपनी अंतरराष्ट्रीय डिजाइनों के साथ ब्रांड को प्रीमियम बनाने पर काफी ध्यान दे रही थी। लेकिन इसके साथ ही उसने अपने उन ग्राहकों का भी ख्याल रखा, जो ज्यादा महंगी घड़ियां नहीं खरीद सकते। कुछ घड़ियों की कीमत 350 से 900 रुपये के बीच रखी गई थी और टाइटन की सिग्नेचर ट्यून तो शानदार थी ही।”
सुपर्णा बताती हैं कि कैसे तमिलनाडु के एक छोटे से शहर होसर से कुछ गांववालों के साथ मिलकर इस सफर की शुरुआत की गई थी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र रह चुके देसाई को रिस्ट वॉच ब्रांड स्थापित करने का काम सौंपा गया था। देसाई दो दशकों से टाटा ग्रुप से जुड़े थे। उन्होंने जमशेदजी टाटा के सामुदायिक विकास की फिलॉसफी को गंभीरता से लिया और जमशेदपुर जैसे छोटे क्षेत्र में पहला कारखाना लगाया था। घड़ी के निर्माण के लिए होसर को सिर्फ इसलिए चुना गया क्योंकि वह एचएमटी के बेंगलुरु स्थित कारखाने से सिर्फ 40 किलोमीटर दूर था।
सुपर्णा ने बताया, “टाटा ने 1984 में तमिलनाडु सरकार से क्षेत्र में रोजगार पैदा करने का वादा किया था। तीन साल तक रिसर्च, डिजाइन और कठिन ट्रेनिंग के बाद पहला बैच तैयार किया गया। आज हमारे पांच कारखानों की मैन्यूफैक्चरिंग सेग्मेंट में 1600 कर्मचारी काम करते हैं।”
काम करने के लिए गांववालों को कैसे चुना?

देसाई और उनकी टीम काफी निराश थी। उन्हें कुशल कारीगर नहीं मिल पा रहे थे। सही प्रतिभा और कुशल कारीगरों को तलाशने की जिम्मेदारी अब उनकी थी, उन्होंने उस पर काम करना शुरु कर दिया। उनकी टीम, स्कूल और कॉलेज के छात्रों के बीच गई। 17 साल या फिर उससे अधिक उम्र के छात्रों की परीक्षा ली गई और परिणाम आने के बाद उनमें से कुछ छात्रों को छांटा गया था।
अगर इन उम्मीदवारों की बात करें, तो जरूर पैसे की मजबूरी में उन्होंने काम करना शुरू किया था, लेकिन बाद में यही नौकरी उनके लिए गर्व का विषय बन गई। आज ऐसे सैकड़ों परिवार हैं, जिन्हें होसर से करियर बनाने की राह मिली। आज उनके बच्चे विदेशों में बस चुके हैं, मेडिकल लाइन में चले गए हैं या फिर कुछ और कर रहे हैं।”
सोना ग्रुप के सीईओ यज्ञनारायण कम्माजे, इसका बेहतरीन उदाहरण हैं। पब्लिक सेक्टर में काम करने के बाद उन्होंने एचएमटी लिमिटेड कंपनी ज्वॉइन की। वह इस कंपनी के क्वार्टज वॉच प्रोजेक्ट के पहले इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर थे। बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और खुद का व्यवसाय शुरू किया।
“हमेशा रहूंगा टाइटन का कर्जदार”
यज्ञनारायण बताते हैं, “मैंने 1987 में दो लाख रुपये के निवेश के साथ एक छोटी गोल्ड प्लेटिंग यूनिट लगाई और एचएमटी को इसकी सप्लाई करने लगा। फिर कंपनी स्टेनलेस स्टील वॉच बैंड मैन्युफैक्चरिंग के साथ आगे बढ़ी। 1990 में हमने टाइटन को सप्लाई देना शुरू किया था। उन्होंने हमें नए प्रोडेक्ट बनाने, विकास में निवेश करने और आगे बढ़ने के अवसर दिए। हमने हजारों लोगों को रोजगार दिया है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं। टाइटन का हमारे इंजीनियरों और तकनीशियनों के साथ काफी अच्छा व्यवहार है। मेरे इस सफर में उनके साथ काफी सुखद अनुभव और संबंध रहे हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से हमेशा उनका कर्जदार रहूंगा।”
वह गांव जिसने कभी टाटा के बारे में नहीं सुना था और न ही बैटरी से चलने वाली घड़ियां किस तरीके से काम करती हैं, उसके बारे में पता था। आज वही गांव चमड़े, स्टील और सोने के पट्टे वाली सोने की परत चढ़ी डायल और कंगन जैसे आकार की चमकदार घड़ियां बना रहे हैं। सुपर्णा कहती हैं, “देसाई की परफेक्शन से काम करने की लगन ने घड़ी बनाने वालों को मेहनत से काम करने और फ्लॉलेस डिजाइन को जीवंत बनाने में काफी मदद की।”
कैसे बनी टाइटन की सिग्नेचर ट्यून
देसाई को पश्चिमी शास्त्रीय संगीत की अच्छी-खासी समझ थी। देसाई और सुरेश मलिक (O&M के मालिक) के संगीत के शौक़ ने टाइटन की कभी न भूलने वाली धुन को बनाया था। मिले सुर मेरा तुम्हारा गाने के पीछे भी मलिक का ही हाथ था।
लेकिन निर्माता सिर्फ विज्ञापनों पर ही निर्भर नहीं थे। उनकी नजर में घड़ियों को सिर्फ प्रभावशाली विज्ञापनों के साथ लॉन्च करना ही काफी नहीं था। क्योंकि लोगों की नजर में घड़ी खरीदना वन टाईम इन्वेस्टमेंट है और ऐसी सोच के लिए कुछ और भी चाहिए था। इसलिए उन्होंने साल दर साल घड़ियों के नए डिजाइन बनाने में अपना समय और संसाधन लगाए। मल्टीब्रांड रिटेलिंग और आउटलेट के सहयोग और फास्ट ट्रैक, सोनाटा, तनिष्क, टाइटन आई प्लस और तनेरा जैसे नए सब-ब्रांड में इन्हें बांटकर, ब्रांड को मजबूत किया गया।
फिलहाल टाइटन का प्रोडेक्शन 16.692 मिलियन है और 2019-20 का टर्नओवर 4000 करोड़ रहा।
जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया

टाइटन को सिर्फ घरेलू बाजार में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार स्तर पर भी नए डिजाइन और नई खोज के लिए जाना जाता है। वह फ़्रेंच, जापानी और स्विस घड़ियों जैसे कई अंतरराष्ट्रीय घड़ी निर्माताओं का अनुकरण करते हुए घरेलू मार्केट के लिए घड़ियों के नए डिजाइन तैयार करते रहते हैं। उदारीकरण के बाद इस रणनीति को और अधिक आक्रामक तरीके से अपनाया गया, क्योंकि एफसीयूके, फॉसिल और टॉमी हिलफिगर जैसी कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां घरेलू बाजार में अपने पैर जमाने के लिए खड़ी थीं।
सुपर्णा कहती है, “नए डिजाइन और सुविधाओं की डिमांड उपभोक्ता और एंप्लॉयर दोनों तरफ से आती है। मसलन स्लिमेस्ट (सबसे पतली) वॉच बनाने की डिमांड कंपनी के अंदर से ही आई थी।” उन्होंने बताया, “टाइटन एज को 2002 में लाया गया था। इसका डायल पट्टे से पतला है। एनालॉग घड़ियां हल्की होती हैं। इनकी जबरदस्त सफलता के बाद, हम हाल ही में ‘एज मकेनिकल’ और स्लिम मकेनिकल वॉच लेकर आए हैं।
एज की ही तरह फास्ट ट्रैक भी एक सब-ब्रांड था। जिसे अपडेट कर फिर से लॉन्च किया गया। फास्ट ट्रैक को 1998 में लाया गया था और 2005 में Gen Zs के लिए एक शानदार घड़ी में बदल दिया गया। इसके विज्ञापन युवाओं की सोच को ध्यान में रखकर तैयार किए गए। 2013 में टाइटन के ‘कम आउट ऑफ द क्लोसेट” विज्ञापन को भला कौन भूल सकता है। इसे भारत का पहला लेस्बियन विज्ञापन बताया गया था।
महिलाओं के लिए टाइटन रागा
टाइटन रागा महिलाओं के लिए डिजाइन किया गया एक आकर्षक सब-ब्रांड है। लड़के और लड़की के बीच के भेद को खत्म करने और घर तक पहुंचाने के लिए ब्रांड ने कई विज्ञापन बनाए। #HerLifeHerChoices और #Breakthebias जैसे विज्ञापनों ने दर्शकों और आलोचकों दोनों से समान रूप से वाहवाही बटोरी।
अन्य सब-ब्रांड में बच्चों के लिए चटख रंगों वाली और वॉटर रेसिस्टेंट टाइटन ऑक्टेन जैसी घड़ियां और स्विस-निर्मित ब्रांड Xylys शामिल हैं। अपनी सोनाटा स्ट्राइड स्मार्टवॉचेज (फिटनेस का नया स्टाइल) के साथ इस ब्रांड ने पूरे दिल से डिजिटल युग का स्वागत किया है। पिछले 34 सालों से टफ कॉम्पिटिशन के बावजूद, यह ब्रांड आगे बढ़ता चला गया है। ब्रांड को आगे बढ़ाने और समय के साथ चलने के लिए, मैगज़ीन कैटलॉग्स से लेकर टेलीविजन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक हर जगह पहुंच बनाई गई है।
सुपर्णा ने 1994 में एक फ्रेशर के रूप में कंपनी ज्वॉइन की थी और 2006 में एक बार फिर से वह टाइटन के साथ जुड़ गईं। वह कहती हैं, “मुझे याद है मेरे साथ काम करने वाले साथी पूछ रहे थे कि मैंने एक ब्रेक के बाद, टाइटन में काम करना फिर से शुरू करने का फैसला क्यों लिया? उनको मेरा एक ही जवाब था कि यह मेरा घर है और हमेशा रहेगा। टाइटन ने एक माता पिता की तरह मुझे आगे बढ़ाया और कई मूल्यवान सबक सिखाए।
सभी तस्वीरें टाइटन वॉचेस इंडिया इंस्टाग्राम से ली गई हैं।
मूल लेखः गोपी करेलिया
संपादनः अर्चना दुबे
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