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तीन बहनों का आईडिया, 9 तरह के बांस से बनाई ‘Bamboo Tea’ और Forbes लिस्ट में हो गयीं शामिल

दिल्ली में पली-बढ़ी, श्री सिस्टर्स- तरु श्री, अक्षया श्री और ध्वनि श्री, साथ मिलकर 'Silpakarman' नामक ब्रांड चला रही हैं, जिसके अंतर्गत वह बांस के बने मग, कप, फ्लास्क, डेकॉर और फर्नीचर आदि के साथ अब Bamboo Tea भी बना रही हैं।

हम सब जानते हैं कि बांस को खाने से लेकर होम डेकॉर, कंस्ट्रक्शन और फर्नीचर आदि बनाने के लिए उपयोग में लिया जा सकता है। इसलिए पिछले कुछ सालों से सरकार भी किसानों को बांस लगाने और लोगों को बांस से बनी चीजें इस्तेमाल करने के लिए जागरूक कर रही है। बांस का उपयोग हमारे जीवन से बहुत हद तक प्लास्टिक को कम कर सकता है क्योंकि इससे हम बहुत सी ऐसी चीजें बना सकते हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक उत्पादों का विकल्प हैं। आज हम आपको ऐसी ही तीन बहनों की कहानी बता रहे हैं जो बांस के उत्पादों का बिज़नेस करके न सिर्फ खुद आगे बढ़ रही हैं बल्कि सैकड़ों कारीगरों को रोजगार भी दे रही हैं।

यह प्रेरक कहानी दिल्ली की रहने वाली ‘श्री सिस्टर्स’ – तरु श्री, अक्षया श्री और ध्वनि श्री की है। हालांकि, व्यवसाय की शुरुआत अक्षया ने की लेकिन तरु और ध्वनि हमेशा उनके इस सफर का अहम हिस्सा रही हैं। साथ ही, बिज़नेस को आगे बढ़ाने में भी तीनों बहनों की बराबर की भागीदारी है।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए इन बहनों ने अपने सफर के बारे में बताया। तरु क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट हैं तो अक्षया ने बिज़नेस इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की है। वहीं, ध्वनि ने फिल्ममेकिंग का कोर्स किया हुआ है। 

तरु कहतीं हैं, “हमारे पापा फिल्ममेकर हैं और इस वजह से उनके साथ हम बहुत अलग-अलग जगह घूमे हैं। खासकर कि ऐसी जगहें जहां हाथ का काम बहुत होता है। इसलिए बचपन से ही पारंपरिक हस्तशिल्प की चीजों से हमें लगाव रहा है। इसलिए जब अक्षया ने बांस से बने उत्पादों का बिज़नेस करने का फैसला किया तो हम सबने उसका साथ दिया।” 

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झेला है नुकसान भी

उन्होंने आगे कहा कि साल 2016 में उन्होंने ‘TAD Udyog’ के नाम से अपनी कंपनी रजिस्टर कराई और 2017 में अपनी ब्रांड ‘Silpakarman‘ लॉन्च की। इस ब्रांड के अंतर्गत उन्होंने बांस के इको फ्रेंडली उत्पाद ग्राहकों तक पहुँचाने का फैसला किया। 

अक्षया कहती हैं, “हमने त्रिपुरा में अपनी प्रोसेसिंग यूनिट सेटअप की हुई है। साथ ही, त्रिपुरा के चार स्थानीय कारीगर समूहों के साथ काम कर रहे हैं। इन समूहों में 300 से ज्यादा कारीगर काम करते हैं। जब हमने बांस में काम करने की ठानी तो कुछ ही उत्पाद जैसे बांस के मग, कप, और फ्लास्क आदि से शुरुआत की थी क्योंकि हम लोगों को रसोई के लिए इको फ्रेंडली विकल्प देना चाहते थे। इसके बाद हमने बांस की चटाई, होम डेकॉर और फर्नीचर का काम किया।” 

श्री सिस्टर्स को अपने व्यवसाय के लिए फंडिंग अपने घर से ही मिली थी। इसके बारे में ध्वनि बताती हैं कि उन्होंने अपने माता-पिता से मदद ली और फिर जैसे-जैसे बिज़नेस आगे बढ़ा, वे इन्वेस्ट करते रहे। बिज़नेस की शुरुआत से ही उन्होंने एक्सपोर्ट पर ज्यादा फोकस किया ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपना एक नाम बना सकें। लेकिन यह इतना आसान नहीं रहा। वह कहती हैं, “2018 में हमें ग्रीस में एक प्रदर्शनी में जाने का मौका मिला। इसके लिए हम इतने उत्साहित थे कि हमसे गलतियां हो गई। बिना ज्यादा समझे हम वहां बहुत से उत्पाद ले गए। जिनके लिए हमें ज्यादा ग्राहक नहीं मिले और हमें लाखों का नुकसान हुआ।” 

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इसके बाद, उन्होंने सोचा कि उन्हें यह बिज़नेस बंद कर देना चाहिए। लेकिन एकदम से काम नहीं रोक सकते थे इसलिए उन्होंने धीरे – धीरे काम कम करने का फैसला किया। वे आगे कहतीं हैं कि उन्होंने बिज़नेस बंद करने का फैसला तो लिया लेकिन फिर देखा कि उनकी वेबसाइट पर ग्राहकों की अच्छी प्रतिक्रिया है। उत्पादों की बिक्री सही ढंग से हो रही है और तब उन्हें लगा कि अगर वे सही दिशा में काम करें तो अपने नुकसान की भरपाई कर सकती हैं और बिज़नेस में मुनाफा भी कमा सकती हैं।

शुरुआत से ही उनके साथ काम कर रहे तन्मय मजूमदार कहते हैं कि Silpakarman ने कई लोगों को रोजगार दिया है। वह पहले त्रिपुरा बैम्बू मिशन के साथ कार्यरत थे लेकिन साल 2017 से वह Silpakarman का अहम हिस्सा हैं। उनके नेतृत्त्व में काम करने वाले, कारीगर गौरांग दा बताते हैं, “हम पीढ़ियों से बांस का काम कर रहे हैं। लेकिन Silpakarman के साथ काम करने से हमें एक आजादी महसूस होती है। क्योंकि यहाँ हर रोज हमें कुछ न कुछ नया करने को मिलता है। हमारे समूह के 100 से ज्यादा कारीगरों को रोजगार मिल रहा है।”

बनाई बांस की पत्तियों की चाय

अपने पुराने उत्पादों के साथ-साथ Silpakarman ने तय किया कि कुछ नए उत्पाद भी जोड़े जाएं। ध्वनि कहती हैं कि 2019 तक वह अपनी पढ़ाई के साथ- साथ काम कर रही थी। लेकिन पढ़ाई पूरी होते ही उन्होंने पूरी तरह से बिज़नेस में हाथ बंटाना शुरू किया। तीनों बहनों ने मिलकर ‘Bamboo Tea’ बनाने का फैसला किया। तरु कहती हैं कि इसकी शुरुआत घर की रसोई से ही हुई। उन्होंने नौ किस्म के बांसों की पत्तियों को लेकर अपना काम शुरू किया। अलग- अलग किस्म की पत्तियों को मिलाकर अलग-अलग फ्लेवर तैयार किए। 

उन्होंने कहा कि महीनों की मेहनत के बाद उन्होंने नौ तरह की बांस की पत्तियों की चाय तैयार की। जिसका नाम उन्होंने BeYouTea रखा। यह ‘बैम्बू टी’ पोषण से भरपूर है और इसमें सिलिका, जिंक, पोटैशियम जैसे कई माइक्रोन्यूट्रिएंट मौजूद हैं। 

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इस खास चाय को उन्होंने पिछले साल लॉकडाउन से पहले तैयार कर लिया था। वे कहतीं हैं कि बैम्बू टी त्वचा, नाखून और बालों से साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी है। “यह वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान का मिश्रण है। हमने अपनी इस चाय के सभी लैब टेस्ट कराए हैं और साथ ही, पेटेंट के लिए भी अप्लाई किया है। इसके अलावा हमें इसका FSSAI सर्टिफिकेट भी मिल चुका है,” उन्होंने कहा।

इस पूरी प्रक्रिया में उन्हें कई महीनों के समय लग गया था और आखिरकार, उन्होंने इस साल मई के अंत में अपनी बैम्बू टी को लॉन्च किया है। वे बताती हैं कि त्रिपुरा में ही बांस के बागानों से जैविक बांस की पत्तियां इकट्ठा की जाती हैं। इसके बाद इन्हें प्रोसेसिंग यूनिट में प्रोसेस करके चाय तैयार की जाती है। फिलहाल, वे लगभग 1000 चाय के पैकेट्स बना रहे हैं। हालांकि, आने वाले समय में उनकी कोशिश इस उत्पादन को दोगुना करने की है। बैम्बू टी के लिए उन्होंने अमेरिका की एक फर्म के साथ टाईअप भी किया है।

अक्षया और ध्वनि कहते हैं कि उन्हें अपनी चाय के लिए ग्राहकों से अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। इसके अलावा, उनके दूसरे उत्पाद भी आज सैकड़ों ग्राहकों तक पहुंच रहे हैं। पिछले साल लॉकडाउन के बावजूद उनका टर्नओवर सात लाख रुपए से ज्यादा था और इस बार उन्हें उम्मीद है कि उनका टर्नओवर 25 लाख रुपए तक होगा।

इसके अलावा, उनके स्टार्टअप को IIM बेंगलुरु से इन्क्यूबेशन मिला है। साथ ही, इस साल उनका नाम फोर्ब्स 30 अंडर 30 लिस्ट में भी शामिल हुआ है। वे कहती हैं कि इस मुकाम तक पहुंच पाना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं रहा है लेकिन उन्होंने अपनी गलतियों से सीख ली है। आगे उन्हें उम्मीद है कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बांस के उत्पादों के लिए अपनी छाप अवश्य छोड़ेंगी। अगर आप Bamboo Tea प्री-ऑर्डर करना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें। 

संपादन- जी एन झा

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