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नौकरी के साथ शुरू किया बिज़नेस, बैरल-टायर से बनाते हैं अनोखे फर्नीचर

महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाले 29 वर्षीय प्रदीप जाधव, साल 2018 से अपना फर्नीचर और होम डेकॉर का बिज़नेस चला रहे हैं। उनके स्टार्टअप का नाम ‘Gigantiques’ है, जिसके अंतर्गत, वह इंडस्ट्रियल वेस्ट को अपसायकल करके, फर्नीचर और होम डेकॉर का सामान बनाते हैं।

महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाले 29 वर्षीय प्रदीप जाधव, साल 2018 से अपना फर्नीचर और होम डेकॉर का बिज़नेस चला रहे हैं। उनके स्टार्टअप का नाम ‘Gigantiques’ है, जिसके अंतर्गत वह इंडस्ट्रियल वेस्ट को अपसायकल करके, फर्नीचर और होम डेकॉर का सामान बनाते हैं। कपड़ा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि इंडस्ट्री से निकलने वाले कचरे को ‘इंडस्ट्रियल वेस्ट’ कहते हैं।

प्रदीप अपने बिज़नेस के लिए पुराने और बेकार टायर, बैरल (ड्रम) और कार या बाइक के कल-पुर्जों का इस्तेमाल करते हैं। अपने बिज़नेस के जरिए, प्रदीप न सिर्फ ग्राहकों को अच्छा और टिकाऊ फर्नीचर दे रहे हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी काम कर रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए, प्रदीप ने अपने सफर के बारे में बताया। 

गाँव से पुणे तक का सफर: 

धुले जिले के दलवाडे गाँव में पले-बढ़े प्रदीप जाधव, एक किसान परिवार से हैं। उनकी दसवीं तक की पढ़ाई, सरकारी स्कूल से हुई और फिर उन्होंने ITI कोर्स में दाखिला लिया। ITI करने के बाद, उन्होंने डिप्लोमा कोर्स भी किया। प्रदीप कहते हैं कि डिप्लोमा करने के बाद, उन्हें एक कंपनी में नौकरी मिल गयी। नौकरी के साथ-साथ, वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के लिए कॉलेज में दाखिला ले लिया। साल 2016 में अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, वह पुणे में एक मल्टीनैशनल कंपनी के साथ काम करने लगे। 

Furniture Business with Job
Pradeep Jadhav

उन्होंने बताया, “मुझे बचपन से ही अपना खुद का कोई काम करने का मन था, इसलिए मैंने डिप्लोमा की पढ़ाई के साथ-साथ, बुक स्टोर भी खोला। किताबों का काम कुछ समय तक अच्छा चला, लेकिन फिर इसमें घाटा होने लगा, तो मुझे यह बंद करना पड़ा। लेकिन, दिल में ख्वाहिश हमेशा यही रही कि मैं कुछ अलग बिज़नेस करूँ, जो लोगों के लिए नया हो। इसलिए अपनी नौकरी के साथ भी, मैं हमेशा बिज़नेस आईडिया खोजा करता था।” और कहते हैं न कि अगर आप किसी चीज को दिल से चाहो, तो आपको सही राह दिख ही जाती है। बस इसी तरह, प्रदीप को भी उनकी सही राह दिख गई। 

उन्होंने 2018 में, यूट्यूब पर एक वीडियो देखा। उस वीडियो में उन्होंने देखा कि एक अफ्रीकी नागरिक, पुराने और बेकार टायरों से कुर्सी बना रहा था। प्रदीप कहते हैं कि वह उनके लिए एक नयी चीज थी कि कोई टायरों से फर्नीचर भी बना सकता है! इसके बाद, उन्होंने इस बारे में और ज़्यादा रिसर्च की। इससे अपसायकल करने और कचरा प्रबंधन करने जैसे विषयों पर उनकी जानकारी बढ़ी। प्रदीप ने देखा कि भारत में भी इस क्षेत्र में थोड़ा-बहुत काम होने लगा है। इसलिए, उन्होंने सोचा कि क्यों न इस आईडिया पर ही आगे बढ़ा जाए! 

नौकरी के साथ शुरू किया बिज़नेस: 

उन्होंने तय कर लिया था कि वह इसी क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे, इसलिए उन्होंने अलग-अलग जंकयार्ड में जाना शुरू किया। सबसे पहले, उन्होंने यह तय किया कि वह किस तरह के ‘इंडस्ट्रियल वेस्ट’ को अपसायकल कर सकते हैं, इसमें कितना खर्च आएगा और वह किस तरह से आगे बढ़ पाएंगे। सभी चीजें तय करने के बाद, उन्होंने एक छोटी-सी जगह किराए पर लेकर अपना काम शुरू किया। उन्होंने खुद पुराने टायरों से फर्नीचर बनाना शुरू किया। वह कहते हैं, “मैं सुबह से शाम तक नौकरी करता था। साथ ही, अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिए रात में काम करता था। पहले मैं कुर्सी और मेज डिज़ाइन करता था, जिसमें मेरे कुछ दोस्त भी कई बार आकर मेरी मदद कर देते थे।” 

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Using Barrels to make furniture and other utility products

2018 में ही उन्होंने अपनी कंपनी भी रजिस्टर करा ली और अपना सोशल मीडिया पेज बनाया। सोशल मीडिया के जरिए, वह अपने बनाए अपसायकल्ड फर्नीचर की तस्वीरें, लोगों के साथ साझा करने लगे। प्रदीप कहते हैं कि यह उनकी खुशकिस्मती थी कि उनका पहला ऑर्डर, उन्हें काफी जल्दी मिल गया। उन्हें एक कैफ़े के लिए इको फ्रेंडली और आकर्षक फर्नीचर बनाना था। प्रदीप ने अकेले इस ऑर्डर पर काम किया और अपनी नौकरी करते हुए भी, समय पर ऑर्डर पूरा किया। इसके बाद, उनके बिज़नेस के बारे में ज्यादा लोगों को पता चलने लगा और ऑर्डर्स बढ़ने लगे। 

वह बताते हैं कि 2019 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, क्योंकि तब तक वह अपने बिज़नेस से उतना ही कमाने लगे थे, जितनी उनकी सैलरी थी। शुरू में ज्यादातर काम प्रदीप खुद ही करते थे। लेकिन जैसे-जैसे ऑर्डर बढ़े, तो उन्होंने दूसरे लोगों को भी काम पर रखा। आज, उनके साथ 15 कर्मचारी काम करते हैं और अब तक वह छोटे-बड़े लगभग 500 ऑर्डर पूरे कर चुके हैं। उन्होंने पुणे, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु जैसे शहरों में भी कई बड़े प्रोजेक्ट किए हैं। उन्होंने कहीं पर किसी के घर का डेकॉर किया है, तो कहीं कैफ़े के लिए फर्नीचर बनाया है। 

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They are making furniture for cafes

शिरपुर में ‘द हाईडआउट कैफ़े’ चलाने वाले 22 वर्षीय गौरव शिंदे कहते हैं, “मैं अपने कैफ़े के लिए ऐसा फर्नीचर चाहता था, जो एकदम अलग और हटकर हो। मुझे यूट्यूब के एक वीडियो से, प्रदीप के बारे में पता चला। मैंने उनसे संपर्क किया, तो उन्होंने मुझे बहुत से विकल्प दिखाए। उन्होंने इंडस्ट्रियल बैरल और टायर से बहुत ही खूबसूरत कुर्सी, मेज, सोफा आदि बनाए हुए थे। मुझे उनके डिज़ाइन और काम, दोनों बहुत पसंद आये। हमारे कैफ़े में आने वाले ग्राहक भी, इन फर्नीचरों के बारे में पूछते रहते हैं। कई ग्राहक तो इन फर्नीचरों के साथ तस्वीरें क्लिक करके सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं।”  

शिंदे कहते हैं कि यह अपसायकल्ड फर्नीचर, सामान्य फर्नीचर से ज्यादा किफायती और टिकाऊ है, इसलिए भविष्य में वह प्रदीप से और भी चीजें बनवाना चाहते हैं। 

लगभग 500 टन कचरे का किया प्रबंधन: 

प्रदीप कहते हैं कि शुरुआत उन्होंने बेकार और पुराने टायरों से की थी, लेकिन आज वह इंडस्ट्रियल बैरल, पुरानी और बेकार कार, ऑटो रिक्शा, बाइक, साइकिल, पुरानी लकड़ी आदि को अपसायकल करके, मेज, कुर्सी, सोफा, वॉश बेसिन, फ़ूड कार्ट, बैरल वाइन स्टोरेज, हैंगिंग लाइट्स जैसी चीजें बना रहे हैं। उन्होंने अब तक एक लाख से ज्यादा बैरल, 50 हजार से ज्यादा टायरों और पांच हजार से ज्यादा वाहनों को अपसायकल किया है। 

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Cycle Rim Light, Barrel Wash Basin

उनका कहना है कि अगर सभी तरह के कचरे की बात करें, तो वह लगभग 500 टन कचरे का प्रबंधन कर चुके हैं। साथ ही, अपने इस बिज़नेस से उनकी कमाई लाखों में है। अंत में वह कहते हैं, “शुरुआत में चीजें बहुत मुश्किल थी, क्योंकि मैं भी इस काम में नया था, लेकिन पीछे हटने की बजाय, मैंने दिन-रात मेहनत की और इस बिज़नेस में सफलता हासिल की। साथ ही, मेरे दिल को इस बात की तसल्ली है कि ज्यादा न सही, लेकिन कुछ हद तक मैं अपने देश की किसी मुश्किल को हल करने में मदद कर पा रहा हूँ और पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना योगदान दे रहा हूँ।” 

प्रदीप अपनी तरह, सभी युवाओं को अपने आईडिया को हकीकत बनाने की सलाह देते हैं। अगर आप प्रदीप के काम के बारे में अधिक जानना चाहते हैं और उनसे संपर्क करना चाहते हैं, तो उनका फेसबुक पेज देख सकते हैं।

संपादन – प्रीति महावर

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