दादी ने शुरू की थी बागवानी, पोते ने बना दिया लाखों का बिज़नेस

महाराष्ट्र के सोलापुर में रहने वाले गौरव जक्कल और उनका परिवार पिछले 50 सालों से गार्डनिंग कर रहा है। यह टेरेस गार्डन उनकी दादी, लीला ने शुरू किया था, जो आज एक मशहूर नर्सरी का रूप ले चुका है।

‘दादा लाए, पोता बरते’, आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी। घर, फर्नीचर, पैसा, ज़मीन, गहनों से लेकर, यह कहावत पेड़-पौधों तक भी लागू होती है। गांवों में बड़े-बुजुर्ग यह सोचकर पौधे लगाते हैं कि जब ये पेड़ बनेंगे, तो उनकी पीढ़ियों को छांव देंगे। सोलापुर में एक परिवार, इस बात का जीता-जगता उदाहरण है। महाराष्ट्र के सोलापुर में रहने वाले 28 वर्षीय गौरव जक्कल एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं और कुछ समय पहले ही, उन्होंने अपना लिथियम आयरन बैटरी बनाने का काम शुरू किया है। इसके साथ ही, वह अपने पिता त्रिभुवन जक्क्ल के साथ मिलकर, अपने घर की छत पर बने गार्डन की देखभाल करते हैं। उनका यह गार्डन किसी बड़े बागान से कम नहीं हैं, जहां सैकड़ों प्रजातियों के हजारों पेड़-पौधे हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस गार्डन को बनाने का काम 1970 में शुरू हुआ था। जी हाँ, हम एक ऐसे गार्डन की बात कर रहे हैं, जिसकी देखभाल पिछले 50 सालों से की जा रही है और अब यह एक ‘सीजनल नर्सरी’ (Nursery Business Idea) का रूप ले चुका है।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए, गौरव बताते हैं, “इस गार्डन को बनाने की शुरुआत मेरी दादी, लीला जयंत जक्कल ने की थी। दादी को पेड़-पौधों से बहुत ही ज्यादा लगाव था और उन्होंने ही छत पर पौधे लगाना शुरू किया था। देखते ही देखते, यह गार्डन नर्सरी में तब्दील हो गया। क्योंकि, लोग दादी के पास आकर पेड़-पौधे और बागवानी से जुड़ी जानकारियां भी लेने लगे।” 

सोलापुर में तापमान बहुत अधिक रहता है। ऐसे में, छत पर बागवानी करना कोई आसान काम नहीं होता। लेकिन, लीला ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने स्थानीय किस्मों के साथ-साथ, कई विदेशी किस्म के पेड़-पौधों को भी लगाने के कई प्रयास किए। उनकी लगातार मेहनत से उन्हें सफलता मिलती गयी। गौरव कहते हैं कि दादी ने जो काम शुरू किया, उसकी जिम्मेदारी अब उन्होंने उठा ली है। दादी की उम्र लगभग 90 साल है और उनके लिए छत पर आना-जाना थोड़ा मुश्किल है, इसलिए वह अब अपने पिता के साथ मिलकर, इस गार्डन की देखभाल करते हैं। 

Grandson Started Nursery Business
गौरव जक्कल अपने पिता और दादी के साथ

कटिंग से तैयार करते हैं ढेरों पेड़-पौधे: 

लीला बताती हैं कि उनका बचपन लोनावला में हरियाली के बीच बीता और शादी के बाद, उन्हें सोलापुर आना पड़ा। उन्हें पेड़-पौधों से इतना ज्यादा प्यार था कि उन्होंने अपने घर की छत पर, तरह-तरह के पौधे लगाना शुरू कर दिया। हालांकि ये सब इतना आसान नहीं था, लेकिन देखते ही देखते उन्होंने फूल, कैक्टस, फर्न, फोलिएज और सक्यूलेन्ट पौधों की सैकड़ों किस्में अपने घर में लगा ली। इसलिए, उनके घर की छत लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गयी। 

गौरव कहते हैं कि उन्होंने हमेशा से ही लोगों को उनके घर पर, कभी पेड़-पौधों को देखने, तो कभी कुछ पौधे लेने या गार्डनिंग सीखने के लिए आते हुए देखा है। इसलिए गौरव और उनका परिवार, अपने गार्डन में लगे पेड़-पौधों की कटिंग से नए पौधे तैयार करते हैं। उन्होंने कहा, “हमारा पूरा परिवार ही प्रकृति-प्रेमी है। हम सब गार्डनिंग से जुड़ा कोई न कोई काम करते हैं। इतने पेड़-पौधों की देखभाल में काफी समय लगता है, इसलिए हम ज्यादातर पौधे भी कटिंग से ही तैयार करते हैं। अलग-अलग पौधों को अलग-अलग तरीकों से तैयार किया जाता है, जैसे- सॉइललेस कटिंग प्रोपगेशन, वाटर प्रोपगेशन, एयर प्रोपगेशन आदि। इसके अलावा, हम कैक्टस के पौधों के लिए ‘लीफ प्रोपगेशन’ भी करते हैं।” 

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प्रोपेगेशन से तैयार करते हैं नए पौधे

शहर में उनके घर का गार्डन काफी मशहूर है। उन्होंने कई बार अलग-अलग मेलों में भी भाग लिया और अपने गार्डन में उगाए तरह-तरह के पौधों की प्रदर्शनी भी लगायी है। वह बताते हैं, “दादी और पापा ने विदेशी किस्म के पौधों को भी लगाने में सफलता हासिल की है। गार्डनिंग में उनके ज्ञान और जानकारी के कारण ही, लोग पौधे लेने से ज्यादा हमें मार्गदर्शन देने के लिए संपर्क करते हैं। लोग हमसे फ़ोन पर गार्डनिंग से जुड़ी कई जानकारियाँ लेते रहते हैं। जैसे- घर पर गार्डन कैसे बनाया जाये, इसका रखरखाव कैसे किया जाये और पौधों की देखभाल का सही तरीका क्या है आदि।” 

अब वह लोगों को बिना मिट्टी के भी ‘पॉटिंग मिक्स’ तैयार करना सिखा रहे हैं, ताकि छत पर बागवानी करने वालों के लिए आसानी रहे। उन्होंने इसकी कई तकनीकें विकसित की हैं जैसे- धान और गेहूं की भूसी से पॉटिंग मिक्स तैयार करना, गन्ने के बचे जैविक अपशिष्ट से पॉटिंग मिक्स तैयार करना। वह कहते हैं कि अगर सही चीजें इस्तेमाल की जाएं, तो बिना मिट्टी के भी पौधे अच्छी तरह से उगाये जा सकते हैं। इसलिए, पहले उन्होंने अपने गार्डन में कुछ प्रयोग किए और सफल होने के बाद दूसरों को भी बताना शुरू किया। 

फिलहाल, उनके यहां लगभग 700 प्रजातियों के सात हजार से भी ज्यादा पेड़-पौधे हैं। पिछले 50 सालों में, ऐसा कभी नहीं हुआ कि उनके घर में पेड़-पौधों की संख्या घटी हो। 

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उनका गार्डन

सीजनल नर्सरी से अच्छी कमाई: 

गौरव आगे कहते हैं कि पेड़-पौधों की मांग को देखकर, उन्होंने अपने गार्डन को ‘सीजनल नर्सरी’ का रूप दे दिया है। वह कहते हैं, “वैसे तो दादी के समय से ही हम पौधे तैयार कर रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में इसकी काफी मांग बढ़ी है। बारिश के मौसम से पहले हमारे नर्सरी का काम शुरू हो जाता है। क्योंकि इस मौसम में पेड़-पौधे तैयार करना और लगाना आसान रहता है। बहुत से लोग भी इसी मौसम में अपने घरों में गार्डन लगाते हैं।” 

सोलापुर और आसपास के इलाकों से लोग, उनके पास पौधे लेने के लिए आते हैं। वह बताते हैं कि मात्र सात महीनों में, नर्सरी से उनकी साढ़े चार लाख रुपए से ज्यादा की आय हुई है। उन्होंने बताया, “सब जानते हैं कि बारिश का मौसम कटिंग से पौधे उगाने और पौधे लगाने के लिए सबसे अच्छा मौसम है। इसलिए हम इसी मौसम में काम करते हैं। साथ ही, हमारे पास इतना समय भी नहीं है कि हम पूरा साल नर्सरी को दे सकें। क्योंकि गर्मियों और सर्दियों में पौधे तैयार करना बहुत मुश्किल है। नर्सरी भी लोगों की बढ़ती मांग के कारण ही शुरू हुई थी।” 

लीला की तरह ही, उनके परिवार के सदस्यों को भी गार्डनिंग करना बहुत पसंद है। इसलिए, वे नर्सरी का काम बड़े स्तर पर नहीं करना चाहते हैं। गौरव कहते हैं कि उनका उद्देश्य ऐसे लोगों को गार्डनिंग के लिए प्रेरित करना है, जो वास्तव में प्रकृति को अपने करीब रखना चाहते हैं। क्योंकि बहुत से लोग पौधे तो लेकर जाते हैं, लेकिन इनकी सही तरीके से देखभाल नहीं करते हैं। इसलिए गौरव और उनका परिवार, पौधों की बिक्री से ज्यादा लोगों के मार्गदर्शन पर ध्यान देता है। वह कहते हैं कि दिन में चार से पांच लोग, उन्हें किसी न किसी पौधे के बारे में जानकारी लेने के लिए फोन करते हैं और उन्हें भी लोगों की मदद करके ख़ुशी मिलती है। 

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अलग-अलग तरह के पौधे

उनकी नर्सरी को सोलापुर के ‘रोज़ क्लब’ से ‘बेस्ट नर्सरी’ का ख़िताब भी मिला है। इसके अलावा, उन्हें बॉटनी क्लब से भी कई अवॉर्ड मिले हैं। उन्होंने अंत में कहा, “आजीविका के लिए हमारा अपना अलग काम है और गार्डनिंग हमारे पैशन की तरह है। इसलिए, हमने कभी भी गार्डन को पूरी तरह से नर्सरी में बदलने के लिए नहीं सोचा। यह हमारी दादी की विरासत है, जिसे हम और आगे लेकर जाना चाहते हैं। मेरी कोशिश रहेगी कि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी इस गार्डन की इसी तरह देखभाल करें, जैसे फिलहाल हम कर रहे हैं।” 

यकीनन, इस दादी-पोते के अपने गार्डन के प्रति लगाव और स्नेह की यह कहानी हम सबके लिए प्रेरणा है। उम्मीद है कि लोग लीला की सोच से प्रेरणा लेते हुए, अपनी आने वाली पीढ़ियों को पेड़-पौधों की विरासत देंगे। साथ ही, गौरव की तरह हरेक पोता-पोती, अपने बुजुर्गों की विरासत को इतने ही प्यार से संभालेंगे। 

अधिक जानकारी के लिए आप 9595861961 पर कॉल कर सकते हैं। 

संपादन – प्रीति महावर

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