अमरिका से भारत आए ‘फकीरा’, मारुति 800 में बर्गर बेच बने IIM Icon

Fakira Came From America, Started Fast Food Business In Maruti 800

अमरिका से भारत लौटकर पार्थिव ठक्कर को जब कोई काम नहीं मिला, तो उन्होंने बर्गर बेचना शुरू कर दिया। आज उनका फूड स्टॉल ‘फकीरा के बर्गर’, आईआईएम अहमदाबाद की एक पहचान बन चुका है।

एक पुरानी मारुति 800 कार, उनकी चलती फिरती रसोई भी है और फूड स्टॉल भी। सुबह 9 बजे से लेकर रात दस बजे तक वह अपने इस स्टॉल पर बर्गर, बरिटोस, टाकोस, टॉर्टिला और सैंडविच बेचते हैं। जो आज आईआईएम अहमदाबाद की एक पहचान बन चुका है। 47 साल के पार्थिव ठक्कर को लोग फकीरा बर्गर वाला के नाम से भी जानते हैं। उन्होंने साल 2020 में अपना यह मैक्सिकन और अमेरिकन फास्ट फूड स्टॉल शुरू किया था, जिसे सोशल मीडिया पर काफी पसंद किया गया। 

अहमदाबाद में जन्मे और पले-बढ़े पार्थिव, 21 साल की उम्र में अमेरिका चले गए थे। पेशे से वह एक ड्रमर और सिंगर हैं और काफी समय से अमेरिका में ही रह रहे थे। उन्होंने कुछ समय इंग्लैंड में भी बिताया, लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी को कैंसर है, तो 2020 में उन्हें भारत लौटना पड़ा।

जब धीरे-धीरे सब कुछ खो रहे थे पार्थिव

Parthiv Thakkar making Burger
Parthiv Thakkar

द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहते हैं, “मेरा काम कुछ इस तरह का था कि दिन का समय मेरे लिए खाली रहता था। मेरे अधिकतर शो शाम को ही होते थे। इस तरह से मैंने Pub में काम करना शुरू किया और वहीं पर बर्गर, हॉट डॉग और बाकी सारी चीजें बनाना सीखा। ये सब बाहर के देशों में बड़े पसंद से खाया जाता है।”

पार्थिव ने भारत आकर काम तलाशना शुरू किया। मगर कहीं बात नहीं बन पा रही थी। वह बताते हैं, “वह समय हमारे लिए अच्छा नहीं था। मेरी बीवी का इलाज चल रहा था, कोविड के मामले बढ़ रहे थे। दूसरे देशों में आना-जाना बंद था। मेरे पास जो भी पैसे थे, धीरे-धीरे खत्म होने लगे। तब मेरी बेटी ने मुझे अहमदाबाद के भारतीय प्रबन्धन संस्थान के बाहर फूड स्टॉल लगाने की सलाह दी। वह अक्सर वहां जाती रहती थी। इस बिजनेस को शुरु करने का आइडिया उस समय मिला था, जब मुझे लग रहा था कि मैं अपना सब कुछ खोता जा रहा हूं। यह एक ऐसा आइडिया था, जिसके सहारे मैं आगे बढ़ सकता था।”

कोविड (Covid 19) से जिंदगी ठहर सी गई

वह कहते हैं, “एक कलाकार होने के कारण कोविड ने मेरी जिंदगी को भी खासा प्रभावित किया। सामाजिक समारोह पर प्रतिबंध लग चुका था। कोई भी शो आयोजित नहीं किए जा रहे थे, जिसका सीधा सा मतलब था, हम जैसे कलाकारों के लिए लंबे समय तक किसी भी तरह की आमदनी का न होना। भारत में आने और पत्नी की बीमारी पर बढ़ते खर्च ने मुझे अजीब स्थिति में ला खड़ा किया था।“

Parthiv’s wife during chemotherapy
Parthiv’s wife

उन्होंने बताया, “बिज़नेस शुरू करने से पहले मैंने काफी रिसर्च किया। आसपास के इलाकों का जायजा लिया और देखा कि वहां किस चीज की डिमांड ज्यादा है। वहां पर कोई भी बर्गर नहीं बेच रहा था। ज्यादातर स्टॉल परांठे और चाट के थे, जो सब कर रहे थे उसे करने की बजाय, मैंने थोड़ी अलग राह चुनी। मैंने मेक्सिकन और अमेरिकन फास्ट फूड स्टॉल लगाया। यह खाना इस मार्केट के लिए नया था और आसानी से उपलब्ध नहीं था।”

वे आगे कहते हैं “स्टॉल लगाने के तीन महीने तक तो मुझे कुछ भी फायदा नहीं हुआ और न ही ऐसी कोई उम्मीद नजर आ रही थी कि बिज़नेस आगे बढ़ेगा।”

बस 18 हजार में शुरु किया बिजनेस (Started Business)

वह बताते हैं, “शुक्र है मैंने अपने इस बिज़नेस में ज्यादा निवेश नहीं किया था। जिस वजह से मेरा हौसला बना रहा। एक दुकान को किराए पर लेने के लिए मुझे काफी खर्च करना पड़ता। लेकिन अपने स्टॉल और आने-जाने के लिए पुरानी कार का इस्तेमाल किया, जिससे हमारे काफी पैसे बच गए।”

कार को अपना बिजनेस के लिए तैयार करने के लिए सिर्फ एक ड्राइविंग सीट को छोड़कर बाकि सारी सीट निकाल दी गईं। उन्होंने बताया, “मैंने अपनी इस गाड़ी को नया बनाने यानी मूविंग किचन में ढालने के लिए तकरीबन 18,000 रुपये खर्च किए थे। आज इसे सुबह स्टॉल के लिए तैयार करने में 5 मिनट लगते हैं और शाम को समेटने में भी 5 से 10 मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगता।“ 

पार्थिव, सुबह 9 बजे से रात 10 बजे तक आईआईटी, अहमदाबाद के कैंपस (पुराने गेट) के पास अपनी मारुती-800 में मेक्सिकन बर्टिटो, टाकोस, टॉर्टिला, सैंडविच और बर्गर बेचते हैं। उनके स्टॉल पर एक वेज बर्गर की कीमत 60 रुपये है, तो वहीं जम्बो बर्गर 250 रुपये का मिल जाएगा। 

शुरु में तो बिक्री ही नहीं हो रही थी

वह कहते हैं “पहले मैं जो भी चीज़, बटर और बन खरीदकर लाता था, उसे घर वापस लेकर जाना पड़ता। क्योंकि शुरू में इतनी बिक्री नहीं हो रही थी। कमाई तो दूर की बात थी, लागत भी नहीं निकल पा रही थी। मैं अपनी बचत के पैसों को इसमें लगाता रहा। मैं सोचता कि बस किसी तरह से यह काम चल निकले।”

वह आगे बताते हैं, “मैं रोज इस उम्मीद से दुकान खोलता कि जल्दी ही चीजें बदल जाएंगी और मेरा भरोसा काम कर गया। धीरे-धीरे लोगों ने स्टॉल पर आना शुरु किया। अमेरिकन और मेक्सीकन खाने का स्वाद सभी को पसंद आ रहा था और मेरे स्टॉल पर भीड़ बढ़ती चली गई।”

Social Media ने किया कमाल

Fakira's Burger, Mexican and American fast food stall
Fakira’s Burger

पार्थिव अपनी सफलता का श्रेय सोशल मीडिया को देते हैं। उनका कहना है कि उनके बहुत सारे कस्टमर्स ने स्टॉल की वीडियो बनाई और अलग-अलग पेज पर अपलोड करर दिया। इससे मुझे लोग पहचानने लगे। आज बहुत से ग्राहक मेरे पास आते हैं, अपना ऑर्डर लेते हैं और मुझसे बाते करते हैं। वह मेरे बारे में और ज्यादा जानना चाहते हैं। मैं जो कुछ कर रहा हूं, इसके पीछे क्या कारण है? मुझे स्टॉल क्यों लगाना पड़ा, अमेरिका से वापस क्यों आ गया? और भी बहुत कुछ।”

वह एक दिन में लगभग 100 बर्गर बन बेच देते हैं। वह कहते हैं, “मेरा इरादा 100 से ज्यादा आगे जाने का नहीं है। मैं इतनी बिक्री से खुश हूं। मेरा मकसद हर बर्गर के स्वाद को समान रूप से बेहतरीन और स्वादिष्ट बनाए रखने का है। मैं क्वालिटी से समझौता नहीं कर सकता।” पार्थिव, स्टॉल लगाने की सारी तैयारी रात को करते हैं। अगर कुछ रह जाता है, तो उसके लिए सुबह 7:30 बजे उठते हैं और उसे निपटा लेते हैं।

उनके अनुसार स्वाद से भरी उनकी गाड़ी सुबह 9 बजे तक ऑर्डर लेने के लिए आईआईएम गेट के बाहर तैयार खड़ी होती है। उन्होंने बताया, “मैने अब एक व्यक्ति को भी अपने साथ काम पर रख लिया है, ताकि मैं बैंक और घर के कामों को निपटा सकूं। अपने सारे काम निपटाकर 2 बजे तक स्टॉल पर वापस आ जाता हूं और फिर रात 10 बजे तक हम दोनों यहीं रहते हैं।”

‘युवा पीढ़ी काम को सम्मान देती है’ 

जब उनसे पूछा गया कि आज वह भारत में किस तरह का बदलाव देखते हैं? उन्होंने तुरंत जवाब दिया, “यंग जनरेशन बड़े अच्छे ढंग से बात करती है और वे मेरे काम को सम्मान भी देते हैं। उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया है और बिज़नेस को आगे बढ़ाने में मेरी मदद भी की है।”

आज पार्थिव अपने फूड स्टॉल से अच्छा-खासा पैसा कमा रहे हैं और उनकी जिंदगी आराम से कट रही है। अपनी बातचीत को विराम देते हुए वह कहते हैं, “अपने आप को फिर से तराशना और जिंदा बने रहने के लिए एक रास्ता खोजना, मेरे लिए एक सुखद एहसास रहा। हालांकि मैं इसकी तुलना अपने यूके और यूएस में बिताए जीवन से नहीं कर सकता। लेकिन मैं जो कुछ भी कर रहा हूं और हर दिन जितना कमा रहा हूं, उससे खुश हूं।”

मूल लेखः विद्या राजा

संपादनः अर्चना दुबे

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