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Cello Group: चूड़ियां बनाने से शुरू किया सफर, पेन और कैसरोल ने दिलाई घर-घर में पहचान

Cello Group had humble beginning with a Polyvinyl Carbonate (PVC) footwear and bangle manufacturing unit in Goregaon, Mumbai, in 1967.

Cello Group 60 साल पुरानी कंपनी है, लेकिन आज भी इसके प्रोडक्ट्स को उनके नाम से ज्यादा ब्रांड के नाम से जाना जाता है, चाहे वो वॉटर बॉटल हो, पैन हो या फिर कैसरोल। सेलो ने आज भी ग्राहकों की नब्ज को पकड़ के रखा हुआ है।

यह साल 2016 की बात है, उस वक्त मैं इंग्लैंड में पढ़ाई कर रहा था। उस दौरान, एक दिन मैं अपनी दोस्त की एक ‘खास तरह की पेन की मांग’ को सुनकर हैरान था। वह यूनिवर्सिटी कैंपस की दुकानों पर मिलने वाले पेन से खुश नहीं थी। उसे एक भारतीय ब्रांड चाहिए था, जो कहीं मिल नहीं पा रहा था। वह सेलो ग्रिपर के बारे में बात कर रही थी। उसका कहना था कि “उसी से मेरी हैंडराईटिंग अच्छी आएगी।” वह ज़िद पर अड़ी थी, आखिरकार हमें भारत से उस पेन को कूरियर से मंगवाना पड़ा। तब मुझे इस ब्रांड (Cello Group) की ताकत का एहसास हुआ।

पुणे की सौमित्रा खानवेलकर के पास सेलो वॉटर बॉटल से जुड़ी खास यादें हैं। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे माता-पिता के पास पानी की एक बोतल थी। इसका ढक्कन एक पतली सी स्टील की चेन के साथ बोतल से जुड़ा हुआ था, जो उसे गिरने नहीं देता था। रेल का सफर हो या गाड़ी का, वह बोतल हमेशा हमारे साथ रहती थी।”आज सेलो ग्रुप के पास एक सिग्निफिकेंट मार्केट शेयर है। लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि सन् 1967 में, Cello Group Of Companies की शुरूआत गोरेगांव (मुंबई) में पॉलीविनायल कार्बोनेट पीवीसी के जूते और चूड़ियां बनाने से हुई थी। उस समय इसमें सात मशीनें और 60 कर्मचारी थे।

कई सालों से यह कंपनी, अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट मार्केट में लाती रही है। आज इसके 1700 उत्पाद बाजार में हैं और यह भारत के बड़े ब्रांड्स में से एक है। फिलहाल 50,000 रिटेल नेटवर्क वाली इस कंपनी में, 6000 कर्मचारी काम करते हैं। कंपनी एक साल में करीब 1,500 करोड़ की कमाई करती है।

पीढ़ी दर पीढ़ी छोड़ी अपनी छाप

Gaurav Rathod, third generation entrepreneur of Cello Group
Gaurav Rathor

फैमिली बिजनेस से जुड़े तीसरी पीढ़ी के उद्यमी, गौरव राठौड़ ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “मेरे दादा घीसूलाल राठौड़ ने प्लास्टिक व्यवसाय में कदम रखा था। उस समय प्लास्टिक घर-घर में लोकप्रिय हो रहा था। पीतल, स्टील आदि से बने सामान भारी होते थे और उनकी कीमत भी काफी ज्यादा थी। दूसरी ओर प्लास्टिक से बना सामान हल्का, सस्ता और अधिक टिकाऊ था।”

गौरव बताते हैं कि कंपनी में जूते-चप्पल के साथ-साथ अन्य कंपनियों के लिए प्लास्टिक का सामान भी बनाया जाने लगा। 1980 के दशक में बिजनेस काफी बढ़ रहा था। हमने अपने उत्पाद रेंज में विस्तार करना शुरू कर दिया था।

33 साल के राठौड़ बताते हैं, “मेरे दादा अलग-अलग साझेदारों के साथ काम कर रहे थे और बिजनेस असंगठित था। उन्होंने बाजार की भारी मांग को देखते हुए व्यवसाय को बढ़ाने का मन बना लिया। उन्होंने सोचा कि दूसरी कंपनियों के लिए प्रोडेक्ट बनाने की बजाय, क्यों ना एक व्यक्तिगत ब्रांड खड़ा किया जाए। उन्होंने शहर में एक छोटी सी प्लास्टिक कंपनी खरीदी और उसे नाम दिया सेलो

 छात्रों की स्टेशनरी किट में बनाई जगह

Cello Group Amitabh Bachchan
Cello Group roped in Amitabh Bachchan

Cello Group अपने प्रमुख उत्पाद ‘कैसरोल डिशेज़’ के लिए लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया। गौरव ने बताया, “मेरे दादाजी ने USA की अपनी यात्रा के दौरान कैसरोल के बारे में जाना। उन्होंने देखा कि अमेरिका में लोग, छोटे गोल आकार के प्लास्टिक कंटेनरों में खाना रखते थे, जिसमें वह घंटों तक गर्म बना रहता। उन्हें यह भारतीय जीवनशैली के लिए फिट लगा। उन्होंने सन् 1980 के दशक के अंत में इसे भारत में भी लॉन्च कर दिया।” वह आगे कहते हैं कि यह शायद भारतीय किचन में जगह बनाने वाला, पहला प्लास्टिक प्रोडक्ट था। 

90 के दशक में कंपनी प्लास्टिक के फर्नीचर के साथ बाजार में उतरी और बाद में स्टील वेयर, ग्लास वेयर, किचन अप्लायंसेज़, मेलामाइन और क्लीनिंग प्रोडक्ट बाज़ार में लेकर आई। विभिन्न प्रकार के प्रोडक्ट्स बाजार में लाने का कारण क्या है? इस बारे में गौरव का कहना है कि कंपनी की शुरुआत ही ग्राहकों की पसंद को आधार बनाकर की गई थी और आज भी यह ऐसे ही आगे बढ़ रही है। 

वह बड़े गर्व के साथ बताते हैं, “पेन को मार्केट में लेकर आने का विचार मेरे चाचा का था। उन्हें 90 प्रतिशत प्लास्टिक से बने पेन के लिए बाजार में बेहतर अवसर नजर आए। इसे आकर्षक व्यवसाय (Stationary Business) मानते हुए, उन्होंने ऐसे उत्पाद लॉन्च किए, जिन्होंने छात्रों की स्टेशनरी किट में अपनी जगह बना ली।” छात्रों के लिए सेलो ग्रिपर, सेलो फाइन ग्रिप, सेलो मैक्सराइटर और सेलो बटरफ्लाई जैसे उत्पाद नाम बन गए। साल 2009 में कंपनी ने अपनी हिस्सेदारी बीआईसी (BIC) को बेच दी।

ग्राहकों की जरूरतों का रखते हैं ध्यान

2000 के दशक की शुरुआत में कंपनी ने महसूस किया कि ग्राहक अब स्टील (Platic to steel ware) की ओर बढ़ रहे हैं। इसके बाद कंपनी ने स्टील और प्लास्टिक के मेल से बने स्टील के फ्लास्क और बोतलें बाजार में उतारे। वह बताते हैं, “अचानक से स्टील वापस चलन में आ गया और इसलिए हमने नए डिजाइनर लुक के साथ एक ‘क्रॉस प्रॉडक्ट’ बनाया। ग्राहकों ने हमारे बोतल, जार, कैसरोल, और लंच पैक जैसे उत्पादों को हाथों हाथ लिया। इन प्रोडक्ट्स में अंदर स्टील लगा हुआ है और बाहरी परत प्लास्टिक से बनी है।”

आखिरकार कंपनी ने नॉनस्टिक कुकवेयर, पैन, ग्रिल, टोस्टर, कॉफी मेकर, ग्राइंडर, ब्लेंडर केटल्स आदि में भी अपनी जगह तलाश ली। वह  आगे कहते हैं, “60 साल पुराना ग्रुप आज देश के जाने पहचाने ब्रांड्स में से एक है। हर भारतीय के घर में कम से कम एक Cello उत्पाद तो मिल ही जाएगा। हमने हर वर्ग और पीढ़ी तक अपनी पहुंच बनाई है।”

विदेशों में भी होता है निर्यात

Cello Group water bottles.
“Out of the 10 products manufactured by the company, only three might take off, but those products are enough to support the enterprise”

साल 2014 में ग्लासवेयर (कांच से बने) और 2017 में ओपलवेयर प्रोडेक्ट्स के साथ Cello Group Of Companies ने नए क्षेत्रों में भी अपने लिए जगह बना ली। सेलो अपने 15 प्रतिशत उत्पाद मध्य पूर्व यूरोप और दक्षिण अफ्रीका के देशों को निर्यात करता है। ब्रांड का निरंतर विकास, मुश्किल समय में भी ब्रांड के अस्तित्व को बनाए रखता है।

एक उदाहरण का हवाला देते हुए गौरव बताते हैं कि कोविड-19 महामारी में मॉप्स (पौछा) जैसे प्रोडेक्ट की बिक्री में सौ प्रतिशत की वृद्धि हुई। वह कहते हैं, “ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमारे पास ऐसे प्रोडेक्ट थे, जिसकी बिक्री कंपनी को लाभ पहुंचा सकती है। अलग-अलग तरह के उत्पादों के कारण ही कंपनी आज भी मार्केट में अपनी पकड़ बनाए हुए है।”

गौरव का कहना है कि हो सकता है, कंपनी के दस उत्पादों में से केवल तीन उत्पाद ही लोगों के बीच अपनी जगह बनाएं। लेकिन कंपनी को बनाए रखने के लिए इतना काफी है। वह आगे कहते हैं, “उदाहरण के लिए, हमारे ग्राहकों के लिए पूरी तरह से उपयुक्त हमारी सेलो प्योरो वॉटर बॉटल अपने डिजाइन, आकार और कीमत की वजह से काफी हिट रही। प्लास्टिक से छुटकारा पाने के लिए स्टील इंसुलेशन पसंदीदा विकल्प बन गया। इसमें अपने हिसाब से पानी, चाय, दूध, जूस आदि को गर्म और ठंडा रखा जा सकता है। मन मुताबिक होने के कारण लोगों ने इसे हाथों हाथ खरीदा।” 

ग्राहकों की बदलती जरूरतें हैं एक चुनौती

ग्राहकों की बदलती जरुरतें एक ऐसी चुनौती है, जो बार-बार सामने आती है। यह किसी भी बिजनेस के सफर का हिस्सा है। हमारा काम ग्राहकों की बदलती धारणाओं (पसंद) के बारे में पहले से अनुमान लगाना और वक्त से आगे रहना है। पिछले कुछ सालों में हमारे प्रोडेक्ट्स के डिजाइन में बदलाव आया है और भड़कीले रंगों की जगह, हल्के पेस्टल रंगों ने ले ली है।

गौरव का कहना है कि कंपनी की योजना अलग-अलग तरह के प्रोडेक्ट बनाने और उत्पादन लागत को कम करने की है। वह आगे कहते हैं, “हमारा उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में ग्राहक के साथ संबंध बनाना और बढ़ाना है। बाजार में अपनी उपस्थिति को मजबूत करना है। हम बदलते समय के साथ आगे बढ़ते रहेंगे। पारिवारिक व्यवसाय मॉडल से दूर होते हुए, कंपनी के साथ अधिक पेशेवर लोगों और विशेषज्ञों को जोड़ेंगे ताकि हमारा ब्रांड बना रहे, चाहे हम उसका हिस्सा हों या न हों।” 

मूल लेखः हिमांशु नित्नावरे

संपादन: अर्चना दुबे

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