आजकल बहुत सारी कंपनियां बिजनेस के साथ-साथ, पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान दे रही हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही बिज़नेस के बारे में बताने जा रहे हैं, जहाँ इंडस्ट्रियल वेस्ट या औद्योगिक कचरे को अपसायकल किया जाता है। कपड़ा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि इंडस्ट्री से निकलने वाले कचरे को ‘इंडस्ट्रियल वेस्ट’ कहते हैं। पुरानी और बेकार कारें भी इसी श्रेणी के अंतर्गत आती हैं। यह कहानी गुरुग्राम स्थित कंपनी, ‘जैगरी बैग्स’ की है। जिसके अंतर्गत, पुरानी कारों की सीट बेल्ट और कार्गो बेल्ट को ‘अपसायकल’ करके खूबसूरत बैग बनाये जाते हैं।
पुरानी और बेकार कारों के लगभग सभी हिस्से, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री या सेक्टर में फिर से इस्तेमाल कर लिए जाते हैं। लेकिन, सीट बेल्ट ज्यादातर लैंडफिल में ही पहुँचती हैं। लेकिन ‘जैगरी बैग्स’ इन पुरानी और बेकार कार सीट बेल्ट को ‘अपसायकल’ करके, अपना बिज़नेस आगे बढ़ा रही है। इस कंपनी की शुरुआत गौतम मलिक ने की है। कचरे को अपसायकल करके बिज़नेस शुरू करने का विचार उन्हीं का था। इस विचार को हकीकत बनाने में उनकी माँ, डॉ. ऊषा मलिक और पत्नी, भावना डन्डोना ने उनका काफी साथ दिया है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए 44 वर्षीय गौतम मलिक कहते हैं, “मैं दिल्ली में पला-बढ़ा हूँ और स्कूल की पढ़ाई के बाद, मैंने पुणे यूनिवर्सिटी से ‘आर्किटेक्चर’ की पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान मुझे ‘ओरोविल’ जाने का मौका मिला। ओरोविल को ‘सस्टेनेबल आर्किटेक्चर’ के लिए जाना जाता है। पढ़ाई में हमें ज्यादातर डिजाइनिंग के बारे में सिखाया गया, लेकिन घर और इमारतों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले, इको-फ्रेंडली रॉ मटीरियल के बारे में मैंने ओरोविल में ही सीखा है। इस जगह ने मुझे ‘सस्टेनेबिलिटी’ का जो पाठ पढ़ाया, वह हमेशा के लिए मेरे साथ रह गया।”
आर्किटेक्चर की डिग्री पूरी करने के बाद, गौतम साल 2001 में अमेरिका चले गए और वहां से उन्होंने ‘फिल्म एंड मीडिया स्टडीज’ में मास्टर्स डिग्री की। पढ़ाई के बाद, वह अमेरिका में ही ‘डिजाइनिंग और ग्राफिक्स’ के क्षेत्र में काम करने लगे। उन्होंने कहा कि अलग-अलग उत्पादों को डिज़ाइन करने की प्रेरणा, लोगों और जगहों से ही आती है। इसलिए, अक्सर वह अमेरिका में सार्वजनिक जगहों पर जाकर समय बिताया करते थे। साथ ही, लोगों और उनके स्टाइल को नोटिस किया करते थे।
वह कहते हैं, “लोगों को नोटिस करते हुए मेरा ध्यान उनके ‘बैग’ पर भी जाता था। मैंने देखा कि लोग अपने व्यक्तित्व के हिसाब से बैग लेते हैं। किसी के लिए डिज़ाइन मायने रखता है, तो किसी के लिए बैग का मटीरियल। इस दौरान, मुझे स्विट्ज़रलैंड की एक कंपनी के बारे में पता चला, जो बैग बनाने के लिए ट्रकों में इस्तेमाल होने वाले तिरपाल (Tarpaulin) को ‘अपसायकल’ करती है।”
तिरपाल का उपयोग ट्रकों में सामान को ढकने के लिए किया जाता है। हालांकि, तिरपाल बनाने के लिए अलग-अलग तरह के मटीरियल का इस्तेमाल किया जाता है। कहीं पर तिरपाल काफी मजबूत प्लास्टिक के बनते हैं, तो कहीं पर प्लास्टिक काफी हल्का होता है। इस कंपनी के बारे में जानकर, गौतम को आईडिया आया कि क्या भारत में इस तरह के ‘कचरे’ को ‘अपसायकल’ किया जा सकता है? अपने इसी आईडिया पर काम करने के लिए, वह 2010 में भारत लौट आए।
शुरू किया अपना स्टार्टअप:
भारत लौटकर गौतम ने अपनी एक डिजाइनिंग कंपनी शुरू की। लगभग दो साल तक इसे चलाने के बाद, उन्होंने जबोंग (Jabong) कंपनी के साथ काम शुरू किया। लेकिन इस दौरान, वह भारत में उपलब्ध ‘इंडस्ट्रियल वेस्ट’ पर रिसर्च करते रहे। क्योंकि, उन्हें अपना खुद का स्टार्टअप शुरू करना था। वह कहते हैं, “शुरुआत में, मैंने भारत में भी तिरपाल को अपसायकल करने के बारे में सोचा। लेकिन यहां इस्तेमाल होने वाले तिरपाल की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं होती है। इसलिए, मैंने कोई दूसरा मटीरियल ढूँढना शुरू किया और मेरी यह तलाश पुरानी कार सीट बेल्ट पर पूरी हुई।”
दिल्ली के मायापुरी को ‘इंडस्ट्रियल वेस्ट’ के लिए जाना जाता है। इसलिए गौतम ने अपने बिजनेस के लिए, यहीं से पुरानी सीट बेल्ट लेना शुरू कर दिया। सबसे पहले, उन्होंने इन सीट बेल्ट से बैग बनाए और लोगों के बीच सर्वे किया। इस सर्वे में न सिर्फ भारत बल्कि दूसरे देशों के भी लोग शामिल थे। सर्वे में उन्हें लोगों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली और साल 2015 में उन्होंने अपना स्टार्टअप, ‘जैगरी बैग्स’ शुरू किया। इस स्टार्टअप के जरिए, वह पुरानी सीट बेल्ट के अलावा कार्गो बेल्ट अपसायकल करके हैंड बैग, लैपटॉप बैग आदि भी बना रहे हैं।
इन बैग के लिए रॉ मटीरियल ढूंढने और डिजाइनिंग से लेकर, मार्केटिंग तक का सभी काम गौतम ने संभाला। वहीं, उनकी पत्नी भावना एक आर्किटेक्चर कॉलेज में प्रोफेसर हैं और गौतम की कंपनी में ‘मटीरियल एक्सपर्ट’ का कार्यभार संभालती हैं। गौतम की माँ, डॉ. ऊषा मलिक कंपनी में फाइनेंस का काम देखती हैं। डॉ. ऊषा कहती हैं, “मैंने लगभग 40 सालों तक बतौर शिक्षक काम किया है। मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस में प्रोफेसर रही हूँ। रिटायरमेंट के बाद, मैं कुछ अलग और अच्छा करना चाहती थी। इसलिए जब गौतम ने मुझे यह आईडिया बताया, तो मैंने इस काम में उसका पूरा साथ दिया। क्योंकि अपने इस बिज़नेस के जरिए, हम पर्यावरण संरक्षण पर काम कर रहे हैं और लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।”
कैसे होता है काम:
सबसे पहले, उनकी यूनिट पर अलग-अलग स्त्रोतों से रॉ मटीरियल पहुँचता है और इसे साफ़ किया जाता है। इसके बाद, अलग-अलग उत्पादों की डिजाइनिंग की जाती है। उन्होंने बताया, “एक सीट बेल्ट सिर्फ दो इंच चौड़ी होती है। इसलिए, हम इस बात को ध्यान में रखकर सभी उत्पादों को डिज़ाइन करते हैं। ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए, सिर्फ अच्छी गुणवत्ता या सकारात्मक सोच ही काफी नहीं है बल्कि अच्छा डिज़ाइन भी बहुत जरूरी है। इसलिए, हम डिजाइनिंग पर भी ख़ासा ध्यान देते हैं। भारतीय ग्राहकों के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए, हमने अपने डिज़ाइन में ‘कांथा‘ कशीदाकारी को शामिल किया है।”
अपने स्टार्टअप के जरिए, वह अब तक 3960 मीटर से ज्यादा बेकार और पुरानी कार सीट बेल्ट तथा 900 मीटर से ज्यादा कार्गो सीट बेल्ट को अपसायकल कर चुके हैं। बैग तैयार करने की प्रक्रिया को भी उन्होंने इस तरह डिज़ाइन किया है कि कम से कम पानी और ऊर्जा का इस्तेमाल हो और कम से कम कचरा उत्पन्न हो। अपने इस ‘सस्टेनेबल स्टार्टअप’ के जरिए, उन्होंने 15 लोगों को रोजगार दिया हुआ है। जिनमें ज्यादातर महिलाएं शामिल हैं।
मार्केटिंग के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “मैं अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में रहने वाले कुछ लोगों से, रिसर्च के समय से ही जुड़ा हुआ था। बाद में, वही लोग मेरे ग्राहक बन गए और उन्होंने ही हमसे दूसरे लोगों को भी जोड़ा। लेकिन भारत में मार्केटिंग के लिए, हमने हाट और ऑर्गेनिक फेस्टिवल में स्टॉल लगाना शुरू किया।”
उन्होंने 2016 में सबसे पहला स्टॉल दिल्ली में लगाया था। लेकिन, लोगों से उन्हें बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली। इसलिए, उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया और ऐसे लोगों तक पहुँचने की कोशिश की, जो प्रकृति के अनुकूल जीवन जीना चाहते हैं।
दिल्ली में रहने वाले उनके एक ग्राहक, अनिरुद्ध सिंघल (39) बताते हैं, “मुझे अपने कुछ दोस्तों से जैगरी बैग्स के बारे में पता चला। इन बैग्स की खासियत है कि ये ‘अपसायकल्ड’ मटीरियल से बने हैं। लेकिन फिर भी इनकी गुणवत्ता और डिज़ाइन बहुत अच्छे हैं। मुझे लगता है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस तरह के बैग्स इस्तेमाल करने चाहिए ताकि थोड़ा-बहुत ही सही लेकिन हम सब पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे पाएं।”
बाहर देशों में भी जा रहे हैं उत्पाद:
फिलहाल, वह अलग-अलग मॉडल पर काम कर रहे हैं। ग्राहकों से सीधा जुड़ने के साथ-साथ, वह कुछ ऐसे संगठनों से भी जुड़े हुए हैं, जो बड़ी मात्रा में उनसे बैग खरीदते हैं। इसके अलावा, दूसरी कंपनियां भी उन्हें बैग बनाने के ऑर्डर देती हैं। पिछले पांच सालों में, जैगरी बैग्स से लगभग नौ हजार ग्राहक जुड़े हैं। जिनमें से लगभग छह हजार ग्राहक ऐसे हैं, जो लगातार उनसे ही बैग खरीद रहे हैं। उनके उत्पाद भारत के अलावा, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, और जापान जैसे देशों में भी जा रहे हैं।
गौतम कहते हैं, “हमने लगभग 10 लाख रुपए के निवेश से यह कंपनी शुरू की थी। सब कुछ अपनी बचत से ही किया और अब तक कहीं से भी फंड नहीं लिए हैं। टर्नओवर की बात करें, तो पहले साल से ही हमें अच्छी सफलता मिली है। पहले साल में, हम लगभग 20 लाख रुपए तक का टर्नओवर लेने में कामयाब रहे। इसके बाद, हर साल हमारा टर्नओवर लगभग 18% तक बढ़ा है।”
भविष्य में वह अपसायक्लिंग के क्षेत्र में अधिक से अधिक युवाओं को जोड़ना चाहते हैं। जिसके लिए, वह अलग-अलग जगह ऐसे सेंटर बनाना चाहते हैं, जहां लोगों को कचरे के प्रकार के हिसाब से ‘अपसायकल’ करने की ट्रेनिंग दी जाए। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग न सिर्फ इस क्षेत्र में अपना करियर बना पाएंगे बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मदद कर पाएंगे। बेशक, ‘जैगरी बैग्स’ की सफलता की कहानी हम सबके लिए एक प्रेरणा है। हम पर्यावरण के अनुकूल काम करके, अच्छी कमाई कर सकते हैं।
अगर आप ‘जैगरी बैग्स’ बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो गौतम मलिक को gautam@jaggery.co पर ईमेल कर सकते हैं। उनके उत्पाद खरीदने के लिए आप उनकी वेबसाइट पर जा सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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