छत्तीसगढ़ के रायपुर में रहने वाली पूर्णिमा जोशी को बचपन से ही पेड़-पौधों से लगाव रहा है। खासकर कि बोनसाई से। क्योंकि उनके पिता बोनसाई लवर हैं और अक्सर वह बोनसाई बनाया करते थे। उनसे प्रेरित होकर पूर्णिमा ने भी कुछ साल पहले बोनसाई बनाना शुरू किया। अपने पिता से विरासत में मिले बोनसाई बनाने के शौक को पूर्णिमा एक कदम आगे लेकर जा रही हैं। पूर्णिमा खूबसूरत बोनसाई बनाने में माहिर तो है ही, लेकिन अब वह इन बोनसाई को ग्राहकों तक पहुंचा कर अच्छा बिज़नेस भी कर रही हैं।
‘बोनसाई हाट‘ के नाम से अपना स्टार्टअप शुरू करने वाली पूर्णिमा को देश के अलग-अलग कोनों से ऑर्डर मिलते हैं। उनके बनाए बोनसाई की इतनी मांग है कि कई बार उनके पास ग्राहकों के ऑर्डर पूरे करने के लिए स्टॉक कम पड़ जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि पूर्णिमा ग्राहकों को एकदम सही बोनसाई देने में विश्वास करती हैं। इसलिए अगर कभी ऑर्डर के मुताबिक उनके पास बोनसाई उपलब्ध नहीं होता है तो वह विनम्रता से मना कर देती हैं या ग्राहकों से कुछ समय मांगती हैं।
उनका कहना है कि बोनसाई में लगने वाली डिज़ाइन, मेहनत और पौधे की उम्र के आधार पर बोनसाई की कीमत काफी ज्यादा होती है। इसलिए उनकी कोशिश लोगों की इच्छा के अनुसार बोनसाई देने की रहती है। ताकि उनके ग्राहकों के घरों में सालों-साल बोनसाई चलें। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने अपने इस सफर के बारे में बताया।
शिक्षक से बनी उद्यमी
एमटेक की डिग्री करने वाली पूर्णिमा कहती हैं, “मायके में जब पापा को बोनसाई बनाते हुए देखती थी तो हमेशा सोचती थी कि एक दिन मैं भी बोनसाई बनाउंगी। हालांकि, उस समय यह मेरा रिटायरमेंट प्लान हुआ करता था कि बोनसाई बनाकर बिज़नेस करुंगी। लेकिन कहते हैं न कि हमारे मुताबिक ज़िंदगी नहीं चलती है। डिग्री पूरी करते ही मेरी शादी हो गयी। शादी के बाद मैंने एक स्कूल में लगभग ढाई साल तक बतौर शिक्षक काम किया। साथ ही, प्राइवेट ट्यूशन भी छात्रों को दिया करती थी।”
काम के साथ-साथ पूर्णिमा ने अपने घर में एक छोटा-सा बगीचा भी सेटअप करना शुरू कर दिया। वह कहती हैं कि खाली समय में वह पौधों की देखभाल करती और धीरे-धीरे उन्होंने बोनसाई पर भी हाथ आजमाना शुरू किया। बोनसाई बनाना एक दिन का काम नहीं है। उन्होंने भले ही अपने पापा को हमेशा बोनसाई बनाते हुए देखा था लेकिन किसी को देखने में और खुद वह काम करने में फर्क होता है। पूर्णिमा कहती हैं, “मैंने लगभग छह-सात साल बोनसाई बनाने की कला सीखने में लगाए हैं। मैंने छोटे-छोटे पौधों से शुरुआत की थी और आज मैं अच्छे से अच्छा बोनसाई लोगों तक पहुंचा रही हूँ।”
पूर्णिमा कहती हैं कि साल 2018 तक उनके घर में लगभग 400 बोनसाई बनकर तैयार थे। “घर पर आने-जाने वाले लोग अक्सर हमारे बोनसाई देखकर हैरान होते थे। एक बार हमें एक रिश्तेदार ने अपने घर के लिए बोनसाई बनाने को कहा। मैंने उन्हें बोनसाई बनाकर दिए तो वह बहुत खुश हुए और सब जगह उन्होंने मेरी इस कला के बारे में बताया। बस वहीं से मुझे लगा कि अपना शौक जीने के लिए रिटायरमेंट का इंतजार करने की क्या जरूरत है,” उन्होंने कहा।
अपने काम पर लोगों से फीडबैक लेकर पूर्णिमा ने 2018 में अपने बिज़नेस की शुरुआत की। उन्होंने पहले अपने जान-पहचान के लोगों को बताया। व्हाट्सऐप पर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने बोनसाई की तस्वीरें पोस्ट की। धीरे-धीरे उन्हें ऑर्डर मिलने लगे।
घर में बनाया ‘बोनसाई हाट’
पूर्णिमा कहती हैं कि उन्होंने बहुत मेहनत और समय लेकर बोनसाई बनाना सीखा। शुरुआत में उनसे कई पौधे खराब भी हुए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने सीखने के लिए अपने पापा से मदद ली और यूट्यूब से भी सीखा। “सबसे पहले कोशिश होनी चाहिए कि आप अच्छा पौधा खरीदें। बोनसाई बनाने के लिए आपको सिर्फ इसकी डिजाइनिंग पर नहीं बल्कि इसके लिए खास तरह का पॉटिंग मिक्स तैयार करना होता है। आप किस तरह की ट्रे में इसे लगा रहे हैं, इस बात पर ध्यान देना चाहिए,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा कि रायपुर में गर्मी काफी रहती है। इसलिए उन्हें बोनसाई बनाने में परेशानियां आई। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने एक्सपेरिमेंट करके एक खास तरह का पॉटिंग मिक्स बना लिया। जिसमें आप किसी भी इलाके और मौसम में बोनसाई लगा सकते हैं। छह-सात सालों में पूर्णिमा ने लगभग 400 बोनसाई बना लिए थे। उन्होंने कहा कि इसके बाद उनके घर में जगह ही नहीं थी कि वह और बोनसाई बनाती। इसलिए उन्होंने धीरे-धीरे इन्हे सेल करना शुरू किया। अपने इस काम में उन्हें उनके पति, आदित्य जोशी का पूरा साथ मिला।
उन्होंने अपने घर से ही काम शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने इस बात पर फोकस किया कि वह बोनसाई को पैक कैसे करेंगी ताकि ये शिपिंग के दौरान खराब न हो। “हमने मिलकर इस तरह की पैकेजिंग तैयार की कि अगर बोनसाई चार-पांच दिन तक भी शिपिंग में है तो यह खराब न हो। मैंने देश के अलग-अलग राज्यों में अब तक सैकड़ों बोनसाई भेजे हैं लेकिन किसी भी तरह की समस्या नहीं हुई है। मैंने बिजनेस की शुरुआत 20 हजार रुपए से की थी और फिर जो भी मुनाफा हुआ उसे बिजनेस में ही लगाने लगी,” उन्होंने कहा।
अब तक वह लगभग 280 बोनसाई ग्राहकों तक पहुंचा चुकी हैं। जिनमें पीपल, बरगद, आम, अमरूद, नीम, यूकेलिप्टस सहित 40 से ज्यादा वैराइटी के प्लांट हैं। ज्यादातर बोनसाई की उम्र 10 साल से ज्यादा की है। कई 50 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। इनकी साइज को लेकर वह बताती हैं कि अभी उनके पास 3 इंच से लेकर 70 इंच तक के बोनसाई हैं। अगर कीमत की बात की जाए तो 600 रुपए से इसकी शुरुआत होती है। जबकि कई बोनसाई की कीमत हजारों में भी है। बोनसाई की कीमत उसकी उम्र, साइज और डिज़ाइन पर निर्भर करती है।
लॉकडाउन में काम रुका, लेकिन अब लगातार बढ़ रही है मांग
पूर्णिमा कहती हैं कि साल 2020 में लॉकडाउन और कोरोना महामारी के कारण कई महीने तक वह बोनसाई के आर्डर नहीं ले पाई थीं। क्योंकि इनकी शिपिंग में समस्या आ रही थी। ऐसे में उन्होंने और बोनसाई बनाने पर जोर दिया। ताकि जैसे ही स्थिति सामान्य हो तो वह लोगों के ऑर्डर पूरा कर सकें। वह कहती हैं, “आने वाले समय में मेरी योजना बोनसाई फार्म बनाने की है। लेकिन अभी मेरा बेटा छोटा है, जिस कारण मैं पूरा समय अपने बिज़नेस को नहीं दे पा रही हूं। सुबह साढ़े पांच बजे से लेकर आठ-नौ बजे तक मैं बोनसाई का काम करती हूं। इसके बाद परिवार को देखना होता है। फिर जब बेटा सो जाता है तो थोड़ा काम देखती हूं।”
उनके एक ग्राहक अभिनेष कहते हैं, “मैंने ऑनलाइन स्पेस पर एक जेड प्लांट बोनसाई देखा, जिसे पूर्णिमा जी ने तैयार किया था। इसके बाद ही मैंने उनसे संपर्क किया। मैं रायपुर से 1500 किमी की दूरी पर रहता हूं। इसलिए मैं संकोच कर रहा था कि क्या यह मंगवाना सही रहेगा? कहीं खराब आया तो? लेकिन पूर्णिमा जी ने पूरा विश्वास दिलाया कि पैकेजिंग अच्छे से होगी और पौधा पहुंच जाएगा और ऐसा ही हुआ।”
बोनसाई बनाने की कला सीखने की इच्छा रखने वालों के लिए पूर्णिमा एक ख़ास ऑनलाइन कोर्स भी प्लान कर रही हैं। दरअसल कई लोग इस कला को सीखना चाहते हैं। इसलिए पूर्णिमा का उद्देश्य अब लोगों को बोनसाई बनाना सिखाना भी है।
यदि आप पूर्णिमा जोशी से संपर्क करना चाहते हैं या उनके काम को देखना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
संपादन- जी एन झा
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