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22 वर्षीय छात्र ने एलईडी बल्ब यूनिट शुरू करने के लिए बेची बाइक, अब कमाते हैं लाखों

Tripura Youth

त्रिपुरा के अल्गापुर गाँव के रहने वाले रोहित ने अपनी कंपनी आरबी इल्युमिनेशन को देशव्यापी लॉकडाउन से ठीक पहले शुरू किया था। आज वह प्रतिदिन करीब 500 बल्ब बेचते हैं। जिससे उन्हें 2.5 लाख रुपए की कमाई होती है।

यदि आपके घर में कोई एलईडी बल्ब खराब हो जाए, तो आप निश्चित रूप से इसे कूड़ेदान में फेंक कर तुरंत नया ले लेंगे। लेकिन, त्रिपुरा के अल्गापुर गाँव के रहने वाले एक इंग्लिश ऑनर्स के छात्र, रोहित भट्टाचार्जी ने कुछ अलग सोचने का प्रयास किया।

इसी का नतीजा है कि आज उनका अपना एलईडी बल्ब निर्माण इकाई है। इस कंपनी को शुरू करने के लिए उन्होंने अपनी बाइक तक बेच दी थी। 

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रोहित

रोहित ने अपनी कंपनी आरबी इल्युमिनेशन को देशव्यापी लॉकडाउन से ठीक पहले शुरू किया था। आज वह प्रतिदिन करीब 500 बल्ब बेचते हैं। जिससे उन्हें 2.5 लाख रुपए की कमाई होती है। अपने इस काम को संभालने के लिए उन्होंने सात लोगों को रोजगार भी दिया है।

इस कड़ी में, रोहित ने द बेटर इंडिया को बताया, “जनवरी 2020 में, मेरे कमरे का एलईडी बल्ब खराब हो गया था और इलेक्ट्रॉनिक दुकान मेरे गाँव से थोड़ा दूर था। जिज्ञासावश, मैंने बल्ब को खोला और इसके कंपोनेंट को समझने की कोशिश की। इस दौरान मुझे ज्यादा समझ में नहीं आया। इसके बाद मैंने यूट्यूब से इसके बारीकियों को समझने की कोशिश की।”

राह नहीं थी आसान

रोहित कहते हैं कि बल्ब में ज्यादा कंपोनेंट नहीं थे। सिर्फ बल्ब को जलाने में उनकी भूमिका को समझना चुनौतीपूर्ण था।

“ड्राइवर, कैप, चिप और बॉडी इसके मुख्य तत्व थे और सबकी भूमिका अलग थी। किसी भी कंपोनेंट की प्रोसेसिंग की जरूरत नहीं थी। लेकिन, असेम्बलिंग के दौरान काफी सावधानी बरतने की जरूरत थी। मैंने विचार किया कि क्यों न नया बल्ब खरीदने के बजाय, इसके लिए एक निर्माण इकाई की शुरुआत की जाए,” वह कहते हैं।

लेकिन, अपने वेंचर को शुरू करने के लिए रोहित को पैसों की जरुरत थी। उनके माता-पिता रिटार्यड स्कूल टीचर हैं, इस वजह से वे ज्यादा मदद करने में सक्षम नहीं थे।

इस संबंध में, रोहित के पिता पुलक कहते हैं, “हमें अपने बेटे की योजनाओं के बारे में कोई अंदाजा नहीं था। क्योंकि, कई विषयों को वह हमसे खुलकर साझा करना पसंद नहीं करता। उसने हमें बताया कि वह अपनी बाइक बेच रहा है, जिसे हमने उसे 65 हजार रुपए में गिफ्ट किया था। उसने हमसे आर्थिक मदद माँगी और हमने उस पर भरोसा जताते हुए, अपनी सेविंग्स से 3.5 लाख रुपए दिए।”

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रोहित के यूनिट में बल्ब बनाते उनके सहकर्मी

इसके बाद, रोहित ने अपने घर से सटे छोटी सी जमीन पर यूनिट को लगाया।

क्या था मकसद

पुलक कहते हैं कि गाँव में बेरोजगारी की समस्या हमेशा रोहित को परेशान करती थी और वह इस दिशा में कुछ सार्थक करना चाहता है।

“जब हमें पता चला कि वह एक एलईडी बल्ब इकाई स्थापित करना चाहता है, तो हम डर गए। हमें इस बिजनेस के बारे में कुछ पता नहीं था। लेकिन, रोहित ने हमें भरोसा दिया कि उनका यह बिजनेस चलेगा और पैसे व्यर्थ नहीं होंगे,” वह कहते हैं।

इस तरह, अपने बेटे को निराश करने और पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहने के बजाय, उन्होंने रोहित को मौका देने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

एक अनोखा पहलू

शुरुआती दिनों में, रोहित को अपने सभी संसाधनों को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध करने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में, उन्होंने दिल्ली के कुछ विक्रेताओं से संपर्क कर, इस समस्या से निजात पाया।

वह कहते हैं, “फरवरी के अंत तक, मेरे सभी उपकरण आ गए थे। कुछ प्रयासों के बाद, मैं एलईडी बल्ब बनाने में सफल हुआ और 50 बल्ब बना लिए।”

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चूंकि, इसके अगले महीने यानी मार्च में, लॉकडाउन लागू हो गया। रोहित ने अपने बल्ब को बेचने के लिए स्थानीय दुकानों से संपर्क किया। इस दौरान उन्होंने अपने उत्पाद की कीमत 90 रुपए रखी, जो बाजार में उपलब्ध अन्य बल्ब के मुकाबले कहीं सस्ती थी।

रोहित बताते हैं, “मेरा बल्ब, ब्रांडेड कंपनियों के मुकाबले काफी सस्ता था। इसके अलावा, बल्ब को लंबे समय तक चलने और अच्छी रोशनी के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कंपोनेंट का इस्तेमाल किया गया था। इसलिए, मैं अपने बल्ब के लिए 2 साल की वारंटी की पेशकश की। कम लागत और बेहतर गुणवत्ता के कारण, हमें बाजार में पकड़ बनाने में दिक्कत नहीं हुई।”

वह कहते हैं कि धीरे-धीरे उनके उत्पादों की माँग बढ़ने लगी। एक बार अच्छी कमाई को लेकर आश्वस्त होने के बाद, उन्होंने अपने पास के 7 लोगों को रोजगार भी दिया। उनमें से तीन बेंगलुरु से लौटे थे और लॉकडाउन के दौरान अपनी नौकरी गंवा चुके थे।

इसके बाद, रोहित ने उन्हें काम सीखा कर, प्रति महीने 12 हजार रुपए की नौकरी पर रख लिया। वह बताते हैं कि एक प्रशिक्षित व्यक्ति को एक एलईडी बल्ब बनाने में दस मिनट लगते हैं, और एक दिन में 100 बल्ब बनाए जा सकते हैं।

आज रोहित का वेंचर, आरबी इल्युमिनेशन के नाम पर पंजीकृत है और बल्ब आरबी एलईडी के नाम से बेचा जाता है।

वह कहते हैं, “मैं अधिक से अधिक साझेदारों और डीलरों की तलाश में हूँ। क्योंकि, हमारे बल्ब की माँग दूसरे जिलों में भी बढ़ी है। लोग महंगे ब्रांडों के बजाय, स्थानीय रूप से निर्मित बल्ब पसंद कर रहे हैं।”

अंत में रोहित के पिता कहते हैं, “मैं अपने बेटे पर गर्व महसूस कर रहा हूँ। रोहित ने जो प्रयास किया है। उसे मंत्रालय स्तर पर भी सराहा जा चुका है। आज यह एक विश्वसनीय ब्रांड बनने की ओर अग्रसर है।”

द बेटर इंडिया रोहित भट्टाचार्जी के जज्बे को सलाम करता है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।

मूल लेख  –

संपादन – जी. एन. झा

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