“आप जो बदलाव संसार में देखना चाहते हैं, उसकी शुरुआत आपको स्वयं से करनी होगी,” महात्मा गाँधी के इस कथन को सही मायने दे रहें हैं मेजर डी. पी सिंह। जी हाँ, मेजर देवेंदर पाल सिंह, एक रिटायर्ड आर्मी अफ़सर और प्रथम भारतीय ब्लेड रनर।
साल 1999
भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध। चारो तरफ गंभीरता का माहौल कि अगले पल क्या हो। पर 48 घंटों में एक भी गोली चलने की आवाज़ नहीं। शायद वह तूफ़ान के पहले की शांति थी। मेजर सिंह और उनके साथी दुश्मन पोस्ट से सिर्फ 80 मीटर की दुरी पर थे कि अचानक एक विस्फोट हुआ।
युद्ध के मैदान में खून से लथपथ मेजर सिंह को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। पर उनके हौंसलें और मनोबल ने मौत को भी हरा दिया। मेजर सिंह महीनों सैन्य अस्पताल के कृत्रिम अंग केंद्र में भर्ती रहे, जहां पर डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उनके एक पैर को काटना पड़ेगा।
“मुझे कभी नहीं लगा कि मैं मर रहा था। जिस क्षण इंसान हार मान लेता है, वह मर जाता है। फिर डॉक्टर भी आपको बचा नहीं सकते। यह मेरे लिए भगवान का दिया हुआ रास्ता था। जब गैंग्रीन से मेरा पैर प्रभावित हुआ, तो मैं हार मान सकता था। लेकिन मैंने इसे एक चुनौती की तरह लिया। मैंने खुद से कहा कि चलो देखते हैं कि लोग एक पैर के बिना कैसे जीते हैं,” मेजर डी. पी सिंह ने अपनी वेबसाइट पर लिखा।
मेजर सिंह ने अपने परिवार को भी कभी खुद के लिए अफ़सोस नहीं जताने दिया। उन्होंने अपने माता-पिता को हमेशा भरोसा दिलाया कि वे बिलकुल ठीक हैं।
“उस विस्फोट में मेरे साथ और भी साथी घायल हुए थे, सबने अपने शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को खोया था, अब हम सबको एक-दूसरे का हाथ पकड़कर चलना था। हमारी देशभक्ति ने जो रिश्ता जोड़ा वह हर रिश्ते से बड़ा था,” मेजर सिंह ने बताया।
एक जांबाज, जिसे फौज में लड़ने और आगे बढ़ने की ट्रेनिंग मिली थी, वह कैसे सहानुभूति और सहारे पर अपनी ज़िंदगी गुजार सकता था। इसीलिए मेजर सिंह ने फैसला किया कि वे अपनी कमजोरी को ही अपनी सबसे बड़ी ताकत बनायेंगें। “पहले बिस्तर पर लेटे रहना और फिर अपने पैरों पर खड़े होना सीखना। एक बार फिर से चलना सीखना, पहले बैसाखी के सहारे और फिर एक कृत्रिम टांग के साथ। इस दौरान मानो मैं एक सैलाब से गुजरा।”
मेजर सिंह को फिर से दौड़ने के लिए पुरे 10 साल लगे। आसान नहीं था उनके लिए ब्लेड (कृत्रिम पैर) रनर की पहचान हासिल करना। पर उन्होंने किसी भी चुनौती को अपनी मंजिल के बीच नहीं आने दिया। साल 2009 में उन्होंने दौड़ना शुरू किया।
वे अब तक 25 मैराथन दौड़ चुके हैं, जिसमें से 3 मैराथन उन्होंने हाई अल्टीट्यूड पर दौड़े हैं। इसी के साथ ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स’ में भी उनका नाम दर्ज है।
पिछले साल, सितम्बर में वे शहीदों के परिवारों के लिए चंदा इकट्ठा करने हेतु सिक्किम में छंगू झील से लेकर गैंगटॉक तक दौड़े। इस मैराथन में उनके साथ कर्नल सुंदरसन भी थे। अपने इस अनुभव को उन्होंने अपने ब्लॉग में साँझा किया है।
मेजर सिंह ने साल 2011 में ‘द चैलेंजिंग वन’ नामक संस्था की शुरुआत की। इस संस्था के जरिये वे पुरे देश में और भी बहुत से ऐसे लोगों से जुड़े, जिन्होंने किसी न किसी वजह के चलते अपने किसी महत्वपूर्ण अंग को खो दिया। उनका उद्देश्य खेलों के जरिये इन लोगों को उनकी असक्षमता से ऊपर उठाकर प्रोत्साहित करना है। गौर करने वाली बात यह है कि इस संस्था का कोई दफ्तर नहीं है। हाँ, पर यह संस्था पंजीकृत है।
मेजर सिंह कहते हैं कि ‘द चैलेंजिंग वन’ एक सोच है, जिसके जरिये यदि मैं किसी एक व्यक्ति को हौंसला देकर फिर से खड़े होने में मदद कर रहा हूँ तो वह दूसरा व्यक्ति किसी तीसरे की मदद करे, और तीसरा किसी चौथे की। इसी तरह कड़ियाँ जुड़ती चली जाएंगीं और बदलाव आएगा।
मेजर सिंह की इस पहल में तकनीक भी अहम भूमिका निभा रही है। बहुत से लोगों से वे व्हाट्सएप के जरिये जुड़े हुए हैं। इन्हीं व्हाट्सएप ग्रुप्स में सभी अपनी कहानियां और प्रेरणादायक कहानियां साझा करते हैं।
सात साल कॉर्पोरेट में काम कर चुके मेजर सिंह मैराथन रनर के साथ-साथ एक प्रेरक वक्ता भी हैं। उन्होंने टेड़ एक्स, इंडियन इन्क्लूजन समिट जैसे मंचों पर भी अपने अनुभव को साझा किया है।
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साल 2016 से मेजर सिंह ने ‘स्वच्छेबिलिटी रन’ की शुरुआत की है। जिसके तहत वे भारत के छोटे-छोटे शहरों में जाकर लोगों को स्वच्छता के साथ-साथ दिव्यांगों को भी समान रूप से समाज में उनका सम्मान देने के लिए जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने हरियाणा और पंजाब से इसकी शुरुआत की और इसका अगला चरण वे जल्द ही राजस्थान में करने वाले हैं। इस पहल में उनका साथ एक निजी कंपनी जे.के. सीमेंट दे रही है।
‘स्वच्छेबिलिटी रन’ के दो कार्यक्रम हैं, एक 10 किलोमीटर की दौड़ और दूसरा 3 किलोमीटर की दौड़। 10 किलोमीटर की दौड़ में कोई भी भाग ले सकता है बाकी 3 किलोमीटर की दौड़ खासकर स्कूल के विद्यार्थियों के लिए है। इसके अलावा यदि कोई कम दूरी तक दौड़ना चाहता है, तो वह भी भाग ले सकता है।
दौड़ के बाद, सभी प्रतिभागी स्वच्छता ड्राइव के तहत उनके लिए नामित क्षेत्र की साफ़-सफाई करते हैं। मेजर सिंह की इस पहल से जुड़ने के लिए शपथ लें।
द बेटर इंडिया के जरिये, वे केवल एक सन्देश लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। उनका कहना है,
“हमारे संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक के कुछ मुलभूत अधिकार और कर्तव्य हैं। पर विडंबना यह है कि आज लोग केवल अधिकारों की बात करते हैं जबकि अपने कर्तव्यों की तरफ उनका कोई ध्यान नहीं है। मेरा मानना है कि यदि हर कोई अपना कर्तव्य पूरा करे तो अधिकार स्वयं ही आपको मिल जायेंगें।”
मेजर सिंह उन विरले लोगों में से एक हैं जो दूसरों की राह तकने की बजाय खुद समाज के लिए बदलाव बनते हैं। उनका जीवन निःसंदेह लोगों के लिए प्रेरणा है। हम सलाम करते हैं मेजर सिंह के हौंसले और इरादों को।
मेजर डी.पी सिंह से जुड़ने के लिए आप उनकी वेबसाइट देख सकते हैं। इसके अलावा ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से भी आप उनसे जुड़ सकते हैं।
( संपादन – मानबी कटोच )