पापा वेकफील्ड: वह पूर्व ब्रिटिश सैनिक, जिन्हें भारत में इको-टूरिज्म का पितामह माना जाता है!

How Ex British Soldier

कर्नल जॉन फेलिक्स वेकफील्ड को लोग प्यार से “पापा” बुलाते थे। उन्होंने भारत के पहले इको-टूरिज्म वेंचर को अंजाम दिया था। वह कई वर्षों तक इसके निदेशक भी बने रहे।

दरअसल, यह बात साल 1978 की है। उस वक्त कर्नाटक के तत्कालीन पर्यटन मंत्री, आर गुंडू राव नेपाल में आयोजित पेसिफिक एशिया ट्रेवल एसोसिएशन सम्मेलन में भाग लेने के दौरान रॉयल चितवन नेशनल पार्क के टाइगर टॉप्स जंगल लॉज में ठहरे थे। यहाँ की सुविधाओं और सौन्दर्य को देखकर गुंडू राव काफी प्रभावित हुए और उन्होंने विचार किया कि क्यों न उनके गृह राज्य में भी ऐसा ही मॉडल अपनाया जाए, जो कई जीव-जंतुओं की विलक्षण और दुर्लभ प्रजातियों का घर है।

वहाँ से वापस आने के बाद, उन्होंने टाइगर टॉप्स को कर्नाटक के नागरहोल में एक वैसा ही रिसॉर्ट खोलने के लिए आमंत्रित किया।

इसके बाद, टाइगर टॉप्स के मालिक जिम एडवर्ड्स ने उनके इस आमंत्रण को स्वीकार करते हुए, अपने दो सहकर्मियों रमेश मेहरा और कर्नल जॉन फेलिक्स वेकफील्ड को यहाँ भेजा। फिर एक साल बाद, कर्नाटक सरकार ने टाइगर टॉप्स की साझेदारी में, जंगल लॉजेस एंड रिसॉर्ट्स की घोषणा की, जो कि इको टूरिज्म के क्षेत्र में देश का पहला वेंचर था।

हालांकि, नागरहोल में लॉज बनाने के विचार को तब अस्वीकार कर दिया गया, जब वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसार इसे एक राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया। क्योंकि, ऐसे क्षेत्र में कमर्शियल टूरिस्ट लॉज का निर्माण नहीं हो सकता था।

इसके बाद, मेहरा और वेकफील्ड ने मैसूर स्थित काबिनी नदी के उत्तरी तट पर, कारापुर के पास एक जगह की तलाश की, जो पहले यहाँ के महाराजा का हंटिंग लॉज था।

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अपनी पत्नी के साथ वेकफील्ड

इसके बाद, काबिनी रिवर लॉज साल 1980 में, आम लोगों के लिए खुल गया। लेकिन, इसके कुछ ही वर्षों के बाद टाइगर टॉप्स ने अपने कदम को पीछे खींच लिया और अपनी हिस्सेदारी को भारत सरकार को बेच दिया।

आज काबिनी रिवर लॉज का स्वामित्व पूर्णतः कर्नाटक सरकार के हाथों में है। इसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वाइल्ड लाइफ रिसॉर्ट के तौर पर जाना जाता है। इसने इको-टूरिज्म के क्षेत्र में एक उदाहरण को पेश किया है, जो देश में वन्यजीवों के संरक्षण के प्रयासों में एक मुख्य पहलू है।

ध्यान देने वाली बात है कि यह वास्तव में गुंडू राव थे, जिन्होंने इस विचार को जाहिर किया था, और एक पूर्व ब्रिटिश सैनिक, कान्सर्वेशनिस्ट और टाइगर टॉप्स के पूर्व कर्मचारी कर्नल जॉन फेलिक्स वेकफील्ड थे जिन्होंने भारत के पहले इको-टूरिज्म वेंचर को अंजाम दिया था। लोग उन्हें “पापा” के नाम से भी बुलाते थे। वह कई वर्षों तक इसके निदेशक भी बने रहे।

पारंपरिक पर्यटन स्थलों के विपरीत, इको-टूरिज्म के तहत पर्यटकों को प्राकृतिक परिवेशों के बारे में शिक्षित किया जाता है और इसके संरक्षण को बढ़ावा दिया जाता है। 

इन पहलों में स्थानीय समुदायों की भी भागीदारी सुनिश्चित की जाती है, ताकि उन्हें आजीविका का बेहतर साधन मिले। इन सिद्धांतों को विकसित करने में वेकफील्ड ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

एक ब्रिटिश नागरिक जिन्होंने भारत को अपना घर बना लिया

वेकफील्ड का जन्म साल 1916 में, बिहार के गया जिले में हुआ। उनके दादा 1826 में भारत आये थे और वह बंगाल प्रेसीडेंसी में एक सैनिक थे। जबकि, उनके पिता बिहार में टिकारी के महाराज की नौकरी करते थे।

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महाराज के पास एक जंगल था, जहाँ वेकफील्ड ने 9 साल की उम्र में बाघ का शिकार किया था और 10 की उम्र में तेंदुए का। उनका बचपन रोमांच से भरा रहा, लेकिन उनके पिता ने उन्हें जल्द ही औपचारिक शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया। 

फिर, भारत वापस आने पर उन्होंने शिकार खेलने के जुनून का आगे बढ़ाया। इसी कड़ी में उनकी मुलाकात दिग्गज जिम कॉर्बेट से हुई।

डेक्कन हेराल्ड में प्रकाशित एक नोट में जिक्र किया गया है, “साल 1941 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्हें ब्रिटिश सेना में आपातकालीन रूप से भर्ती किया गया था और उन्होंने उत्तर भारत और बर्मा में अपनी सेवाएं दी थी। बर्मा में उनकी मुलाकात क्यू ए आर्मी हॉस्पिटल में काम करने वाली एक ब्रिटिश नर्स से हुई और उन्होंने उनसे शादी कर ली। लेकिन, अपने पिता के गंभीर रूप से बीमार पड़ने के बाद, वह 1958 में इंग्लैंड चली गईं। इसके बाद वेकफील्ड अपनी पत्नी से कभी नहीं मिले। हालांकि, उनकी दोनों बेटियाँ अपने बच्चों के साथ अक्सर भारत आती रहती थीं।” 

उन्हें साल 1948 में भी भारत छोड़ने का मौका मिला था। जब वेकफील्ड की माँ ने उन्हें चेतावनी दी थी कि भारत में स्थिति काफी खराब होने वाली है। लेकिन, उनकी चली गई और वह यहीं रहे।

साल 1954 में आर्मी छोड़ने के बाद, उन्होंने अपने हंटिंग के जुनून को फिर से आगे बढ़ाया। लेकिन, 1970 के दशक में बाघों की घटती संख्या ने वन्यजीवों के संरक्षण के विषय में एक नए विमर्श को जन्म दिया और 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम ने एक कान्सर्वेशनिस्ट बनने के लिए प्रेरित किया।

काबिनी लॉज: भारत में इको-टूरिज्म का परिचय

काबिनी लॉज की शुरुआत के कुछ वर्षों के बाद ही, टाइगर टॉप्स ने इससे अपना नाता तोड़ लिया। इससे इस वेंचर को चलाना कठिन हो गया। 

कुछ पर्यावरणविदों ने इसे “ईकोसाइड” कहा, तो कुछ ने चिन्ता जताई कि इससे प्रकृति और वन्यजीवों के बीच संतुलन खराब होगा।

बहरहाल, रिसॉर्ट के एक अधिकारी ने इन आलोचनाओं का जवाब देते हुए कहा, “हम वाइल्ड लाइफ टूरिज्म को एक खास और वैज्ञानिक तरीके से शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। हमारा प्रयास पर्यटन को बढ़ावा देने का है। इससे वन्यजीवों को कोई नुकसान नहीं होगा और अर्जित राजस्व का उपयोग इसे बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है।”

हालांकि इस वेंचर को आगे बढ़ाने में कई प्रशासनिक बाधाएं आ रही थीं, लेकिन वेकफील्ड ने जंगल के संबंध में अपने ज्ञान और मिलनसार व्यक्तित्व से इस बाधा को पार कर लिया।

इस संबंध में चेन्नई की पत्रकार और लेखिका गीता डॉक्टर ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि वेकफील्ड उन लोगों में से थे, जिनका मानना था कि जंगल रिसॉर्ट के विमर्श में सिर्फ वन्यजीव ही नहीं, इंसान भी मायने रखते हैं।

इस रिसॉर्ट में 90 फीसदी कामगार स्थानीय लोग थे। साथ ही, जंगल के आस-पास के क्षेत्रों में मौजूद, सोलीगास जनजातियों ने अपने शहद जमा करने के काम को जारी रखा और उनके जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया।

स्थानीय समुदायों के आजीविका प्रति उनकी संवेदनशीलता अंततः जंगल लॉज एंड रिसॉर्ट्स के विचारों में भी झलकता है।

वेंचर के वेबसाइट के मुताबिक, “हम  अपने खाने-पीने की अधिकांश वस्तुओं को स्थानीय किसानों से लेते हैं। हमने कभी शिकार का काम करने वाले लोगों को रोजगार दिया है। जंगल और वन्यजीवों के विषय में उनका ज्ञान हमारे लिए पूंजी है।”

बहरहाल, संरक्षण प्रयासों को सफल बनाने के लिए स्थानीय समुदायों को इससे जोड़ना जरूरी था। इसके अलावा, वेंचर ने यहाँ वाले पर्यटकों को भी प्रकृति के प्रति शिक्षित करने के लिए भी कई तत्पर था। 

इसे लेकर एनिमल्स इन पर्सन कल्चरल पर्सपेक्टिव ऑन ह्यूमन-एनिमल इन्टीमसी में उल्लेख किया गया है कि वेकफील्ड ने 1986 में, सुंदर को हेड नेचुरलिस्ट नियुक्त किया। उनका काम काबिनी लॉज से नागरहोल नेशनल पार्क जाने वाले पर्यटकों को और स्थानीय लोगों को प्रकृति के संबंध में ज्ञान को बढ़ाना था। इससे लोगों का वन्यजीवों से लगाव बढ़ा।

और, जाहिर तौर पर, वेकफील्ड का क्षेत्र के वन्यजीवों के साथ एक गहरा संबंध स्थापित हो गया था, खासकर हाथियों से। कुछ लोगों का मानना है कि वह उनसे संवाद कर सकते थे।

26 अप्रैल 2010 को, 94 वर्ष की उम्र में वैकफील्ड का निधन हो गया। वह अपने अंत समय तक काबिनी की बेहतरी के लिए कार्य करते रहे। जिसे उन्होंने करीब तीन दशकों तक अपना घर बना लिया था। उन्होंने इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए, जो प्रयास किए वह निर्विवाद है।

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मूल लेख – RINCHEN NORBU WANGCHUK

संपादन – जी. एन. झा

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