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दिल्ली का यह स्टार्टअप बनाता है EV Battery, सालाना टर्नओवर है 50 करोड़

EV Battery

दिल्ली स्थित iPower Batteries, देश के 15 ई-स्कूटर निर्माताओं तथा दूसरे 100 (OEM) मूल उपकरण निर्माताओं के लिए भी, EV Battery बना रही है।

पिछले साल कोरोना महामारी के दौरान, कई तरह के बिजनेस को नुकसान झेलना पड़ा। दिल्ली का एक स्टार्टअप, ‘iPower Batteries’ भी इससे अछूता नहीं था। इसके बावजूद, वित्तीय वर्ष 2020-21 में इस स्टार्टअप का टर्नओवर 50 करोड़ रुपये था। iPower Batteries, देश के मुख्य 20 इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर निर्माताओं में से 15 कंपनियों के लिए, लिथियम-आयन बैटरी पैक बना रही है। जिनमें Gemopai, Benling India, Okinawa Autotech और Ampere Electric Vehicles जैसे बड़े नाम शामिल हैं। वहीं, आज दिल्ली का यह स्टार्टअप देश के दो, तीन और चार पहिया वाहनों (L5 Category) के लगभग 100 मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) के लिए भी, लिथियम-आयन बैटरी पैक बनाता है। साथ ही, यह स्टार्टअप, दूसरी कंपनी की जरूरतों और बताई गई विशेषताओं को ध्यान में रखकर, EV Battery बनाता है। 

यह कंपनी सिर्फ Battery Cell ही जापान, दक्षिण कोरिया तथा चीन से आयात करती है और बाकी उपकरणों को, उनकी फैक्ट्री में डिज़ाइन और तैयार किया जाता है। वे ये सारी चीजें, सरकार की ओर से मान्यता प्राप्त अपनी रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) लैब में बनाते हैं। हालांकि, यह कंपनी केवल तीन साल से ही लिथियम-आयन बैटरी पैक बना रही है।

iPower Batteries के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर, विकास अग्रवाल ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “साल 2011 से हमने EV के क्षेत्र में काम करना शुरू किया था। पहले, हम कम स्पीड वाले स्कूटर जैसे- हीरो इलेक्ट्रिक और उनके डिस्ट्रीब्यूटर्स के लिए, लेड-एसिड-बैटरी बनाते थे। हालांकि, लेड-एसिड-बैटरी का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए हमने उन्हें बनाना बंद कर दिया। पिछले तीन साल से हम लेड-एसिड बैटरी की जगह, लिथियम-आयन बैटरी बना रहे हैं। हम भारतीय पर्यावरण, भूगोल, जलवायु और ग्राहकों की जरूरतों जैसे- कम लागत और अधिक माइलेज वाली विशेषताओं को ध्यान में रखकर, EV Battery को डिजाइन और विकसित करते हैं।” 

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iPower Batteries की फैक्ट्री

iPower Batteries की शुरुआत 

साल 2020 में, iPower Batteries अपनी मूल कंपनी ‘Computech Systems’ से अलग हो गयी। Computech Systems को विकास के पिता, आर सी अग्रवाल ने साल 1992 में शुरू किया था। उनकी यह कंपनी, UPS सिस्टम, SMF (Sealed Maintenance Free) बैटरी और लैपटॉप के चार्जर आदि बनाने का काम करती है। साल 2011 में, इस कंपनी ने EV के क्षेत्र में कुछ नया करने की सोच के साथ, iPower Batteries ब्रांड , iPower Batteries शुरुआत की थी। 

वह बताते हैं, “मैंने देश में EV के उपकरण बनाने वाली कंपनियों के लिए, लेड-एसिड बैटरी बनाने का काम शुरू किया। उन दिनों, EV का बाज़ार काफी नया था। हमारा मकसद, सिर्फ पैसे कमाना नहीं था, बल्कि देश में गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण और विदेशों से बड़े पैमाने पर ईंधन के आयात को कम करना था।”
साथ ही, अपने पुराने दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया, “मुझे हमेशा से इलेक्ट्रिक गाड़ियां पसंद थीं और मैं भारत में, इसी क्षेत्र में कुछ करना चाहता था।”

उन्होंने बताया, “साल 2011 से EV (इलेक्ट्रिक गाड़ियां) का दौर शुरू होने लगा था, हालांकि तब हम Computech Systems के उत्पादों पर ही ज्यादा ध्यान दे रहे थे। पिछले साल अप्रैल तक,  iPower Batteries अपनी मूल कंपनी Computech Systems के साथ ही थी, लेकिन अब ये दोनों अलग-अलग कंपनी बन चुकी हैं। iPower Batteries, अब पूरी तरह से EV से जुड़े स्टार्टअप और कंपनियों के लिए, लिथियम बैटरी पैक बनाने का काम कर रही है।  

आज, iPower Batteries का आधुनिक लिथियम-आयन बैटरी पैक, कई EV स्टार्टअप के बीच काफी लोकप्रिय है। जिसका मुख्य कारण, इन EV Battery का स्वैपेबल और मॉड्यूलर होना है, यानी इन्हें एक EV से दूसरी EV में लगाया जा सकता है और EV Battery को आपस में बदला जा सकता है। ये बैटरी पैक, बेहतर ट्रैकिंग सुविधा, जियो-फेंसिंग, रिमोट मॉनिटरिंग, बैटरी इमोबिलाइजेशन, एक्टिव और पैसिव कूलिंग जैसी सुविधाओं के साथ आते हैं। ये बैटरी पैक कुंडली, हरियाणा स्थित iPower Batteries की 50 हजार वर्ग फुट की फैक्ट्री में बनते हैं, जहां उन्होंने अपने उत्पादों की टेस्टिंग और वेलिडेशन के लिए, जरूरी सुविधाएं तैयार की हैं।  

विकास कहते हैं, “हमारी फैक्ट्री में हर दिन 500 बैटरी पैक बनाए जा सकते हैं। हालांकि, फ़िलहाल हम सिर्फ 200 बैटरी पैक ही बना रहे हैं। पिछले साल कोरोना महामारी के बाद से, ज्यादातर लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट से शिफ्ट होकर, निजी वाहनों की तरफ जा रहे हैं। इसी वजह से, EV से जुड़े स्टार्टअप और कंपनियों में बैटरी की मांग भी बढ़ गयी है। 

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उत्पादन प्रक्रिया 

अच्छी गुणवत्ता वाले बैटरी सेल का चयन करने के बाद, iPower Batteries की फैक्ट्री में उन पर R&D की जाती है। कंपनी की ओर से कई विशेषज्ञ, बैटरी सेल बनाने वाली कई विदेशी कंपनियों में भी काम करते हैं, जो बैटरी सेल को भारत में भेजे जाने से पहले, इनकी जांच करते हैं। बैटरी सेल के भारत आने के बाद, उन्हें एक विशेष जगह पर रखा जाता है, जहां तापमान को 25 डिग्री सेल्सियस पर मेंटेन किया जाता है। इसके बाद, फिर से उनकी जांच की जाती है। बैटरी पैक को बनाते समय, पहले से तय की गई प्रक्रिया फॉलो की जाती है। साथ ही, अंतिम उत्पाद अच्छी गुणवत्ता का हो, इसे सुनिश्चित करने के लिए, बैटरी सेल को बनाने के अलग-अलग स्तर पर, जांच की जाती है। 

विकास बताते हैं, “सेल को वोल्टेज, इंटरनल रेजिस्टेंस और क्षमता के आधार पर अलग किया जाता है। इसके बाद, हम बैटरी पैक का एक मॉड्यूल बनाते हैं, फिर मॉड्यूल में स्पॉट-वेल्डिंग करते हैं और BMS (Battery Management System) के साथ, इसकी सोल्डरिंग करते हैं। इसके बाद, EV Battery के लिए एक सॉफ्ट पैक बन कर तैयार होता है। गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए, EV Battery की रैंडम टेस्टिंग (पूरे लॉट में से कुछ सैंपल टेस्ट करना) के बजाय, सभी EV Battery की अच्छे से जांच की जाती है। सॉफ्ट पैक को आखिर में, असेंबल करने के लिए रखा जाता है। असेंबल करने के बाद, इन्हें एल्यूमीनियम मेटल या ABS (Acrylonitrile Butadiene Styrene – एक नॉन-कंडक्टिव या जिसमें बिजली का प्रवाह नही होता है और उच्च दबाव सहने वाला थर्मो-प्लास्टिक) से बने कवर से पूरी बैटरी को ढका जाता है। बैटरी की पैकिंग ग्राहकों की जरूरतों के अनुसार होती है, ताकि दुर्घटना, आग या कोई दूसरी आपात स्थिति में EV Battery सुरक्षित रहे। आखिर में, इसकी एक और बार जांच की जाती है।”

इस तरह से, कपंनी में बैटरी पैक बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। कंपनी के लिए, बैटरी पैक के सुरक्षा मानको का ध्यान रखना, सबसे महत्वपूर्ण है। आखिरी जांच के बाद, इन बैटरी पैक को सुरक्षित कंटेनरों में रखकर, ग्राहकों तक डिटेल्ड टेस्टिंग रिपोर्ट के साथ भेजा जाता है। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाता है कि रास्ते में इन EV Battery को कोई नुकसान न पहुंचे। 

विकास बताते हैं कि टू-व्हीलर बनाने वाली कंपनियों के लिए, उनकी कंपनी से ज्यादातर बिकने वाले बैटरी पैक, 1.5 से 2 kWh की रेंज में हैं। जो कंपनी की बैटरीज की कुल मांग का लगभग 60 प्रतिशत है। iPower Batteries थ्री-व्हीलर्स के लिए, 5 kWh और फोर-व्हीलर्स (L5-श्रेणी) के लिए, 10 kWh लिथियम-आयन बैटरी पैक बनाते हैं। ये दोनों बैटरी पैक, कंपनी में बनने वाली बैटरी पैक की कुल मांग के 20 प्रतिशत हैं और बाकि की बैटरीज, ई-साइकिल बनाने वाली कम्पनियों को बेची जाती हैं। 

चुनौतियां और कोविड 

साल 2019 में भी, भारत में EV के लिए बैटरी बनाने का काम अपने शुरुआती दौर में था। भारतीय परिस्थितियों में लिथियम-आयन बैटरी बनाने के लिए, iPower Batteries के पास शुरुआत में, कुशल कर्मचारी भी नहीं थे। विकास ने बताया, “दूसरे शब्दों में कहूँ, तो हमने सही उत्पाद तैयार करने के लिए, अच्छी तकनीकी जानकारी रखने वाले लोगों को खोजने के लिए, काफी मेहनत की। हमने अपनी कंपनी के लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए, विदेशों से कुछ विशेषज्ञों की मदद भी ली थी। हमने अच्छी गुणवत्ता वाले बैटरी पैक बनाने का तरीका जानने के लिए, अपनी टीम को अंतरराष्ट्रीय बैटरी कारखानों का दौरा करने के लिए भी भेजा। इन सभी प्रयासों से, हमने यह सीखा कि सही प्रकार का उत्पाद कैसे बनाया जा सकता है, जो सुरक्षित और किफायती हो तथा उसकी रेंज भी अच्छी हो।”

हमारी अगली चुनौती, यह सुनिश्चित करना था कि बैटरी पैक सुरक्षित हो। अगर लिथियम-आयन बैटरीज के रखरखाव में चूक हुई, तो यह काफी खतरनाक साबित हो सकता है। इस वहज से, पहले कई बार EV में आग लगने की खबरें भी आई हैं।

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विकास आगे कहते हैं, “EV में आग लगने जैसी मुश्किलों को दूर करने के लिए, बैटरी पैक को डिजाइन करते समय ज्यादा ध्यान रखना जरूरी था। हमने यह तय किया कि कंपनी की बैटरीज में, सुरक्षा से जुड़ी कई विशेषताओं को जोड़ा जायेगा। साथ ही, हम अपने डीलरों को सुरक्षा गाइडलाइंस के बारे में लगातार समझाते भी रहे। सुरक्षा सुनिश्चित करना, हमारी बैटरी बनाने की प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। हमारे उत्पाद बेहतर और सुरक्षित बन सकें, इस पर हम काफी R&D करते हैं। चूंकि हम एक स्टार्टअप कंपनी हैं, इसलिए हमें R&D की प्रक्रिया के लिए, काफी फंड की जरूरत पड़ती है। यह एक मंहगी प्रक्रिया है।”

वैसे तो लिथियम-आयन बैटरीज, सामान्य लेड-एसिड बैटरीज की तुलना में काफी बेहतर हैं। लेकिन, इन बैटरी पैक को कम लागत में बनाना काफी चुनौती भरा है। केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं और सब्सिडी के कारण, स्टार्टअप को काफी मदद मिली है। 

पिछले मार्च में, जब देश COVID-19 महामारी का सामना कर रहा था, तब लॉकडाउन के दौरान, जुलाई में कंपनी की बिक्री में 60 फीसदी की गिरावट आई थी। उन दिनों महामारी के बावजूद भी, उन्होंने R&D पर अपना ध्यान बनाये रखा और कुछ महीनों के बाद, उनका बिजनेस फिर से पटरी पर आ गया। लेकिन, पिछले कुछ हफ्तों में COVID-19 की दूसरी लहर के कारण, उन्हें अपनी फैक्ट्री को कुछ दिनों के लिए बंद करना पड़ा है।

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विकास के मुताबिक़, “हमने अपनी कंपनी के 200 कर्मचारियों में से, किसी को भी काम से नहीं निकाला है। चूंकि हमारी फैक्ट्री में काफी जगह है, इसलिए सुरक्षित रूप से सामाजिक दूरी बनाए रखना, आसान हो जाता है। साथ ही, यहां सभी कर्मचारी को मास्क पहनना भी जरूरी है। हर शनिवार, हम फैक्ट्री में COVID-19 जांच के लिए कैंप लगाते हैं। जिससे हमारे कर्मचारी सप्ताह में एक बार, मुफ्त में COVID जांच करा सकते हैं। वहीं, जब कर्मचारी ब्रेक पर जाते हैं, तब फैक्ट्री में दिन में तीन बार सेनिटाइजेशन भी होता है। हम बहुत भाग्यशाली रहे हैं, क्योंकि अब तक हमारी फैक्ट्री में, कोई भी COVID-19 पॉजिटिव केस सामने नहीं आया है।”

कंपनी ने शुरुआती सालों में, कोई बड़ा मुनाफा नहीं कमाया, तब उनका ध्यान R&D पर जोर देने, लिथियम-आयन बैटरी पैक बनाने और अपने कर्मचारियों को ट्रेनिंग देने पर था। वहीं, महामारी के इस दौर में बिजनेस को काफी नुकसान झेलना पड़ा है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि COVID की दूसरी लहर खत्म होने के बाद, वित्तीय वर्ष 2022 में उनकी कंपनी 80 से 100 करोड़ रुपये के बीच का कारोबार करेगी।

मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक

संपादन – प्रीति महावर

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