छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के बावा मोहतारा गांव का बच्चा-बच्चा एक मगरमच्छ की मौत से दुखी था। 130 वर्षीय ‘गंगाराम’ नाम के मगरमच्छ की मौत 2019 में हुई थी। गांव में रहनेवाले बसावन ने एक बातचीत में कहा था कि गंगाराम, मगरमच्छ नहीं बल्कि उनका दोस्त था। आमतौर पर मगरमच्छ से लोगों को काफी डर लगता है, लेकिन मगरमच्छों वाला गांव, बावा मोहतारा में रहनेवाले लोगों के लिए मामला थोड़ा अलग है।
ऐसा इसलिए है, क्योंकि काफी लंबे समय तक, यह छोटा सा गांव, गंगाराम का घर था। गंगाराम, इस खतरनाक हिंसक प्रजाति के सबसे विनम्र सदस्यों में से एक था। अपने गांव से बेइंतहां प्यार पाने वाले गंगाराम से गांव वाले नहीं डरते थे। अक्सर वह और छोटे बच्चे पानी में साथ-साथ तैरा करते थे, जबकि उन बच्चों की माएं उसी तालाब के किनारे पर कपड़े धोती थीं। गंगाराम ने कभी किसी पर हमला नहीं किया। साथ ही गांववाले भी काफी ख्याल रखते थे कि गंगाराम को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे।
दरअसल, इस अनोखे रिश्ते से मगरमच्छों के ‘खतरनाक’ होने और गांव वालों के जानवरों के प्रति ‘क्रूर’ होने की छवि टूटी है।गांव के तालाब में गंगाराम की शांतिपूर्ण उपस्थिति के कारण बावा मोहतारा को ‘मगरमच्छ-वाला गाँव’ के नाम से भी जाना जाता था। इसलिए जब लंबा जीवन जीने के बाद, प्राकृतिक कारणों से गंगाराम की मौत हो गई, तो पूरा गाँव शोक मनाने के लिए इकट्ठा हो गया और अपने प्यारे मगरमच्छ को एक भावनात्मक विदाई दी।
गंगाराम के अंतिम संस्कार में 500 से अधिक लोग शामिल हुए और उसे मालाओं से सजाए गए ट्रैक्टर पर ले जाया गया।
बावा मोहतारा के अलावा, और भी है मगरमच्छों वाला गांव

जिस दिन मगरमच्छ की मौत हुई, उस दिन कई ग्रामीणों के घर चूल्हा तक नहीं जला था। कुछ समय बाद, मगरमच्छों वाला गांव, बावा मोहतारा के निवासियों ने तालाब के किनारे गंगाराम के सम्मान में एक स्मारक बनाया।
दिलचस्प बात यह है कि बावा मोहतारा भारत का एकमात्र ऐसा गांव नहीं है, जहां हिंसक जानवरों और इंसानों के बीच शांतिपूर्ण रिश्ता देखा गया है। गुजरात के चरोतर जिले में भी, इंसान और मगरमच्छ एक दूसरे पर हमला किए या परेशान किए बिना शांतिपूर्ण तरीके से रहते हैं।
स्थानीय एनजीओ, वॉलंटरी नेचर कंजरवेंसी के सर्वेक्षणों के अनुसार, चरोतर के 30 गांवों में कम से कम 164 मगरमच्छ हैं। यह एक ऐसा क्षेत्र, जहां प्रति वर्ग किमी पर 600 से ज्यादा लोग रहते हैं।
इन गांवों के लगभग हर तालाब में मगरमच्छ रहते हैं, लेकिन यहां रहनेवाले लोगों को उन तालाब में तैरने, अपने मवेशियों और कपड़ों को धोने और सिंघाड़े इकट्ठा करने में बाधा नहीं बनते। इसके अलावा, ये मगरमच्छ अपने बच्चों को उसी किनारे पर बड़ा करते हैं, आराम से धूप सेंकते हैं। कभी-कभी वे रेंगते हुए घास पर भी आ जाते हैं, जहां अक्सर मवेशी चरते रहते हैं और बच्चे खेलते हैं।
हां, कभी-कभार हमले होते हैं, लेकिन वे सामान्य से काफी कम होते हैं। इतना ही नहीं, चरोतर के निवासी इन दुर्लभ हमलों के लिए न केवल बहाने बनाते हैं, बल्कि मगरमच्छों को अधिक जगह देने के लिए अतिरिक्त तालाब खोदने की भी योजना बना रहे हैं।
मगरमच्छों वाला गांव से अलग, शेतपाल की बात किए बिना अधूरी है यह कहानी

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि गुजरात में रेपटाइल प्रजातियों के लिए चरोतार की आर्द्रभूमि सबसे सुरक्षित आश्रय साबित हुई है। रेपटाइल के लिए सुरक्षित जगहों की बात करें, तो यह कहानी महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के अनूठे गांव शेतपाल की चर्चा किए बगैर अधूरी होगी, जहां सांपों को परिवार माना जाता है।
शेतपाल में, लोगों के घरों के आसपास और यहां तक कि स्कूल की कक्षाओं में भी सांपों को इधर-उधर भागते देखना एक सामान्य घटना है। वास्तव में, गाँव का प्रत्येक घर, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, वहां एक खोखला स्थान बनाया जाता है, जिसे ‘देवस्थानम’ (देवता का निवास) कहा जाता है। यहां साँप किसी भी समय आराम कर सकते हैं और शांति से रह सकते हैं।
बावा मोहतरा, चरोतर और शेतपाल इस बात के बेहतरीन उदाहरण हैं कि मनुष्य और जंगली रेपटाइल एक साथ शांतिपूर्ण तरीके से रह सकते हैं।
लेकिन इंसानों और वन्यजीव का साथ-साथ रहना केवल संरक्षण की ही नहीं, बल्कि मानवीय और विकास संबंधी चिंता भी है। अपने घरों के आसपास रहनेवाले वन्यजीवों को नुकसान न पहुंचाकर, हम मनुष्य अपने इको-सिस्टम को बनाए रखने में सहायक बनते हैं और इस तरह हम कहीं न कहीं हमारी अपनी भलाई और भविष्य की सुरक्षा भी करते हैं।
रेपटाइल्स या सरीसृपों के जीवन अधूरा है ईको-सिस्टम
द नेचर के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में सभी रेपटाइल प्रजातियों में पांच में से एक के विलुप्त होने का खतरा है, जो पृथ्वी की बायोडायवर्सिटी के लिए एक ‘विनाशकारी’ झटका हो सकता है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) में ऊपर बताए गए अध्ययन के को-लीडर नील कॉक्स ने बताया, “अगर हम रेपटाइल को हटा दें, तो कीटों और कीड़ों में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होगी, जिसके प्रभाव से इको-सिस्टम में मौलिक रूप से बदलाव हो सकते हैं। सरीसृपों के साथ वाली बायो-डायवर्सिटी ही लोगों के लिए एक स्वस्थ वातावरण प्रदान करने वाली इको-सिस्टम सेवाओं का आधार है।”
इसलिए, ऐसे समय में जब मानव-रेपटाइल संघर्ष अक्सर खबरों में होता है, मगरमच्छों वाला गांव, बावा मोहतारा के गंगाराम की प्यारी सी कहानी आशा की किरण के रूप में सामने आती है। ऐसी भी उम्मीद की जा सकती है कि वहाँ और भी गंगाराम हैं, जो मनुष्यों द्वारा खोजे जाने, प्यार करने और संरक्षित किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मूल लेखः संचारी पाल
संपादनः अर्चना दुबे
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