छवि मित्तल कहती हैं कि उन्हें कैंसर का पता चलना मात्र एक संयोग की बात थी। उस समय को याद करते हुए वह बताती हैं कि कैसे उनकी जिंदगी एक दिन में ही बदल गई। अभिनेत्री छवि मित्तल ने बताया कि, “एक रात मैं चैन से सो रही थी और अगली ही सुबह, मुझे कैंसर का पता चला। उस दिन से उनका पूरा जीवन बदल गया है।”
छवि एक फिल्म और टेलीविजन कलाकार हैं। उन्होंने टेलीविजन इंडस्ट्री में ज़ी टीवी के एक शो से डेब्यू किया था और 15 सालों से वह इंडस्ट्री में जमी हुई हैं। मूल रूप से गुरुग्राम (हरियाणा) की रहनेवाली छवि ने Shhh…फिर कोई है और ट्विंकल ब्यूटी पार्लर जैसे शो से अपनी पहचान बनाई।
फिलहाल वह अपने पति मोहित हुसैन के साथ ‘Shitty Ideas Trending’ नाम से एक डिजिटल प्रोडक्शन कंपनी चलाती हैं और अभी अपनी कहानी शेयर करने और ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जागरूकता पैदा करने की यात्रा पर हैं। अप्रैल में, उन्होंने इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर अपने फॉलोअर्स को बताया था कि वह कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी की चपेट में हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि वह इससे जुड़ी सर्जरी और रेडिएशन की डिटेल्स पर भी चर्चा करने के लिए तैयार हैं।
वर्कआउट के दौरान लगी चोट से डिटेक्ट हुआ छवि मित्तल का कैंसर

द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए छवि ने बताया, “वर्कआउट करते हुए मुझे छाती पर चोट लग गई, इसलिए मैं डॉक्टर के पास गई। वहां जब हमने एमआरआई स्कैन किया, तो डॉक्टर ने दूसरी तरफ एक गांठ देखी। फिर उन्होंने मुझे एक सोनोग्राफी और एक बायोप्सी कराने के लिए कहा, जिससे पुष्टि हुई कि यह कैंसर था।”
वह कहती है कि जब रिपोर्ट से उन्हें कैंसर होने का पता चला, तो वह रोई या घबराई नहीं, बल्कि बेहद शांत थीं। छवि आगे बताती हैं कि वह अक्सर छोटी-छोटी बातों पर परेशान हो जाया करती हैं। लेकिन जब कभी बड़ी समस्या आती है, तो वह काफी शांत रहती हैं।
वह कहती हैं, “कैंसर का पता चलने के बाद मैं बिल्कुल शांत ही थी। बेशक, इस खबर को समझ पाने में थोड़ा समय लगा। मैंने खुद को इसे स्वीकार करने के लिए कुछ दिनों का समय दिया। मैंने उस समय में बहुत सारे ग्राउंडवर्क किए, कई डॉक्टरों, ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर्स से बात की और उन सबसे बातचीत करके मुझे पता चला कि अगर कैंसर का पता जल्दी चल जाए, तो उसका इलाज किया जा सकता है।”
दुनिया में सबसे अधिक होने वाला कैंसर है ब्रेस्ट कैंसर

ग्लेनीगल्स ग्लोबल हेल्थ सिटी में ऑन्कोलॉजी के डॉयरेक्टर, डॉ राजसुंदरम ने द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए बताया, “चेन्नई, मुंबई, बेंगलुरु जैसे शहरों में ज्यादा जागरूकता है और इन शहरों की महिलाओं की तुलना में, हम ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के बीच एक बड़ा अंतर देखते हैं, जहां जागरूकता और सुविधाओं तक पहुंच कम है।”
वह कहते हैं कि शहरों में रहनेवाली महिलाएं नियमित जांच के लिए आती हैं और यहां इस रोग के जल्दी पता लगने की संभावना ज्यादा होती है। जबकि ग्रामीण इलाकों की महिलाएं अक्सर देर से आती हैं, जिससे इलाज और जीवित बचने की संभावना दोनों कम हो जाती है। वह कहते हैं, “सरकारों को ग्रामीण क्षेत्रों में सुलभ देखभाल और स्वास्थ्य शिक्षा की दिशा में काम करना चाहिए।”
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक ब्रेस्ट कैंसर, दुनिया में सबसे अधिक होने वाला कैंसर है। ब्रेस्ट कैंसर इंडिया के अनुसार, भारत में हर चार मिनट में एक महिला को स्तन कैंसर का पता चलता है।
छवि मित्तल बताती हैं कि जब डॉक्टर ने उन्हें गांठ की बात बताई, तो उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने बड़ी अनिच्छा से बॉयप्सी कराई। वह कहती हैं, “रिपोर्ट आने से पहले मैं डर गई थी। मुझे कैंसर नहीं चाहिए था। मुझे लगता है कि हर किसी की पहली प्रतिक्रिया ऐसी ही होती है।”
कैसे किया कैंसर से मुकाबला?
छवि बताती हैं कि ऐसे समय में उनका परिवार बहुत बड़ा सहारा बना। वह कहती हैं, “मेरे पति, मेरा सबसे बड़ा सहारा रहे। उन्होंने अस्पताल में, काम पर और घर पर सब कुछ संभाला। मेरे बच्चे भी समझ रहे हैं। मेरी बेटी नौ साल की है और जब मैंने उसे बताया, तो वह रो पड़ी।
लेकिन मैंने उसे समझाया कि किसी भी अन्य बीमारी की तरह, मैं इससे भी लड़ूंगी। मेरा बेटा तीन साल का है और वह ये चीजें समझने के लिए बहुत छोटा है। वह सिर्फ इतना जानता है कि मुझे ‘चोट’ लगी है और मैं उसे उठा नहीं सकती। वह अचानक बड़ा हो गया है और जब मैं अस्पताल में थी, तब वह घर पर बहुत अच्छे से रहा।”
वह आगे कहती हैं, “कैसंर एक ऐसी बीमारी है, जहां आपके पास कोई विकल्प नहीं होता, सिवाय उससे लड़ने के। जैसे- जब आपके पेट में बच्चा होता है, तो एक समय पर उसे बाहर आना ही है। फिर डिलीवरी टेबल पर घबराने का कोई फायदा नहीं। मैंने इस सर्जरी को किसी अन्य सर्जरी की तरह ही समझा और इसे कराने का फैसला किया। मेरे पास कोई विकल्प नहीं था कि मुझे कैंसर होगा या नहीं – एक बार जब आप इससे पीड़ित हो जाते हैं, तो आपको इससे निपटना ही होता है।”
“कुछ लड़ाइयां अकेले ही लड़नी पड़ती हैं”- छवि मित्तल
सर्जरी और रेडिएशन के बाद, शरीर पर होने वाले प्रभाव के बारे में बात करते हुए छवि कहती हैं कि सर्जरी हुए दो महीने से अधिक समय हो गया है और वह अब भी ठीक हो रही हैं।
वह कहती हैं, “मेरा रेडिएशन 15 दिन पहले खत्म हो गया था। मुझे अभी भी दर्द है, स्तन सूजे हुए हैं और रंग बदल गया है। यह एक धीमी प्रक्रिया है। मैं पूरे समय मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत रही हूं। लेकिन कई दिन ऐसे भी होते हैं, जब मुझे लगता है कि यह सब कब खत्म होगा? मैंने हर वह चीज़ करने की कोशिश की, जिससे मुझे जल्दी ठीक होने में मदद मिल सकती है। मैंने फिजियोथेरेपी जल्दी शुरू की, सक्रिय रहने की कोशिश की और स्वस्थ भोजन किया। जीवन में कभी अच्छे और कभी बुरे दिन होते ही हैं।”
एक इंस्टाग्राम पोस्ट में छवि ने कहा, “मेरी ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी को दो महीने हो चुके हैं और पिछले कुछ दिनों से मैं सामान्य महसूस करने के लिए बेचैन हो रही हूं। ठीक उसी तरह जिस तरह से कुछ दिनों की गर्भवती एक माँ महसूस करती है। यह सब कुछ शुरू होने से पहले मैंने जो कुछ किया, उसे करने में सक्षम होने के लिए, भीतर से मुस्कुराने में सक्षम होने के लिए… जीवन के कुछ अच्छे समय देखने के बाद, इन बुरे दिनों में रह रहकर थक गई हूं …
“खुद को प्राथमिकता देना है बेहद ज़रूरी”- छवि मित्तल

छवि ने बताया कि शारीरिक रूप से बहुत कुछ बदल गया है – उनके स्तन सूजे हुए, भारी और दर्द में हैं और वह अपनी दाहिनी ओर नहीं सो सकती हैं, अपने दाहिने हाथ से चीजें नहीं उठा सकतीं और थकावट महसूस करती हैं। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव, उनकी सोच में हुआ है।
वह कहती हैं कि उन्होंने खुद को प्राथमिकता देना सीख लिया है। “मैं एक ऐसी इंसान थी, जो हमेशा दौड़ती-भागती रहती थी। या तो मैं काम में व्यस्त रहती थी या फिर अपने बच्चों का ध्यान रखने में। मेरे पास अपने लिए समय नहीं था। मैं चीजों पर जोर देती थी और खुद पर दबाव डालती थी। मैं चाहती थी कि सब कुछ परफेक्ट हो। इन सबके बीच मैंने खुद को प्राथमिकता दी ही नहीं और भारत में बहुत सी महिलाएं ऐसा ही करती हैं। मैंने सबसे बड़ी जो चीज़ सीखी वह यह है कि जीवन को हल्के में नहीं लेना चाहिए”- छवि ने कहा।
’40 से ऊपर की महिलाओं को हर साल एक मैमोग्राम करवाना ही चाहिए’
डॉ. राजसुंदरम कहते हैं कि तीन तरह के एग्जामिनेशन होते हैं – सेल्फ एग्जामिनेशन, क्लिनिकल एग्जामिनेशन और स्क्रीनिंग टेस्ट, जैसे मैमोग्राम।
डॉ. राजसुंदरम कहते हैं, “हर महीने खुद को चेक करें। प्रत्येक स्तन को अपनी उंगलियों का उपयोग करते हुए जांच करें, महसूस करें कि कहीं गांठ, धब्बे या किसी भी तरह का बदलाव तो नहीं है। ट्रेंड नर्सों द्वारा क्लिनिकल एग्जामिनेशन किया जाता है। सेल्फ एग्जामिनेशन से महिलाओं को कैंसर का जल्द पता लगाने में मदद मिलती है।”
वह कहते हैं कि भारत में 21 में से एक महिला को स्तन कैंसर है। जागरूकता और शिक्षा ने जीवित रहने की दर में वृद्धि की है और वार्षिक जांच, 40 के बाद रोग का जल्दी पता लगाने में मदद करती है।
डॉक्टर आगे कहते हैं, “40 से अधिक उम्र की महिलाओं को हर साल एक बार मैमोग्राम करवाना चाहिए। हर साल यह टेस्ट खुद को गिफ्ट करें। अगर प्रारंभिक अवस्था में इसका पता चल जाए, तो जीवित रहने की दर 100% होती है।” छवि भी खुद की जांच करने और नियमित जांच के लिए जाने के महत्व पर जोर देती हैं।
मूल लेखः सैम्या मणी
संपादनः अर्चना दुबे
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