खेती के साथ मौसमी सब्जियों की हाई-टेक नर्सरी से इस युवा किसान ने कमाया 45 लाख का टर्नओवर

Mayur nursery

डीसा (गुजरात) के मयूर प्रजापति अपनी नर्सरी में किसानों के लिए मौसमी सब्जियों के पौधे तैयार करते हैं। इस हाई-टेक नर्सरी से वह खुद तो अच्छा मुनाफा कमा ही रहे हैं, साथ ही दूसरे किसानों को भी समय से अपनी फसल तैयार करने में मदद कर रहे हैं।

अक्सर खेती को घाटे का सौदा कहा जाता है। ऐसे में कई किसान नहीं चाहते कि उनका बेटा भी किसान बने। लेकिन आज हम आपको ऐसे युवा किसान की कहानी बता रहे हैं,  जिन्होंने पिता के हार्डवेयर के बिज़नेस के बजाय खेती करना पसंद किया। इतना ही नहीं डीसा (गुजरात) के मयूर प्रजापति ने मात्र तीन साल के अंदर अपनी खेती से 45 लाख का टर्नओवर किया है। 

खेती में हमेशा से रुचि रखनेवाले मयूर ने बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई की है। पढ़ाई के अंतिम साल में ही, उन्होंने खेती करने की शुरुआत कर दी थी। आज वह खेती के साथ-साथ, एक बेहतरीन हाई-टेक नर्सरी भी चला रहे हैं। जहां वह उत्तम तापमान में मौसमी सब्जियों के पौधे तैयार करते हैं, जिसे किसान ख़रीदकर अपने खेतों में लगाते हैं। ऐसा करके वह किसानों को समय से फसल तैयार करने में तो मदद करते ही हैं, साथ ही खुद भी बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहते हैं, “ज्यादातर किसान ऐसा मानकर चलते हैं कि खेती में नए प्रायोग करने से घाटा होता है। वे, वैज्ञानिक पद्धत्ति को अपनाने या नई फसल लगाने से भी डरते हैं। लेकिन मैं किसी भी दूसरे बिज़नेस की तरह ही खेती से जुड़ा और अब मैं नई-नई चीजें कर रहा हूं। साथ ही दूसरे किसानों को भी नई तकनीक और नई चीज़ें सिखा रहा हूँ।”

एक एकड़ से शुरू किया खेती करना

farming business

मयूर के पिता को खेती में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए उन्होंने, अपनी पुश्तैनी जमीन दूसरों को कॉन्ट्रैक्ट पर खेती करने के लिए दे दी थी। लेकिन साल 2018 में पढ़ाई ख़त्म होने से पहले मयूर ने तकरीबन एक बीघा जमीन पर सब्जियों की खेती करना शुरू किया। उन्होंने करेला और तुरई जैसी सब्जियों को जमीन से ऊपर फ्रेम बनाकर उगाया। इससे खेतों में परागण में भी सुधार हुआ, साथ ही रोग और कीटों से भी काफी बचाव हुआ। आखिर में फसल की गुणवत्ता भी काफी अच्छी हुई। इस तरह एक बीघा से पांच बीघा और फिर धीरे-धीरे उन्होंने बड़े स्तर पर खेती करना शुरू किया। 

वह कहते हैं, “किसान एक ही फसल पर पूरी उम्मीद टिकाए रहते हैं, जबकि अगर हम मल्टीलेयर फार्मिंग करेंगे तो नुकसान होने की सम्भावना कम हो जाएगी। इसलिए मैं एक साथ कई सब्जियां उगाता हूँ। अगर एक फसल का भाव नहीं मिलता, तो दूसरे से उस नुकसान की भरपाई हो जाती है।”

इसके अलावा, उन्होंने बाज़ार की मांग और मौसम को ध्यान में रखकर फसलें उगाना शुरू किया। एक उदाहरण देकर वह बताते हैं कि डीसा में आलू की खेती सबसे ज्यादा होती है। ऐसे में अगर सारे किसान आलू ही उगाएंगे, तो उत्पादन ज्यादा होने से कीमत भी कम होगी। ऐसे में मयूर ने प्रयोग के लिए, आलू के साथ खेत के कुछ भाग में शिमला मिर्च के पौधे लगाए। साथ ही मल्टी क्रॉपिंग करके उन्होंने खरबूज व तरबूज की खेती की और इससे उन्हें बेहद फायदा भी हुआ।

फिलहाल वह 70 बीघा जमीन किराए पर लेकर खेती और नर्सरी का बिज़नेस कर रहे हैं। 

कैसे आया नर्सरी खोलने का आईडिया 

तकरीबन दो साल पहले,  उन्हें बाहर से लाए सैपलिंग को खेत में उगाने में कई दिक्क़ते आने लगीं। उन्होंने देखा कि सैपलिंग में कई तरह के रोग लग जाते हैं। पौधों को खेत में लगाने के बाद, उन्हें बड़ा करने में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मयूर को लगा कि मेरी तरह दूसरे किसानों को भी इन तकलीफों का सामना करना पड़ता होगा। तब उनके मन में  हाई-टेक नर्सरी तैयार करने का ख्याल आया। वह कहते हैं, “दूसरी नर्सरियों में पौधों को ग्रीनहाउस में, एक तरह की नियंत्रित स्थिति में तैयार किया जाता है। जबकि हम अपनी नर्सरी में एक सफेद नेट लगाकर पौधे लगाते हैं। सफेद जाल के कारण पौधों को प्राकृतिक तापमान और खेत जैसा वातावरण मिलता है।”

इस नर्सरी से मयूर, किसानों को उनकी पहली फसल के तैयार होने तक दूसरी फसल के पौधे उगाकर दे देते हैं। ताकि वह समय से अपनी फसल बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकें। 

high-tech nursery in Gujarat
Mayur With Other Farmers

दूसरे किसानों की करते हैं मदद

डीसा के ही एक युवा किसान अमित प्रजापति, मयूर की नर्सरी से पौधे लेकर खेती करते हैं। हालांकि, अमित पेशे से इंजीनियर हैं, लेकिन खेती में अपनी रुचि के कारण वह तीन सालों से खेती से जुड़े हैं। उन्होंने बताया, “मैं पिछले एक साल से इनकी नर्सरी से पौधे खरीद रहा हूँ। यहां से लाए पौधों की कीमत,  दूसरी नर्सरी से लगभग 40 पैसे कम है,  वहीं गुणवत्ता भी काफी अच्छी है। जिसका कारण यह है कि यहां पौधे बिल्कुल नेचुरल कंडीशन में ठीक वैसे ही तैयार किए जाते हैं, जैसे हम खेत में करते हैं। वह पौधों के सही विकास पर भी पूरा ध्यान देते हैं।”

 दो साल पहले जब अमित दूसरी नर्सरी से पौधे लाते थे, तब 1000 में से मात्र 500 पौधे ही खेत में लग पाते थे, जबकि अब खेत में रोपने के बाद तकरीबन 900 पौधे आराम से बच जाते हैं।  

Nursery business
Visitors At His Farm

अमित ने इस साल मयूर की एम.के नर्सरी से 50 हजार मिर्च, दो लाख फूलगोभी, बैगन और टमाटर के साथ  पपीते के पांच हजार पौधे ख़रीदे हैं। इतना ही नहीं, अमित ने बताया कि उन्होंने मयूर की सलाह लेकर अभी खेत में मल्टी फार्मिंग भी की है। उन्होंने दो पपीते के पौधों के बीच की जगह का उपयोग करके गोभी लगाई है। 

अमित की तरह ही फ़िलहाल गुजरात और राजस्थान के 500 से ज्यादा किसान, मयूर की नर्सरी से पौधे खरीद रहे हैं। मयूर आने वाले दिनों में किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए बेहतर प्लेटफॉर्म देने पर भी काम कर रहे हैं। 

मयूर की नर्सरी के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप उन्हें 7016304539 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादनः अर्चना दुबे

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