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केन्या के किसान खेती के लिए कर रहे हैं सोलर पैनल का इस्तेमाल, भारत भी ले सकता है प्रेरणा

Agrivoltaics Technique : Farming Under Solar Penals

केन्या के किसान खेती के लिए एक अनोखी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। दरअसल, यहां किसान एग्रीवोल्टिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह एक प्रक्रिया है, जिसमें जमीन का अधिकतम उपयोग करते हुए सोलर पैनल लगाने और फार्मिंग का काम, दोनों एक साथ एक जगह पर किया जा सकता है।

केन्या के किसान खेती के लिए एक अनोखी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। सौर पैनल के नीचे लगाई गई लहलाती फसलों ने एक नई उम्मीद जगा दी है। दरअसल, यहां किसान एग्रीवोल्टिक्स (Agrivoltaics) का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह एक प्रक्रिया है, जिसमें जमीन का अधिकतम उपयोग करते हुए सोलर पैनल लगाने और फार्मिंग का काम, दोनों एक साथ एक जगह पर किया जा सकता है। इस तकनीक का फसलों की उत्पादकता पर अच्छा प्रभाव देखा गया है। 

अगर दूसरे शब्दों में कहें तो, इस प्रणाली में सौर ऊर्जा का उत्पादन होता है और साथ ही फसलों को छाया भी मिलती है। इसके अलावा, इन खेतों से बनने वाली स्वच्छ ऊर्जा, केन्याई किसानों को लागत कम करने में भी मदद करती है।

हालांकि, एग्रीवोल्टिक्स (Agrivoltaics) तकनीक नई नहीं है। पहली बार 1981 में एडॉल्फ गोएट्ज़बर्गर और आर्मिन ज़ास्ट्रो इसे लेकर आए थे और उसके बाद, 2004 में जापान में इसका प्रोटोटाइप बनाया गया था। हालांकि, कई सफल परीक्षणों के बाद, साल 2022 की शुरुआत में, पूर्वी अफ्रीका में पहला एग्रीवोल्टिक्स लॉन्च किया गया। 

यह यूके में शेफील्ड, यॉर्क और टीसाइड विश्वविद्यालयों, स्टॉकहोम एन्वायार्नमेंट इन्स्टिट्यूट, वर्ल्ड एग्रोफॉरेस्ट्री, सेंटर फॉर रिसर्च इन एनर्जी एंड एनर्जी कन्जरवेंशन और अफ्रिकन सेंटर फॉर टेक्नोलोजिकल स्टडीज़ के संयुक्त प्रयास का परिणाम था।

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एग्रीवोल्टिक्स (Agrivoltaics) कैसे करता है काम?

एग्रीवोल्टिक्स में, फसलों के बढ़ने और नीचे फलने-फूलने के लिए पैनलों को काफी ऊंचा रखा जाता है और फसलों को ऐसे छाया दी जाती है कि वह कड़ी धूप से बच सकें और इसके ज़रिए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल संचयन) भी की जाती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड के एग्रीवोल्टिक (Agrivoltaics) के एक शोधकर्ता डॉ. रिचर्ड रैंडल-बोगिस ने एक इंटरव्यू में कहा, “सौर पैनल न केवल पौधों और मिट्टी से खत्म होने वाले पानी को बचाते हैं, बल्कि इनकी छाया से, उच्च तापमान के कारण होने वाले तनाव और यूवी डैमेज से भी पौधे बचे रहते हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “केन्या के वे क्षेत्र जो वर्तमान में बागवानी के लिए उपयुक्त नहीं हैं, वहां भी पैनल से मिलने वाली बेहतर पर्यावरणीय परिस्थितियों में अन्य फसलों को उगाना संभव हो सकता है।”

संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी जैसे कई अन्य देश, इस तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं। भारत में भी, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में छोटे पैमाने के एग्रीवोल्टिक फार्म (Agrivoltaics Farm) विकसित हो रहे हैं। हालांकि, भारत को अभी लंबा सफर तय करना है। NSEFI और इंडो-जर्मन एनर्जी फोरम ने एक रिपोर्ट साझा की है, जिसमें कहा गया है कि भारत में एग्रोवोल्टिक इंस्टॉलेशन की क्षमता 10kWp और 3MWp के बीच है और अभी तक 3MWp से अधिक की उपयोगिता-पैमाने पर परियोजनाएं शुरू नहीं की गई हैं।

जोधपुर और सीतापुर जैसे शहरों में, जहां अक्सर गर्मियों में तापमान बढ़ जाता है, वहां रिसर्च संस्थानों से सहायता प्राप्त किसानों ने एग्रीवोल्टिक्स (Agrivoltaics) का उपयोग किया है। इनसे फसलों को चिलचिलाती गर्मी से बचाने के साथ-साथ खेत में नाइट लैंप लगाने की सुविधा जैसे कई फायदे हुए हैं।

मूल लेखः अंजली कृष्णन

संपादनः अर्चना दुबे

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