71 साल के किसान का इनोवेशन, बनाई खरपतवार हटाने वाली डिवाइस, सिर्फ 400 रुपये है कीमत

Innovation Of 71 YO Farmer, Made Weed Removal Device

सतारा (महाराष्ट्र) के किसान, अशोक जाधव ने खरपतवार हटाने के लिए एक ऐसा किफायती डिवाइस बनाया है, जिसे चलाने के लिए न तो किसी तरह के ईंधन की जरुरत है और न ही ज्यादा रखरखाव की।

खेती करना आसान काम नहीं है और जैविक खेती तो बिल्कुल भी नहीं। कभी कम पैदावार, कभी बढ़ती लेबर कॉस्ट, तो कभी खरपतवार। ये समस्याएं कई बार इतनी बड़ी हो जाती हैं कि किसान अपने खेती के पैटर्न को बदलने के लिए मजबूर हो जाता है।

सतारा (महाराष्ट्र) के चिंचनर गांव में रहनेवाले किसान अशोक जाधव को भी इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। अशोक, पहले एक प्राइवेट कंपनी में मशीनिस्ट थे। रिटायर होने के बाद, उन्होंने पिता से विरासत में मिली जमीन पर खेती करनी शुरू कर दी। वह कहते हैं, “मैं 1999 से इस जमीन पर खेती कर रहा हूं। गन्ना, सोयाबीन, हल्दी, टमाटर और मौसमी सब्जियां उगाता हूं। जब मैंने जैविक खेती की तरफ रुख किया, तो मेरे सामने खरपतवार की समस्या सामने आ खड़ी हुई। मैं उससे निपटने के लिए तमाम तरह के उपाय अपना रहा था।” 

एक परेशानी का हल ढूंढो, तो दूसरी आ जाती सामने

71 साल के जाधव के अनुसार जैविक खेती करने का मतलब है प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल। लेकिन इससे खेत में खरपतवार की समस्या बढ़ रही थी और ये मिट्टी के पोषक तत्वों को भी कम कर रहे थे। साथ ही पौधों की ग्रोथ भी प्रभावित हो रही थी।  इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए अशोक ने खरपतवारनाशी का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

Weeding device made by Ashok.
Weeding device made by Ashok.

उन्होंने बताया, “हालांकि यह एक प्रभावी समाधान था, लेकिन जैविक खेती करने के मेरे उद्देश्य को खत्म कर रहा था। रसायन ने मिट्टी की गुणवत्ता को भी खराब करना शुरू कर दिया। मुझे एक ऐसे समाधान की तलाश थी, जो रासायनिक न हो ताकि मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहे।” खरपतवार हटाने को लिए उन्होंने मज़दूरों से काम लेना शुरू कर दिया। वह बताते हैं, “इसके लिए लेबर कॉस्ट बहुत ज्यादा आ रही थी। मैं उन मज़दूरों पर 20 हजार रुपये खर्च नहीं कर सकता था, जिनकी मुझे कभी-कभार ही जरूरत पड़ती थी।”

इसके बाद उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए एक नए समाधान की तरफ देखना शुरू कर दिया। वह कहते हैं, “मैंने सरकारी विभाग के कृषि विशेषज्ञों से संपर्क साधा और एक साइकिल वीडर तैयार किया। यह वीडर फसल के किनारे की खरपतवार को तो काट रहा था, लेकिन फसल के बीच में उगी जंगली घास या खरपतवार को निकाल पाने में सक्षम नहीं था। इसके पहियों में ब्लैड लगे थे, जो खतवार को निकाल रहे थे।” उनका यह वीडर समस्या से निजात दिलाने में नाकामयाब रहा। वह किफायती समाधान की खोज में कई कृषि प्रदर्शनियों में भी गए। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

डिवाइस में करते रहे बदलाव

भले ही तमामा कोशिशों के बावजूद, समस्या का हल नहीं निकला, लेकिन अशोक ने हिम्मत नहीं हारी। वह फिर से एक बेहतर विकल्प की तलाश में जुट गए। उन्होंने कहा, “2018 में मन बना लिया था कि मैं इसका कोई न कोई स्थायी समाधान खोज कर ही रहूंगा। मैंने लोहे की दो सरिया ली और उन्हें उनके सिरे से मोड़ दिया। बीच में 8-10 इंच की एक पतली धातु की तार लगाई। फिर इन दोनों सरियों को एक धातु के पाइप के साथ जोड़कर, उसका हैंडल बनाया। यह डिवाइस खरपतवार को बाहर की तरफ खींचती है और मेटल की तार उन्हें जड़ से काट देती है।”

डिवाइस अच्छे से काम कर रही थी। यह फसल के बीच से भी खरपतवार को हटा पाने में सक्षम थी। लेकिन मेटल की तार खरपतवार के मोटे तने को काटने के बाद, अक्सर टूट जा रही थी। इस वजह से कई बार अशोक के हाथ और कंधे में चोट भी लगी थी। अगले दो सालों तक अशोक डिवाइस में बदलाव लाते रहे।

उन्होंने बताया, “मैंने लोहे की छड़ों को मोड़ने के लिए इसके एंगल में सुधार किया। काटने वाले तार को सपोर्ट देने के लिए एक मेटल का टुकड़ा लगाया। अपने अब तक के अनुभव से मैं जान गया था कि सात इंची की तार ज्यादा बेहतर तरीके से काम कर रही है।”

काम आया अनुभव

बतौर मशीनिस्ट कई सालों तक काम करने का उनका अनुभव यहां काम आ गया। डिवाइस का वजन ज्यादा न हो जाए इसके लिए मेटल की बजाय बांस का हैंडल लगाया। वह कहते हैं, “इससे काफी हद तक कमियों को दूर करने में मदद मिली। पहले जहां एक एकड़ जमीन पर काम करने के लिए 10 मज़दूरों की जरूरत पड़ती थी और लागत 3000 रुपये प्रतिदिन थी। वहीं, अब यह काम एक अकेला व्यक्ति दो दिन में करीब 300 रुपये में कर सकता है।”

इसे चलाने के लिए किसी भी तरह के फ्यूल या फिर कल पुर्जों की जरूरत नहीं होती है और न ही ज्यादा रखरखाव की।

कीमत महज 400 रुपये

उन्होंने पहली बार सोशल मीडिया पर डिवाइस की वीडियो और तस्वीरें साझा कीं, तो उनके पास किसानों के अनगिनत सवाल आने लगे। उन्होंने बताया, “मैंने लगभग 400 डिवाइस बनाकर आसपास के किसानों को दिए थे। जब इसकी मांग ज्यादा हो गई, तो मैंने एक स्थानीय वर्कशॉप का सहयोग लेना शुरू कर दिया। डिवाइस की कीमत 400 रुपये रखी गई है, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इसका लाभ उठा सकें।”

सतारा के किसान सतीश मुंजे इस डिवाइस को इस्तेमाल कर रहे हैं। वह कहते है, “मैं पहले अपने ढाई एकड़ खेत से खरपतवार हटाने के लिए मजदूरों पर 40,000 रुपये खर्च करता था। इस डिवाइस से मेरी लेबर कोस्ट कम हो गई है। अब ये सारा काम सिर्फ एक मजदूर 5000 रुपये में कर देता है।”

यहां देखें वीडियोः

अब तक बनाए पांच हजार डिवाइस 

अशोक का दावा है कि वह अब तक करीब 5000 डिवाइस बेच चुके हैं। वह बताते हैं, “औरंगाबाद कोल्हापुर, पंढरपुर, यवतमाल और अन्य कई राज्यों के किसान मुझसे डिवाइस के बारे में पूछताछ कर रहे हैं। हाल ही में, मुझे पंजाब, कर्नाटक और मध्यप्रदेश से भी ऑर्डर मिले हैं। अशोक का मकसद इस डिवाइस को बनाने की तकनीक और खेती की समस्याओं के समाधान के साथ किसानों के लिए कार्यशाला आयोजित करना है।”

वह कहते हैं “मेरे इस देसी जुगाड़ से हजारों किसानों को फायदा पहुंच रहा है। उनका पैसा, समय और मेहनत को बचाने में मैं एक हद तक कामयाब रहा हूं।”

अगर आप डिवाइस ऑर्डर करना चाहते हैं, तो इस नंबर पर कॉल करें 9527949010 

मूल लेखः हिमांशु नित्नावरे

संपादनः अर्चना दुबे

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