उत्तर कर्नाटक के धारवाड़ शहर की खासियत, यहाँ की उपजाऊ शुष्क कृषि भूमि है। यह शहर ज्वार, कपास, कुसुम के साथ-साथ बैंगन, मिर्च, टमाटर, मेथी, सोआ जैसी सब्जियों और आम, अमरूद, सपोटा आदि फलों के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र का तापमान, इन फसलों के अनुकूल है। लेकिन 2019 के मध्य से हालात बदलने लगे हैं। इन फसलों के अलावा, कर्नाटक के किसान अब स्ट्रॉबेरी उगाने (Grow Strawberries) में भी अपने हाथ आज़मा रहे हैं।
पिछले दो मौसम से, इस क्षेत्र में एक नये फल ‘स्ट्रॉबेरी’ की खेती की जा रही है और किसान इसकी अच्छी उपज पाने में सफल भी हो रहे हैं। जैसे ही आप धारवाड़ शहर के व्यस्त सुभाष रोड या हुबली शहर की सड़कों पर चलेंगे, आप देखेंगे कि सड़कों के दोनों तरफ, विक्रेता छोटे-छोटे बक्सों में स्ट्रॉबेरी बेच रहे हैं। बुजुर्ग अक्सर इसे विदेशी फल समझ कर अनदेखा कर देते हैं, जबकि युवा इसे बड़े चाव से खाना पसंद करते हैं।
जब आप धारवाड़ शहर से आगे जाते हैं, विशेष रूप से घुमावदार संकरी सड़कों पर बने गमनगट्टी (Gamangatti), बी हुलीकट्टी (B Hulikatti), हुलांबी (Hullambi), हिंड्ससगेरी (Hindssageri), तुमारीकोप्पा (Tumarikoppa) जैसे छोटे गांवों को पार करते हैं, आप एक-आध एकड़ के प्लॉट देखेंगे, जो नीले प्लास्टिक शीट की पट्टियों से ढके हुए हैं। ये गीली घास की शीट होती हैं, जिन पर जगह-जगह पर छेद बनाए जाते हैं। इन छेद से छोटे हरे पत्तेदार झाड़ियाँ निकलती हैं और उनमें ही दिल के आकार की लाल-लाल स्ट्रॉबेरी निकलती हैं।
बेंगलुरू शहर के पास चिक्काबल्लापुर (Chikkaballapur), राजनुकुंटे (Rajanukunte) जैसे स्थान पहले केवल अंगूर तथा अनाज उगाने या रेशम के कीड़ों की खेती करने के लिए जाने जाते थे, अब वहाँ भी धीरे-धीरे स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू हो गई है। वहाँ के किसान बिगबास्केट, रिलायंस आदि बड़े मार्केटिंग समूहों को भी इनकी आपूर्ति कर रहे हैं।
प्रयोग करने वाले किसान
पारंपरिक किसानों की पुरानी पीढ़ी ने इस इलाके में ट्रॉपिकल (उष्णकटिबंधीय) फल उगाने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। यहाँ हमेशा बाजरा और सब्जियां ही उगाई जाती थी। यह लाल, रसीला, नाजुक और मौसम के प्रति संवेदनशील फल, कुछ समय पहले तक एक विदेशी फल ही माना जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है।
ऐसा नहीं है कि एक साल में ही कर्नाटक, स्ट्रॉबेरी उगाने के मामले में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल या राजस्थान जैसे राज्यों के बराबर पहुँच गया है। लेकिन प्रयोग करने के इच्छुक युवा किसानों को देख कर, ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में कर्नाटक स्ट्रॉबेरी हब बन सकता है।
इन दिनों, युवा किसान (जिनमें से कई चौथी या पांचवीं पीढ़ी के किसान हैं) खेती में खूब नए प्रयोग कर रहे हैं। वे नई फसलों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। यहाँ के किसान अब लाल गोभी, ड्रैगन फ्रूट, ब्रोकली, ज़ुकीनी, आईसबर्ग लैटस, लाल-पीली शिमला मिर्च और अन्य विदेशी फल-सब्जियों की खेती में हाथ आजमा रहे हैं।
धारवाड़ के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय में, गृह विज्ञान विभाग की वैज्ञानिक गीता तमगले कहती हैं, “ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि किसानों का इन फसलों की तरफ झुकाव सामान्य हो जायेगा।” लेकिन कुछ किसानों ने इसे शुरू किया है और वे फलों के अतिरिक्त उत्पादन से जैम तैयार करने के लिए, हमारे विभाग से संपर्क भी कर रहे हैं।”
इंजीनियरिंग कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल और धारवाड़ जिले के कलघटगी तालुका (Kalghatgi taluka) के गाँव हिंड्ससगेरी में चार एकड़ से अधिक खेतों के मालिक, डॉ प्रकाश हुबली कहते हैं, “नई फसलों के साथ इस प्रयोग का कारण यह है कि अधिक से अधिक शिक्षित लोग खेती में शामिल हो रहे हैं और जैसा कि वे समाचार, सूचना, सोशल मीडिया और यूट्यूब चैनलों के संपर्क में हैं, वे अपने खेत के कुछ हिस्सों में नए-नए फसलों को लेकर प्रयोग करना चाहते हैं।”
डॉ प्रकाश एकीकृत खेती (integrated farming) का अभ्यास करते हैं। हालांकि, इस बार उनकी स्ट्रॉबेरी की फसल को कीटों ने काफी नुकसान पहुंचाया है, लेकिन वह विदेशी सब्जियों, विशेष रूप से ज़ुकीनी की अपनी फसल से काफी खुश है।
नई सुबह
एक अन्य कारक, जो फल उपजाने में मददगार साबित हुआ, वह है बड़े नाम वाले उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों की बढ़ती संख्या। IIT धारवाड़ 2016 में स्थापित किया गया था। आज, इस क्षेत्र में एक सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क, टाटा मोटर्स, टेल्को और कई बड़ी कंपनियां हैं। इन सभी गतिविधियों के साथ, धारवाड़-हुबली शहर बाहरी दुनिया की जीवनशैली और खान-पान की आदतों से जुड़ रहा है।
धारवाड़-हुबली रोड पर कैंसर अस्पताल के पास, गमनगट्टी क्षेत्र के 25 वर्षीय रवि मनगुंडी कहते हैं, “महामारी का समय था और मुझे एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद भी नौकरी नहीं मिली। फिर मैंने हमारे परिवार के खेत की लगभग आधा एकड़ भूमि में, स्ट्रॉबेरी उगाने का सोचा। हालांकि, इससे पहले वहाँ केवल मक्का और सोयाबिन आदि की खेती होती थी।”
उन्होंने सितंबर 2020 के अंत में केवल छह हजार स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए थे और दिसंबर तक वह हफ्ते में तीन दिन 60 किलोग्राम/दिन फल की कटाई कर रहे थे। अब, मौसम के अंत में, यह आंकड़ा 10-12 किलो तक पहुँच गया है लेकिन, रवि अपने प्रयोग से बहुत खुश हैं।
2020 में स्ट्रॉबेरी के केवल 6,500 पौधे लगाने और 700 किलोग्राम से अधिक फल की कटाई करने की सफलता ने कलघटगी तालुका के बी हुलीकट्टी गाँव में एक ज्वेलरी दुकान के मालिक 40 वर्षीय मंजूनाथ हबीब को काफी प्रोत्साहित किया है, वे अब बड़े स्तर पर इसकी खेती करना चाहते हैं।
वह कहते हैं, “इस साल मैंने केवल 10 गुंठा जमीन का इस्तेमाल किया है। अगले साल मैं इसे दो एकड़ तक विस्तार करने की योजना बना रहा हूँ और ब्रोकली, लाल गोभी आदि भी उगाना चाहता हूँ। इसके साथ ही, बोरवेल की मदद से हमारे खेत को ड्रिप तकनीक से सिंचाई करना आसान होगा।”
डॉ. प्रकाश के अनुसार, इस क्षेत्र में इन उत्पादों (विदेशी फल-सब्जियां) की ‘मार्केटिंग’ एक समस्या है। वह बताते हैं, “हमें अपनी उपज की ट्रांसपोर्टिंग के लिए फ्रीजर कंटेनरों के बारे में सोचना होगा, नहीं तो महाबलेश्वर से हमारे नजदीकी स्ट्रॉबेरी उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल होगा।”
लेकिन बेंगलुरु के पास चिक्काबल्लापुर की माँ-बेटों की तिकड़ी के लिए मार्केटिंग कोई समस्या नहीं है। उन्होंने शहर में पास के बिगबास्केट और रिलायंस जैसे रिटेल विक्रेताओं के साथ करार किया है। सबसे ज्यादा मांग के वक्त पर उन्होंने, प्रतिदिन 80 किलोग्राम से 400 किलोग्राम से अधिक स्ट्रॉबेरी फल की कटाई की (भूमि के आकार और उनके द्वारा लगाए गए पौधों की संख्या के आधार पर) जो अब मौसम के अंत में रोज़ाना लगभग 40 किलोग्राम हो गया है।
अपनी माँ रथनम्मा के साथ, 25 वर्षीय स्मिथन और 27 साल के धनंजय, नई फसलों की खेती में अपने हाथ आजमा रहे हैं। मेडिकल प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाले स्मिथन कहते हैं, “कुछ विदेशी सब्जियों के अलावा हम मलबेरी और रोज़ एप्पल भी लगाना चाहते हैं। लेकिन सबसे पहले हम कलघटगी में हुलांबी (Hullambi) के शशिधर गोरावर के साथ एक और कार्यशाला में भाग लेंगे। वह हमारे मेंटर हैं।”
राज्य में इस ट्रेंड की शुरुआत करने वाले, शशिधर और उनकी पत्नी हैं। हंसते हुए शशिधर बताते हैं, “यह लाल रंग का आकर्षण है!”
शशिधर, उनकी पत्नी और बेटे ने सफलतापूर्वक गोल्डन बेरी और लाल गोभी भी उगाई है। अब वह मलबेरी उगाने की भी सोच रहे हैं।
गाँव में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित उनका खेत, महाबलेश्वर की जलवायु परिस्थितियों से मेल खाता है। महाबलेश्वर में दो दशक से अधिक समय पहले निर्माण स्थल पर और फिर स्ट्रॉबेरी फार्मों पर काम करने के बाद, इस दंपति ने पूरी तकनीक में महारत हासिल की।
कैलिफोर्निया में स्ट्रॉबेरी पौधों के मुख्य आपूर्तिकर्ताओं से संपर्क करने के बाद, शशिधर के परिवार ने हुलंबी में एक खेत लिया। हमने जितने भी स्ट्रॉबेरी उगाने वाले से बात की उन्होंने बताया कि वे पौधे शशिधर से ही लेते हैं। हर मौसम में नए पौधे लगाने की ज़रुरत होती है। यह दंपति, उन किसानों के लिए मेंटर हैं, जो इस विदेशी फल को पहली बार लगाने जा रहे हैं। जो भी इनसे स्ट्रॉबेरी के पौधे खरीदते हैं, उन्हें शशिधर द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में हिस्सा लेने का मौका मिलता है। इसके अलावा, शशिधर लोगों के साथ उनके खेतों में भी जाते हैं और पौधों को लगाने और देखभाल में मदद करते हैं। साथ ही, वह उन्हें उनकी उपज को बाजार दिलाने में भी सहायता करते हैं।
हमें स्वादिष्ट गोल्डन बेरी का स्वाद चखाते हुए ज्योति बताती हैं, “महामारी ने हमारी बिक्री के लिए बड़ी समस्याएं खड़ी कर दीं। इसलिए, हमने धारवाड़ के ‘कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय’ के गृह विज्ञान विभाग से संपर्क किया और उन्होंने हमें स्ट्रॉबेरी जैम ही नहीं बल्कि गोल्डन बेरी जैम बनाने और बोतलों में पैक कराने में भी मदद की।“
शशिधर का दावा है कि स्ट्रॉबेरी उगाने की तकनीक सीखने के लिए, लगभग डेढ़ हजार से दो हजार किसान पहले से ही उनके संपर्क में हैं। यदि वे सभी किसान स्ट्रॉबेरी उगाना शुरू करते हैं और फसल उगाने में सफल होते हैं तो यह दशक में कर्नाटक राज्य में खेती की स्थिति बदल सकती है।
मूल लेख- सुरेखा कडप्पा-बोस
संपादन- जी एन झा
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