बेटे की सोच ने बनाया खेती को ब्रांड, 10 लाख से ज्यादा हुआ टर्नओवर

Uttarakhand Farmer Success Story

उत्तराखंड के कौसानी में रहने वाले कार्तिक भट्ट और उनके पिता, भुवन मोहन भट्ट, जैविक तरीकों से खेती कर, अपनी उपज 'पहाड़वाला' नाम से, देश के अलग-अलग कोनों में ग्राहकों तक पहुँचा रहे हैं।

“पहाड़ का दाना-पानी जिसे लग जाता है, वह जीवन भर स्वस्थ रहता है। मैंने हमेशा अपने बड़े-बुजुर्गों से यह बात सुनी थी। लेकिन, सही मायनों में इसका अर्थ मुझे तब समझ में आया, जब मैं पढ़ाई करने के लिए दिल्ली गया। वहां, मैंने देखा कि पहाड़ों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी लोग शुद्ध और स्वच्छ खाने का महत्व समझते हैं।” यह कहना है 25 वर्षीय कार्तिक भट्ट का। 

उत्तराखंड के कौसानी में रहने वाले कार्तिक और उनके पिता, भुवन मोहन भट्ट (57) जैविक तरीकों से खेती करते हैं। वे अपनी खेती की उपज को ‘पहाड़वाला‘ ब्रांड नाम से, देश के अलग-अलग कोनों में ग्राहकों तक पहुँचा रहे हैं। हालांकि, भुवन मोहन भट्ट कभी नहीं चाहते थे कि उनका बेटा खेती करे। 

वह कार्तिक को किसी अच्छे प्रशासनिक पद पर काम करते हुए देखना चाहते थे। कार्तिक की योजना भी यही थी। इसलिए, उन्होंने 2016 में इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद, सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी थी। लेकिन, शायद उनकी मंजिल खेती की दुनिया थी। यही वजह है कि आज वह अपने पिता के साथ खेती कर रहे हैं। 

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पिता को खेती को बढ़ाया आगे

कार्तिक ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने दिल्ली एनसीआर के एक कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। पहाड़ों से निकलकर जब मैं दिल्ली जैसे बड़े शहर गया, तो देखा कि लोग पहाड़ी लोगों का कितना सम्मान करते हैं। मैं जब भी छुट्टी में घर जाता, तो दिल्ली में रहने वाले मेरे कुछ रिश्तेदार व आसपास के कुछ लोग, अपने लिए कुछ पहाड़ी चीजें मंगाने के लिए, मुझे बड़ी सी सूची थमा देते थे। उसी वक्त मुझे यह बात समझ में आ गई थी कि पहाड़ों के किसानों के लिए बड़े शहरों में भी मौके हैं। बस जरूरत है, तो सिर्फ महानगरों तक पहुँचने की।”

खेती को बनाया अपना ब्रांड: 

भुवन के पास लगभग एक हेक्टेयर जमीन है। लेकिन, खेती के लिए वह इस पूरी जमीन का इस्तेमाल नहीं करते हैं। उन्होंने बताया, “मेरे पिताजी ने बरसों पहले कौसानी में घर और जमीन खरीदी थी। हमारा यह घर लगभग 100 साल पुराना है। मैं कानपुर में बतौर टेक्सटाइल इंजीनियर काम कर रहा था। लेकिन, 2003 में कपड़ा मिल बंद हो जाने की वजह से मैं घर लौट आया। इसके बाद, मैंने सोचा कि पहाड़ों में रहते हुए खेती शुरू की जाए।” 

कार्तिक अपने पिता के साथ लेमनग्रास, तुलसी, रोजमेरी, हल्दी, अदरक, तिमूर (Sichuan pepper) जैसी फसलें उगाते हैं। इनके साथ-साथ वह कुमाऊंनी राजमा की भी खेती करते हैं। उन्होंने बताया, “इन मौसमी फसलों के अलावा, बेर, नाशपाती, खुबानी, आड़ू, संतरा, माल्टा, नींबू और अखरोट जैसे फलों के भी पेड़ हैं। साथ ही, हम मधुमक्खी पालन भी करते हैं।” 

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मधुमक्खी पालन कर बनाते हैं तीन तरह के शहद

उनके पास लगभग 250 बी बॉक्स हैं और मधुमक्खी पालन के लिए, वह कॉर्बेट रेंज के बागानों में जाते हैं। जहाँ वह तीन-चार तरह के शहद बनाते हैं- लीची शहद, सरसों शहद और यूकेलिप्टस शहद। भुवन भट्ट बताते हैं कि पहले वह स्थानीय दुकानों पर ही अपनी उपज को देते थे और ज्यादातर टूरिस्ट सीजन पर निर्भर रहते थे। लगभग 16-17 सालों तक उनका दायरा, सिर्फ कौसानी और आसपास के शहरों तक ही सिमित रहा। लेकिन, कार्तिक की एक सोच ने तस्वीर को बिल्कुल बदल दिया और आज उनकी उपज दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहरों तक पहुँच रही है। 

कार्तिक कहते हैं, “जब मैं सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था, तब मुझे भारत की भौगोलिक स्थिति के बारे में विस्तार से पढ़ने का मौका मिला। इस दौरान, मुझे कृषि से संबंधित ढेर सारी जानकारियाँ मिली। इसके बाद, जब मैंने खेती शुरू करने का निर्णय लिया, तो सबसे पहले मैंने पैकेजिंग और मार्केटिंग के बारे में जाना। दरअसल, किसानों को इन सबके बारे में जानकारी रखनी चाहिए।” 

शुरुआत में कार्तिक ने अपनी कुछ उपज की खूबसूरत सी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट की। उन्हें अपनी पोस्ट पर अच्छी प्रतिक्रिया मिली और लोग उनसे संपर्क करने लगे। वह कहते हैं कि उन्होंने छोटे स्तर पर शुरुआत की थी और धीरे-धीरे जब ऑर्डर बढ़ने लगे, तो उन्होंने एक व्यवस्थित रूप से काम करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी उपज की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग शुरू की। आज वह 20 से ज्यादा तरह के खाद्य उत्पाद लोगों तक पहुँचा रहे हैं। जिनमें शहद, पहाड़ी नमक, हर्ब्स, राजमा, दाल, हर्बल चाय, जैम, चटनी, जूस और स्क्वाश आदि शामिल हैं। 

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बनाते हैं 20 से ज्यादा उत्पाद

करते हैं दूसरे किसानों की मदद: 

कार्तिक ने अपने साथ-साथ, दूसरे पहाड़ी किसानों की भी मदद की। वह कहते हैं कि उनके पिता पहले से ही, कई किसानों के साथ मिलकर स्थानीय तौर पर काम कर रहे थे। ये सभी किसान जैविक तरीकों से फसलें उगाते हैं और इनकी उपज की गुणवत्ता का उन्हें पूरा भरोसा है। इसलिए उन्होंने ग्राहकों की मांग को देखते हुए, दूसरे किसानों से भी कुछ चीजें जैसे- मुनस्‍यारी राजमा, लाल चावल, रागी, जंगली जामुन का शहद, कैममाइल आदि खरीदना शुरू किया। ‘पहाड़वाला’ के जरिए वह सीधे 14 किसानों से जुड़े हुए हैं। 

ये किसान पहले अपनी फसल को बेचने के लिए, मंडी या फिर टूरिस्ट सीजन पर निर्भर थे। लेकिन, अब उन्हें मार्केटिंग की कोई चिंता नहीं रहती है। मुनस्‍यारी, पिथौरागढ़ के रहने वाले किसान गणेश तोम्क्याल कहते हैं कि वह मुनस्‍यारी राजमा की खेती करते हैं। पहले उन्हें इसकी बिक्री करने में काफी परेशानी आती थी। लेकिन अब उनकी सारी उपज, कार्तिक खरीद लेते हैं और वह भी उचित दाम पर।

वह कहते हैं, “इस बार मेरे खेत से लगभग 400 किलो मुनस्‍यारी राजमा का उत्पादन हुआ और कार्तिक जी ने मुझसे सारी उपज खरीद ली। उनकी वजह से हमें हमारी मेहनत का सही दाम मिल रहा है। हम हमेशा से जैविक खेती कर रहे हैं। लेकिन, इससे पहले कभी भी हमें इतना महत्व नहीं मिला। अब जब लोग बताते हैं कि उन्हें राजमा पसंद आ रहा है, तो बहुत ख़ुशी होती है।”

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मिलते हैं 200 से ज्यादा ऑर्डर

कार्तिक कहते हैं कि उन्हें हर महीने लगभग 200 ऑर्डर मिलते हैं और लगभग तीन हजार ग्राहक उनसे जुड़े हुए हैं। दिल्ली में रहने वाले एक इंजीनियर शालीन भाभू कहते हैं, “मैं पिछले एक साल से कार्तिक जी से खाद्य उत्पाद खरीद रहा हूँ। शुरुआत में, मैंने उनसे शहद मंगवाया था, लेकिन अब मैं राजमा, दालें, पहाड़ी नमक आदि, लगभग सबकुछ उनसे ही मंगवाता हूँ। उनसे चीजें खरीदने का सबसे बड़ा कारण है, उनके खाद्य उत्पाद की गुणवत्ता।” 

फिलहाल, कार्तिक सिर्फ खेती के क्षेत्र में काम कर रहे हैं और उनका सालाना टर्नओवर दस लाख रुपए से ज्यादा है। कार्तिक के पिता भुवन भट्ट कहते हैं, “सच कहूँ तो मुझे बिल्कुल भी अनुमान नहीं था कि एक दिन हमारी मेहनत इस तरह से रंग लाएगी। पहले हर महीने मुश्किल से 40-50 हजार रुपए की कमाई होती थी, लेकिन आज हम लगभग हर महीने डेढ़ लाख रुपए कमा लेते हैं। कौसानी और हल्द्वानी में हमारे पैकेजिंग सेंटर हैं, जहाँ से सभी चीजें पैक होकर, ग्राहकों के लिए भेजी जाती हैं।” 

अपनी आगे की योजना के बारे में कार्तिक कहते हैं, “मैं भविष्य में पहाड़ों की हस्तशिल्प कला को लेकर काम करूँगा। मैं कारीगरों और कलाकरों को एक मंच देना चाहता हूँ। लेकिन, हमें पहले अपने खेती के काम को एक बड़े स्तर तक पहुँचाना है, जिसके बाद ही हम आर्ट एंड क्राफ्ट पर ध्यान देंगे। इसके अलावा, मैं 100 साल पुराने अपने घर को होमस्टे में बदलना चाहता हूँ, ताकि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बने। लोगों से मेरी बस यही अपील है कि जितना हो सके किसानों तथा कारीगरों से सीधा जुड़ें और उन्हें उनकी मेहनत का सही दाम दें।” 

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संपादन- जी एन झा

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