मुसलमानों के रहबर-ए-आज़म और हिन्दुओं के दीनबंधु, जिनकी वजह से बने किसानों के हित में कानून!

मुसलमानों के रहबर-ए-आज़म और हिन्दुओं के दीनबंधु, सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर 1881 में झज्जर के छोटे से गाँव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण किसान परिवार में हुआ। उन्होंने वकालत की डीग्री ली। ताउम्र उन्होंने किसानों और गरीबों के लिए काम किया। 9 जनवरी 1945 को उनका निधन हुआ।

“किसान को लोग अन्नदाता तो कहते हैं, लेकिन यह कोई नहीं देखता कि वह अन्न खाता भी है या नहीं। जो कमाता है वही भूखा रहे यह दुनिया का सबसे बड़ा आश्‍चर्य है।”

किसानों के रहबर, सर छोटू राम के इन चंद शब्दों ने इतिहास के पन्नों में किसानों को न केवल एक महत्वपूर्ण स्थान दिया बल्कि उनकी आवाज़ को बुलंदी भी दी। शायद उनकी इसी बुलंदी की वजह से आज भी सर छोटूराम को किसानों का मसीहा कहा जाता है।

एक किसान का बेटा और देश के किसानों के हितों का रखवाला, जिसके लिए गरीब और जरुरतमन्द किसानों की  भलाई हर एक राजनीति, धर्म और जात-पात से ऊपर थी; सर छोटू राम बस आम किसानों के थे।

जितना मान उन्हें रोहतक में हिन्दू किसानों से मिला उतनी ही इज्ज़त उन्हें लाहौर के मुसलमान किसानों ने बख़्शी।

दीनबंधु सर छोटूराम की प्रतिमा

पिता के अपमान ने बोया क्रांति का बीज!

मुसलमानों के रहबर-ए-आज़म और हिन्दुओं के दीनबंधु सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर 1881 में झज्जर के छोटे से गाँव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण किसान परिवार में हुआ (झज्जर तब रोहतक जिले का ही अंग था)। उस समय रोहतक पंजाब का भाग था। उनका असली नाम राम रिछपाल था। अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे इसलिए सारे परिवार के लोग इन्हें छोटू कहकर पुकारते थे।

स्कूल रजिस्टर में भी इनका नाम छोटू राम ही लिखा दिया गया और बाद में, ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा जी रामरत्‍न के पास कुछ बंजर जमीन थी, जिसपर उनके पिता, श्री सुखीराम किसानी करते पर कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे। करते भी क्या, उनके परिवार को किसानी के अलावा और किसी चीज़ का सहारा नहीं था।

छोटू राम की प्रारम्भिक शिक्षा तो गाँव के पास के स्कूल से हो गयी। पर वे आगे भी पढ़ना चाहते थे। इसलिए उनके पिता उनकी आगे की पढ़ाई के लिए साहूकार से कर्जा मांगने गये। पर वहां साहूकार ने उनका बहुत अपमान किया।

अपने पिता के इस अपमान ने बालक छोटू राम के कोमल मन में विद्रोह के बीज बो दिए थे।

किशोरावस्था की फोटो

उन्होंने एक इसाई मिशनरी स्कूल में दाखिला ले लिया, जहाँ से उनके जीवन की पहली क्रांति की शुरुआत हुई। उन्होंने अन्य छात्रों के साथ मिलकर स्कूल के हॉस्टल के वार्डन के ख़िलाफ़ हड़ताल की, जिसकी वजह से स्कूल में उन्हें ‘जनरल रोबर्ट’ के नाम से जाना जाने लगा। अब तो ‘छोटूराम’ हर अन्याय के विरोध में खड़े होने का नाम बन था।

साल 1905 में उन्होंने दिल्ली के सैंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की। आर्थिक हालातों के चलते उन्हें मास्टर्स की डिग्री छोड़नी पड़ी। उन्होंने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं पर साल 1907 तक अंग्रेजी के हिन्दुस्तान समाचारपत्र का संपादन किया। इसके बाद वे आगरा में वकालत की डिग्री करने चले गये।

वकालत को दिए नए आयाम 

साल 1911 में इन्होंने वकालत की डिग्री प्राप्‍त कर ली और 1912 से चौधरी लालचंद के साथ वकालत करने लगे। उसी साल उन्होंने जाट सभा का भी गठन किया। साथ ही अनेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जिसमें “जाट आर्य-वैदिक संस्कृत हाई स्कूल रोहतक” प्रमुख है।

जाट कुमार सभा लाहौर

वकालत में भी उन्होंने नए आयाम जोड़े। उन्होंने झूठे मुकदमे न लेना, बेईमानी से दूर रहना, गरीबों को निःशुल्क कानूनी सलाह देना, मुव्वकिलों के साथ सद्‍व्यवहार करना आदि सिद्धांतों को अपने वकालती जीवन का आदर्श बनाया।

इन्हीं सिद्धान्तों का पालन करके केवल पेशे में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में चौधरी साहब बहुत ऊंचे उठ गये थे। सर छोटूराम देश में किसानों की दुर्दशा से भली-भांति परिचित थे। इसलिए उन्होंने साल 1915 में ‘जाट-गजट’ नामक अख़बार शुरू किया। इसके माध्यम से उन्होंने ग्रामीण जनजीवन का उत्थान और साहूकारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण पर क्रांतिकारी लेख लिखे।

उन्होंने राष्ट्र के स्वाधीनता संग्राम में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वे अंग्रेजी अफसरों के अत्याचारों के खिलाफ़ न तो बोलने से डरते थे और न ही लिखने से। पूरे देश में उनकी शख़्सियत के चर्चे होने लगे।

साल 1937 में पंजाब के प्रोवेंशियल असेंबली चुनावों में उनकी पार्टी को जीत मिली और वे विकास व राजस्व मंत्री बन गए। इसके बाद लोग उन्हें ‘राव बहादुर’ कहने लगे।

सर छोटूराम

किसान आन्दोलन 

देश के किसानों को एक करने के लिए उन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया, जिसे जमींदार लीग के नाम से जाना गया। किसानों के लिए उनके अभियान और आंदोलनों के चलते छोटूराम भारतीय राजनीति का प्रमुख स्तंभ बन गये थे। उनकी कलम जब भी चलती, तो भारतीयों के साथ-साथ ब्रिटिश राज को भी झकझोर कर रख देती। लोगों के बीच उनके बढ़ते कद को देख, एक बार रोहतक के ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर ने अंग्रेजी सरकार से सर छोटूराम को देश-निकाला देने का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव पर जब चर्चा हुई तो एक भी आवाज़ डिप्टी कमिश्नर के पक्ष में नहीं आई। तत्कालीन पंजाब सरकार ने अंग्रेज हुक्मरानों को बताया कि चौधरी छोटू राम अपने आप में एक क्रांति हैं। अगर उन्हें देश निकाला मिला तो फिर से देश में क्रांति होगी और इस बार हर एक किसान चौधरी छोटूराम बन जायेगा। सर छोटूराम के देश-निकाले की बात तो रद्द हो ही गयी पर साथ में उस कमिश्नर को उनसे माफ़ी भी मांगनी पड़ी।

किसानों के हितों के लिए लिखे ‘ठग बाज़ार की सैर’ और ‘बेचारा किसान’ जैसे उनके कुल 17 लेख जाट गजट में छपे, जिन्होंने किसान उत्थान के दरवाजें खोले।

उन पर लिखी गयीं किताबें

किसानों के हित में बनाये कानून 

सर छोटूराम ने ऐसे कई समाज-सुधारक कानून पारित करवाए, जिससे किसानों को शोषण से मुक्ति मिली। इनमें शामिल हैं, पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस (1934), द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट (1936), साहूकार पंजीकरण एक्ट- 1938, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट-1938, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम -1938, व्यवसाय श्रमिक अधिनियम- 1940 और कर्जा माफी अधिनियम- 1934 कानून। इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे।

बताया जाता है कि कर्जा माफी अधिनियम न केवल किसानों के लिए था बल्कि लाहौर हाईकोर्ट के एक जज को किसानों के मसीहा का जवाब था। दरअसल, एक बार कर्जें में डूबे किसान ने लाहौर हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश से कहा कि वह बहुत गरीब है और इसलिए अगर हो सके तो उसकी सम्पत्ति की नीलामी न की जाये। तब न्यायाधीश ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि  छोटूराम नाम का आदमी है, वही ऐसे कानून बनाता है, उसके पास जाओ और कानून बनवा कर लाओ।

वह किसान बड़ी आस लेकर छोटूराम के पास आया और यह बात सुनाई । सर छोटू राम ने कानून में ऐसा संशोधन करवाया कि उस अदालत की सुनवाई पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया।

भाखड़ा-नंगल बांध भी सर छोटूराम की ही देन है। उन्होंने ही भाखड़ा बांध का प्रस्ताव रखा था पर सतलुज के पानी पर बिलासपुर के राजा का अधिकार था। तब सर छोटूराम ने ही बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। बाद में उनके इस प्रोजेक्ट को बाबा साहेब अम्बेडकर ने आगे बढ़ाया।

अंतिम यात्रा 

साल 1945 में 9 जनवरी को सर छोटूराम ने अपनी आखिरी सांस ली। वे स्वयं तो चले गये पर उनके लेख आज भी देश की अमूल्य विरासत है। किसानों के इस नेता ने जो लिखा वह आज भी देश और समाज की व्यवस्था पर लागू होता है। उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था,

“मैं राजा-नवाबों और हिन्दुस्तान की सभी प्रकार की सरकारों को कहता हूँ, कि वो किसान को इस कद्र तंग न करें कि वह उठ खड़ा हो….  दूसरे लोग जब सरकार से नाराज़ होते हैं तो कानून तोड़ते हैं, पर किसान जब नाराज़ होगा तो कानून ही नहीं तोड़ेगा, सरकार की पीठ भी तोड़ेगा।”

उनके सम्मान में जारी पोस्टल स्टैम्प

आज पूरे देश भर में उनके नाम पर कई संस्थानों और योजनाओं के नाम हैं। उनके पोते चौधरी बिरेंदर सिंह ने हरियाणा में उनके जन्म-स्थान पर उनकी एक 64 फीट लंबी प्रतिमा भी बनवाई है। भारत के इस महान धरती-पुत्र और दीनबंधु सर छोटूराम को द बेटर इंडिया का कोटि-कोटि नमन!

संपादन – मानबी कटोच


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