खुद खसखस उगाकर बना दिए 35 प्रोडक्ट, अब सालाना कमाते हैं 10 लाख रुपये

Vetiver Grass Farming

मलप्पुरम, केरल के रहने वाले किसान शलजी करूतेडत और उनकी पत्नी सिंधु, अपनी 10 एकड़ जमीन पर खसखस की जैविक खेती कर रहे हैं और अपने ब्रांड नाम ‘कल्याण हर्बल्स एंड फ़ूड प्रोडक्ट्स’ के तहत, शरबत, पाउडर और तेल जैसे उत्पाद बनाकर ग्राहकों तक पहुँचा रहे हैं।

सरकार और कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सामान्य फसलों के अलावा, अब बागवानी और औषधीय फसलों की खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। न सिर्फ दवाइयों बल्कि सौन्दर्य प्रसाधन या कॉस्मेटिक्स बनाने के लिए भी, औषधीय फसलों की मांग काफी है। इसलिए, अगर किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ, औषधीय फसलें जैसे – खसखस भी उगाएं (Vetiver Grass Farming) तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। औषधीय फसलों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीआईएमएपी) द्वारा ‘एरोमा मिशन‘ भी चलाया जा रहा है। 

इसके तहत, अलग-अलग राज्यों के किसानों को औषधीय खेती के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ, उनकी मदद भी की जा रही है। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे किसान दंपति से मिलवा रहे हैं, जो लगभग 18 वर्षों से मशहूर औषधीय फसल, खसखस की खेती (Vetiver Grass Farming) कर रहा है। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कुछ समय से, खुद अपनी उपज की प्रोसेसिंग करके, उत्पाद बनाना भी शुरू किया है। अपने उत्पादों को वे ‘कल्याण हर्बल्स एंड फ़ूड प्रोडक्ट्स’ ब्रांड नाम के अंतर्गत ग्राहकों तक पहुँचा रहे हैं। 

केरल के मलप्पुरम में पोन्नानी तालुका के रहने वाले 51 वर्षीय शलजी करूतेडत और उनकी 42 वर्षीया पत्नी सिंधु, अपनी 10 एकड़ जमीन पर खसखस की खेती (Vetiver Grass Farming) कर रहे हैं। खसखस को अंग्रेजी में वेटिवर (Vetiver) कहते हैं। यह एक ऐसी फसल है, जिसका प्रत्येक भाग आर्थिक रूप से उपयोगी होता है। खसखस के तेल का उपयोग महंगे इत्र, सुगंधित पदार्थ, सौंदर्य प्रसाधनों तथा दवाइयों में होता है। शलजी और सिंधु, खसखस के अलावा कई अन्य औषधीय जड़ी-बूटियों और मसालों की खेती भी करते हैं। 

Vetiver Grass Farming
शलजी करूतेडत और सिंधु

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “हम दोनों ही अर्थशास्त्र में ग्रैजुएट हैं। लेकिन पढ़ाई के बाद, हमने खेती को ही अपना पेशा बना लिया। हमारे इलाके में खसखस की खेती (Vetiver Grass Farming) काफी समय से हो रही है। इसके औषधीय और महकदार गुणों के कारण, इसकी काफी मांग है। हालांकि, कई बार हमें परेशानियां भी झेलनी पड़ती हैं, जैसे- उपज का दाम कम मिलता है, जबकि इसमें मेहनत काफी ज्यादा होती है। हम सिमित जमीन पर उपज लेते हैं और अगर उत्पादन ज्यादा न हो तो कंपनियां, दूसरे बड़े किसानों से इकट्ठी उपज खरीद लेती हैं। ऐसे में, उन्हें दूसरे खरीदार ढूंढने पड़ते हैं। साथ ही, लॉकडाउन के दौरान भी उपज को बाजारों तक पहुँचाना, हमारे लिए काफी मुश्किल रहा।” 

जैविक तरीकों से करते हैं खसखस की खेती 

शलजी बताते हैं कि उनके इलाके में लगभग 400 एकड़ जमीन पर खसखस की खेती (Vetiver Grass Farming) हो रही है। उनके पूर्वजों ने खसखस उगाना और अलग-अलग जगहों पर बेचना शुरू किया था। पहले खसखस बोने से लेकर इसकी कटाई तक, सभी काम हाथ से किए जाते थे। लेकिन इस दंपति ने कुछ सालों से, इसकी कटाई के लिए कृषि मशीनों का इस्तेमाल शुरू किया है। उनका कहना है कि वे जैविक तरीकों से खसखस उगाते हैं और इसे मशीन की मदद से कटाई करके, इससे उत्पाद बनाते हैं। 

शलजी ने बताया, “खसखस को फरवरी से लेकर अप्रैल के महीने तक बोया जाता है और इसकी कटाई दिसंबर से शुरू हो जाती है। इसे उगाने के लिए हम जैविक तरीकों का उपयोग करते हैं।” यह दंपति खेत और फसल को पोषण देने के लिए, गोबर की खाद के साथ-साथ, सरसों खली तथा मूंगफली खली आदि का प्रयोग करता है। उनका कहना है कि वह किसी भी तरह का रसायन, खेती में इस्तेमाल नहीं करते हैं। क्योंकि, बाजार में जैविक खसखस की मांग ज्यादा है। 

Vetiver Grass Farming
खसखस की खेती

वह आगे बताते हैं, “हम व्यापारिक स्तर पर खसखस उगाते हैं और देश के अलग-अलग राज्यों में इसकी आपूर्ति करते हैं। हम खासकर, आयुर्वेदिक और सौंदर्य प्रसाधन कंपनियों को इसकी आपूर्ति करते हैं। खसखस के अलावा हम सोंठ, एलोवेरा, कस्तूरी मंजल जैसी औषधीय फसलें भी ग्राहकों तक पहुंचा रहे हैं।” 

लॉकडाउन में शुरू की प्रोसेसिंग 

शलजी और सिंधु बताते हैं कि उनकी कंपनी कल्याण हर्बल्स एंड फ़ूड प्रोडक्ट्स, सूक्ष्म , लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के साथ पंजीकृत है। पिछले कई सालों से वह इस ब्रांड नाम के तहत, औषधीय जड़ी-बूटियां और मसाले बाजार तक पहुँचा रहे थे। लेकिन, पिछले दो सालों से उन्होंने खुद अपनी उपज को प्रोसेस करके, उत्पाद बनाने की योजना पर काम शुरू किया है। इस बारे में शलजी कहते हैं, “प्रोसेसिंग का ख्याल हमें बाजार में खसखस की घटती कीमतों के कारण आया। यह सच है कि खसखस की दवाइयों और अन्य उत्पादों की काफी ज्यादा मांग है। लेकिन फिर भी किसानों को बाजार में, उस हिसाब से इसका मूल्य नहीं मिलता है।”

इसलिए, उन्होंने सोचा कि अगर वे अपनी फसल के उत्पाद खुद बनाएंगे तो सफलता की ज्यादा संभावना है। इसके लिए दंपति ने अपने स्तर पर प्रयास करना शुरू किया। लगातार प्रयासों के बाद आखिरकार, उन्हें लॉकडाउन के दौरान सफलता मिल ही गयी। आज उन्होंने अपने खेतों पर ही अपनी यूनिट लगाई है, जहाँ वे 35 तरह के उत्पाद बना रहे हैं। खसखस से वे शरबत, पाउडर, औषधीय तेल, हेल्थ ड्रिंक, टूथ पाउडर, बाथ पाउडर और बाथ स्क्रबर जैसे उत्पाद बना रहे हैं। 

Vetiver Grass Farming
शुरू की खसखस की प्रोसेसिंग

इनके अलावा, वे हल्दी पाउडर, एलोवेरा पाउडर, गुलाब की पत्तियों का पाउडर, मेंहदी पाउडर, इंडिगो पाउडर, आंवला पाउडर, आंवला शरबत जैसे उत्पाद भी बनाकर ग्राहकों तक पहुँचा रहे हैं। सिंधु बतातीं हैं कि उनके सभी उत्पाद बिना किसी रसायन तथा प्रिजर्वेटिव के बनाए जाते हैं। ये पूरी तरह से शुद्ध और जैविक हैं। 

उन्होंने बताया, “सबसे पहले खसखस को कटाई के बाद साफ किया जाता है। हर एक उत्पाद को बनाने की विधि अलग है जैसे- शरबत के लिए हम खसखस को उबालते हैं और फिर इससे शरबत बनता है। वहीं पाउडर बनाने के लिए खसखस को सुखाया जाता है। इको-फ्रेंडली स्क्रबर बनाने के लिए, खसखस की जड़ें काम आती हैं।” 

उनकी प्रोसेसिंग यूनिट से आज पाँच महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। साथ ही, उनका सालाना टर्नओवर 10 लाख रुपए से ज्यादा है। शलजी कहते हैं, “खसखस के क्षेत्र में अभी और भी संभावनाएं हैं, जरूरत है तो इस पर सही शोध होने की और किसानों को सही जानकारी मिलने की।” 

इसके अलावा, इस दंपति ने खसखस और एलोवेरा के पौधों की नर्सरी भी लगाई हुई है। नर्सरी से वह किसानों के लिए, पौध की आपूर्ति करते हैं। अगर आप उनसे इस बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो उन्हें kalyanherbalandfoodproducts@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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