आइए, आज हम आपकी मुलाकात एक ऐसे किसान से कराते हैं जो कवि भी हैं, जिन्होंने अपना जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया है। खेती-बाड़ी के साथ वह कवि रूप में कृषि की महत्ता का भी गुणगान करते हैं।
उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर स्थित जलालाबाद तहसील के गुरुगवाँ गाँव में कवि और किसान चंद्रपाल सिंह की पहचान एक ऐसे शख्स के रूप में है, जिसने पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने दम पर सागौन के साथ ही फलदार पेड़ों और औषधीय जड़ी-बूटियों से भरा जंगल उगा डाला।
इस दौर में जब हम सभी वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रहे हैं, उस दौर में वह लोगों को इम्युनिटी बढ़ाने में बेहद कारगर नीम गिलोय मुफ्त में उपलब्ध करा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सब्जियों की खेती के साथ ही लेमन ग्रास की प्रोसेसिंग से वह सालाना लाखों की कमाई भी कर रहे हैं।
अकेले शुरुआत की, परिवार साथ आया
चंद्रपाल ने द बेटर इंडिया को बताया, “यह बात 1985 के आसपास की है। उस वक्त पर्यावरण से पृथ्वी को पहुंच रही हानि की खबरें चर्चा में थी। ओजोन परत के क्षरण को लेकर भी वैज्ञानिक बहुत चिंता जता रहे थे। इसका एक बड़ा कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई भी थी। जंगल उगाने जैसा कोई लक्ष्य इस संबंध में निर्धारित नहीं किया था। लेकिन उसी समय मैंने यह तय कर लिया था कि बड़ी संख्या में पेड़ उगाने हैं। मैंने शुरुआत एक हेक्टेयर से की।”
चंद्रपाल कहते हैं कि शुरूआत में परिवार ने साथ नहीं दिया लेकिन बाद में सब संग हो गए। अब उनकी खेती की देखभाल उनके पुत्र, दो भाई, बच्चे और उनका परिवार मिल जुलकर करता है।
नर्सरी से लाए थे सागौन के पौधे
चंद्रपाल कहते हैं कि जलालाबाद में नई सरकारी नर्सरी खुली थी, वहीं से उन्होंने सागौन के पौधे लिए थे। उन्होंने कहा, “पर्यावरण की रक्षा का ध्येय मन में था, साथ ही परिवार के लाभ की भी चिंता थी। ऐसे में एक हेक्टेयर में सागौन के पौधे लगा दिए। इसके बाद नींबू, लीची, अनार, आंवला करौंदा भी लगाया। करौंदा को खेत के किनारे, जबकि गिलोय को बीच में उगाया। इसने जैविक बाड़ का काम कर फसल की रक्षा की।”
चंद्रपाल ने अपने खेत को प्रयोगशाला बना दिया है। खेत में विविध प्रजाति के पौधे हैं। उनके यहाँ आपको फलदार से लेकर औषधीय पौधे मिल जाएँगे। वह बताते हैं कि आज खेत में सागौन के करीब ढाई सौ बड़े पेड़ हैं और इससे दुगुने छोटे पेड़। साथ ही नींबू के दस बड़े पेड़, 50 छोटे पेड़, लीची के 20 और अनार के छह पेड़ हैं। इसके अलावा वह लौंग, पुत्रजीवा, हल्दी, जिमीकंद भी उगा रहे हैं। धान, गेहूँ, सरसों संग तोरई, ककड़ी खीरा, हरी मिर्च आदि की पैदावार भी उनके खेत में है।
लेमन ग्रास के तेल से भी कमाई
चंद्रपाल कहते हैं कि एक कृषि विशेषज्ञ ने उन्हें लेमनग्रास लगाने की सलाह दी थी, जिसके बाद ही उन्होंने खेत में कुछ-कुछ दूरी पर लेमन ग्रास को रोपा। निराई, गुड़ाई के पश्चात पौध तैयार होने पर इसे काटा और प्लांट में ले जाकर तेल निकलवाया। इस तेल की बिक्री से भी उन्हें अच्छी कमाई हुई। वह विविधतापूर्ण खेती को लाभ के लिए बेहतर मॉडल मानते हैं।
जहरमुक्त खेती की शुरूआत
चंद्रपाल ने जहर मुक्त खेती की ओर भी कदम बढ़ाया है। वह 20 बीघा जमीन में खेती कर रहे है, जिसमें से अपनी दो बीघा जमीन में उन्होंने धान, गेहूँ सरसों और आलू बोए हैं। वह इसे शून्य लागत प्राकृतिक खेती करार देते हैं। उनका कहना है लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है। अब धीरे धीरे वह भी इसकी ओर उन्मुख हो रहे हैं। उनकी तैयारी अब आम की विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाने की है।
सालाना 10 लाख के आसपास है लाभ
चंद्रपाल सिंह की खेती से शुद्ध आय सालाना करीब 10 लाख रुपए के आसपास हैं। उन्हें इस बात का मलाल भी है कि पढ़े-लिखे युवा डिग्री हाथ में आते ही नौकरी के लिए हाथ पैर मारने लगते हैं। उनका मानना है कि युवाओं को खेती की तरफ आना चाहिए। नियोजित तरीके से खेती की जाए तो यह मुनाफे का सौदा है। इस क्षेत्र में काम करके वह रोजगार सृजन में भी सक्षम होंगे।
प्रगतिशील किसान चंद्रपाल सिंह की मानें तो उन्होंने ऐसे पौधे भी लगाए, जिन्हें अमूमन उगाया नहीं जाता। जैसे-भटहर। इस पौधे की खासियत यह है कि यह अन्य पौधों को कीड़े से बचाता है और फसल की सुरक्षा भी करता है। इसी तरह उन्होंने अन्य कई ऐसे पौधे उगाए, जिनकी वजह से उनकी खेती की सुरक्षा संभव हुई है।
कोरोना काल में बने लोगों के मददगार
चंद्रपाल ने अपने खेत में अन्य औषधीय पौधों के साथ ही नीम गिलोय भी उत्पन्न किया है। कोरोना संक्रमण काल में गिलोय वटी को इम्युनिटी बढ़ाने में बेहद कारगर माना गया है। ऐसे में बड़ी संख्या में अन्य किसानों और ग्रामीणों ने उनके खेत से गिलोय का लाभ लिया। ईश्वर में अगाध आस्था रखने वाले चंद्रपाल इसे मानवता की सेवा और पुण्य का कार्य मानते हैं। वह बताते हैं कि अब उनकी तैयारियाँ सहजन, बहेड़ा, मूसली, शतावरी, अश्वगंधा, जैसे पौधों का बगीचा खड़ा करने की है। ये सारे औषधीय पौधे हैं और उनका कहना है कि ये सब लोगों के काम आने वाले हैं।
चंद्रपाल कामयाबी का सीधा और सच्चा बस एक ही मंत्र मानते हैं। उनके मुताबिक यदि कोई भी अपना काम ईमानदारी और मेहनत से करे तो उसे निश्चित रूप से सफलता मिलती है। किसान और कवि के तौर पर उनकी दिनचर्या बेहद व्यस्त रहती है। इसके बावजूद वह विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रों के विशेषज्ञों के संपर्क में रहते हैं, ताकि अपनी खेती को और तकनीकि संपन्न बना सकें। वह कुछ किसान संगठनों से भी जुड़े हैं, ताकि खेती संबंधी तकनीकी और जानकारी का आदान-प्रदान किया जा सके।
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