मध्य-प्रदेश में इंदौर के पास छापरी गाँव के रहने वाले 29 वर्षीय तथागत बारोड़ पिछले तीन सालों से जैविक खेती कर रहे हैं। तथागत के पिता डॉक्टर हैं और बाकी परिवार खेती से जुड़ा हुआ है। तथागत ने भी एनआईटी भोपाल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और फिर आईआईटी मुंबई से पोस्टग्रैजुएशन की। इन सबके बावजूद वह हमेशा गाँव से जुड़े रहे।
तथागत ने द बेटर इंडिया को बताया, ” मैंने ग्रैजुएशन के बाद एक साल का ब्रेक लिया और इस दौरान अलग-अलग जगहों की यात्रा की। गाँव से मेरा हमेशा से ही अटूट रिश्ता रहा है। घर-परिवार का ज़मीन से जुड़ाव देखकर लगा कि मुझे खेती में ही कुछ करना चाहिए। पर उस एक साल में मैंने कोई फैसला नहीं लिया। इसके बाद, मैंने मास्टर्स की तैयारी की और आईआईटी में दाखिला ले लिया।”
आईआईटी मुंबई में पढ़ते समय तथागत को काफी कुछ अलग सीखने और समझने का मौका मिला। वहां उन्होंने यह भी जाना कि ग्रामीण विकास सिर्फ कृषि से संभव नहीं है, हमें किसानों को और उनकी कृषि को आत्म-निर्भर बनाना होगा। उन्हें अपने पारंपरिक तरीकों से बाहर निकलकर वक़्त के हिसाब से आगे बढ़ना होगा। मास्टर्स के अंत में उन्होंने एक प्रोजेक्ट भी शुरू किया, जिसमें वह शहरी स्कूलों के बच्चों को आदिवासी गाँव में ट्रिप पर लेकर जाते थे। उन्हें आदिवासी सभ्यता, उनके रहन-सहन, खान-पान और अन्य तौर-तरीकों से रू-ब-रू कराते।
लेकिन धीरे-धीरे तथागत ने महसूस किया कि उन्हें इस प्रोजेक्ट में कुछ ख़ास मजा नहीं आ रहा है। यह काम अच्छा था और वह करना चाहते थे लेकिन उनका दिल हमेशा उन्हें खेती की तरफ ले जाता। साल 2017 में वह आखिरकार अपने गांव लौट आए और वहां आकर किसानी के क्षेत्र से जुड़ गए। वह कहते हैं, “मैंने महसूस किया कि जब मैं किसानों को जैविक खेती और अन्य नवाचारों के बारे में बताता तो वे सुनते तो थे, लेकिन करने को तैयार नहीं थे। क्योंकि वह रिस्क नहीं लेना चाहते थे। तब मुझे लगा कि किसानों को भरोसा तभी दिलाया जा सकता है जब मैं खुद यह करूँ।”
तथागत ने किसानी तो शुरू की लेकिन उनका ढंग एकदम नया और अनोखा था। उन्हें सिर्फ अपने लिए खेती नहीं करनी थी बल्कि उन्हें किसानों को एक मॉडल देना था। खासकर कि छोटे किसानों को। एक एकड़ में कैसे एक किसान महीने के 15 हज़ार रुपये कमा सकता है- उन्होंने इस मॉडल पर काम किया। वह कहते हैं कि अब वक़्त है जब कृषि को भी बाकी अन्य प्रोफेशन की तरह अपनाया जाए।
तथागत ने शुरुआत में थोड़ी ज़मीन पर ही जैविक खेती शुरू की। लेकिन आज वह लगभग 12 एकड़ ज़मीन पर जैविक फसलें उगा रहे हैं। वह कहते हैं, “ज़रूरी नहीं है कि आप पहली बार में ही पूरी तरह से जैविक किसान बन जाएं। अगर आपके पास सिर्फ एक एकड़ ज़मीन है तो आप इसके 10% भाग पर जैविक खेती करें। फिर धीरे-धीरे मात्र 5-6 सालों में आपकी पूरी ज़मीन जैविक हो जाएगी। लेकिन सफलता तभी मिलेगी जब आप मेहनत ज्यादा करेंगे।”
तथागत किसानों के जीवन में परिवर्तन लाने के लिए कुछ योजनाओं पर भी काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि खेती में कुछ तकनीकों पर काम करना होगा। किसानी से जुड़े कुछ बिंदु पर उन्होंने अपनी बात रखी-
- मल्टी-क्रॉपिंग
एक ही खेत में अलग-अलग तरह की फसलें लगाना ताकि एक फसल का दाम कम भी हो तो दूसरी फसल से आपको फायदा मिले।
- रिले क्रॉपिंग
ऐसी फसलें लगाना, जो एक-दूसरे के लिए पोषण का काम करें।
- पशुपालन पर आधारित खेती
यदि आप छोटे किसान हैं तो आपको एक-दो गाय-भैंस ज़रूर रखनी चाहिए, जिससे आपको गोबर की खाद मिलेगी, गौमूत्र से आप पेस्टीसाइड बना सकते हैं और दूध का इस्तेमाल आप अपने घर की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। बाकी जो बचे, उसे डेयरी पर पहुंचा सकते हैं। यह भी आय का एक अतिरिक्त साधन है।
- खुद अपने ग्राहकों से जुड़ना
इसके लिए तथागत ‘हैप्पीनेस सायकल’ का मॉडल देते हैं। वह कहते हैं, “हमें पता है कि खाने का स्वाद इस बात पर भी निर्भर करता है कि खाना बनाते वक़्त बनाने वाले का भाव कैसा है। लेकिन मैं कहता हूँ कि यह पूरी चैन है। जो आपको सब्ज़ी लाकर दे रहा है, उस डिलीवरी वाले का भाव, जिसने डिलीवरी वाले को सब्ज़ी बेची, उसका भाव, जो सब्ज़ीवाले तक सब्ज़ी लेकर गया उसका भाव और जिसने वह सब्ज़ी उगाई यानी कि किसान- इन सभी के भाव उस उपज में आते हैं। जब यह चैन पूरी तरह से खुश होगी, तभी खाना स्वस्थ और स्वादिष्ट बनेगा। इसलिए ज़रूरी है कि उगाने वाला ही बनाने वाले तक पहुंचाए और वह भी ख़ुशी-ख़ुशी।”
तथागत अपने इसी मॉडल से आज 5 एकड़ में लगभग 17 फसलें उगा रहे हैं, जिनमें मसाले, सब्जियां और फल शामिल हैं। जैसे कि मोरिंगा, आंवले, हल्दी, अदरक, संतरे, लेमन ग्रास, चना, आदि। बाकी ज़मीन पर वह गेंहू और मक्का जैसी फसल उगाते हैं।
- कम लागत, और ज्यादा मेहनत से बनें आत्म-निर्भर
उनका पूरा फार्म आत्म-निर्भर है जैसे उन्होंने अपने यहाँ एक गौशाला बनाई है जिसमें वह पशुपालन करते हैं। पशुओं के गोबर से वह गोबर गैस बनाते हैं जिससे उनके घर की लगभग 70% गैस की पूर्ति हो रही है। वह जैविक खाद भी बनाते हैं। दूध का उपयोग वह घर पर करते हैं और बाकी बचे हुए दूध को कभी सीधा और कभी घी बनाकर डेयरी पर पहुंचाते हैं।
इसके अलावा, खेतों में बचने वाली पराली को वह कभी भी जलाते नहीं हैं बल्कि उससे भूसा बनवाते हैं। इस भूसे को गोबर के साथ मिलाकर भी खाद तैयार की जाती है। साथ ही, वह सोयाबीन और मोरिंगा के पत्तों से टॉनिक तैयार करते हैं जिसका समय-समय पर खेतों में छिडकाव होता है। जीवामृत बनाकर इसे ड्रिप-इरिगेशन या फिर स्प्रिंकल तकनीक से खेतों में पहुँचाया जाता है।
तथागत बताते हैं कि उन्हें एक मौसम में अपनी 5 एकड़ की फसलों से लगभग साढ़े चार लाख रुपये की कमाई हुई है। सबसे अच्छी बात यह है कि वह अपनी किसी भी फसल को जैविक के नाम पर बहुत महंगा नहीं बेचते हैं। बल्कि उन्होंने सीधा ग्राहकों से जुड़ने का मॉडल अपनाया है।
सब्ज़ी मंडी में धनिया का मूल्य फ़िलहाल 250 रुपये किलो है और तथागत भी अपना जैविक धनिया इसी मूल्य पर बेच रहे हैं। उन्होंने बस बीच में से बिचौलियों को हटा दिया है और इससे उनकी मेहनत का पूरा पैसा खुद उन्हें ही मिल रहा है।
- शुरू की अपनी फसल की प्रोसेसिंग

इस बार उन्होंने खेती के साथ-साथ प्रोसेसिंग भी शुरू की है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने खेत पर कोई प्रोसेसिंग यूनिट नहीं लगवाई है बल्कि उनके इलाके में पहले से उपलब्ध छोटी-छोटी स्थानीय प्रोसेसिंग दुकानों में जाकर उन्होंने अपनी उपज को प्रोसेस कराया है।
इस बार उन्होंने लगभग 100 किलो जैविक हल्दी पाउडर, लगभग इतना ही धनिया पाउडर, मीठे नीम के पत्तों का पाउडर, मेहंदी पाउडर, आंवला पाउडर व कैंडी और त्रिफला पाउडर भी बनाया। उनके ज़्यादातर प्रोडक्ट्स हाथोहाथ बिक गए।
इस सफलता के बाद तथागत आगे इसी क्षेत्र में बढ़ने का फैसला कर चुके हैं। अब वह अपने प्रोडक्ट्स की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग पर काम कर रहे हैं। इससे उन्हें और भी मुनाफा हो रहा है।
वह कहते हैं कि कृषि में सफलता तभी है जब किसान खुद अपनी ब्रांड बनेंगे। सबसे बड़ी समस्या यही है कि किसान अपनी गलत आदतों को बदलने को तैयार नहीं है। “अगर उनके खेत में खरपतवार लग जाए तो वह अपने किराए पर स्प्रेयर लेकर, पेस्टीसाइड खरीदकर दो-तीन बार फसल में स्प्रे करते हैं। इससे उनकी लागत बढ़ती है और फसल भी जहरयुक्त हो जाती है। जबकि वहीं वह कुछ दिन लगाकर, हाथ से ही यह काम कर सकते हैं। अगर वह खुद अपने खेत में मेहनत करेंगे तो लागत खुद-ब-खुद कम हो जाएगी,” उन्होंने आगे कहा।
ग्राहकों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करें। फेसबुक, यूट्यूब और टिकटोक जैसे प्लेटफॉर्म्स किसानों के लिए काफी कारगर साबित हो रहे हैं। भारत में ग्रामीण लोग सबसे ज्यादा टिकटोक इस्तेमाल कर रहे हैं। अब समय है कि मनोरंजन के साथ-साथ वह इसे अपने आपको सशक्त बनाने के लिए भी उपयोग करें!
तथागत कहते हैं कि अगर किसान अपने खेत में सुबह से शाम तक नौकरी की तरह काम करे तो उनकी इन्वेस्टमेंट सिर्फ मजदूरों पर होगी। बाकी सभी खर्चे कम हो जाएंगे। साथ ही, जिस गेंहू को जैविक तरीकों से उन्होंने उगाया है, जब वह आटा और दलिया बनकर पैकेट्स में पैक होकर उनके नाम के साथ लोगों तक पहुंचेगा तो उन्हें एक अलग पहचान भी मिलेगी। ज़रूरत है तो बस किसानों के आगे बढ़कर ठोस फैसले और दृढ़ संकल्प लेने की।
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अगर आप तथागत से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 9826981282 पर कॉल कर सकते हैं और उन्हें tathagatbarodh@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं!
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