हरियाणा के लगभग सभी परिवारों की जड़ें आपको कृषि से जुडी हुई मिलेंगी। बहुत से परिवार आज भी खेती ही कर रहे हैं तो कई परिवार ऐसे भी हैं जिन्होंने खेती से मुँह मोड़ लिया है। लेकिन इन सबके बावजूद कुछ लोग ऐसे भी हैं जो एक बार फिर से खेती- किसानी की दुनिया में लौट रहे हैं।
ऐसे ही एक किसान हैं, जींद के अहिरका गाँव के रहने वाले सतबीर पूनिया। 60 की उम्र पार कर चुके सतबीर 2017 से बागवानी कर रहे हैं और वह भी उन्नत किस्म की। अपनी 16 एकड़ ज़मीन पर उन्होंने थाई एप्पल बेर, अमरुद, और निम्बू आदि के पौधे लगाए हैं। वहीं साथ में, वह मौसमी सब्जी की भी खेती कर रहे हैं। उन्हें लोग आज ‘बेर वाले अंकल’ के नाम से जानते हैं।
पहले छोड़ दी थी खेती
सतबीर पूनिया के परिवार वाले पहले खेती ही किया करते थे। उन्होंने खुद 14-15 साल खेती की और फिर साल 1996 में अपना एडवरटाइजिंग का काम शुरू किया। सतबीर ने द बेटर इंडिया को बताया, “उस वक़्त खेती में ज्यादा कुछ बच नहीं रहा था। खर्च बढ़ रहे थे तो लगा कि किसी और कारोबार में जुड़ा जाए ताकि घर चल सके। बस यही सब सोचकर खेती छोड़ दी।”
लगभग 20 साल तक अपना व्यवसाय करने के बाद उन्हें लगने लगा कि उन्हें कुछ और करना चाहिए, जिससे दूसरों का भी भला हो। कारोबार के सिलसिले में वह अक्सर देश के अलग-अलग हिस्सों की यात्रा करते थे। इन सभी जगहों से उन्होंने खेती के उन्नत तरीकों के बारे में भी जानकारी हासिल हुई।
उन्होंने एक बार फिर अपनी खेती से ही जुड़ने की ठानी। लेकिन इस बार उन्होंने पारंपरिक खेती की जगह बागवानी करने का फैसला किया। बागवानी भी एकदम अलग तरीके से।
“रायपुर से थाई एप्पल के पौधे लेकर आया और पांच एकड़ में लगाए। इसके अलावा आठ एकड़ में अमरुद के पेड़ लगाए और 2 एकड़ में निम्बू। इस तरह से मैंने बागवानी शुरू की। इसके अलावा, मैं मौसमी सब्जी भी उगाता हूँ, ” उन्होंने कहा।
वह 70 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से लगभग 200 थाई एप्पल के पौधे लेकर आए। वह बताते हैं कि इन्हें लगाने के साथ उनका कुल खर्च एक एकड़ में लगभग 25 हज़ार रुपये आया था। लेकिन अच्छी बात यह है कि उन्हें पहले साल से ही उत्पादन मिलने लगा।
जैविक तरीके से करते हैं बागवानी
सतबीर जैविक तरीकों से बागवानी करते हैं। उन्होंने सबसे पहले अपनी ज़मीन को इसके लिए तैयार किया। उन्होंने बताया कि आपकी मिट्टी सबसे पहले स्वस्थ होनी चाहिए, जिसके लिए वह वेस्ट डीकंपोजर, नीमखली, जैविक खाद आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके इलाके का पानी भी बहुत ज्यादा अच्छा नहीं है। इसलिए उन्होंने इस पर भी काम किया।
उन्होंने अपने खेतों में एक टैंक बनवाया है ताकि वह पानी स्टोर कर सकें। जब भी उन्हें नहर से पानी मिलता है या फिर बारिश होती है तो वह इसे इकट्ठा कर लेते हैं। इसके साथ उन्होंने ड्रिप इरीगेशन सिस्टम भी लगाया हुआ है ताकि कम पानी में अच्छा उत्पादन हो सके। उनके पूरे बाग़ में लगभग 10 हज़ार पेड़-पौधे हैं, जिनकी वह बहुत अच्छे से देखभाल करते हैं।
खेत की मिट्टी को पोषित रखने के लिए वह गोबर की खाद और वर्मीकंपोस्ट देते हैं। साथ ही, कई तरह के जैविक स्प्रे भी पेड़ों पर करते हैं। उन्होंने बताया कि अपने फलों को कीड़ों से बचाने के लिए वह सहफसली भी करते हैं। बाग़ की बाउंड्री पर कभी किसी फूल की तो कभी तोरई आदि की फसल बो देते हैं ताकि कीड़े मुख्य फसल को छोड़कर इनके फूलों पर चले जाएं।
उन्होंने कहा, “थाई एप्पल की खेती करना बहुत ही फायदेमंद है। पहले साल से ही आपको फसल मिलेगी। मुझे एक एकड़ में लगभग 300 क्विंटल की उपज मिलती है जो बाजार में 40 से 50 रुपये प्रति किलो बिकता है। निम्बू और अमरूद में भी फायदा है।”
थाई एप्पल का पेड़ एक बार लगाने के बाद 20 सालों तक फल देता है। शुरूआत में एक पेड़ से 30 से 40 किलो तक उत्पादन मिलता है जो आगे चलकर 100 किलो तक पहुँच जाता है। सतबीर का कहना है कि अगर आप सही जैविक तरीकों से फसल की देखभाल करें तो आप एक एकड़ से भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
सतबीर स्थानीय लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं। उनके बाग में लगभग 20 लोगों को रोज़गार मिला हुआ है। पिछले तीन साल से ये लोग उनके यहाँ लगातार काम कर रहे हैं और अपने गाँव रहते हुए ही अच्छी आय कमा रहे हैं। वह खुद भी खेत में काम करते हैं।
सतबीर का मार्केटिंग मॉडल

अपने मार्केटिंग मॉडल पर बात करते हुए सतबीर पूनिया ने कहा कि जैविक तरीकों के साथ-साथ उन्होंने इस पर भी ध्यान दिया। अगर वह अपनी उपज को किसी बिचौलिए की मदद से बाज़ार में पहुँचाते तो उन्हें लागत भी नहीं बचती। इसलिए उन्होंने पाँच स्टॉल बनवाए हैं, जहाँ फसल की बिक्री होती है। इन स्टॉल को उनके लोग संभालते हैं और वह खुद इन सभी का मुआयना करते हैं।
सतबीर पूनिया ने एक स्टॉल अपने खेत में भी बनवाया है। उनकी इसी स्टॉल से सब्ज़ी और फलों की बिक्री होती है। वह बताते हैं कि लॉकडाउन में भी उनकी बिक्री नहीं रुकी बल्कि उन्होंने ऑर्डर पर लोगों के यहाँ फल और सब्जी पहुंचाई।
साल भर में उन्हें अपने बाग़ से लगभग 45 लाख रुपये की कमाई होती है, जिसमें से 15-20 लाख रुपये उनकी बचत होती है। सतबीर कहते हैं कि दूर-दूर से लोग उनका बाग़ देखने आते हैं और उनसे पूछते हैं कि थाई एप्पल ही उन्होंने क्यों लगाया?
जिस पर उनका जवाब होता है कि सामान्य बेर साल में एक बार आते हैं मार्च और अप्रैल में लेकिन थाई एप्पल की उपज उन्हें जनवरी में मिलने लग जाती है। उस समय बाज़ार में दूसरे बेर नहीं होते तो कोई कम्पटीशन भी नहीं होता। साथ ही, इन्हें कम पानी में भी अच्छा उगाया जा सकता है।
वह सबके लिए बस यही संदेश देते हैं, “खेती को भी व्यवसाय समझ कर आगे बढ़ो तो फायदा ही होगा। यदि आप अपने गाँव में खेती करेंगे तो कई लोगों को रोज़गार भी देंगे। यह ऐसा सेक्टर है जिसमें असफलता का सवाल ही नहीं क्योंकि इंसान को अन्न चाहिए और किसी न किसी को यह उगाना ही है तो यह काम हम और आप ही क्यों नहीं करें?”
द बेटर इंडिया, सतबीर पूनिया के प्रयासों की सराहना करता है और यदि आप उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 9254175999 पर कॉल कर सकते हैं!
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