आज बोनसाई पेड़ों का चलन काफी बढ़ गया है। बोनसाई पौधों को लोग गुडलक मानते हैं। अब तो शादी, जन्मदिन या फिर सालगिरह जैसे अवसरों पर गिफ्ट के रूप में भी बोनसाई पौधा दिया जाने लगा है। इस वजह से इस क्षेत्र में रोजगार की भी काफी संभावनाएं बनी हैं।
आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनका बोनसाई बनाना न सिर्फ एक पैशन है, बल्कि हर साल इस काम से 30 से 35 लाख रुपये का टर्नओवर भी हासिल कर रहे हैं।
यह कहानी है दिल्ली में रहने वाले सौमिक दास की। सौमिक ने 2019 में ‘ग्रो ग्रीन बोनसाई’ नाम से अपनी एक कंपनी की शुरुआत की। इसके साथ ही, वह वैशाली स्थित एक बारकोड मैन्यूफैक्चरिंग फर्म में प्रोपराइटर के रूप में काम करते हैं।
आज उनके पास न सिर्फ बोनसाई और पेनजिंग (Penjing) के 2000 से अधिक पौधे हैं, बल्कि उन्होंने 300 से अधिक लोगों को बोनसाई बनाने की ट्रेनिंग भी दी है।
कैसे मिली प्रेरणा
52 वर्षीय सौमिक बताते हैं, “वैसे तो मुझे बागवानी से शुरू से ही काफी लगाव था। मेरे घर में कई पेड़-पौधे लगे थे। लेकिन 1990 के शुरुआती दशक में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक प्रदर्शनी लगी थी। मैं वहां घूमने गया था। उस वक्त मैं 12वीं में था। हमने प्रदर्शनी में पहली बार बोनसाई पेड़ देखे थे। उन पेड़ों को देख मैं काफी प्रभावित हुआ और मेरी जिज्ञासाएं बढ़ने लगीं।”
वह कहते हैं, “बोनसाई पेड़ों को देख मैं खुद को रोक नहीं पाया और उन्हें छूने लगा। तभी एक बुजुर्ग माली ने मुझे रोका और नाराज होते हुए बताया कि ये कितने महंगे होते हैं।”
इसके बाद, अगले 10 वर्षों के दौरान सौमिक ने देश के कई हिस्सों का दौरा किया और शौकिया तौर पर, घर पर अलग-अलग तरह के बोनसाई पेड़ों को बनाना शुरू किया। वह बताते हैं कि इसे बिजनेस का रूप देने से पहले उनके घर पर करीब 200 बोनसाई पेड़ थे।
वह कहते हैं, “बोनसाई बनाना एक आर्ट है। इसमें एक पेड़ को तैयार करने में वर्षों लगते हैं और इस प्रक्रिया में आपको काफी धैर्य की जरूरत होती है। यह एक ऐसी कला है, जो आपको मानसिक रूप से मजबूत करती है। यदि आप पौधों की ठीक से देखभाल करते हैं, तो इसकी इंसानों की तरह कोई औसत आयु नहीं है। कोई पौधा 500 साल तक जीवित रह सकता है, तो कोई हजारों साल तक।”
वह बताते हैं, “अपनी छत पर इतने बड़े पैमाने पर बोनसाई पौधे लगाने से, दिल्ली की भीषण गर्मी में भी हमें काफी राहत मिलती है और हमारा घर बाहर की तुलना में कम से कम 10 डिग्री ठंडा रहता है। जिससे हमें एसी की जरूरत कम होती है। इससे न सिर्फ बिजली की बचत होती है, बल्कि पर्यावरण को भी फायदा होता है।”
इंडियन बोनसाई एसोसिएशन के बने सदस्य
सौमिक बताते हैं कि पेशेवर स्तर पर बोनसाई पेड़ों को तैयार करने के लिए उन्हें बेहतर ट्रेनिंग की जरूरत थी और इसके लिए उन्होंने 2010 में इंडियन बोनसाई एसोसिएशन की सदस्यता हासिल की।
वह बताते हैं, “इसके बाद, मैं एनसीआर और मेट्रो शहरों में बागवानी करने वाले कई लोगों से मिला और देशभर के बागवानी कार्यक्रमों में अपनी कृतियों को प्रदर्शित करना शुरू किया। फिर, दोस्तों और परिवार वालों ने इसे लेकर मुझे अपना अपना बिजनेस शुरू करने के लिए प्रेरित किया।”
फिर, 2019 में, सौमिक ने नोएडा में अपनी कंपनी ‘ग्रो ग्रीन बोनसाई’ की शुरुआत की। इसके तहत वह सक्यूलेंट (Succulent) प्लांट, कैक्टस और अन्य एक्सोटिक पौधों को बेचते हैं। लेकिन उनका मकसद उत्साही लोगों के बीच सिर्फ बोनसाई को लोकप्रिय बनाना है, जो इस शानदार कला से परिचित नहीं हैं।
उनका फार्म 4,000 स्क्वायर यार्ड में फैला हुआ है, जहां वह देवदार, बरगद, माइक्रोफिला जैसे 30 से अधिक तरह के बोनसाई पेड़ों की देखभाल करते हैं। वह ग्राहकों को होम डिलीवरी की सुविधा भी प्रदान करते हैं। उनके ग्राहक पूरे देश में हैं। अपने बागवानी के काम को संभालने के लिए उन्होंने चार मालियों को भी काम पर रखा है।
आज बागवानी समुदाय में सौमिक का खास स्थान है। वह दक्षिण एशिया बोनसाई संघ के एम्बेसडर भी हैं।
क्या है विशेषज्ञता
वह कहते हैं, “बोनसाई यानी गमले में पेड़ लगाने की कला जापान की देन है। फिर, उसी कला को और सुंदर बनाने के लिए चीन में पेनजिंग (Penjing) तकनीक की शुरुआत हुई। इस तकनीक में बोनसाई पेड़ों को पहाड़, नदी, पत्थर, घास जैसे प्राकृतिक दृश्यों के साथ एक ट्रे में लगाया जाता है। इसका अर्थ है कि आप जिन प्राकृतिक नजारों को बड़े रूप में देख रहे हैं, उसका एक छोटा सा रूप पेनजिंग है। यह हमारी सबसे बड़ी विशेषज्ञता है।”
सौमिक का दावा है कि उन्होंने देश को पेनजिंग कला से परिचय कराया। इसमें पौधों के लिए हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इन संरचनाओं को फ्रीस्टैंड करने के साथ ही, दीवार पर भी लगाया जा सकता है।
क्या है रेंज
सौमिक बताते हैं कि उनके पास 700 रुपए से लेकर 2.5 लाख रुपये तक के पौधे हैं। फिलहाल उनका सलाना टर्नओवर 30 से 35 लाख रुपये के बीच है। हालांकि, सौमिक कहते हैं कि यह सिर्फ पैसे की बात नहीं है। दूसरों को बागवानी सिखाना, उनके लिए अधिक गर्व की बात है।
बीते छह वर्षों से, वह दिल्ली के साकेत स्थित ‘द गार्डन ऑफ फाइव सेंसेस’ में भी अपने पौधों को प्रदर्शित कर रहे हैं। इस काम में उन्हें दिल्ली पर्यटन विभाग की पूरी मदद मिलती है। 2019 में उन्होंने डीडी किसान के यूट्यूब चैनल पर पेनजिंग कला को लेकर शुरू किए गए चार ट्यूटोरियल सीरीज में भी हिस्सा लिया था।
कैसे करते हैं पौधों की देखभाल
सौमिक बताते हैं कि उनके पास अलग-अलग उम्र के पौधे हैं। जैसे दो से सात साल के बीच के 600 से अधिक पौधे हैं, तो 10 से 15 साल वाले पौधों की संख्या करीब 150 है। इसके अलावा, उनके पास 20 साल से भी पुराने पौधों की संख्या करीब 100 है।
वह कहते हैं, “हमारे लिए पौधों की देखभाल करने में सबसे बड़ी दिक्कत है – दिल्ली का मौसम! यहां का मौसम पुणे या बेंगलुरु जैसे शहरों की तरह स्थायी नहीं है। हवा में नमी की कमी के कारण पौधों की देखभाल करने में काफी मुश्किलों से जूझना पड़ता है।”
वह आगे कहते हैं, “गर्मियों में दिल्ली का तापमान 47 डिग्री से भी ऊपर पहुंच जाता है। ऐसे में हमारा मकसद सिर्फ यही होता है कि हम पौधों को किसी तरह से बचाएं। इसलिए हम ग्रीन नेट का इस्तेमाल करते हैं। वहीं, सर्दियों में पौधों को पाले से बचाने के लिए पॉलीहाउस का इस्तेमाल करना पड़ता है, ताकि पौधों को 20-25 डिग्री तापमान में रखा जा सके।”
सौमिक अपने पौधों में खाद के लिए किसी केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
वह कहते हैं, “हम अपने पौधों के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। हमारे आस-पास कई गौशालाएं हैं। हम खाद के लिए गोबर वहीं से लाते हैं। इसके अलावा खाद के रूप में किचन वेस्ट, बोन मील, नीम की खली का भी इस्तेमाल किया जाता है।”
लोगों को देते हैं ट्रेनिंग
सौमिक कहते हैं कि आज देश के सभी बड़े शहरों में प्रदूषण का दायरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। ऐसे में टैरेस गार्डनिंग शहर के क्लाइमेट को कंट्रोल करने का एक बेहतर जरिया है और बोनसाई में सबसे ऊपर है। इसलिए वह अधिक से अधिक लोगों को इससे जोड़ना चाहते हैं।
वह कहते हैं, “मैं अपने फार्म में 300 से अधिक लोगों को ट्रेनिंग देता हूं। मेरे पास दिल्ली के अलावा लुधियाना, चंडीगढ़, आगरा जैसे कई शहरों से लोग बोनसाई की ट्रेनिंग लेने के लिए आते हैं।”
वह बताते हैं, “मेरे यहां दो दिनों का वर्कशॉप होता है। इस दौरान लोगों के खाने-पानी की भी व्यवस्था की जाती है और उन्हें ट्रेनिंग में इस्तेमाल होने वाले पौधों के अलावा सिरेमिक पॉट, एलुमिनियम वायर जैसे सभी चीजें मुहैया कराई जाती है।”
सौमिक के अनुसार, यदि उन्होंने ट्रेनिंग के लिए 2000 रुपए फीस रखी है, तो छात्रों को इतने ही दाम का पौधा दिया जाता है। इस तरह वह अपने अनुभव की सीख, दूसरों को देने के लिए कोई पैसे नहीं लेते हैं।
वह अंत में कहते हैं, “मेरा मकसद है कि अधिक से अधिक लोग बागवानी से जुड़ें। यह पर्यावरण के लिए अच्छा होने के साथ ही, दुनिया में मानवता को भी बचाने का एक बेहतर तरीका है।”
आप सौमिक से यहां संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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