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नीले केले और नारंगी कटहल! इस किसान ने तैयार किया 1300 अद्भुत फलों का फ़ूड फॉरेस्ट

Rajendra Hindumane & his daughter with orange jackfruit

कर्नाटक के किसान राजेंद्र हिंदुमाने का खेत 1,300 प्रकार के फलों के पौधों, मसालों, मेडिकल जड़ी-बूटियों और कई दुर्लभ जंगली पौधों से भरा हुआ है।

वियतनाम से Gac, ब्राजील से Jaboticaba और Biriba, मलेशिया से Cempedak, इंडोनेशिया से Blue Java केला; ये कुछ विदेशी फलों के नाम हैं, जो राजेंद्र हिंदुमाने के हरे-भरे खेत में देखे जा सकते हैं। लेकिन अगर आप इनके खेतों में उगने वाले पेड़-पौधों की गिनती करना शुरू करेंगे, तो यह संख्या करीब 1300 तक पहुंच जाएगी। इस फूड फॉरेस्ट में उगाए जाने वाले विभिन्न पौधों में फल, मसाले, औषधीय जड़ी-बूटियाँ और कुछ दुर्लभ जंगली पौधे शामिल हैं। लंबे सुपारी के ताड़ से घिरा यह खेत कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र में स्थित है।

दरअसल, सुपारी और आम उगाने वाले 55 वर्षीय किसान, राजेंद्र की करीब 20 साल पहले इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के प्रोफेसर, सत्यनारायण भट से मुलाकात हुई थी। तब से ही उन्हें दुर्लभ और विदेशी फलों को इकट्ठा करने का शौक़ हुआ। उनके साथी किसान अनिल बलंजा और प्लांट कलेक्टर मज्जिगेसरा सुब्रमण्या ने उन्हें इस काम के लिए काफ़ी प्रोत्साहित किया और अब उनके पास फलों और औषधीय पौधों का बेहतरीन संग्रह है, जिनमें से ज़्यादातर के बारे में शायद आपने सुना भी न हो।

कॉमर्स ग्रेजुएट राजेंद्र कहते हैं, “सुपारी, आम का अचार, लौंग और इलायची जैसे मसाले, कटहल के चिप्स आदि की बिक्री ने वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, ब्राजील, थाईलैंड, जापान, हवाई जैसी जगहों से आने वाले विदेशी फलों को उगाने के मेरे जुनून को बढ़ावा दिया।”

राजेंद्र कहते हैं कि यह एक बहुत महंगा जुनून है। ब्राजील से ब्लूबेरी के एक पौधे के लिए उन्हें 6,000 रुपये खर्च करने पड़े।

कई बार पौधे हुए खराब, लेकिन नहीं मानी हार

Rajendra Hindumane with a bunch of Populo Bananas.
Rajendra Hindumane with a bunch of Populo Bananas.

राजेंद्र ने बताया कि नए आए अंकुर या बीज को पॉलीहाउस में रखा जाता हैं और खुले मैदान में लगाए जाने से पहले कई महीनों या कुछ मौसमों तक इसकी निगरानी की जाती है। उन्होंने कहा, “कई बार बेहतर प्रयासों के बावजूद पौधे मर गए, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और इससे जुड़ी और अधिक जानकारी इकट्ठी की, खेती से जुड़े कई गुण सीखे और उनका इस्तेमाल इन पौधों को उगाने में किया।”

राजेंद्र की जुड़वा बेटियों मेघा और गगन को भी विदेशी फलों को इकट्ठा करने में दिलचस्पी अपने पिता से विरासत में मिली है। राजेंद्र की दोनों बेटियां सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं।

दोनों ने अपने फूड फॉरेस्ट में उगाए जाने वाले पौधों के बॉटेनिकल नाम, स्थानीय नाम, हैबिटैट, फूल और फलने के मौसम, उनके औषधीय गुणों, विशिष्टताओं आदि से जुड़ी जानकारियों के साथ एक डेटाबेस तैयार किया है।

स्थानीय रूप से ‘हलेगे हन्नू’ के नाम से जाने जाने वाली बेल को दिखाते हुए 25 वर्षीया मेघा कहती हैं, “इसका बॉटेनिकल नाम एलायग्नस कॉन्फर्टा है। इसका फल पकने पर नारंगी हो जाता है और स्वाद कुछ एसिटिक होता है। इसमें एंटी-डायबिटिक गुण होते हैं और इसका इस्तेमाल फेफड़े संबंधी शिकायतों के उपचार के लिए किया जाता है। यह एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है।”

फूड फॉरेस्ट में उगाए गए आम की इस किस्म से बनाते हैं 150 किलो अचार

Gagana with Orange jackfruit
Gagana with Orange jackfruit

राजेंद्र को मलेनाडु क्षेत्र के आम के अचार की एक ख़ास किस्म, अप्पेमिडी के संग्रह पर काफ़ी गर्व है। उनके पास अप्पेमिडी की 60 किस्में हैं और परिवार लगभग 150 किलो अचार बनाता है। वह बताते हैं, “दूसरों के विपरीत, यहाँ पूरे फल का अचार बनाया जाता है, जिसकी शेल्फ लाइफ छह साल है।”

राजेंद्र के अनुसार, जून से अगस्त के बीच के महीनों में, जब बारिश होती है, तो नेमाटोड और फंगस जैसी समस्याएं पौधों को प्रभावित करती हैं और जब फल पक जाते हैं, तो तने में छेद करने वाले कीड़ों के अलावा, मक्खियों का भी ज़ोखिम रहता है।

उनके खेत में, आप बनाना शुगरकेन (केला गन्ना) देख सकते हैं। यह एक लंबा बारहमासी पौधा है, जिसमें कई तने होते हैं और इसकी उपज अन्य उपलब्ध किस्मों की तुलना में लगभग तिगुनी होती है। इसके अलावा, खेत में पॉपोलु केला भी उगाया जाता है। यह मूलत: प्रशांत क्षेत्र (Pacific region) में पॉलिनेशियन द्वीपों का फल है।

यहां उडुरु बक्के किस्म का कटहल भी होता है, इसके फल एक बार पकने के बाद शाखाओं से अपने आप गिर जाते हैं। यहां अनंगी (ओरोक्सिलम इंडिकम) भी होता है, जिसके बड़े पत्ते के डंठल मुरझा जाते हैं और पेड़ से गिरकर, तने के पास इकट्ठा हो जाते हैं, जो टूटे हुए अंगों की हड्डियों के ढेर की तरह दिखाई देते हैं। इसकी पत्तियां, बीज और फल तीनों हा खाने योग्य होते हैं। इनका इस्तेमाल पारंपरिक व्यंजनों में किया जाता है।

पश्चिम घाट के बीच खेत की देख-भाल नहीं है आसान काम

फूड फॉरेस्ट और हर्ब गार्डन कहे जाने वाले इस खेत में विविधता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यहां कई किस्मों के पेड़ हैं, जिनमें- आम (65), केला (40) शरीफा (30), कटहल (150), काजू, चीकू (20), चेरी (20), रामबूटन (15), एवोकैडो (18), सेब (23), अनानास (4), कॉफ़ी (4), बांस (20), जायफल (5), कुछ अमरूद के पौधे आदि शामिल हैं।

कॉफ़ी, कोको, दालचीनी, वेनिला, काली मिर्च, अदरक, लौंग, हल्दी और जायफल आदि जैसी व्यावसायिक फसलों से ज्यादा कमाई होती है। अपने विशाल संग्रह के लिए राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त यह खेत, पश्चिमी घाट की दुर्लभ और औषधीय जड़ी-बूटियों का घर है।

पश्चिम घाट के बीच, एक खेत की देख-भाल करना काफी चुनौतीपूर्ण काम होता है, क्योंकि यहां के अधिकांश किसानों को बंदर, मालाबार गिलहरी, गौर, हॉर्नबिल, साही, जंगली सूअर, जैसे जंगली जानवरों से जूझना पड़ता है। राजेंद्र बताते हैं, “हम, जंगली जानवरों के कारण अपनी करीब 25 प्रतिशत फसल खो देते हैं। लेकिन अब हमने उनके साथ रहना सीख लिया है।”

नए किस्म के फल उगाने वालों को क्या सलाह देना चाहेंगे?

Rajendra with his daughters: Megha & Gagan
Rajendra with his daughters: Megha & Gagan

दूसरे जुनूनी प्लांट कलेक्टरों की तरह ही राजेंद्र का मानना है कि क्वारंटीन प्रक्रियाओं को थोड़ा आसान बनाने की ज़रूरत है और उन पौधों की किस्मों पर छूट दी जानी चाहिए, जिन्हें पहले से ही देश में उगाया जा रहा है या प्राकृतिक रूप दिया जा चुका है। वह बड़ी ही उत्सुकता से पूछते हैं, “क्या आप जानते हैं कि अगर आप थाईलैंड से कैटिमोन मैंगो के अंकुर या पौधे लाना चाहते हैं, तो आपको कस्टम और क्वारंटीन से गुज़रना पड़ता है?”

फलों की नई किस्मों को उगाने में रुचि रखने वालों के लिए वह मैंगोस्टीन और रम्बूटान का सुझाव देते हैं, जिन्हें रोपाई और ग्राफ्टेड पौधों से उगाया जा सकता है।

राजेन्द्र हिंदुमाने के डाइनिंग टेबल पर उनके फूड फॉरेस्ट में उगाए गए इतने सारे फल होते हैं कि उनके परिवार के सदस्यों की सुबह हमेशा ताज़गी भरी होती है। उनके दिन की शुरुआत कभी भी सुस्त नहीं होती। हिंदुमाने की बेटी गगन कहती हैं, “हमारा खेत, फल प्रेमियों के लिए स्वर्ग है।”

मूल लेखः हिरेन कुमार बोस

संपादनः

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