तरबूज़ की खेती ने बनाया लखपति, 200 लोगों को दे रहे हैं रोजगार

उनकी एक सीजन में 100 ट्रक से अधिक तरबूज की बिक्री होती है और एक सीजन की कमाई की बात करें तो वह 40 लाख रुपए से अधिक है।

सैनिक स्कूल से पढ़ाई करने वाले अधिकांश छात्रों का सपना फौज में जाकर माटी की सेवा करना होता है, लेकिन हाजीपुर (बिहार) के रोहित ने सैनिक स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद माटी की सेवा के लिए खेती, किसानी का रास्ता चुना। महज 25 साल के रोहित आज एक दो नहीं, बल्कि पूरे 150 एकड़ में खेती कर करीब 200 लोगों को रोजगार दे रहे हैं, जिनमें से 80 उनके साथ स्थायी रूप से जुड़े हुए हैं।

Hajipur Bihar Farmer Earns Lakhs from watermelon farming agriculture
रोहित सिंह

रोहित ने आधुनिक तकनीक आधारित खेती से कृषि कार्य में लगे लोगों की सोच बदलने का काम किया है। उनकी एक सीजन में 100 ट्रक से अधिक तरबूज की बिक्री होती है और एक सीजन की कमाई की बात करें तो वह 40 लाख रुपए से अधिक है।

तरबूज की खेती को ड्रिप सिंचाई विधि का किया इस्तेमाल

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रोहित के खेतों के तरबूज

 

रोहित अपने खेतों में आठ से दस घंटे तक काम करते हैं। इस वक्त तरबूज, खरबूजे, खीरे और केले की पैदावार कर रहे हैं। तरबूज की खेती वह ड्रिप सिंचाई विधि से कर रहे हैं। ड्रिप सिंचाई, दरअसल, सिंचाई की एक ऐसी विशेष विधि है, जिसमें पानी और खाद की बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूँद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नलियों तथा एमिटर का नेटवर्क लगाना पड़ता है। इसे ‘टपक सिंचाई’ या ‘बूंद-बूंद सिंचाई’ भी कहते हैं। इस सिंचाई का लाभ फसल को भी मिला। अच्छी बात यह है कि कृषि विभाग इस विधि को प्रोत्साहन भी देता है और सब्सिडी का भी प्रावधान किया गया है। साथ ही साथ प्रशिक्षण का भी।

प्रदेश से लेकर देश, विदेश तक है तरबूज की मार्केटिंग

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रोहित ने अपनी फसल की मार्केटिंग पर भी पूरा ध्यान दिया है। उनके तरबूज की मार्केटिंग बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश तक होती है। युवा किसान रोहित सिंह की एक सीजन की कमाई चालीस लाख रुपए से अधिक है। उनके तरबूज की सौ ट्रकों से देश भर में सप्लाई होती है। अभी तक के अपने कार्य से रोहित संतुष्ट तो हैं, लेकिन वह इसे अभी केवल अपनी शुरुआत करार देते हैं। उनके मुताबिक मंज़िल अभी दूर है। इसके लिए अभी अपने प्रयासों को और धारदार करना होगा।

पिता बनाना चाहते थे अफसर

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रोहित के खेत में विदेशी प्रजाति का तरबूज

 रोहित बताते हैं कि उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई हिमाचल प्रदेश के सुजानपुर स्थित स्कूल से की। उनके पिता उन्हें अधिकारी बनाना चाहते थे, लेकिन रोहित का मन समाज सेवा में रमता था। ऐसे में उन्होंने एक वृद्धाश्रम खोलने की सोची। इस संबंध में सरकार से भी मदद के लिए कहा, बात लगभग तय हो गई, लेकिन फिर इसका विचार छोड़ दिया।

उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “हाजीपुर में बेरोजगार युवाओं से मिलकर लगा कि पहले इनके लिए कुछ किया जाना चाहिए। इसके लिए खेती सबसे अच्छा जरिया लगा। आज यह देखकर संतोष होता है कि मैंने समाज के लिए कुछ किया है।”

खेती को व्यापार की तरह करने का निर्णय रंग लाया

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रोहित के खेत में काम पर जुटे मजदूर

रोहित बताते हैं  कि कुछ समय तक उनके पिता नंद किशोर सिंह नाराज रहे। उन्हें खेती, किसानी कोई मुनाफे का सौदा नहीं लगता था।

“दरअसल, मेरे पिता खुद किसान थे। लेकिन वह परंपरागत तरीके से खेती करते थे। ऐसे में लागत, मजदूर और समय अधिक लगता था, लेकिन उत्पादन बेहद कम होता था। लेकिन मैंने खेती को वैज्ञानिक तरीके से और एक व्यापार की तरह करने का निर्णय लिया। इसमें गांव के युवाओं को भी साथ लिया। आखिर हमारी कोशिश रंग लाई। खेती के प्रति लोगों की परंपरागत सोच बदलने का काम मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं,” रोहित कहते हैं।

कैंप लगाकर युवाओं को जोड़ रहे खेती से

रोहित ने बताया कि वे युवाओं को खेती से जोड़ने के लिए कैंप लगाते हैं। वह अब तक हाजीपुर, सारण और मुजफ्फरपुर में शिविर लगा चुके हैं, जिसमें करीब ढाई-तीन हजार युवाओं को खेती के लिए प्रेरित करने में उन्हें कामयाबी हासिल हुई है।

एग्री क्लीनिक लगाने की शुरुआत

रोहित अपनी खेती, किसानी, मार्केटिंग, तकनीक पर फोकस करने के साथ ही दूसरे किसानों को उनकी खेती में आने वाली समस्याएं दूर करने के लिए बिहार भर में एग्री क्लीनिक लगाने शुरू कर रहे हैं। रोहित के मुताबिक इस कार्य में उन्हें बिहार सरकार की ओर से भी सहायता का भरोसा दिलाया गया है।

देश को आज ऐसे ही युवा किसानों की ज़रूरत है। आशा है रोहित की कहानी पढ़कर और भी युवा इसी तरह किसानी में आगे बढ़कर देश को एक बार फिर सोने की चिड़िया बनाने में अपना योगदान देंगे।

रोहित सिंह से बात करने के लिए आप उन्हें +919472894778 पर कॉल कर सकते हैं।


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