इन दिनों लगभग हर क्षेत्र में आए दिन नई तकनीकें ईजाद की जा रही हैं। खेती-किसानी का सेक्टर भी इससे कहीं अछूता नहीं है। जिसमें कई अनोखे आविष्कार भी किए जा रहे हैं। इन आविष्कारों में ‘एक्वापोनिक्स’ खेती (Aquaponic Farming) भी शामिल है। आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जो विदेश की नौकरी छोड़कर एक्वापोनिक्स तकनीक द्वारा शानदार तरीके से खेती कर रहा है।
तमिलनाडु के चेन्नई से 76 किमी दूर चेंगलपेट स्थित ‘फ्रेशरी फार्म’ (Freshry Farm), आधुनिक और सस्टेनेबल खेती का एक अच्छा उदहारण है। इस ‘हाइड्रोपोनिक’ और ‘फिश फार्म’ को एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर जेगन विंसेंट ने शुरू किया है। अमेरिका में कई सालों तक नौकरी करने के बाद, विंसेंट अपने वतन लौट आए। वह कुछ अलग करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला किया।
लगभग छह साल पहले उन्होंने एक एकड़ ज़मीन खरीदी और यहां पर आधुनिक तरीकों से खेती शुरू की। वह नई और इको-फ्रेंडली तकनीकों से खेती करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने एक ‘एक्वापोनिक फार्म’ का सेट-अप किया। ‘एक्वापोनिक्स’ दो विधियों का मेल हैं, जिसका एक भाग एक्वाकल्चर (जलीय कृषि) जैसे मछली पालन तथा दूसरा भाग हाइड्रोपोनिक्स है, जिसके तहत मिट्टी की बजाय पानी में पौधे उगाये जाते हैं।
विंसेंट ने अपने फार्म को कृषि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के लिए खोला हुआ है ताकि वहाँ के शिक्षक और छात्र यहाँ रिसर्च कर सकें। आधुनिक खेती और मछली पालन में रूचि रखने वालों के लिए वह तीन दिन की मुफ्त ट्रेनिंग भी देते हैं। हालांकि कोरोना माहमारी के कारण फिलहाल ट्रेनिंग का काम बंद है। लेकिन जैसे ही स्थिति सुधरेगी, वह फिर से लोगों को मुफ्त ट्रेनिंग के लिए बुलायेंगे। मुफ्त ट्रेनिंग देने के अलावा वह स्थानीय किसानों को मुफ्त पौधे भी वितरित करते हैं। विंसेंट हर संभव तरीके से कृषि क्षेत्र और किसानों के लिए काम करना चाहते हैं।
वह कहते हैं, “मेरा उद्देश्य यह देखना है कि क्या हम इस एक एकड़ जमीन पर उतनी उपज ले सकते हैं, जितना पारंपरिक तरीकों से सात एकड़ जमीन पर लेते हैं।” इस फार्म से फिलहाल एक साल में 45 टन मछलियों का और हर महीने तीन से चार टन सब्ज़ियों का उत्पादन हो रहा है।
क्यों खास है यह फार्म:
इस एक्वापोनिक्स फार्म के बीच में, एक 40 लाख लीटर पानी की क्षमता वाला तालाब है। इसमें मिट्टी का प्रयोग किये बिना पत्थर और मेटल से बनी ग्रिड के सहारे पेड़-पौधे उगाये जाते हैं। वह कहते हैं, “लोगों को लगता है कि पेड़-पौधे उगाने के लिए मिट्टी की जरूरत होती है। लेकिन मिट्टी का मुख्य काम पौधों को सहारा देना होता है। पौधों की जड़ें पानी या आसपास की हवा से ‘पोषक तत्व’ ले सकती हैं।”
पानी के इस तालाब से 30 से 40 टैंक भी जुड़े हुए हैं, जहां मछली पालन किया जाता है। मछलियों के लिए पानी में डाले जाने वाले भोजन तथा मछलियों के अपशिष्ट से पानी में बहुत सारे पोषक तत्व आ जाते हैं। जो पौधों के लिए काफी अच्छे होते हैं। बदले में पौधों की जड़ें पानी को साफ करतीं हैं और इसमें ऑक्सीजन बनाए रखतीं हैं। एक बड़ी मोटर की मदद से पानी पूरे सिस्टम में घूमता है। विंसेंट इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि (background) से हैं और इस वजह से उन्होंने पानी के स्तर और पोषक तत्वों के रेगुलेशन जैसी प्रक्रियाओं को ऑटोमैटिक (स्वचालित) किया हुआ है।
वह बताते हैं, “एक्वापोनिक्स फार्म में कहीं भी ‘आर्टिफिशियल फर्टिलाइजर’ या ‘पेस्टिसाइड’ का प्रयोग नहीं किया जाता है।”
शुरुआत में उन्होंने 80 सब्जियों के साथ एक्सपेरिमेंट किया। उन्हें जिन सब्जियों से अच्छा उत्पादन मिला, उनपर उन्होंने आगे काम किया। अब वह फार्म में टमाटर, बैंगन, मिर्च, और टिंडोरा उगा रहे हैं। किसी ‘मिनी वाटर वर्ल्ड’ में फैले छोटे-छोटे द्वीपों की तरह इस फार्म में भी केला तथा पपीता के सैकड़ों पेड़ हैं। साथ ही वह यहाँ गन्ना भी उगाते हैं। इन पेड़ों की जड़ें पानी से अत्याधिक नाइट्रेट को सोख लेती हैं।
वह नौ किस्म की मछलियां पालते हैं, जिनमें तिलापिया मछली मुख्य है। मछली और पौधों के अलावा मुर्गी, बत्तख, भेड़, खरगोश और अन्य छोटे जानवर भी इस फार्म में हैं।
एक्वापोनिक्स ही क्यों?
इस तरह के फार्म तैयार करने की शुरुआती लागत काफी ज्यादा होती है। एक एकड़ के लिए 20 से 25 लाख रुपए निवेश करने होते हैं। यह लागत काफी ज्यादा है लेकिन विंसेंट का मानना है कि एक सस्टेनेबल भविष्य के लिए, इस तरह की नई और आधुनिक कृषि तकनीकें विकसित करना जरुरी है।
जैव-विविधता को ध्यान में रखकर बनाया गया फार्म, सामान्य और पारंपरिक खेतों की तुलना में बेहतर होता है। उदाहरण के लिए, विंसेंट के फार्म को सामान्य खेत की तुलना में पांच गुना कम पानी की जरुरत होती है। इसके अलावा एक्वापोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स जैसी तकनीकें ‘वर्टीकल गार्डन’ और खेती में अहम भूमिका निभाती हैं। भविष्य के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं, “अगले 10 सालों में शहरों के बीच और यहाँ तक कि बड़ी इमारतों तथा मॉल्स में भी वर्टीकल फार्म्स होना जरुरी है।” इस तकनीक से ही हम जगह और खाने की समस्या को हल कर सकते हैं।
वह आगे कहते हैं, “मेरा फार्म सेट-अप काफी महंगा था। लेकिन, छोटे एक्वापोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स फार्म कम लागत में भी लगाए जा सकते हैं।” जिन इलाकों में अच्छी मिट्टी और पानी की कमी रहती है, वहाँ ऐसे खेत आर्थिक और पारिस्थितिक रूप से काफी फायदेमंद होंगे।
दुनिया के साथ अपने अनुभवों को साझा करने तथा इस क्षेत्र में रिसर्च कार्यों को और अधिक प्रोत्साहित करने के लिए, उन्होंने तमिलनाडु में चार विश्वविद्यालयों और अफ्रीका के दो विश्वविद्यालयों के साथ टाई-अप किया है। भारत तथा दुनिया भर के बहुत से छात्र और रिसर्चर हर साल उनके एक्वापोनिक्स फार्म पर आते हैं।
डॉ. कयालविज़ी जयवेल एसआरएम कॉलेज चेन्नई में एक इंजीनियरिंग प्रोफेसर हैं, जिनकी ‘IoT’ सिस्टम में रुचि है। कृषि के संदर्भ में ‘ऑटोमेशन’ और ‘IoT’ के बारे में अधिक जानने के लिए उन्होंने दो साल पहले एक्वापोनिक्स फार्म का दौरा किया था।
डॉ. जयवेल कहतीं हैं, “यह पूरी तरह से एक अलग अनुभव था। यह अपने आप में एक नई संस्कृति है, जहाँ आप खुद को तकनीकी रूप से शिक्षित करते हुए भी पर्यावरण से जुड़े रहते हैं। हम खाना बनाने के लिए खेत से ताजा सब्जियों को इकट्ठा करते थे। यह हर दिन ट्रेनिंग करने के बाद, आराम का सबसे अच्छा तरीका था। संक्षेप में यह एक बहुत ही अच्छा और ज्ञान से भरा अनुभव था।”
मूल लेख: अंजलि डोने
संपादन- जी एन झा
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