हाल ही में पुणे के रहने वाले अभिषेक माने ने महिंद्रा की सेकेंड हैंड e2o (Second Hand EV) खरीदी है। यह अभिषेक की 12वीं कार है। एसयूवी चलाने के बाद, उन्होंने एक साल पहले इलेक्ट्रिक कारों की ओर रुख किया। अभिषेक, पर्यावरण के प्रति काफी सजग हैं। उनका पूरा घर सौर ऊर्जा यानी सोलर एनर्जी से चलता है। वह सोलर पैनल बनाने और लगाने का अपना खुद का बिजनेस भी चलाते हैं।
अभिषेक कहते हैं कि वह हमेशा से इक्लेट्रिक गाड़ी की तरफ रुख करना चाहते थे। गैर-उत्सर्जन वाहन ( Non-emission vehicle) की क्षमता देखने के लिए उन्होंने पहले दो ओकिनावा इलेक्ट्रिक स्कूटर खरीदे। कुछ साल तक स्कूटर चलाने के बाद उन्होंने एक कार खरीदने का मन बनाया। हालांकि, मौजूदा इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमतें ज्यादा थीं और उनके बजट से बाहर जा रही थीं, इसलिए उन्होंने सेकेंड हैंड कार खरीदने का सोचा।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए अभिषेक ने बताया कि उनका दोस्त अपनी e2o (Mahindra e20) के लिए ग्राहक तलाश रहा था। गाड़ी 8 साल पुरानी थी। उन्होंने अपने दोस्त से यह गाड़ी 1.5 लाख में खरीदी। इसके बिगड़े हुए हिस्से को ठीक करने में छह महीने का समय लगा। अब तक वह इस गाड़ी ( Second Hand EV ) को शहर के अंदर और हाईवे पर 18,000 किलोमीटर तक चला चुके हैं।

वह कहते हैं कि काम के सिलसिले में उन्हें रोजाना लगभग 80 किलोमीटर ड्राइव करना पड़ता है और वह बड़ी आसानी से मुंबई और गोवा तक कार चलाकर ले गए हैं।
गाड़ी की मरम्मत पर कितना आया खर्च?
अपनी कार की चाबी मिलने के बाद, अभिषेक सबसे पहले e20 ( Second Hand EV ) को सीधे महिंद्रा के सर्विस सेंटर ले गए। अभिषेक बताते हैं कि सर्विस सेंटर में गाड़ी को ठीक से स्कैन करने के बाद, बताया गया कि क्या-क्या चीज़ें ठीक करानी हैं, जैसे-टायर, सस्पेंशन आदि।
वह कहते हैं, “बिगड़े हुए पार्ट्स ठीक करने के लिए उन्होंने मुझे करीब 63,000 रुपये का खर्च बताया, जो मुझे लगा कि बहुत ज्यादा है। इसलिए मैंने उनसे करीब 12,600 रुपये में स्पेयर पार्ट्स खरीदे और अपने भरोसेमंद मैकेनिक से संपर्क किया।”
उन्होंने 9,900 रुपये में तीन टायर खरीदे और बैटरी के सेल को 25,000 रुपये में बदल दिया। इसके अलावा, उन्होंने 40,000 रुपये में इलेक्ट्रिक व्हीकल-इंटेलिजेंट एनर्जी मैनेजमेंट सिस्टम (IEMS) भी ठीक किया। बाकि का कुछ खर्च बैलेंस रॉड, स्टड, रबर के पुर्जे और ऑनबोर्ड चार्जर को बदलने में लगे।
पूरी मरम्मत के बाद, कार चार घंटे के भीतर पूरी तरह से चार्ज हो रही थी और एक बार चार्ज करने पर 100 किलोमीटर तक की रेंज दे रही थी।
कितना है रनिंग कॉस्ट?
अभिषेक कहते हैं, “मैंने गाड़ी (Second Hand EV) में अपनी कंपनी में बनने वाली बैटरी लगाई, जो पिछली बैटरी की तुलना में जल्दी जल निकासी को रोकता है।”
चार्जिंग में 200 यूनिट तक बिजली लगती है, लेकिन सौर ऊर्जा से चलने वाले अपने घर के कारण उन्हें कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ता। अभिषेक का कहना है कि जिनके घर में सौर ऊर्जा नहीं है, उन्हें चार्ज करने के लिए करीब 2,000 रुपये खर्च करने होंगे, जो अभी भी पेट्रोल से काफी कम है।
वह कहते हैं, “मेरी रनिंग कॉस्ट 1-2 रुपये प्रति किलोमीटर है, जो मेरी पिछली पेट्रोल कार की तुलना में लगभग 80% कम है। पेट्रोल कार की रनिंग कॉस्ट 8-9 रुपये प्रति किलोमीटर थी।”
हालाँकि अभिषेक ने गाड़ी ( Second Hand EV ) की मरम्मत पर लगभग उतना ही ख़र्च किया, जितना गाड़ी खरीदने पर किया था। लेकिन उनका कहना है कि यह उनकी ज़रूरतों के अनुसार एकदम ठीक था।
अभिषेक कहते हैं, “मैं एक ऑटोमेटिक कार चाहता था, जिसे मैं हाईवे पर चला सकूं और लंबी दूरी तय कर सकूं। ईवी चार्जिंग स्टेशन की सहायता से मैं बिना किसी परेशानी के अंतरराज्यीय यात्राएं करने में सक्षम हूं। इंजन में कोई कंपन नहीं होता है और यहां तक कि ट्रैफिक के समय भी यह ठीक काम करता है।”
Second Hand EV खरीदने से पहले किन बातों का रखें ध्यान
- अभिषेक का कहना है कि ईवी में निवेश करते समय सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है अच्छी प्लानिंग।
- आस-पास के चार्जिंग स्टेशनों का पता लगाएं।
- अपने आप से पूछें कि आप रोजाना कितनी रेंज चाहते हैं और इसे ठीक से मेंटेंन करने के लिए तैयार रहें।
- EV में एक ही मूविंग पार्ट होता है, जो कि मोटर है, इसलिए मेंटेनेंस उतना नहीं है।
- अगर आप लिथियम फॉस्फेट बैटरी का उपयोग करते हैं, तो 2,500 किलोमीटर चलाने के बाद, आपकी बैटरी केवल 20% डिजेनरेट होगी।
- बैटरी मेंटेनेंस के लिए अभिषेक इसे हर तीन दिन में चार्ज करते हैं।
- सेकंड-हैंड कार ( Second Hand EV ) खरीदते समय टायर, सस्पेंशन, बैटरी, मोटर और ट्रांसमिशन की सेहत का ध्यान रखें।
- समस्याओं की पहचान करें और उन्हें अपने विश्वसनीय गैरेज में ठीक करें।
यह लेख भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की मौजूदा स्थिति की जांच का हिस्सा है। #EVinIndia, द बेटर इंडिया की एक विशेष सीरीज़ ‘शेपिंग सस्टेनेबिलिटी’ का पहला चैप्टर है, जिसके तहत हम अपने पाठकों को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि कैसे जीवन के सभी क्षेत्रों में भारतीय, सस्टेनेबिलिटी को प्राथमिकता दे रहे हैं।
मूल लेखः गोपी करेलिया
संपादनः अर्चना दुबे
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