हाल ही में पश्चिम बंगाल के दक्षिणी हिस्से में आए चक्रवात ‘अम्फान’ के बाद बरुआपुर में लिनस केंडल और रुप्सा नाथ के घर के सामने लोगों की भीड़ जुट गई। उनके पड़ोसी हैरान थे कि मिट्टी और बांस से बने घर को इतने भयंकर तूफान में सिर्फ मामूली सा ही नुकसान कैसे हुआ। तूफान में आसपास के कंक्रीट के घरों में खिड़कियों के शीशे टूट गए थे और टिन शेड गायब थे। जबकि लिनस और रुप्सा का अनोखा घर तेज हवाओं और तूफान के बीच मजबूती से खड़ा था।
स्वीडिश-बंगाली दंपत्ति के ‘कांचा-पका’ (कच्चा और पक्का) नाम के सुंदर घर में पारंपरिक चीजों का मेल नजर आता है। जैसे की आरसीसी और सीमेंटेड फर्श के साथ ही बांस, छप्पर और मिट्टी जैसी टिकाऊ सामग्री। घर की पूरी संरचना को आर्किटेक्ट लॉरेंट फोरनिअर और भारत के कई कारीगरों ने मिलकर कलात्मक तरीके से बनाया है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए शोधकर्ता लिनस केंडल ने 2017 में निर्मित अपने घर के बारे में विस्तार से बताया।
देसी और मॉडर्न आर्किटेक्चर के मेल से बना एक अनोखा घर
लिनस कहते हैं, “मैं मूल रूप से स्टॉकहोम, स्वीडन से हूँ, लेकिन पिछले 20 वर्षों से भारत में सस्टेनबिलिटी डोमेन में काम कर रहा हूँ। मैं और मेरी पत्नी रूपा, जो कि एक कलाकार हैं, ने हमेशा से ही कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए एक टिकाऊ, देसी और पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों से बने घर का सपना देखा था।”
1800 वर्ग फुट के क्षेत्र में आर्किटेक्टों ने जमीन से 10 फुट की ऊंचाई पर ढाई मंजिला घर बनाने की योजना बनाई। मुख्य आर्किटेक्ट लॉरेंट फोरनियर बताते हैं, “यह इलाका मानसून में बाढ़ और जलभराव से काफी प्रभावित रहता है, इसलिए हमने नींव को ऊंचा बनाया। यह घर स्टिल्ट पर बनाया गया है।”
घर का ग्राउंड फ्लोर आरसीसी फ्रेमवर्क से तैयार किया गया है, जबकि टॉप फ्लोर में अंदर से मिट्टी के सहारे बांस का फ्रेम बनाया गया है। उन्होंने कर्टेन वॉल बनवाया है – एक ऐसी संरचना जो नीचे कंक्रीट के फ्रेम को उभारती है।
आर्किटेक्ट लॉरेंट फोरनियर बताते हैं, “हमने बांस के फ्रेम को बांधने के लिए रस्सियों का इस्तेमाल किया। हमने उन्हें वेल्ड करने के लिए लोहे या स्टील का इस्तेमाल नहीं किया है। हमने सुंदरबन के कारीगरों से वहाँ के इस देसी वास्तुकला को बनवाया है। इस घर में बाँस की दीवारों में मिट्टी का प्लास्टर किया गया है जिससे घर के अन्दर का तापमान हमेशा एक जैसा रहता है।”
लिनस कहते हैं, “हमारे परिवार के लोगों को जब पता चला कि हम मिट्टी का घर बनाने के बारे में सोच रहे हैं तो वो काफी नाराज हुए। आमतौर पर मिट्टी को घर बनाने के लिए उतनी अच्छी सामग्री नहीं माना जाता है। हालांकि हमने घर के टिकाऊपन और आरामदायक कारणों के बारे में सोचा जबकि दूसरों ने हमें लक्ज़री के लिहाज से ऐसे घर बनाने के लिए मना किया। लेकिन आखिरकार मिट्टी से बने इस घर ने लोगों को काफी प्रभावित किया।”
आर्किटेक्ट लॉरेंट फोरनियर बताते हैं, “पिछले कुछ दशकों से उत्तर प्रदेश और हरियाणा के राजमिस्त्री बड़े पैमाने पर इस तकनीक को अपना रहे हैं। कंक्रीट के घरों की अपेक्षा ईंट और मिट्टी के घर 10 से 20 प्रतिशत सस्ते होते हैं। इसे कम समय में बनाया जा सकता है। वहीं कच्चे माल की लागत भी काफी कम है।”
चूँकि पानी की अधिक जरूरत सबसे ज्यादा बाथरूम और रसोई में पड़ती है इसलिए वहाँ छोड़कर घर के अधिकांश कमरों में मिट्टी के फर्श हैं। सीवेज के अधिकांश पानी को रेत और बजरी से फ़िल्टर करके बगीचे या टॉयलेट में फ्लशिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
घर का एक शौचालय ड्राई कंपोस्टिंग इको-सैन टॉयलेट है जिसे प्रख्यात पर्यावरणविद् डॉ. देबल देब ने डिज़ाइन किया है। इस टॉयलेट में पानी की जरूरत नहीं पड़ती और जमा अपशिष्ट को खाद में बदल दिया जाता है। इको-सैन टॉयलेट के किसी तरह की दुर्गंध नहीं आती है।
घर की छत को मोटे छप्पर से बनाया गया है। इसे इंडोनेशिया के बाली में बनी झोपड़ियों से प्रेरित होकर बनवाया गया है। ये मोटे छप्पर बारिश, तूफान और गर्मी में 10 साल से भी अधिक लंबे समय तक टिकते हैं। पारंपरिक बंगाली छप्पर की छतें, जो दो सालों से अधिक टिकती हैं, उसकी अपेक्षा बाली के छप्पर 1.5 फीट मोटी पुआल से बने होते हैं और जमीन पर लटके होते हैं।
आर्किटेक्ट लॉरेंट फोरनियर कहते हैं, “खास बात यह है कि ज्यादातर काम जमीन पर ही किया जाता है इसलिए राजमिस्त्री को सीढ़ी पर चढ़कर काम करने का खतरा नहीं उठाना पड़ता है। छतें थोड़ी झुकी हुई होती हैं जो बारिश के पानी से दीवारों की सुरक्षा करती हैं।
घर पर काम करने वाले बसंती, सुंदरबन के अनुभवी कारीगर परितोष कहते हैं कि यह पहली बार है जब उन्होंने इस तरह से घर पर काम किया है। “मैं पिछले कई सालों से लॉरेंट साहब के साथ काम कर रहा हूँ। मैंने कई टिकाऊ प्रोजेक्ट पर काम किया है, लेकिन मैंने कभी भी ऐसे किसी प्रोजेक्ट पर काम नहीं किया था, जहां पारंपरिक और मॉडर्न आर्किटेक्ट का इतना बड़ा मेल नजर आता हो। ”
तापमान नियंत्रण, भूकंप से बचाव
घर के अंदर लेड और अन्य केमिकल युक्त किसी भी कृत्रिम पेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। चारों तरफ साधारण लाइम वॉश का इस्तेमाल किया है। यह न सिर्फ दीवारों को सुरक्षित रखता है बल्कि घर के अंदर हवा भी आने जाने में मदद करता है। इसके अलावा यह घर के अंदर ह्यूमिडिटी को भी रेगुलेट करता है। कोलकाता जैसे शहरों में ह्यूमिडिटी और गर्मी को कंट्रोल करने के लिए इस तरह की दीवारों की जरूरत पड़ती है। लाइम वॉश दीवारों को फंगस से बचाता है।
कंक्रीट के घरों से अलग मिट्टी के घरों का तापमान पश्चिम बंगाल के उमस भरे गर्मियों में अधिक नहीं होता है। घर की बनावट ऐसी है कि तपती गर्मी में भी भीतर राहत मिलती है।
सर्दियों के दौरान दिन में गर्म हवा घर के अंदर जाती है, जिससे रात में कमरे गर्म और आरामदायक रहते हैं। दक्षिण की तरह मुख वाले घर को इस तरह से बनाया गया है कि अधिकांश दरवाजे, खिड़कियों और एक बड़े बरामदे में दक्षिण की तरफ से हवाएं आती हैं।
लिनस कहते हैं, “हमारे पास एक सौर ऊर्जा सेट-अप है जो लगभग 50 प्रतिशत बिजली की आपूर्ति करता है। सुबह लगभग 8 बजे से शाम 6 बजे तक घर पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर चल सकता है, जिसमें पानी के पंप जैसे अधिक ऊर्जा की खपत वाले उपकरण चल सकते हैं।”
‘कांचा-पका’ घर की खासियत यह है कि यह भूकंपरोधी भी है। घर के बीम काफी मजबूत हैं जो पिलर्स को संभालते हैं इसलिए घर भूकंप के बड़े झटके का सामना कर सकता है।
टिकाऊ घर में रहना
लिनस बताते हैं कि घर का कुल खर्च लगभग 50 लाख रुपए आया। सामग्री की लागत कम थी लेकिन मजदूरी पर अधिक खर्च करना पड़ा।
आर्किटेक्ट लॉरेंट फोरनियर कहते हैं, “यदि आप सामग्री की अपेक्षा मजदूरी पर खर्च का प्रतिशत बढ़ाते हैं, तो आप बेशक ग्रीन बिल्डिंग का निर्माण करा सकते हैं। लिनस और रूपा के परिवारों के लिए छुट्टियां बिताने के लिए इतने बड़े घर का निर्माण किया गया। रूपा का परिवार अक्सर उनके घर आता-जाता रहता है जबकि लिनस का परिवार स्वीडन से हर सर्दियों में आता है।
इन लोगों ने घर के सामने छोटे से तालाब के बगल में एक छोटा सा ऑर्गेनिक गार्डन बनाया है। वो बगीचे में सौ प्रतिशत ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करके कई फलों, सब्जियों और जड़ी-बूटियों को उगाते हैं।
लिनस कहते हैं, “हम टिकाऊपन का मिसाल नहीं पेश कर रहे हैं, लेकिन हम अपने पर्यावरण के संसाधनों की कीमत बताने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे घर में रहने से हमें ऊर्जा और पानी बचाने के साथ ही अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में भी पता चला है। हम हर दिन अधिक टिकाऊ और बेहतर जीवन जीने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।”
मूल लेख- SAYANTANI NATH
यह भी पढ़ें- 40% कम खर्चे में बने कर्नाटक के इस इको-फ्रेंडली घर में नहीं पड़ती है एसी की जरूरत!
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: