गुजरात के इस ईको फ्रेंडली घर को मिला है ‘आदर्श घर’ का अवॉर्ड, बिजली, पानी, सब्जी सब है फ्री

अमरेली के रहनेवाले कैलाशबेन और कनुभाई करकर के घर में तमाम सुविधाएं होते हुए भी, बिजली-पानी का कोई खर्च नहीं आता है। इतना ही नहीं, सरकार उन्हें सालाना 10 हजार रुपये देती है। तभी तो इसे मिला है गुजरात के आदर्श घर का अवॉर्ड।


एक समय था, जब इस घर में महीने के 15 दिन पानी की किल्लत रहती थी। भूजल स्तर इतना गिर गया था कि हमेशा पानी की कमी रहती थी। लेकिन एक परिवार के प्रयास की वजह से आज बारिश का इतना पानी जमा कर लिया गया है कि तीन सालों तक पानी की दिक्कत नहीं होगी। यह घर कई मायने में खास है। इस घर में हर कोई प्रकृति के करीब जीवन जी रहा है। यहाँ ऑर्गेनिक तरीके से सब्जी उगाई जा रही है, उपयोग किए गए पानी को रिसायकल कर बगीचे तक पहुंचाया जाता है। इतना ही नहीं, यहां रहनेवालों को बिजली का बिल नहीं भरना पड़ता। क्योंकि यह घर सौर ऊर्जा पर निर्भर है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि राज्य सरकार, इस घर को सालाना 10 हजार रुपये देती है। साथ ही , जिला और राज्य सरकार ने इस घर को आदर्श घर (Ideal House) के ख़िताब से नवाजा है। 

आधुनिक ज़माने का यह सस्टेनेबल घर (Sustainable House),  गुजरात के अमरेली (Amreli, Gujarat) शहर में बना हुआ है। यह घर है शिक्षा विभाग में क्लास वन ऑफिसर कनुभाई करकरे (Kanubhai Karkare) और उनकी पत्नी प्रोफेसर कैलाश करकरे (Kailash Karkare) का।

छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर, कनुभाई ने प्रकृति के अनुकूल यह घर तैयार करवाया है। जिसमें वे बिजली के लिए सूरज पर और भोजन के लिए घर में लगे पौधों पर निर्भर हैं। इस तरह वे पूरी तरह से प्रकृति के अनुरूप जीवन जी रहे हैं। 

कैसे बना पर्यावरण अनुकूल घर 

20 साल पहले, साल 2000 में कनुभाई ने इसे बनाना शुरू किया था और एक साल के भीतर ही, केवल रु.2, 80,000 में यह घर बनकर तैयार हो गया था। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए कनुभाई कहते हैं, “हम अक्सर कॉन्क्रीट का घर बनाकर अंधेरा कर देते हैं। बाद में कृत्रिम लाइट से उजाला करते हैं। इसलिए मैंने कोशिश की है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा सूरज की रौशनी का इस्तेमाल हो सके। हमें शाम के छह बजे तक किसी लाइट की जरूरत नहीं पड़ती और अच्छे वेंटिलेशन सिस्टम के कारण पंखे और एसी की ज्यादा जरूरत भी नहीं पड़ती।”

आगे वह कहते हैं कि सौराष्ट्र में साल के ज्यादातर समय पूर्व से पश्चिम की ओर हवा चलती है, इसलिए घर में हॉरिजॉन्टल क्रॉस वेंटीलेशन की व्यवस्था है। जब बाहर हवा चलती है, तो घर में अच्छी ठंडक रहती है।  

यह उनकी दूरदर्शी सोच ही थी कि उन्होंने भविष्य में होने वाली समस्याओं को ध्यान में रखकर, बारिश के पानी को संचित करने और उपयोग के बाद बहते गंदे पानी से गार्डनिंग करने की व्यवस्था तैयार करवाई।  

दरअसल, उनके इलाके में हमेशा से पानी की कमी रही है। इसलिए उन्होंने यह फैसला किया था कि जब भी घर बनवाऊंगा बारिश के पानी के लिए टंकी जरूर बनवाऊंगा। 

उनके रसोई के नीचे तक़रीबन 20 हजार लीटर की क्षमता वाली एक टंकी है। जिसमें बारिश का पानी जमा होता है। बाद में, इसे पीने और बाकी घर की ज़रूरतों के लिए उपयोग में लिया जाता है। एक और टंकी, घर के बाहर के भाग में बनी है, जिसमें म्यूनिसिपलिटी के साथ बारिश का 8000 लीटर पानी जमा रहता है। इस तरह सालों पहले की गई तैयारी के कारण, उन्हें भविष्य में भी पानी की दिक्क्त नहीं आएगी।  

चूंकि, कनुभाई खाली समय मिलने पर नए-नए आविष्कार करते रहते हैं, इसलिए उन्होंने इस घर को बिना किसी आर्किटेक्ट की सहायता से खुद ही डिज़ाइन किया है। इस घर में बारिश के पानी की एक और अनोखी व्यवस्था है। अगर बारिश ज्यादा हुई और घर की दोनों टंकियां भर गई तो पानी घर के बाहर नहीं जाता, बल्कि जमीन के अंदर जाकर भूजल स्तर बढ़ाता है। 

गंदा पानी भी नहीं जाता इस घर के बाहर

उनके घर के चारों ओर दो फुट की क्यारियां हैं,  जिसमें कई फल-फूल और सब्जियों के पौधे उगाए जाते हैं। इन पौधों में इस्तेमाल किये हुए गंदे पानी को ही रीसायकल करके इस्तेमाल में लिया जाता है। वहीं साल 2006 में, उन्होंने अपने घर के सामने एक खाली पड़ी 1300 स्क्वायर फीट जगह भी खरीदी थी। जहां पार्किंग के साथ, एक और छोटा किचन गार्डन तैयार किया गया है। कैलाश बेन अपने कॉलेज की नौकरी के साथ-साथ गार्डन का ध्यान भी रखती हैं, जिससे उन्हें घर में उगी ऑर्गेनिक सब्जियां खाने को मिले।

कैलाश बेन कहती हैं, “जहर वाली बाहर की सब्जियों के बजाय, थोड़ी सी मेहनत करके अगर हम सब्जियां उगाएं तो यह स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अच्छा होता है। आज हमारे घर की सब्जियों की 95 प्रतिशत जरूरत, हमारे गार्डन से ही पूरी हो जाती है।”

अपने किचन गार्डन के लिए, उन्होंने ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया है। 

इस दंपति ने अपनी छत पर तीन किलोवॉट का सोलर पैनल लगा रखा है। उन्होंने इसे राज्य सरकार की सूर्य गुजरात योजना के तहत लगवाया है। इसमें उन्हें 80 हजार रुपये खर्च आया था। चूंकि, उनके घर में बिजली की उपयोगिता काफी कम है, इसलिए उपयोग के बाद बची अतिरिक्त बिजली वापस ग्रिड में जमा होती है। इस तरह उन्हें विभाग की ओर से सलाना 10 हजार रुपये दिए जाते हैं। 

कनुभाई अंत में कहते हैं, “अगर किसी इंसान के पास पैसे हैं तो वह करोड़ों का घर भी बना सकता है। लेकिन हमें एक सामान्य आदमी को ध्यान में रखकर घर बनाना चाहिए, जिसमें कम से कम कृत्रिम सुविधाओं का उपयोग हुआ हो। तभी वह सही मायने में सस्टेनेबल घर होगा।”

मूल लेख- किशन दवे 

संपादन- जी एन झा

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