साल 2017 में राजस्थान के जयपुर में रहनेवाले इंद्रराज जाठ और सीमा सैनी ने एग्रीकल्चर से पढ़ाई पूरी की थी, तब उनके घरवाले चाहते थे कि वे कोई नौकरी करें। लेकिन पढ़ाई के दौरान ही, उन्होंने मन बना लिया था कि वह नौकरी करने के बजाय, खेती से जुड़ा ही कुछ काम करेंगे। सीमा ने एमएससी एग्रीकल्चर और इन्द्रराज ने बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई की है। आज ये दोनों राजस्थान के खोरा श्यामदास गांव में तक़रीबन डेढ़ हेक्टर जमीन किराए पर लेकर इंटीग्रेटेड कृषि प्रणाली और Agritourism से बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं और लोगों को खेती से जुड़े दूसरे बिज़नेस के बारे में भी बता रहे हैं।
यहां वे सस्टेनेबल तरीके से खेती के साथ-साथ मुर्गी पालन, बकरी पालन, गाय पालन और ऊंट पालन भी करते हैं। लेकिन इन सबके लिए उन्हें बाहर से कुछ लेने की जरूरत नहीं पड़ती। पशुओं के चारे से लेकर खेत के लिए खाद तक सब कुछ वे यहां खुद ही तैयार करते हैं और खेत में बने प्रोडक्ट्स को यहां आए मेहमान खरीद लेते हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए इंद्रराज कहते हैं, “हमने पढ़ाई के समय में ही मिलकर यह फैसला कर लिया था कि हमें खेती ही करनी है। पढ़ाई के बाद ही हमने खेती करने की शुरुआत कर दी थी। लेकिन उस समय हमें अंदाजा भी नहीं था कि खेती का दायरा इतना बड़ा है। अगर हम थोड़ी और मेहनत करें, तो इससे अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।”
हालांकि, जब उन्होंने खेती शुरू की, तब उन्हें सबने कहा कि खेती में ज्यादा फायदा नहीं है। चूँकि, सीमा और इंद्रराज दोनों ही किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए उन्हें खेती की जरूरी जानकारी पहले से ही थी। लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्होंने अपने बेहतरीन मॉडल से अपनी अलग पहचान भी बना ली है।
सीमा ने बताया, “अगर हम सिर्फ खेती पर निर्भर होंगे, तो नुकसान होने की संभावनाएं ज्यादा होंगी। जब तक किसान खेती से जुड़े दूसरे बिज़नेस से नहीं जुड़ते, तब तक आगे बढ़ना मुश्किल है और हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं।”
सीमा और इंद्रराज जब खेती करने की शुरुआत की तब वे खेत में ही एक मिट्टी का घर बनाकर रहने लगे। वह छोटा सा राजस्थानी घर लोगों को इतना पसंद आया कि कई लोग उनके खेत में आकर रहने की इच्छा जताने लगे। उन्होंने मिट्टी, गोबर और भूसी से दो कुटियां बनाई थीं, जो पांरपरिक राजस्थान के पुराने घरों की तरह थीं, जिस गांव में वह रह रहे थे वह दिल्ली हाईवे और जयपुर शहर से पास है। इसलिए उन्हें यकीन था कि अगर वह यहां एग्रोटूरिज्म (Agritourism) का विकास करेंगे, तो जरूर सफल होंगे।
इसी सोच के साथ, उन्होंने ग्रीन वर्ल्ड फाउंडेशन (Agritourism ) की शुरुआत की। यहां उन्होंने मिट्टी के पांच कॉटेज और एक डोरमेट्री हॉल भी बनाए, जिन्हें बनाने में उन्हें करीब दो साल का समय लगा। स्थानीय कारीगरों के साथ मिलकर, उन्होंने इन मिट्टी के घरों (mud houses) को तैयार किया था। इस पूरे मॉडल को तैयार करने में उन्हें लगभग आठ से दस लाख का खर्च आया। पिछले साल उन्होंने इस बिज़नेस से करीबन 35 लाख का टर्नओवर कमाया था।
उन्होंने साल 2021 में इसकी शुरुआत की थी, जिसके बाद यहां आस-पास के शहरों से लोग रहने आने लगे। सीमा ने बताया कि यहां महीने के करीबन 50 मेहमान आते ही हैं, जो पारम्परिक गांव में रहने का आनंद लेने के साथ, यहां खेत में खुद प्रोडक्ट्स को बनते देखते भी हैं। यहां आए लोग छुट्टी बिताने के साथ-साथ, अपने बच्चों को खेती और पशुपालन से जुड़ी जानकारी भी दे सकते हैं।
यहां अचार, मसाले और घी जैसे प्रोडक्ट्स तैयार किए जाते हैं, जिन्हें बेचने के लिए उन्हें कोई मार्केटिंग करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
सीमा और इंद्रराज ने जब खेती की शुरुआत कि थी, तब वे आस-पास के कई किसानों से भी मिले और उनकी समस्याओं के बारे में भी जानने की कोशिश की। जो किसान खेती में नुकसान झेल रहे थे, वे उन्हें इंटिग्रेटेड फार्मिंग की ट्रेनिंग देने लगे। आज करीब 8000 किसान इनसे जुड़कर खेती के साथ, पशुपालन और Agritourism से मुनाफा कमा रहे हैं।
हालांकि, उनके परिवार वालों को कभी नहीं लगा था कि खेती से जुड़कर बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है, लेकिन आज उन्होंने Agritourism का बेहतरीन मॉडल बनाकर अपने साथ-साथ कई और किसानों को भी नई राह दिखाई है।
आप भी इस बेहतरीन कृषि मॉडल के बारे में ज्यादा जानने के लिए उनके फेसबुक पेज पर सम्पर्क कर सकते हैं।
संपादन- अर्चना दुबे
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