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आपकी प्राइवेसी की रक्षा के लिए इस व्यक्ति ने आधार के ख़िलाफ़ किया था पेटिशन दर्ज!

यह वह ऐतिहासिक केस है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने प्राइवेसी को मुलभुत अधिकारों में जगह दे दी।

ज सुप्रीम कोर्ट ने आधार के खिलाफ दायर हुई याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया। इस केस को भारतीय कानून के इतिहास में अगर रिटायर्ड जस्टिस के. एस पुट्टास्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया कहा जाएगा तो यह गलत नहीं होगा। यह वह ऐतिहासिक केस है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने प्राइवेसी को मुलभुत अधिकारों में जगह दे दी।

कर्नाटक के बंगलुरु से संबंध रखने वाले पुट्टास्वामी ने साल 2012 में आधार के खिलाफ याचिका दायर की थी। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मेरे कुछ दोस्तों के साथ विचार-विमर्श के दौरान मुझे एहसास हुआ कि आधार योजना संसद में चर्चा के बिना लागू की जा रही है। एक पूर्व न्यायाधीश के रूप में, मुझे लगा कि यह सही नहीं। मैंने याचिका दायर की क्योंकि मुझे लगा कि यह मेरा अधिकारों का हनन था।”

पुट्टास्वामी ने जो पेटिशन साल 2012 में फाइल की, उसका फैसला देने में लगभग 6 साल का समय लगा गया। लेकिन उनका मनना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘सही और फायदेमंद’ हैं।

आपको बताते है इस फैसले से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य, जो सभी आम नागरिकों के लिए जानना हितकर है!

1) सबसे पहले तो कोर्ट ने आधार अधिनियम के सेक्शन 33(2) और 57 को अमान्य घोषित किया है। सेक्शन 33(2) के तहत, भारत सरकार को अधिकार था कि किसी भी संयुक्त सचिव की बराबर रैंक वाले अफसर के आदेश पर वे किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारियां जारी कर सकते हैं यदि मामला देश की आंतरिक सुरक्षा का हो तो।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे मनमानी बताते हुए कहा कि ऐसा करने के लिए सबसे पहले अदालत से आज्ञा लेनी होगी।

इसके अलावा, सेक्शन 57 के तहत कोई भी निजी संस्था आधार कार्ड से व्यक्ति की जानकारी ले सकती है। लेकिन कोर्ट ने इसे भी ख़ारिज कर दिया है। इसलिए अदालत के फैसले के अनुसार, निजी संस्थाएं व्यक्ति की पहचान प्रमाणित करने के लिए आधार जानकारी का उपयोग नहीं कर सकती हैं।

2) बैंक खाते खोलने या मोबाइल कनेक्शन प्राप्त करने के लिए आधार अनिवार्य नहीं है। हालांकि, आयकर अधिनियम (इनकम टैक्स एक्ट) के सेक्शन 139AA को बनाए रखना अनिवार्य है।  इसलिए, किसी भी व्यक्ति को इनकम टैक्स फाइल करने के लिए या फिर पैन (स्थायी खाता संख्या) कार्ड बनवाने के लिए आधार की जरूरत है।

3) कोई भी स्कूल बच्चों को दाखिला देने के लिए आधार की जानकारी नहीं मांग सकता है। सीबीएसई, यूजीसी और एनईईटी परीक्षा में बैठने के लिए आधार का होना आवश्यक नहीं है। आधार नंबर न होने पर भी किसी भी बच्चे को किसी भी योजना से इनकार नहीं किया जायेगा।

4) किसी भी बच्चे को आधार योजना में शामिल करने के लिए उसके माता-पिता की सहमति जरुरी है और 18 वर्ष के उम्र के बाद बच्चों को अधिकार होगा यह चुनने का कि वे आधार चाहते हैं या नहीं।

5) एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए कोर्ट ने आधार अधिनियम के सेक्शन 47 को खत्म कर दिया है। इस सेक्शन के मुताबिक केवल यूआईडीएआई डेटा चोरी और उसके गलत प्रयोग के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकता है। ऐसे में केवल यूआईडीएआई तय करेगा कि देता चोरी का क्या मामला गंभीर है और कब शिकायत दर्ज की जानी चाहिए।

अब कोई भी व्यक्ति यूआईडीएआई के साथ यह शिकायत दर्ज करवा सकता है।

6) अदालत ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि जल्द से जल्द लोगों की व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा के लिए कड़े से कड़े कानून बनाये जाएँ।

7) साथ ही, आधार में किसी भी व्यक्ति की जानकारी को 5 साल के लिए रखने का प्रावधान था, लेकिन कोर्ट ने इस अवधि को घटा कर मात्र 6 महीने कर दिया है।

हालांकि, अभी भी आधार एक्ट को ‘मनी बिल’ बनाने के सन्दर्भ बहस अभी जारी है। इस फैसले के लिए नियुक्त हुए 5 न्यायधीशों में से तीन ने कहा कि सरकार ने आधार अधिनियम को मनी बिल की तरह पेश करके कुछ गलत नहीं किया है। लेकिन वहीं, जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसके प्रति असहमति जताई। उन्होंने कहा, “इसे मनी बिल के रूप में पास करना संविधान के साथ धोखाधड़ी है और इसकी मूल संरचना का उल्लंघन है, क्योंकि यह मनी बिल बनने की योग्यताओं को पूरा नहीं करता है।”

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