जॉब छोड़ शुरू की खेती, किसानी के साथ-साथ ग्रामीणों को सिखाती हैं अंग्रेज़ी व कंप्यूटर

assistant professor farmer

2012 में कंप्यूटर साइंस में एमटेक करने वाली वल्लरी इस वक्त ट्रैक्टर से अपने खेत जोतने से लेकर फसलों की पैदावार, उनकी मार्केटिंग, पैकेजिंग तक का काम अपनी देख-रेख में करती हैं।

सपने को हकीकत में बदलने वालों के लिए छत्तीसगढ़ की वल्लरी चंद्राकर मिसाल हैं। किसानी की दुनिया में कदम रखने से पहले वल्लरी एक कॉलेज में कंप्यूटर साइंस पढ़ाया करती थीं। लेकिन एक बार किसी काम की वजह से वह अपने पिता के फार्म हाउस पर गईं और फिर उसके बाद उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया। असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर 30 साल की वल्लरी किसानी करने लगीं।

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वल्लरी चंद्राकर

शुरूआत में 15 एकड़ जमीन में खेती शुरू करने वाली वल्लरी महज चार साल में 45 एकड़ में खेती कर रहीं हैं। रायपुर से करीब 88 किलोमीटर दूर बागबाहरा के सिरी गाँव की रहने वाली वल्लरी ने 2016 में खेती से नाता जोड़ा था। उन्होंने परंपरागत तरीके से हटकर तकनीक को खेती का आधार बनाया। मार्केटिंग और इंजीनियरिंग के 7 सहायकों को रोजगार देने के साथ ही, वह कई लोगों को खेती के ज़रिए रोजगार दे रहीं हैं।

नौकरी छोड़कर जब वल्लरी ने किसानी करने का फैसला किया तो लोगों ने उनकी खूब आलोचना की। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। यही वजह है कि आज वल्लरी की उगाई सब्जियों की मांग देश ही नहीं, विदेश तक में है।

शुरूआत में हुई आलोचना

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खेते में फसल के साथ वल्लरी

वल्लरी की राह आसान नहीं थी। कदम-कदम पर मुश्किलें आ रही थी। दरअसल वह छुट्टी बिताने के लिए गाँव गई थीं, वहाँ जाकर लगा कि खेती को परंपरागत तरीके से अलग हटकर किया जा सकता है। इससे भी बेहतरीन रिटर्न हासिल किया जा सकता है। अपनी सोच से पिता को अवगत कराया। लिहाजा, सबसे पहले उन्हीं को मनाना पड़ा। पिता ने फार्म हाउस बनाने के लिए जो जमीन खरीदी थी, उस पर वल्लरी ने खेती करने की इच्छा जताई। वह भी तब जबकि परिवार में तीन पीढ़ियों से किसी ने खेती नहीं की।

वल्लरी ने द बेटर इंडिया को बताया, “परिवार के लोगों को यह समझाने में बेहद कठिनाई हो रही थी कि कोई लड़की अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर खेती में क्यों आ गई, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी, आखिरकार उन्होंने भी खेती के प्रति गंभीरता और मेहनत को देखकर समझा कि खेती मेरे लिए क्या मायने रखती है। इसके बाद सभी हरसंभव सहयोग करने लगे। अब पूरे परिवार को गर्व महसूस होता है। मायके वालों के साथ ही ससुराल वालों को भी।”

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मिर्च की फसल

वल्लरी कहती हैं, “गाँव में लोग परंपरागत तरीके से खेती कर रहे थे, जिससे उनकी लागत अधिक आ रही थी, लेकिन उत्पादकता और लाभ कम था। मैंने इस स्थिति को बदलने की दिशा में कदम उठाया। कम पानी खर्च हो, इसके लिए इजराइल की ड्रिप इरिगेशन तकनीक का सहारा लिया। थाईलैंड और अन्य स्थानों से उन्नत किस्म के बीज मंगाए, जिनसे उनकी उत्पादकता बढ़ी।”

शुरूआत में वल्लरी करेला, खीरा, बरबटी, हरी मिर्च के साथ ही टमाटर और लौकी उगा रही थीं, अब उन्होंने अपनी फसलों का दायरा बढ़ाया है। अब केला, जामुन और हल्दी की भी खेती शुरू कर दी है। भविष्य में वह इन फसलों के लिए प्रोसेसिंग प्लांट भी लगाएंगी है।

वल्लरी कहती हैं, “खेती संबंधी काम में सरकार का भी खूब सहयोग मिल रहा है। सरकारी सहयोग से मैं खेती को बढ़ा रही हूँ।”

2012 में कंप्यूटर साइंस में M.tech करने वाली वल्लरी इस वक्त ट्रैक्टर से अपने खेत जोतने से लेकर फसलों की पैदावार, उनकी मार्केटिंग, पैकेजिंग तक का काम अपनी देख रेख में करती हैं। उन्होंने इंटरनेट के माध्यम से खेती की नई तकनीक भी सीखी।

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ट्रेक्टर चलातीं वल्लरी

वल्लरी कहती हैं, “मैंने खेत में काम करने वालों के साथ बेहतर तरीके से संवाद कायम करने के लिए छत्तीसगढ़ी भी सीखी। ताकि अपनी बात उन्हें आसानी से समझा सकूँ। यह जुगत बेहद काम आई। अपनी भाषा में संवाद सीधे हृदय तक जाता है। इस बात को अच्छी तरह महसूस भी किया।”

किसानों के लिए वर्कशॉप से लेकर लड़कियों को पढ़ाती हैं अंग्रेजी

खेती किसानी के बाद मिलने वाले समय को वल्लरी नेक काम में लगा रही हैं। अमूमन खेतों में काम शाम पाँच बजे बंद हो जाता है। इसके बाद वह गाँव में ज्ञान की अलख जगाने का काम करती हैं। गाँव की ही कुछ लड़कियों को वह अंग्रेजी और कंप्यूटर सिखाती हैं, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। इसके साथ ही वह किसानों के लिए कार्यशालाएँ भी करती हैं, ताकि उन्हें खेती के नए-नए तौर तरीकों और तकनीकों के बारे में जानकारी दे सकें।

27 अगस्त, 1990 को जन्मीं वल्लरी चंद्राकर की पिछले साल ही शादी हुई है, लेकिन इसके बावजूद खेती को लेकर उनका जुनून कायम है। वह बताती हैं कि उन्हें सभी का हरसंभव सपोर्ट मिल रहा है। वह अपनी सब्जियाँ महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश आदि कई राज्यों में सप्लाई करती हैं। उनके पास विदेश से भी आर्डर आते हैं। इन दिनों लॉकडाउन की वजह से ट्रांसपोर्ट को लेकर कुछ समस्या है, लेकिन सब्जियों की डिमांड अच्छी बनी हुई है।

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खेती के बाद वल्लरी बच्चों को अंग्रेजी व कंप्यूटर भी पढ़ाती ।

वह मानती हैं कि यह एक टेंपोरेरी फेज है और यह भी निकल जाएगा। कोरोना के चलते पैदा हुए हालात हमेशा एक जैसे नहीं रहने वाले हैं। वह पूरे उत्साह के साथ अपने काम में लगी हुई हैं।

वल्लरी कहती हैं, “कई लोग सपने देखते हैं, लेकिन राह में आने वाली मुश्किलों से घबराकर अपने सपनों को मार देते हैं। ऐसे लोगों के लिए मेरी यह सलाह है कि रास्ता छोड़ने की जगह अपनी जिद से सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश करें।”

(यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप वल्लरी चंद्राकर से vallari2708@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)

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