बिना किसी फीस के छात्रों के हक की कानूनी लड़ाई लड़ रहा है यह संगठन!

पिछले तीन सालों में 'योर लॉयर फ्रेंड' ने छोटे-बड़े मुकदमों में लगभग 500 छात्रों की मदद की है!

साल 2019 में केरल हाई कोर्ट ने दो ऐतिहासिक फैसले किए, एक मार्च में और दूसरा सितंबर में। पहले केस में कोर्ट ने एक कॉलेज द्वारा गर्ल्स हॉस्टल के लिए बनाए गए नियमों को ख़ारिज किया क्योंकि ये नियम लड़कियों के प्रति भेदभावी थे।

दूसरे केस में, हाई कोर्ट ने छात्रों द्वारा इंटरनेट इस्तेमाल करने के अधिकार को बचाया। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि हर एक छात्र को कॉलेज व हॉस्टल में इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने का अधिकार है। ये दोनों ही फैसले छात्रों के पक्ष में थे और कहीं न कहीं पूरे देश के शिक्षण संस्थानों के लिए एक उदाहरण कि वे छात्रों के अधिकारों का हनन करके अपनी मनमानी नहीं कर सकते हैं।

गर्ल्स हॉस्टल के भेदभावी नियमों के खिलाफ अंजिता जोस ने आवाज़ उठायी तो इंटरनेट के अधिकार की अर्जी फहीमा शीरीन ने दी। ये दोनों केस भले ही अलग कॉलेज और अलग-अलग छात्राओं के थे, पर एक कड़ी है जो इन दोनों मुकदमों को जोड़ती है और वो है ‘लीगल कलेक्टिव फॉर स्टूडेंट्स राइट्स’! यह वो संगठन है जिसने इन दोनों मुकदमों का कोर्ट में प्रतिनिधित्व किया।

‘लीगल कलेक्टिव फॉर स्टूडेंट्स राइट्स’ कानून की पढ़ाई कर रहे छात्रों द्वारा शुरू की गई पहल है। इसके ज़रिए वे छात्रों को किसी भी तरह की क़ानूनी कार्यवाही में मदद करते हैं वो भी बिना किसी फीस के।

द बेटर इंडिया ने ‘लीगल कलेक्टिव फॉर स्टूडेंट्स राइट्स’ के को-फाउंडर श्रीनाथ से उनके संगठन और काम के बारे में बात की। श्रीनाथ, फ़िलहाल नेशनल यूनिवर्सिटी फॉर एडवांस्ड लीगल स्टडीज में लॉ पढ़ रहे हैं और तीसरे वर्ष में हैं। उन्होंने इस संगठन की नींव अपने सीनियर, अर्जुन पीके के साथ मिलकर रखी थी।

Arjun (Left) and Sreenath (Right)

उन्होंने बताया, “जनवरी 2017 में नेहरु कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग स्टडीज के छात्र जिश्नु प्रणय पर एग्ज़ाम में नकल करने का आरोप लगा था जिसके बाद उसने आत्महत्या कर ली थी। बाद में, पता चला कि उस पर लगे सभी आरोप गलत थे और गलती कॉलेज प्रशासन की थी। जिश्नु की ही तरह और भी बहुत से छात्र हैं जो जागरूकता की कमी और कानूनी मदद न होने के कारण कॉलेज प्रशासन की मनमानी का शिकार होते हैं।”

जिश्नु का केस अर्जुन और श्रीनाथ के लिए प्रेरणा बना कि वे छात्रों के अधिकारों के लिए अपनी आवाज़ उठाएं। वे कानून के छात्र हैं और इसलिए उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे अन्य संस्थानों में पढ़ रहे किसी भी छात्र का शोषण होने से रोकें। इसी सोच के साथ उन्होंने फरवरी 2017 में सिर्फ छात्रों की मदद के लिए अपना संगठन शुरू किया और अब वे छात्रों के बीच अपने सोशल मीडिया हैंडल, ‘योर लॉयर फ्रेंड’ के नाम से मशहूर हैं।

“हमने अपने ही कुछ साथी छात्रों को साथ में लिया और फिर कुछ एडवोकेट्स से बात की, ताकि वे हमारे लिए कोर्ट में मुकदमे लड़ें। हमने छात्रों को अपने हक के लिए बोलने के लिए प्रेरित किया। उन्हें कहा कि अगर कॉलेज प्रशासन किसी भी तरह की नाइंसाफी करता है तो हमारे पास आएं और इस तरह से हमारा काम शुरू हुआ,” श्रीनाथ ने आगे बताया।

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आज उनकी टीम जिश्नु के कॉलेज से लगभग 70 छात्रों के अधिकारों के लिए मुकदमें लड़ चुकी है और सभी में फैसला छात्रों के पक्ष में रहा है। एक केस में छात्र कॉलेज छोड़ना चाहता था पर कॉलेज उसे मजबूर कर रहा था कि वह बिना पूरी कोर्स फीस भरे कॉलेज नहीं छोड़ सकता। वहीं दूसरे केस में प्रशासन ने अपनी रंज के चलते एक छात्र को फेल कर दिया था।

“इस तरह के केस हमें सिर्फ इसी एक कॉलेज में नहीं बल्कि बहुत से कॉलेजों में मिले। बहुत ही बेतुकी बातों के लिए छात्रों से फाइन भरवाया जाता है जैसे कि कॉलेज आईडी न पहनने पर या फिर खो जाने पर। हॉस्टल रूम में कुछ खराब हो जाने पर… और भी न जाने क्या-क्या। जबकि यूजीसी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक कॉलेज प्रशासन छात्रों को बिना किसी ठोस वजह के परेशान नहीं कर सकता है,” श्रीनाथ ने कहा।

पिछले तीन सालों में ‘योर लॉयर फ्रेंड’ ने छोटे-बड़े मुकदमों में लगभग 500 छात्रों की मदद की है। जिनमें से अंजिता और फहीमा का केस बहुत ही महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि ये दोनों ही केस नैशनल अपील रखते हैं।

इनके मुकदमों के बारे में बात करते हुए श्रीनाथ ने बताया कि अंजिता के कॉलेज के हॉस्टल में किसी भी छात्रा को कॉलेज की या फिर किसी अन्य राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने पर रोक थी। अगर कोई लड़की किसी गतिविधि में भाग लेती तो उस पर फाइन लगाया जाता या फिर उसे सस्पेंड कर दिया जाता।

Anjitha Jose (Left) and Faheema Shirin (Right)

अंजिता ने जब ‘योर लॉयर फ्रेंड’ को इस बारे में बताया तो उन्होंने हाई कोर्ट में अर्जी डाली। जब हाई कोर्ट का फैसला अंजिता के पक्ष में आया तो यह किसी ऐतिहासिक दिन से कम नहीं था क्योंकि बहुत ही कम छात्रों की सुनवाई उनके पक्ष में होती है।

अंजिता बताती हैं, “मुझे YLF (योर लॉयर फ्रेंड) के बारे में एक दोस्त से पता चला। उसके बाद हमने यहाँ पर अर्जुन से सम्पर्क किया। उनसे केस डिस्कस करने के बाद हमने आगे क़ानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया। जिस दिन से मैंने उन्हें अपने केस के बारे में बताया, उस दिन से लेकर आखिरी दिन तक, उनकी पूरी टीम ने बहुत मेहनत की और मेरे साथ खड़े रहे।”

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इसी तरह, फहीमा के हॉस्टल प्रशासन ने मोबाइल फ़ोन रखने या फिर इन्टरनेट इस्तेमाल करने पर रोक लगाई गई थी।  योर लॉयर फ्रेंड ने फहीमा के केस का भी प्रतिनिधित्व किया और कोर्ट ने इस केस में छात्रों के अधिकारों को महत्व दिया। इस बारे में फहीमा कहती हैं, “मुझे जो सपोर्ट योर लॉयर फ्रेंड से मिला, उसी वजह से मैं ये केस लड़ पाई और जीत पाई। मैंने उन्हें सभी जानकारी दी और डाक्यूमेंट्स दिया। इसके बाद पिटीशन फाइल करना और उसके आगे का फॉलोअप उन्होंने खुद किया और वह भी बिना किसी फीस के।”

योर लॉयर फ्रेंड छात्रों के मुकदमे लड़ने के अलावा और भी कई जागरूकता अभियानों पर काम कर रहा है। श्रीनाथ कहते हैं कि हर एक छात्र कॉशन मनी के रूप में कुछ पैसे जमा करता है जो कि दो हज़ार से लेकर दस हज़ार रुपये तक हो सकती है।

 “हम इस बारे में डाटा इकट्ठा कर रहे हैं ताकि इसके खिलाफ एक पीआईएल डाल सकें। साथ ही, हम हॉस्टल नियमों पर भी रिसर्च कर रहे हैं ताकि उनके खिलाफ पेटीशन फाइल कर पाएं,” उन्होंने कहा।

Your Lawyer Friend Team

फ़िलहाल, ‘योर लॉयर फ्रेंड’ की टीम में 20 वॉलंटियर्स और 7 एडवोकेट काम कर रहे हैं, साथ ही संगठन की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया भी चल रही है। अंत में श्रीनाथ सिर्फ इतना ही कहते हैं,

“केरल से यदि किसी भी छात्र को क़ानूनी कार्यवाही में मदद चाहिए तो वे बेहिचक हमारे व्हाट्सअप नंबर पर मैसेज भेज सकते हैं। हम उनका केस समझने के बाद उन्हें पूरी तरह से क़ानूनी मदद देने की कोशिश करेंगे। बाकी सबसे ज़रूरी है हमारा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना। इसलिए किसी भी परिस्थिति में कानून को समझने की कोशिश करें और फिर ही कोई स्टेप लें।”

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आप ‘योर लॉयर फ्रेंड’ टीम को 6282147007 पर व्हाट्सअप कर सकते हैं या फिर उनके फेसबुक पेज पर सम्पर्क कर सकते हैं!

संपादन – अर्चना गुप्ता 


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