‛नेकी की दीवार’ से मुकेश कर रहें हैं गरीबों की मदद, साथ ही पढ़ा रहे बचत का पाठ

मुकेश अपने संस्था के जरिए ज़रूरतमंदों को कपड़े व जरूरी चीजें दान करते हैं। साथ ही, वह गांवों के स्कूलों और महिलाओं के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में वित्तीय साक्षरता और उससे जुड़ी जागरूकता के बारे में बताते हैं।

ह प्रेरक कहानी मुकेश बंसल नामक एक व्यक्ति के इर्दगिर्द घूमती है। वह जोधपुर के आसपास के गाँवों में जाकर लोगों, स्कूली बच्चों और य़ुवाओं को वित्तीय साक्षरता के बारे में बताते हैं। उन्हें युवाओं को करियर संबंधित मामलों में गाइड करने के लिए मददगार गुरु के रूप में भी जाना जाता है 

‛द बेटर इंडिया’ से बात करते हुए वह बताते हैं, “मेरा जन्म साल 1960 को राजस्थान के नसीराबाद में हुआ। मैंने गुजरात की बिड़ला फर्म से कामकाज की शुरूआत की। धीरे-धीरे कॉर्पोरेट वर्ल्ड में मेरा एक्सपीरियंस बढ़ता चला गया। इतनी अच्छी नौकरी होने के बावजूद समाज और शिक्षा के क्षेत्र के में योगदान न देने का मलाल मन ही मन मुझे खाए जा रहा था।”

मुकेश बंसल

मुकेश इसी कशमकश में साल 1996 में जोधपुर आए। वह पेशे से कंपनी सचिव हैं, इसलिए यहाँ आकर उन्होंने कंपनी सचिव संस्थान की जोधपुर चैप्टर की कमान संभाली। वह फिलहाल एनआईआईटी जोधपुर में निदेशक के तौर पर कार्यरत हैं। इतनी व्यस्तता के बाद भी वह अपने माता-पिता की स्मृति में बनाई गई ‛सीता दुर्गा नॉलेज फाउंडेशन’ के जरिए ज़रूरतमंदों की मदद में जुटे हुए हैं और साथ ही युवाओं को  रोजगार मार्गदर्शन और वित्तीय साक्षरता देने के लिए काम कर रहें हैं।

सीता फाउंडेशन के तहत कपड़े दान करते मुकेश बंसल और टीम

वह गांवों के स्कूलों और महिलाओं के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में वित्तीय साक्षरता और उससे जुड़ी जागरूकता के बारे में बताते हैं। वह गाँव-गाँव जाकर ग्रामीणों को वित्तीय साक्षर बनाने के लिए मेहनत करते हैं।

नेकी की दीवार से ज़रूरतमंदों की मदद

मुकेश बंसल अपने फाउंडेशन के एक प्रोजेक्ट ‛नेकी की दीवार’ के जरिए अब तक लाखों गरीबों को सामान बांट चुके हैं। इनमें ऊनी कपड़े, महिला-पुरुषों के कपड़े, जूते, चप्पल, कंबल, बैग, बर्तन आदि शामिल हैं। इसमें से अधिकांश चीजें उन लोगों से जुटाए गए हैं जो उनके किसी काम के नहीं थे, पर जरूरतमंदों के बड़े काम के थे।

 इन सब के अलावा उनसे वित्तीय मार्गदर्शन लेने आने वाले स्टूडेंट्स से वह कहते हैं कि वे लोग घर जाकर अपने माता-पिता को अवश्य इसके बारे में बताएं, ताकि किसी भी वित्तीय फ्रॉड को होने से रोका जा सके। वित्तीय साक्षरता को लेकर उनकी बताई गई कुछ जानकारियां इस प्रकार हैं –

बचत कब करनी चाहिए?
आप जिस दिन से कमाना शुरू करते हैं, उस दिन गाँठ बांध लीजिए कि कमाई का सबसे पहला खर्च ‘बचत’ होना चाहिए। इनकम को सेविंग से घटाने के बाद जो निकले, उस पैसे को खर्च करने के लिए रखिए। मतलब यह कि अपनी कमाई में से सेविंग्स बचाकर, फिर खर्च कीजिए।

स्कूली बच्चों को वित्तीय साक्षरता का ज्ञान देते मुकेश बंसल

निवेश को बनाएं आदत
निवेश को प्राथमिकता दें। निवेश करने के समय प्रॉपर डॉक्यूमेंटशन का ध्यान रखें। स्कीम/प्लान के बारे में बारीकी से समझें। किसी लालच, बहकावे, झांसे में आकर लॉटरी कंपनी, चिटफंड, क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी की स्कीम में निवेश क़तई न करें। जहां तक हो सके, सरकारी डाकघर, बैंक या किसी सिस्टेमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान में ही इंवेस्ट करें क्योंकि इनके पास कोई न कोई नियामक आयोग है।

फ्रॉड हो तो सेबी में करें शिकायत
किसी तरह का कोई फ्रॉड हो भी जाए, तब किस्मत को दोष देने की बजाय भारत सरकार द्वारा बनाए किसी नियामक संस्थान या भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) में घर बैठे शिकायत दर्ज करवाएं। आपके पास जो डॉक्यूमेंट हैं, उन्हें स्कैन करते हुए अपनी शिकायत लिखकर सेबी की वेबसाइट पर अपलोड करें।

क्या है वित्तीय साक्षरता के लाभ?
युवाओं को नौकरी या बिजनेस के तुरंत बाद ही लंबे समय के लिए छोटे-छोटे कई निवेश कर देने चाहिए। जल्दी कमाने, जल्दी बचाने और जल्दी निवेश करने से सपने पूरे होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।

मुकेश बंसल कहते हैं, “मैंने 1980 में कमाना शुरू किया था। उस वक्त मेरी सैलरी 800 रुपए थी। आज के युवाओं के पास तो औसत 8 लाख या उससे बड़े पैकेज हैं। भले ही महंगाई दर बढ़ी है, फिर भी बचाने लायक इनकम आज भी ज्यादा है, जिसे यह युवा गैजेट्स खरीदने, एंटरटेनमेंट या मौज करने में लगाते हैं। शौक पूरा करना भी जरूरी है लेकिन हर महीने अपनी कमाई से 5% रकम की बचत करें, धीमे-धीमे 30% तक ले जाएं। ऐसा करने से 20 साल का एक युवा 60 साल की उम्र में आते आते बहुत अच्छी बचत कर सकता है। उसे किसी लोन या दूसरी चीजों की जरूरत नहीं होगी।”

युवाओं को दिखाते हैं रास्ता

समाजसेवी मुकेश बंसल गत 23 सालों से शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हैं। ‛सीता दुर्गा नॉलेज फाउंडेशन’ के जरिए वह युवाओं को निःशुल्क लेक्चर देते हैं।  75,000 से ज्यादा छात्र-छात्राओं का उन्होंने अब तक मार्गदर्शन किया है। अब तक उनसे सीखे 20,000 से अधिक स्टूडेंट्स को जॉब मिल चुका है। करियर को निखारने का सपना लेकर मिलने वाले युवाओं से बंसल उनकी रुचि समझने का प्रयास करते हैं। यूथ खुद को एक साल बाद कहां देखना चाहते हैं? 3 साल बाद जीवन में क्या करना चाहते हैं और 5 साल बाद खुद को कहां देखना चाहते हैं? इसी सोच के मद्देनजर वह उनके लिए शार्ट, मीडियम और लांग टर्म गोल तय करते हैं।

बच्चों का पारिवारिक माहौल कैसा है? अभिभावकों की सोच बच्चों की सोच से कितनी मिलती है?  बच्चे की मनोदशा क्या है? कितने पैशन के साथ वह उस करियर को फॉलो करने के मूड में है? इन सब बातों को ध्यान में रखकर वह बच्चों को उनके करियर की दिशा दिखाते हैं।

बंसल द बेटर इंडिया के माध्यम से अभिभावकों के लिए एक संदेश देना चाहते हैं। वह कहते हैं,  “जब आपका बच्चा किसी एंट्रेंस एक्ज़ाम के लिए जा रहा हो तो कोशिश करें कि आप भी उनके साथ जाएं और परीक्षा खत्म होने पर लेने आएं। पढ़ाई के लिए उन्हें शांत माहौल भी दें, एक दोस्त की तरह उनको सहयोग दें। आज के समय में ये बहुत जरूरी हो गया है।”

अंत में मुकेश बंसल अपने इस पहल में मिली सफलता का श्रेय परिवार को देते हैं। उनकी पत्नी सुनीता, उनके ही साथ युवाओं को करियर गाइडेंस देने में अहम भूमिका निभाती हैं।

आप भी मुकेश बंसल से जुड़ सकते हैं। आप उनसे करियर से जुड़ी सलाह ले सकते हैं और समाजसेवा में हाथ बंटा सकते हैं। उनका मोबाइल नंबर है –  09829021192, आप चाहें तो फेसबुक और इमेल से भी जुड़ सकते हैं।

संपादन – अर्चना गुप्ता

 

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