2 लाख रुपये प्रति किलो: असम के इस वैज्ञानिक से सीखिए ये जादुई मशरूम उगाने का तरीका

असम की बोडोलैंड यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफेसर काम करने वाले डॉ. संदीप दास ने इस तरह के मशरूम की खोज जंगलों से की है।

मशरूम काफी पौष्टिक होता है। अपने अनोखे स्वाद के कारण यह दुनिया भर के विशेषज्ञों का पसंदीदा रहा है। दुनिया में मशरूम की 14,000 से अधिक किस्में पायी जाती हैं। यह न सिर्फ स्वाद बल्कि पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। मशरूम की अधिकांश किस्मों की खोज की जानी बाकी है।

डॉ. संदीप दास भी मशरूम पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों में से एक हैं। असम के बोडोलैंड विश्वविद्यालय में विज्ञान और प्रौद्योगिकी संकाय के 40 वर्षीय प्रोफेसर और डीन पिछले आठ सालों से विभिन्न प्रकार के मशरूम पर शोध कर रहे हैं। 

वह कहते हैं, “हमेशा से ही मशरूम की बड़े पैमाने पर खेती नहीं होती रही है। लेकिन इस क्षेत्र में काफी संभावना है। जरूरत है तो बस यह समझने की कि यह हमारे लिए किस तरह फायदेमंद है।” 

कई फायदों से भरपूर मशरूम

assam scientist
मशरूम के कई तरह के फायदे होते हैं

इस रिसर्चर ने कॉर्डिसेप्स नामक एक खास किस्म के मशरूम को उगाने के तरीके की खोज की है, जो कि संभवतः 2 लाख रूपये प्रति किलो बिकता है। इस दुर्लभ मशरूम में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-एजिंग, एंटी-कैंसर, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल, एंटी-डायबिटिक, एनर्जी और इम्युनिटी-बूस्टिंग गुण मौजूद होते हैं।

कंट्रोल लैब एनवॉयरमेंट में मशरूम उगाने वाले व्यवसायी और किसान डॉ. संदीप से सलाह देते हैं। उन्होंने उत्तर-पूर्व क्षेत्र के 2,652 किसानों, छात्रों और मशरूम की खेती में दिलचस्पी रखने वाले अन्य लोगों को ओएस्टर मशरूम की विभिन्न किस्मों को उगाने में कुशल बनाया है।

कोकराझार में ही उन्होंने अपने द्वारा प्रशिक्षित 48 किसानों के साथ मिलकर काम किया है और 25 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को प्रशिक्षित किया है। उन्होंने घर में स्पॉन (ओएस्टर मशरूम के लिए) का उत्पादन शुरू किया और इसे किसानों को 100 रुपये प्रति किलो पर उपलब्ध कराया जा रहा है। आप एक किलो स्पॉन से लगभग 15 किलो मशरूम उगा सकते हैं।

किसानों के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ कॉर्डिसेप्स के रिसर्च और विकास में उनके शानदार काम के लिए उन्हें राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों, खासतौर पर जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) से 6 करोड़ रुपये से अधिक का फंड मिला।

इस फंड से डॉ. संदीप ने बोडोलैंड विश्वविद्यालय में ‘टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेशन सेंटर फॉर इंटरप्रिन्योरशिप ऑन मशरूम कल्चर’ की स्थापना की। यहां उन्होंने अपने रिसर्च के लिए एक लैब भी बनाया।

डॉ. संदीप हमें बताया कि उन्होंने कैसे इस अनोखे सुपर मशरूम पर अपने रिसर्च की शुरूआत की और कैसे इसे उगाना शुरू किया।

जंगलों में कॉर्डिसेप्स की खोज

assam scientist
संदीप दास, प्रोफेसर और वैज्ञानिक , बोडोलैंड यूनिवर्सिटी, असम

उन्होंने सितंबर 2012 में बोडोलैंड विश्वविद्यालय ज्वाइन किया। जहां पाठ्यक्रम में सिंगल-सेल प्रोटीन पर रिसर्च की मांग हुई और मशरूम इसका सबसे अच्छा उदाहरण था। उस समय उनका पूरा फोकस एनिमल बायोटेक्नोलॉजी पर था।

40 वर्षीय शोधकर्ता, डॉ. संदीप बताते हैं, “लेकिन मशरूम उगाने के लिए यहां कोई स्पॉन (बीज) उपलब्ध नहीं था। इस क्षेत्र में मशरूम पैदा करने पर किसानों को अधिक व्यावसायिक लाभ मिल सकता था।”

वह और उनकी देखरेख में काम कर रहे कुछ अन्य रिसर्च स्कॉलर एक मिठाई की दुकान पर चाय पी रहे थे, तभी उनकी नजर ताजे मशरूम के एक पैकेट पर पड़ी। वह कहते हैं “यह देखकर हम काफी उत्साहित हुए और हमने ओएस्टर मशरूम उगाने वाले उस किसान को खोज निकाला। अंत में, उससे हमें स्पॉन मिला और यहीं से हमने अपनी शुरूआत की।

वहां पर उन्होंने अलग-अलग प्रकार के मशरूम पर शोध करना शुरू किया। उत्तर-पूर्व में वनस्पतियों और जीवों से समृद्ध घने जंगल हैं। डॉ. संदीप अपने छात्रों के साथ मशरूम की कुछ नई किस्में खोजने जंगलों में गए।

डॉ. संदीप बताते हैं, “हमने वहां मरी हुई मकड़ियों और कीड़ों पर मशरूम उगते हुए देखा। उन्हें करीब से देखने के बाद हमने पाया कि यह कॉर्डिसेप्स जैसा परजीवी मशरूम हो सकता है। कॉर्डिसेप्स पहचान में आने वाली परजीवी मशरूम की 400 उप प्रजातियों की एक प्रजाति है। इसके फंगस होस्ट परजीवी जैसे कैटरपिलर और मकड़ियों पर हमला करते हैं। फंगस द्वारा हमला किए जाने वाले ज्यादातर कैटरपिलर या कीड़े जमीन के नीचे रहते हैं। संक्रमित होने के बाद वो ऊपर आते हैं और रोगों की चपेट में आ जाते हैं। फिर इनसे मशरूम उगता है।”

assam scientist
कॉर्डिसेप्स

इस तरह के मशरूम ज्यादातर नेपाल, चीन, जापान, भूटान, और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों जैसे कोरिया, थाईलैंड और वियतनाम में पाए जाते हैं। ये मशरूम आर्द्र जलवायु और घने उष्णकटिबंधीय जंगलों में पनपते हैं। इनका महत्व कॉर्डिसेपिन के स्तर से निर्धारित होता है। यह एक कंपोनेंट है जो स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षणों और स्थितियों को सुधारने में मदद करता है।

लेकिन ओवर-कलेक्शन के कारण इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने इस प्रजाति को एक विलुप्तप्राय प्रजाति की रेड लिस्ट में शामिल किया है।

इसलिए पर्यावरण संरक्षक इन मशरूमों को विलुप्त होने से बचाने के लिए कंट्रोल्ड एनवॉयरमेंट में उगाने का सुझाव देते हैं। हालांकि डॉ. संदीप और उनकी टीम सुपर मशरूम (कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस) को उगाने के लिए कैटरपिलर के बजाय चावल का उपयोग कर रही है।

लैब में उगाना (कल्चरिंग)

assam scientist
अपनी रिसर्च टीम के साथ डॉ.संदीप

वह कहते हैं कि, “हमारे लैब में दो छोटे कमरे थे जहां हमने इन मशरूमों को उगाना शुरू किया। मशरूम उगाने के लिए हमने अच्छी गुणवत्ता के ब्राउन राइस का इस्तेमाल किया। साथ ही माइक्रो और मैक्रोन्यूट्रिएंट का मिश्रण बनाया जिसमें कॉर्डिसेप्स मशरूम के स्ट्रेन शामिल हैं। ये सारे प्रयोग चावल पर किए जाते हैं।”

उसके बाद स्टरलाइजेशन के लिए चावल को एक आटोक्लेव में रखा जाता है और 15 दिनों के लिए नियंत्रित तापमान के भीतर एक अंधेरे क्षेत्र में रखने की जरूरत होती है। इसके बाद चावल पूरी तरह से सफेद हो जाता है। फिर अगले 45 दिनों तक प्रकाश और अंधेरे की मिलीजुली प्रक्रिया चलती है। जहां मशरूम को सफेद फ्लोरोसेंट रोशनी में 12 घंटे के लिए रखा जाना चाहिए। जबकि बाकी 12 घंटे इसे एक अंधेरी जगह में रखा जाना चाहिए।

वह बताते हैं, “आप देखेंगे कि चावल धीरे-धीरे गुलाबी हो जाता है और मशरूम उगने लगता है। 60 दिनों में मशरूम की फसल तैयार हो जाती है। इसके बाद उन्हें लियोफिलाइज़र के अंदर रखा जाता है। यह एक मशीन है जो फ्रीज-ड्राइंग (लागत तापमान) टेक्निक पर काम करती है।”

डॉ. संजय बताते हैं कि जो किसान पहले से ही इस फसल को उगा रहे हैं, वो अधिक तापमान पर मशरूम को सुखा सकते हैं। लेकिन मशरूम से नमी पूरी तरह खत्म नहीं होती है।

वह आगे बताते हैं, “हालांकि लियोफिलाइज़र का इस्तेमाल हाल हिलहाल में ही शुरू हुआ है और अधिकांश लोग अपने मशरूम को  -86 डिग्री तक फ्रीजर में नहीं सुखाते हैं। यह मशरूम से पूरी तरह से नमी को खत्म कर देता है और लंबे समय तक खराब नहीं होने देता है। साथ ही इसका सेवन करना भी आसान होता है।

लैब में उगाये कॉर्डिसेप्स

इसके अलावा डॉ. संदीप कुछ जरूरी बातों पर ध्यान देने की सलाह देते हैं। वह कहते हैं कि आपका सेटअप साफ-सुथरा होना जरूरी है। हवा को साफ करने के लिए हेपा (HEPA) फिल्टर लगाया जाता है (मशरूम उगाने के लिए आवश्यक है) यह 0.22 माइक्रोन से छोटे कणों को भी फिल्टर कर सकता है।

उनके पास लॉयड ब्रांड का हॉट एंड चिल एसी भी है जो तापमान को 16 से 17 डिग्री और ह्यूमिडिटी का स्तर 85 या 90 बनाए रख सकता है।

कमरे के बाहर प्रवेश द्वारों पर एक एयर कर्टेन लगाया गया है ताकि जब कोई कमरे में आए तो हर बार गंदगी फिल्टर हो जाए।

लोगों को शिक्षित करना और विविधता लाना

कॉर्डीसेप्स मशरूम को उगाने और सुखाने में सफलता के बाद डॉ. संदीप के सेंटर में सैकड़ों फोन आने लगे। इनमें मशरूम उगाने में दिलचस्पी रखने वाले छात्र, किसान, व्यवसायी सहित जानकारी हासिल करने वाले लोग शामिल हैं।

उनके काम के बारे में पढ़ने के बाद जयपुर की रहने वाली रक्षा बैद ने उनसे संपर्क किया। पोषण विशेषज्ञ रक्षा ने अपने लैब में कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस उगाने के साथ ही सूखे फल और सब्जियां बेचने का अपना बिजनेस शुरू करने का फैसला किया।

वह कहती हैं, “मुझे लोगों तक हेल्दी और प्राकृतिक सामग्री पहुंचाने का काफी शौक है। मैं एक शाकाहारी हूं और न्यूट्रीशिनिस्ट होने के नाते मुझे पता है कि बहुत सारे शाकाहारी लोग विटामिन बी 12 की कमी से पीड़ित हैं, जो लाल रक्त कोशिकाएं बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेरे लैब में उगने वाले कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस में भरपूर मात्रा में विटामिन होता है।”

बेशक, वह उन्हें बेहतर तरीके से उगाना चाहती थीं।

वह कहती हैं, “डॉ. संदीप ने मुझे सफेद रोशनी के अलावा, लाल, नीली और पीली रोशनी में इन मशरूम को उगाने की सलाह दी, और यह तरीका सफल रहा। मैंने उनसे उनकी फ्रीज-ड्राइंग टेक्निक के बारे में भी पूछा। स्थिति सामान्य होने पर मशरूम से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए मैं उनके सेंटर जाऊंगी।“

रक्षा बैद

हैदराबाद के एक अन्य व्यवसायी अतीक पटेल पिछले दो सालों से अपना वेंचर क्लोन डील प्राइवेट लिमिटेड चला रहे हैं। वह भारत की सबसे बड़ी लैब का दावा करते हैं, जो 27,000 वर्ग फुट में फैली हुई है। यहां मुख्य रूप से कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस को उगाया जाता है।

31 वर्षीय अतीक कहते हैं, “मैंने यह समझने के लिए उन्हें कॉल किया कि वह फ्रीज टेक्निक का इस्तेमाल कैसे करते हैं। हम दोनों के लिए उनकी फ्रीज-ड्राइंग टेक्निक बेहतर साबित हुई क्योंकि इसमें मशरूम का रंग, कंपोजिशन और पोषक तत्व बरकरार रहते हैं। उन्होंने मुझे प्रकाश, तापमान और अन्य पहलुओं के संबंध में कुछ सुझाव दिए।”

लेकिन डॉ. संदीप और उनकी टीम द्वारा रिसर्च के लिए स्वीकृति डीबीटी से ही आती है।

योगेंद्र सिंह डीबीटी-नॉर्थ ईस्टर्न रीजन बायोटेक्नोलॉजी प्रोग्राम्स में मैनेजर हैं। वह याद करते हुए बताते हैं की कैसे उनकी टीम ने इस क्षेत्र के लोगों को प्रशिक्षित करने और साथ ही अपनी रिसर्च आगे जारी रखने से जुड़े प्रस्ताव के सिलसिले में सरकारी निकाय से संपर्क किया था।

उन्होंने कहा, ” वह व्यावसायिक रूप से मशरूम उगाने के लिए 3,000 लोगों को प्रशिक्षित कर चुके हैं। इसके साथ ही वह कॉर्डिसेप्स जैसा कीमती मशरूम उगाने के नए तरीके भी खोज रहे हैं। उन्होंने कम समय में उम्मीद से कहीं अधिक काम किया है। इससे कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि वह भविष्य में क्या हासिल कर सकता है।

चुनौतियां, सीख और आगे बढ़ना

सफलता के बावजूद उनकी यात्रा चुनौतियों से भरी हुई थी।

Assam scientist
एक कंट्रोल्ड वातारवरण में उगाये गए कॉर्डिसेप्स

“शुरुआत में यह काम बहुत चुनौतीपूर्ण था। हमारे हाथ जो भी लगा, हमने मशरूम से जुड़े हर इतिहास को पढ़ा। बहुत कम लोग हैं जो कॉर्डिसेप्स को विकसित करने पर काम कर रहे हैं, लेकिन भारत में अभी भी बहुत बड़े स्तर पर रिसर्च नहीं हुआ है,“ संदीप बताते हैं।

इससे उन्हें पुराने स्कूल के ट्रायल-एंड-एरर मेथड के माध्यम से सीखने में मदद मिली, जिसमें समय लगा।

वह कहते हैं, “इसके अलावा, सेट-अप में प्रत्येक चीज को हमारे द्वारा एक साथ रखा गया था। इस प्रक्रिया में बहुत अच्छी ट्यूनिंग की आवश्यकता होती है।”

पिछले कुछ महीनों में वह क्षेत्र में लोगों को अपने कॉर्डिसेप्स कैप्सूल प्रदान कर रहे हैं।

वह बताते हैं, “हमने ये 150 मिलीग्राम कैप्सूल (जो एफएसएसएआई और आईएसओ द्वारा प्रमाणित है) बनाए हैं जिनमें कॉर्डिसेप्स पाउडर मौजूद है। कोई भी एक कैप्सूल या एक गिलास गर्म पानी में पाउडर  मिलाकर सेवन कर सकता है।”

वह अपने लैब में उगाए गए ओएस्टर मशरूम की विभिन्न किस्मों के साथ खाद्य उत्पादों को उगाने का भी प्रयोग कर रहे हैं। डॉ. संदीप ने बताया कि उनकी टीम के फूड टेक्नोलॉजिस्ट, इन मशरूम का इस्तेमाल सूप मिक्स, बिस्कुट, केक, पापड़ और यहां तक कि रसगुल्ला बनाने में कर रहे हैं! इन्हें फूड एग्जीबिशन में बेचा जाता है।

उन्हें उम्मीद है कि मशरूम उगाने वाले किसानों को अपनी उपज की प्रोसेसिंग के तरीके सिखाए जा सकते हैं। इससे बिजनेस को भी बढ़ावा मिलेगा।

शिक्षाविद होने के नाते हमारा ध्यान केवल सिर्फ अधिक कीमती कॉर्डिसेप्स उगाने पर ही नहीं है। हम नए मशरूम की खोज करना चाहते हैं और आगे शोध करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, एक विशेष मशरूम का सेवन जहरीला हो सकता है, लेकिन यह एक बीमारी के इलाज के काम भी आ सकता है। इसमें बहुत सारी संभावनाएं हैं और बहुत कुछ रिसर्च करना बाकी है।

मशरूम उगाना सीखने के लिए आप +91 91019 52358 पर संपर्क कर सकते हैं।

 

मूल लेख-ANGARIKA GOGOI

यह भी पढ़ें- कभी दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर यह आदिवासी महिला, आज हैं मशरूम खेती की मास्टर ट्रेनर!

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X