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थोड़ा कबाड़, थोड़ा जुगाड़ और सिर्फ 30,000 रुपये में बन गयी कार

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सांगली, महाराष्ट्र के 44 वर्षीय अशोक आवती ने पढ़ाई भले ज्यादा न की हो, लेकिन दिमाग किसी इंजीनियर से कम नहीं। हाल ही में, उन्होंने अपने परिवार के लिए कबाड़ से एक जुगाड़ू कार बनाई है, जो दिखने में फोर्ड कंपनी के 1930 मॉडल जैसी है।

अक्सर पुरानी कारों के मॉडल्स के लिए, लोग मुँह मांगी कीमत देने को तैयार हो जाते हैं। ऐसी विंटेज कारों को म्यूजियम में देखने के भी पैसे लगते हैं। लेकिन सांगली (महाराष्ट्र) के अशोक आवती ने 1930 फोर्ड कंपनी की एक कार का मॉडल खुद तैयार किया है। वह भी सिर्फ 30 हजार रुपये खर्च करके।  

44 वर्षीय अशोक न तो कोई इंजीनियर हैं और न ही उन्होंने ज्यादा पढ़ाई की है, लेकिन कार, बाइक और ट्रैक्टर की मरम्मत करने का उन्हें काफी अनुभव है। बचपन में पैसों के आभाव में,  उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। लेकिन सीखना उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने ITI जैसी तकनीकी ट्रेनिंग भी कभी नहीं ली है, लेकिन काम करते-करते ही उन्होंने बहुत कुछ सीख लिया।  

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अशोक, एक किसान के बेटे हैं और सातवीं की पढ़ाई के बाद ही उन्होंने गराज में काम करना शुरू कर दिया था। वह कहते हैं, “मुझे गाड़ियों से विशेष लगाव है, मुझे कभी किसी ने कोई काम सिखाया नहीं है,  मैं देख-देखकर काम सीख जाता हूँ। मैंने नौकरी भी थोड़े समय के लिए ही की थी, बड़ी छोटी सी उम्र में मैंने अपना खुद का काम करना शुरू कर दिया था।”

वह बचपन से ही जुगाड़ू रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले उनके गांव में बिजली नहीं थी, तब उन्होंने मोटर के इंजन से प्रेरणा लेकर खुद ही एक पवन चक्की बनाई थी। उस पवन चक्की से उन्होंने तीन साल तक घर के सारे उपकरण भी चलाए थे। उस समय भी अशोक आस-पास के गांवों के लिए एक चर्चा का विषय बन गए थे। 

अब इस नए जुगाड़ से फिर आए चर्चा में

अशोक अब एक बार फिर चर्चा में हैं। वह अपनी माँ, पत्नी और तीन बेटियों के साथ रहते हैं।  इसलिए कहीं एक साथ जाना उनके लिए एक समस्या थी। लाखों की कार लेना उनकी पहुंच से बाहर था, ऐसे में लॉकडाउन के कारण मिले खाली समय में उन्होंने खुद ही अपनी कार बनाने की ठानी।  

वह कहते हैं, “पहली बार जब पवन चक्की बनाई, तब इंटरनेट भी नहीं था, इसलिए मुझे काफी दिक्क्त हुई थी। लेकिन इस बार मैंने यूट्यूब से वीडियो देखकर फोर्ड के 1930 का मॉडल तैयार किया। इसके लिए सारा सामान मैं कबाड़ से ही लेकर आया हूँ, जबकि इसमें इंजन टु व्हीलर का लगा है।”

अशोक को यह कार बनाने में तक़रीबन दो साल लगे, जिसके लिए उन्होंने कुल 30 हजार रुपये खर्च किए। लेकिन क्योंकि यह कार जुगाड़ से बनी है, इसलिए वह इसे रजिस्टर नहीं करा सकते हैं। हालांकि, हाल ही में एक जरूरी काम के सिलसिले में उन्होंने इस कार से 90 किमी की लम्बी यात्रा भी तय की थी।  

वह कहते हैं कि अगर उन्हें लाइसेंस मिले, तो वह और भी सस्ती और अच्छी जुगाड़ू कारें दूसरों के लिए भी बना सकते हैं। वह जब भी अपनी कार लेकर आस-पास के गांव में जाते हैं, तो लोग उनके कार की फोटो खीचते हैं और उनसे ऐसी कार बनाने को कहते हैं। 

अपनी किसी भी परेशानी के लिए अशोक दूसरों पर निर्भर नहीं रहते, बल्कि अपने हुनर से खुद ही रास्ता निकाल लेते हैं। 

संपादन-अर्चना दुबे

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