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अब आप ले सकते है मुंबई की टैक्सी में सफ़र का मज़ा भी और सीख सकते है एक अनोखी भाषा भी!

टैक्सी के फैब्रिक पर भारतीय सांकेतिक भाषा को अंकित करना बेहद ही रचनात्मक कल्पना है। आइये आज हम ऐसे ही एक डिज़ाइनर के बारे में जानते है जिसका मक्सद इस भाषा को प्रचलित करना ही नहीं बल्कि लोगो में इसे सिखने की चाह बढ़ाना भी है।

टैक्सी के फैब्रिक पर भारतीय सांकेतिक भाषा को अंकित करना बेहद ही रचनात्मक कल्पना है। आइये आज हम ऐसे ही एक डिज़ाइनर के बारे में जानते है जिसका मक्सद इस भाषा को प्रचलित करना ही नहीं बल्कि लोगो में इसे सिखने की चाह बढ़ाना भी है।

“सांकेतिक भाषा एक महत्वपूर्ण भाषा है और हम सबको इसे सीखना चाहिये। भारत में बहरे और गूंगे लोग बहोत ज्यादा है। अगर आप उनकी भाषा नहीं समझ सकते तो आप उनके साथ बाते नहीं कर सकते।“

ये कहना है २३ वर्षीय हर्षित विश्वकर्मा का जो दिल्ली से विजुअल कम्युनिकेशन डिजाई  ग्रेजुएट है।

हर्षित ने मुंबई में एक टैक्सी को रचनात्मक तरीके से डिजाईन किया जिसमे सांकेतिक भाषा का पूर्ण तरह से उपयोग किया गया है। इसका उद्देश न सिर्फ लोगो में इस भाषा का प्रचार करना है, बल्कि साथ में बहरे और गूंगे लोग जिस तरह हाथ के इशारों का इस्तेमाल करते है उसे भी प्रचलित करना है।

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टैक्सी जिसे सांकेतिक भाषा से डिजाईन किया है

हर्षित, ‘टैक्सी फैब्रिक’ नामक एक संस्था से जुडा है जो डिज़ाइनरो और टैक्सी ड्राईवरो को एकत्रित करके मुंबई के टैक्सी में कलात्मक रचना करते है। टैक्सी के फैब्रिक पर सांकेतिक भाषा के A-Z अल्फाबेट्स अंकित करते है।

कॉलेज में घटी हुयी एक घटना ने हर्षित को इस काम के लिये प्रेरित किया है।

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हर्षित विश्वकर्मा

हर्षित कहते है-

“दिल्ली में मेरे कॉलेज में एक प्रोग्राम का आयोजन किया गया था, जिसमे बहरे और गूंगे लोगो के साथ साधारण लोग भी शामिल थे। हमें उन विद्यार्थीयो के साथ बाते करने में दिक्कत हो रही थी। एक दुसरे की भाषा अलग होने के कारण हम आपस में बात नहीं कर सकते थे। वो लोग हमेशा अलग रहते थे इसलिये मुझे उनसे बात करने का मौका नहीं मिला।“

हर्षित सांकेतिक भाषा से बहोत ही प्रभावित थे और कॉलेज ख़त्म होने के बाद भी उनका ये लगाव कम नहीं हुआ। उनकी मुलाकात एक महिला से हुयी जो दूरदर्शन पर सांकेतिक भाषा के लिये दुभाषक का काम करती थी। इस मुलाकात में हर्षित को भारतीय सांकेतिक भाषा के बारे में पता चला जो दुनिया के अन्य सांकेतिक भाषाओ से भिन्न थी।
वो कहते है,

“अमेरिकन सांकेतिक भाषा में सिर्फ एक हाथ का इस्तेमाल होता है पर भारतीय सांकेतिक भाषा में दोनों हाथो का इस्तेमाल होता है जो ब्रिटिश सांकेतिक भाषा से प्रभावित थी। इस भाषा में ५००० शब्द है।“

विजुअल कम्युनिकेशन की पढाई की वजह से हर्षित को सांकेतिक भाषा  में दिलचस्पी होने लगी क्योंकि इस भाषा में दृश्य, संकेत और अभिव्यक्ति का समावेश था।

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अभिव्यक्ति

दुनियाभर में, भारत में सबसे ज्यादा बधिर है (भारत की ६ प्रतिशत आबादी को सुनने में दिक्कत होती है) और साधारण लोगो को उनकी सांकेतिक भाषा के बारे में पता नहीं है इस बात से हर्षित परेशान हुये।

“मैंने इस भाषा को सीखना शुरू किया और मुझे मजा आने लगा। मुझे लगा लोग इसे सीखने में दिलचस्पी लेने लगेंगे। बहरे लोगो के साथ बात करने में इस भाषा का उपयोग तो होगा ही पर दोस्तों में गुप्त तरह से बात करने में भी इसका उपयोग होगा। इसका इस्तेमाल आप लाइब्रेरी, पानी में और शोर वाली जगहो पर  कर सकते है।“

हर्षित जानता है किअगर इस भाषा को अनोखे तरह से सिखाया जाये तो लोग इसे सीखने में दिलचस्पी लेंगे।

हर्षित सांकेतिक भाषा पर किताब नहीं लिखना चाहता था जिसे लोग खरीदकर पढ़े।

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चलो बाते करते है

हर्षित इस भाषा को सर्व सामान्य लोगो की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करना चाहते थे जिससे उनमे भाषा को सिखने में दिलचस्पी पैदा हो।

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टैक्सी के माध्यम से हर्षित सांकेतिक भाषा का प्रचार कर रहा है

हर्षित कहते है,

“ मैं इस भाषा को सरल करना चाहता हूँ। लोग इसे दया के कारण ना सीखे बल्कि बहरे और गूंगे लोगो के साथ बाते करने में उन्हें आसानी हो।”

इसके बाद हर्षित ने टैक्सी फैब्रिक से संपर्क किया।
२०१३ में मुंबई स्थित डिज़ाइनर संकेत अवलानी ने टैक्सी फैब्रिक नामक संस्था का निर्माण किया जिसके ३ मुख्य उद्देश है-

  • टैक्सी के फैब्रिक को कैनवास बनाया जाये ताकि डिज़ाइनर अपनी कला का प्रदर्शन कर सखे।
  • जितनी देर लोग टैक्सी में बैठे उसका उपयोग कुछ सिखने में करे।
  • सामाजिक सन्देश का प्रसार करे जैसे हर्षित करना चाहता था।

इस अभियान के अंतर्गत डिज़ाइनर टैक्सी में फेब्रिक के लिये डिजाईन सोच सके और पॉलिस्टर से बने कैनवास पर बना सके।

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मुंबई के वर्कशॉप में टैक्सी को लाया जाता है और उसमे फैब्रिक लगाया जाता है। टैक्सी फैब्रिक इसका पूरा खर्चा उठाती है।

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हर्षित कहते है

“भारत में लोगो को लगता है कि डिजाईन एक महंगा प्रोफेशन है, पर ये सच नहीं है। डिजाईन शहर के सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में मदद करती है। डिज़ाइनर को अपनी कला साधारण लोगो में दिखाने के लिये मुश्किल होती है पर टैक्सी फैब्रिक की मदत से डिज़ाइनर अपनी कला का प्रदर्शन कर सकते है।“

हर्षित कहते है कि उसका सांकेतिक भाषा का प्रोजेक्ट टैक्सी फैब्रिक के मिशन जैसा ही है, जिससे वो अपनी कला का प्रदर्शन कर सकता है और टैक्सी द्वारा बधिर और साधारण लोगो में सामाजिक सन्देश दे सकता है।

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वो कहता है

“लोग टैक्सी मे सिर्फ १० मिनट के लिये बैठते है। मैं टैक्सी को इस तरह से डिजाईन करना चाहता था के सिर्फ १० मिनट में लोग इस सांकेतिक भाषा को सिख सके। मैं फैब्रिक को रंगीन और अद्भुत बनाना चाहता था जिससे लोगो को सिखने में मजा आये।“

हर्षित ने बड़ी मेहनत से १० दिन में इस प्रोजेक्ट को पूर्ण किया। उसने तय किया था कि वो टैक्सी को डिजाईन करके ‘वर्ल्ड डेफ डे’, सितम्बर २५ को मूक-बधिर विद्यार्थीयो के स्कूल में दिखायेगा और उसने अपना वादा पूरा किया।

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स्कूल के बच्चे इस टैक्सी को देखकर बहुत खुश हुये क्यूंकि उनकी भाषा को बहुत ही अनोखे ढंग से हर्षित ने पेश किया था।

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कुछ बच्चो को लगा कि ऐसा डिजाईन विमान में होना चाहिये और कुछ बच्चो ने टैक्सी ड्राईवर का नंबर लिया ताकि वो अगली बार उस टैक्सी में सफ़र कर सके।

हर्षित बताता है-

“उस दिन हमें बहुत ज्यादा ख़ुशी हुयी। ड्राईवर भी बहुत खुश थे।”

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हर्षित कहते है

“सांकेतिक भाषा को लोग अच्छी तरह से समझ सके और इस्तेमाल कर सके यही मेरी कोशिश रहेगी। भारतीय सांकेतिक भाषा को मैं अलग तरह से प्रचलित कर रहा हूँ।“

आप www.taxifabric.org पर टैक्सी फैब्रिक के बारे में जान सकते है और harshit.vishwakarma@gmail.com पर हर्षित को लिख सखते है।

मूल लेख तान्या सिंह द्वारा लिखित

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