पद्म श्री से सम्मानित हुए डॉ. एनपी मिश्रा, भोपाल त्रासदी में बचाई थी 10 हज़ार लोगों की जान

Dr NP Mishra's Family

डॉ. एनपी मिश्रा को हाल ही में मरणोपरांत पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें मध्य प्रदेश के चिकित्सा जगत का पितामह माना जाता है, जानिए क्यों!

भारत 3 दिसंबर 1984 की काली रात को लाख कोशिशों के बाद भी भूला नहीं सकता है। इस दिन भोपाल के यूनियन कार्बाइड प्लांट में जहरीली गैस के रिसाव के कारण हजारों लोगों की सांसे थम गईं। 

इस त्रासदी में आधिकारिक तौर कुछ ही पलों में तीन हजार से अधिक लोगों की जान चली गई। इस घटना की भयावह तस्वीरों को देख आज भी लोगों की रूह कांप जाती है।

आज हम एक ऐसे डॉक्टर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के दौरान अपनी सूझबूझ से हजारों लोगों की जान बचाई। दरअसल, यह कहानी है डॉ. एनपी मिश्रा की, जिन्हें हाल ही में मरणोपरांत पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

वह एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्हें लोग मध्य प्रदेश के चिकित्सा जगत का पितामह मानते हैं।

मूल रूप से मध्य प्रदेश के ग्वालियर के रहने वाले डॉ. एनपी मिश्रा ने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज से पूरी की और आगे चलकर 1969-70 में यहीं पढ़ाना भी शुरू कर दिया।

Renowned Doctor Dr NP Mishra
दिवंगत डॉ एनपी मिश्रा

कुछ वर्षों में वह मेडिसिन डिपार्टमेंट के निदेशक और फिर कॉलेज के डीन भी बने। कहा जाता है कि 1980 के दौर में उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ चुकी थी, कि ग्वालियर में उनके एक कार्यक्रम में पैर रखने की भी जगह नहीं थी। उस दौर में हर कोई उनको सुनना चाहता था।

कहा जाता है कि जिस रात भोपाल में गैस त्रासदी हुई, वह माइग्रेन से जूझ रहे थे। लेकिन उन्होंने मुसीबत की इस घड़ी में अपनी परवाह किए बगैर लोगों की जान बचाने में जुट गए।

यह भी पढ़ें – बिहार: डॉक्टर की फीस सिर्फ 50 रुपए, जरूरतमंदों की करते हैं आर्थिक मदद, लोग मानते हैं मसीहा

घटना की जानकारी मिलते ही उन्होंने पूरी बागडोर संभाली और हॉस्टल से सभी छात्रों को रातोंरात अस्पताल में ड्यूटी पर लगा दिया। कहा जाता है कि दो ट्रकों में 50 से अधिक सैनिक कहीं जा रहे थे, लेकिन जहरीली गैस की चपेट में आने से सभी की हालत काफी नाजुक हो गई। लेकिन अपनी दृढ़ता से डॉ. एनपी मिश्रा ने उन्हें बचा लिया।

लेकिन उनके लिए अभी मुश्किलें कम नहीं होने वाली थी। कुछ ही घंटे में मामले तेजी से बढ़ने लगे और अस्पताल में जगह की कमी होने लगी। यह देख लोगों को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना है।

लेकिन एनपी मिश्रा हार मानने वालों में से नहीं थे और उन्होंने काफी कम समय में हमीदिया अस्पताल में 10 हजार से अधिक मरीजों का इलाज करने की व्यवस्था की।

Dr NP Mishra in his clinic in Bhopal
डॉ. मिश्रा ने 90 साल की उम्र में ली अपनी आखिरी सांस

उस वक्त वह खुद माइग्रेन से जूझ रहे थे, लेकिन लोगों की जिंदगी को बचाने के लिए उन्हें अपनी परवाह किए बगैर दिन-रात एक कर दिया।

मेडिकल फिल्ड में उल्लेखनीय योगदानों के लिए, 1992 में भारतीय चिकित्सा परिषद ने उन्हें प्रतिष्ठित डॉ. बीसी राय पुरस्कार से सम्मानित किया, जो महान डॉक्टर और स्वतंत्रता सेनानी बिधान चंद्र रॉय के नाम पर साइंस, आर्ट्स और मेडिकल के फिल्ड में हर साल दिया जाता है।

डॉ. मिश्रा सिर्फ एक अच्छे डॉक्टर ही नहीं, बल्कि एक अच्छे शिक्षक भी थे और उन्होंने अपने जीवन में कई बड़े डॉक्टरों को राह दिखाई। इसलिए 1995 में एसोसिएशन आफ फिजीशियंस ऑफ इंडिया ने उन्हें गिफ्टेड टीचर अवार्ड से सम्मानित किया।

उनका जीवन काफी सरल था और उन्होंने लाखों गरीब मरीजों का मुफ्त में इलाज किया। बीते साल शिक्षक दिवस के दिन इस महान डॉक्टर ने लंबी बीमारी के बाद इस दुनिया को अलविदा कह दिया। तब वह 90 साल के थे।

वह अपने अंतिम समय में भी काफी सक्रिय थे और कोरोना महामारी के दौर में कई युवा डॉक्टरों मार्गदर्शन किया। उनकी लिखी किताब प्रोग्रेस एंड कार्डियोलॉजी देश में मेडिकल पेशेवरों के लिए किसी बाइबिल से कम नहीं है। उन्हें जानने वाले कहते हैं कि एक डॉक्टर के तौर पर उन्होंने कभी किसी से भेदभाव नहीं किया और समाज के प्रति हमेशा संवेदनशील बने रहे।

संपादन- जी एन झा

यह भी पढ़ें – नंगे पांव, सादा लिबास, सरल व्यक्तित्व, हल्की मुस्कान! पद्म श्री तुलसी को सभी ने किया सलाम

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X